Thinking Like Jesus
यीशु के समान सोचना
27 नवम्बर 2025
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27 नवम्बर 2025

प्रचार और शिक्षा

Preaching and Teaching

कई वर्षो से, मैंने मार्टिन लूथर और जॉन केल्विन जैसे पुरुषों के प्रति अपनी प्रशंसा कभी छिपाई नहीं है, जिन्होंने सोलहवीं शताब्दी के प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार के समय सुसमाचार के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मैं उनकी महान बुद्धिमत्ता और विपरीत परिस्थितियों में दृढ़ खड़े रहने की क्षमता से अचम्भित हूँ। बाइबलीय सत्य के प्रति उनका प्रेम अनुकरणीय है। मैं विशेष रूप से उनके पास्टरीय आदर्श के लिए आभारी हूँ। दोनों ही व्यक्ति अपने समय में प्रतिष्ठित थे, परन्तु दोनों में से किसी ने भी अनुयायियों के एक आन्दोलन को दृढ़ करने के लिए यूरोप की यात्राएँ नहीं कीं। इसके विपरीत, दोनों ने अपने आप को वचन का प्रचार और शिक्षा देने की अपनी प्राथमिक बुलाहट के प्रति समर्पित किया। दोनों ही व्यक्ति परिश्रमी उपदेशक थे—लूथर जर्मनी के विटेनबर्ग में और केल्विन स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में। उन्होंने परमेश्वर के वचन की सेवा को बहुत गम्भीरता से लिया, इसलिए जब वे प्रचारक के कार्य के विषय में बात करते हैं, तो मैं बहुत ध्यान से सुनता हूँ।

एक दशक से भी अधिक समय पहले मुझे प्रचार के विषय में मार्टिन लूथर के दृष्टिकोण पर एक व्याख्यान देने के लिए आमन्त्रित किया गया था, और मैंने पाया कि उसकी तैयारी ने एक प्रचारक के रूप में मेरे अपने कार्य के लिए बहुत मूल्यवान सिद्ध हुई। मैंने यह भी पाया कि लूथर ने जो बातें प्रचार के विषय में कहीं, वे केवल पास्टर के लिए ही नहीं, वरन् सम्पूर्ण कलीसिया के लिए थीं, और यह अद्भुत है कि उनके शब्द आज भी कितने प्रासंगिक हैं।

लूथर की लेखनी में हमें बार-बार इस एक बात पर बल दिखता है कि प्रचारक को “शिक्षा देने में निपुण” होना चाहिए। देखा जाए तो यह कोई नई समझ नहीं है, क्योंकि वह उन्हीं योग्यताएँ को दोहरा रहे हैं जो नए नियम में कलीसिया के प्राचीनों के लिए बताई गई हैं (1 तीमुथियुस 3:2)। फिर भी, आज हम अपने प्रचारकों से जो अपेक्षा रखते हैं, उसके सन्दर्भ में लूथर के शब्दों को, जो बाइबल के प्रकाशन की प्रतिध्वनि हैं, हमें फिर से सुनने की आवश्यकता है। आज की कलीसिया में यह धारणा लगभग खो गई है कि सेवक का मुख्य कार्य शिक्षा देना है। जब हम अपने कलीसियाओं में सेवक बुलाते हैं, तो हम प्राय: ऐसे लोगों की खोज करते हैं जो कुशल प्रशासक, सक्षम धन-संग्रहकर्ता, और अच्छे आयोजक हों। हाँ, हम यह चाहते हैं कि उन्हें कुछ ईश्वरविज्ञान और बाइबल के विषय में कुछ ज्ञान हो, परन्तु हम यह प्राथमिकता नहीं मानते कि वे परमेश्वर की बातों की शिक्षा देने के लिए सक्षम हों। प्रबन्धकारी सम्बन्धी कार्यों को अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है।

