प्रार्थना का स्थान - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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प्रार्थना का स्थान

मसीही जीवन का लक्ष्य क्या है? उसका लक्ष्य ईश्वरभक्ति है, जो मसीह के प्रति आज्ञापालन से उत्पन्न होती है। आज्ञाकारिता मसीही अनुभव के धन के कोष को खोल देती है। प्रार्थना आज्ञा पालन करने के लिए प्रोत्साहन और पोषण प्रदान करती है, हमारे हृदय को सही “मानसिक स्थिति” में लाने के द्वारा ताकि वह आज्ञाकारिता की इच्छा करे। 

निस्सन्देह, ज्ञान भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना हम नहीं जान सकते कि परमेश्वर हमसे क्या चाहता है। फिर भी, ज्ञान और सत्य अमूर्त रह जाते हैं जब तक कि हम परमेश्वर के साथ प्रार्थना में संगति न करें। पवित्र आत्मा हमें परमेश्वर के वचन को सिखाता है, प्रेरित करता है और ज्योतिर्मय करता है। वह परमेश्वर के वचन की मध्यस्थता करता है और प्रार्थना में पिता को प्रतिउत्तर देने में हमारी सहायता करता है। 

किसी भी मसीही के जीवन में प्रार्थना का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सबसे पहले, यह उद्धार के लिए अनिवार्य है। कुछ लोग सुन नहीं सकते हैं; और यद्यपि वे बहरे हैं, उनका उद्धार हो सकता है। कुछ लोग देख नहीं सकते हैं; और यद्यपि वे अन्धे हैं, उनका उद्धार हो सकता है। शुभ सन्देश का ज्ञान–उस उद्धार का ज्ञान जो यीशु ख्रीष्ट की प्रयश्चित करने वाली मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा है–किसी न किसी स्रोत से आएगा, परन्तु अन्तिम विश्लेषण में, व्यक्ति को नम्रतापूर्वक परमेश्वर से उद्धार माँगना होगा। उद्धार की प्रार्थना दुष्ट जन की वह एक प्रार्थना है जिसके लिए परमेश्वर ने कहा है कि वह उसे सुनेगा।

स्वर्ग में उपस्थित लोगों में कौनसी बातें समान्य हैं? कई बातें। उन सब को धर्मी ठहराया गया है, ख्रीष्ट के प्रायश्चित्त पर विश्वास लाने के कारण। वे सब परमेश्वर की स्तुति कर रहे हैं। और उन सब ने उद्धार के लिए प्रार्थना की है। प्रार्थना-रहित होने का अर्थ है परमेश्वर-रहित, ख्रीष्ट-रहित, पवित्र आत्मा-रहित, और स्वर्ग की आशा और वास्तविकता-रहित होना।

दूसरा, मसीही व्यक्ति का निश्चित चिन्ह उसके प्रार्थना का जीवन है। ऐसा सम्भव है कि कोई व्यक्ति प्रार्थना करे और वह मसीही न हो, परन्तु ऐसा नहीं हो सकता कि कोई व्यक्ति मसीही हो और वह प्रार्थना न करे। रोमियों 8:15 हमें बताता है कि जिस आत्मिक लेपालकपन ने हमें परमेश्वर की सन्तान बना दिया है वह हमें इन शाब्दिक अभिव्यक्ति को पुकारने के लिए प्रेरित करता है “हे अब्बा! हे पिता!”। मसीही जीवन के लिए प्रार्थना ठीक वैसे ही है, जैसे जीवन के लिए श्वास, तौभी मसीही जीवन का कोई भी कर्तव्य इतना अधिक उपेक्षित नहीं होता है।

प्रार्थना, कम से कम व्यक्तिगत प्रार्थना, एक झूठी मनसा से करना कठिन है। एक व्यक्ति झूठी मनसा से प्रचार कर सकता है, जैसा कि झूठे प्रचारक करते हैं। एक व्यक्ति झूठी मनसा से मसीही गतिविधियों में सम्मिलित हो सकता है। धर्म के कई बाहरी कार्य झूठी मनसा से किए जा सकते हैं, परन्तु, इसकी सम्भावना बहुत कम है कि कोई व्यक्ति अनुचित मनसा से परमेश्वर के साथ संगति करे। मत्ती 7 हमें बताता है कि “अन्तिम दिन” के समय बहुत लोग न्याय के समय खड़े होंगे और ख्रीष्ट को उसके नाम में किए गए महान और उत्तम कार्यों के विषय में बाताएँगे, परन्तु उसका उत्तर होगा कि वह उन्हें कभी भी नहीं जानता था।