यह वह नमूना नहीं है जिसकी शिक्षा स्वयं यीशु ने दी थी। आपको वह वार्तालाप स्मरण होगा जो पुनरुत्थान के बाद यीशु का पतरस के साथ हुई। पतरस ने तीन बार सार्वजनिक रूप से यीशु का इनकार किया था, और यीशु ने भी उसे पुनर्स्थापित किया, तीन बार यह कहते हुए कि “मेरी भेड़ों को चरा” (यूहन्ना 21:15–19)। व्यापक अर्थ में, यह बुलाहट कलीसिया के प्राचीनों और सेवकों को भी दी जाती है, क्योंकि संसार भर की कलीसियाओं में एकत्रित परमेश्वर के लोग यीशु के हैं। वे उसकी भेड़ें हैं। और प्रत्येक नियुक्त किया गया सेवक परमेश्वर द्वारा इन भेड़ों की देखभाल का कार्य सौंपा और समर्पित किया गया है। इसी कारण हम इस सेवा को “चरवाही” कहते हैं, क्योंकि सेवकों को ख्रीष्ट की भेड़ों की देखभाल के लिए बुलाया गया है। पास्टर ख्रीष्ट के अधीन-चरवाहे हैं, और कौन-सा चरवाहा अपनी भेड़ों की इतनी उपेक्षा करेगा कि वह उन्हें खिलाने के लिए कभी समय का कठिनाई न उठाए? हमारे प्रभु की भेड़ों को खिलाना मुख्यतः शिक्षा देने  के माध्यम से होता है।

सामान्यतः हम प्रचार और शिक्षा के बीच भेद करते हैं। प्रचार में उपदेश, अर्थप्रकाशन, चेतावनी, प्रोत्साहन और सान्त्वना जैसी बातें सम्मिलित होती हैं, जबकि शिक्षा विभिन्न विषयों की जानकारी और निर्देश के रूप में लोगों तक पहुँचाने का कार्य है। परन्तु अभ्यास में, इन दोनों के बीच बहुत समानता है। प्रचार में भी विषय-वस्तु का संचार करना तथा शिक्षा को सम्मिलित करना अत्यन्त आवश्यक है, और परमेश्वर की बातों की शिक्षा देना एक तटस्थ कार्य नहीं हो सकता—इसे लोगों को ख्रीष्ट के वचन को मानने और उसका पालन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। परमेश्वर के लोगों को प्रचार तथा शिक्षा दोनों की आवश्यकता होती है, और उन्हें सप्ताह में बीस मिनट से अधिक निर्देश और प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। एक अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों को सप्ताह में एक ही बार नहीं खिलाएगा, और इसी के कारण लूथर विटेनबर्ग में लोगों को लगभग प्रतिदिन शिक्षा दे रहे थे, और कैल्विन जिनेवा में यही कार्य कर रहे थे। मैं यह नहीं कह रहा कि हमें आज पूर्णत: वही प्रथाएँ अपनानी चाहिए, पर मैं निश्चित रूप से मानता हूँ कि कलीसिया को अपने पूर्वजों की नियमित शिक्षा-सेवा की भावना को फिर से प्राप्त करने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे वे कर सकते हैं, कलीसियाओं को चाहिए कि वे परमेश्वर के वचन को सुनने और सिखाए जाने के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराएँ—जैसे रविवार की शाम की आराधना, सप्ताह के मध्य की सभाएँ और बाइबल कक्षाएँ, सण्डे स्कूल, घरों में बाइबल अध्ययन आदि। ऐसे अवसर विश्वासियों को सप्ताह में कई बार परमेश्वर के वचन से पोषण पाने में सहायता करते हैं। और जहाँ सम्भव हो, विश्वासियों को भी चाहिए कि वे पवित्रशास्त्र की गहरी सच्चाइयों की शिक्षा के लिए उपलब्ध अवसरों का भरपूर उपयोग करें।

मै यह बात इस उद्देश्य से नहीं कह रहा कि केवल कुछ करने के लिए अधिक कार्यक्रम बनाए जाएँ, और न ही मैं कलीसिया के सदस्यों या कर्मचारियों पर कोई अनावश्यक बोझ डालना चाहता हूँ। परन्तु इतिहास हमें दिखाता है कि कलीसिया में जागृति और धर्मसुधार के सबसे महान काल वही रहे हैं, जहाँ परमेश्वर के वचन का बारम्बार, नियमित, और स्पष्ट रूप से प्रचार किया गया है। यदि हम चाहते हैं कि पवित्र आत्मा हमारी कलीसियाओं और हमारे देश में नया जीवन और परिवर्तन लाए, तो इसके लिए ऐसे प्रचारकों की आवश्यकता होगी जो पवित्रशास्त्र का अर्थप्रकाशन करने के प्रति समर्पित हों। और साथ ही ऐसे विश्वासी भी चाहिए जो ऐसे चरवाहों की खोज करें जो उन्हें परमेश्वर का वचन खिलाएँ, और जो बाइबलीय शिक्षा के अवसर का पूरा लाभ उठाएँ।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।