अतः, प्रार्थना करने के लिए हमें आमन्त्रित किया गया है, और यहाँ तक कि आज्ञा भी दी गई है। प्रार्थना दोनों एक सौभाग्य और कर्तव्य भी है, और कोई भी कर्तव्य श्रमसाध्य बन सकता है। प्रार्थना में भी मसीही उन्नति के अन्य साधनों के नाई, परिश्रम की आवश्यकता होती है। एक प्रकार से, प्रार्थना करना हमारे लिए अस्वभाविक हैं। यद्यपि हम बनाए गए थे परमेश्वर के साथ संगति करने और सम्बन्ध रखने के लिए, परन्तु पाप के प्रभाव ने हम में से अधिकांश लोगों को प्रार्थना जैसी महत्वपूर्ण बात के प्रति आलसी और उदासीन बना दिया है। पुनरुज्जीवन परमेश्वर के साथ संगति के लिए एक नई इच्छा को उत्पन्न करता है, परन्तु पाप आत्मा का विरोध करता है।

हम इस सत्य से सान्त्वना पा सकते हैं कि परमेश्वर हमारे हृदयों को जानता है और हमारे होंठों से निकले हुए विनतियों के साथ ही साथ, अव्यक्त विनतियों को भी सुनता है। जब भी हम अपने प्राणों की गहरी भावनाओं और भावों को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं या जब हम पूर्ण रूप से अस्पष्ट होते हैं कि हमें क्या प्रार्थना करनी चाहिए, तो पवित्र आत्मा हमारे लिए मध्यस्थता करता है। रोमियों 8:26–27 कहता है,

इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है; क्योंकि हम नहीं जानते कि हमें प्रार्थना किस प्रकार करनी चाहिए, परन्तु आत्मा स्वयं भी ऐसी आहें भर भर कर जो अवर्णनीय हैं हमारे लिए विनती करता है, और हृदयों को जाँचने वाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है, क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छानुसार विनती करता है।

जब हम किसी स्थिति में नहीं जानते कि कैसे प्रार्थना करना चाहिए और क्या प्रार्थना करना चाहिए, तो पवित्र आत्मा हमारी सहायता करता है। इस खण्ड से हमारे पास यह विश्वास करने का आधार है कि यदि हम त्रुटि पूर्वक प्रार्थना करते हैं, तो पवित्र आत्मा हमारी प्रार्थनाओं को पिता के सम्मुख ले जाने से पहले उन त्रुटियों को ठीक करता है, क्योंकि पद 27 हमें यह बताता हैं, कि वह “पवित्र लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छानुसार विनती करता है।” 

प्रार्थना पवित्रता का रहस्य है —यदि वास्तव में, पवित्रता में कुछ भी रहस्यमय है तो। यदि हम ध्यान से कलीसिया के महान संतों के जीवनों को जांचें, तो हम पाते हैं कि वे प्रार्थना के महान लोग थे। जॉन वेस्ली ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि वह उन सेवकों को उतना महत्व नहीं देते थे जो प्रार्थना में प्रतिदिन कम से कम चार घण्टे व्यतीत नहीं किया करते थे। लूथर ने कहा कि वह नियमित रीति से हर दिन एक घण्टे प्रार्थना करते थे, जब तक कि वह विशेष रूप से व्यस्त दिन का अनुभव न कर रहे हों। तब तो वह दो घण्टे प्रार्थना करते थे।

प्रार्थना की उपेक्षा करना मसीही जीवन में विकासहीनता का एक प्रमुख कारण है। लूका 22:39–62 में पतरस के उदाहरण पर विचार कीजिए। यीशु प्रार्थना करने के लिए अपनी रीति के अनुसार जैतून के पर्वत पर गया, और उसने अपने चेलों से कहा, “प्रार्थना करो कि तुम परीक्षा में न पड़ो।” परन्तु इसके विपरीत चेले सो गए। पतरस ने जो अगला कार्य किया वह था एक तलवार से रोमी सेना का सामना करने का प्रयत्न; तद्पश्चात उसने मसीह का इनकार किया। पतरस ने प्रार्थना नहीं किया, और इसके परिणामस्वरूप वह परीक्षा में पड़ गया। पतरस के विषय में जो सत्य है वह हम सब के लिए भी सत्य है: इससे पहले कि हम सार्वजनिक रीति से गिरें हम व्यक्तिगत रीति से गिरते हैं।

क्या प्रार्थना के लिए कोई उचित और अनुचित समय होता है? यशायाह 50:4 बताता है कि परमेश्वर प्रतिदिन भोर के समय प्रार्थना करने की इच्छा देता है। परन्तु बाइबल के अन्य खण्ड दिन के प्रत्येक घण्टों में प्रार्थना करने की बात करते हैं। दिन का कोई भी भाग अन्य से अधिक पवित्र ठहरा कर पृथक नहीं किया गया है। यीशु ने प्रातः, दिन के समय और कभी-कभी रात भर प्रार्थना की। इस बात का प्रमाण है कि उसने प्रार्थना के लिए एक समय पृथक रखा था; फिर भी, पिता के साथ यीशु के सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए, हम जानते हैं कि उनके बीच की संगति कभी रुकी नहीं थी।

1 थिस्सलुनीकियों 5:17 हमें निरन्तर प्रार्थना करने के लिए आज्ञा देता है। इसका यह अर्थ है कि हमें निरन्तर अपने पिता के साथ संगति करते रहना चाहिए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।