उद्धार - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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3 सितम्बर 2024
कलीसिया
10 सितम्बर 2024
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उद्धार

प्रथम विश्व युद्ध ने यूरोप को उथल-पुथल कर दिया, ज्ञानोदय के आशावाद को ध्वस्त कर दिया और उत्तर-ज्ञानोदय के यूरोप का आरम्भ किया। परन्तु अमरीका में, युद्ध से विचलित हुए बिना युवा लोगों ने सामाजिक कार्य के माध्यम से पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को लाने का प्रयास करने लगे। उन्होंने अपने सन्देश को “सामाजिक सुसमाचार” कहा, और इसके मुख्य प्रचारक वाल्टर रौशनबुश (1861-1918) थे, जिन्होंने हेल्स किचन (न्यू यॉर्क में) में पाई गई निर्धनता को दूर करने के प्रयास में सामाजिक सुधार के “सुसमाचार” का प्रचार किया और सामाजिक कार्यों के माध्यम से पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को लाने की दिशा में काम किया। यह उनके लिए उद्धार की परिभाषा थी।
परन्तु जे. ग्रेशम मेचन (1881-1936) भी प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् जीवित रहे और उन्होंने एक अलग धर्मसिद्धान्त की रक्षा की, जो इस बात को मानती है कि दृश्य कलीसिया पृथ्वी पर ख्रीष्ट के आत्मिक साम्राज्य का प्रतिनिधित्व करता है और मसीहियों का अस्तित्व उस स्थान में है जिसे जॉन कैल्विन ने “दोहरा साम्राज्य” (twofold kingdom) कहा था (इंस्टिटियूटस 3.19.15)। ​​मेचन के लिए, उद्धार एक ऐसा बड़ा विचार था जिसे पूरी रीति से पृथ्वी पर नहीं लाया जा सकता था। उन्होंने माना कि मसीहियत “निश्चित रूप से एक जीवन” था, परन्तु इसे कैसे बनाया गया? सामाजिक सुसमाचार प्रचारकों ने सोचा कि वे “प्रोत्साहन द्वारा” उस जीवन को ला सकते हैं, मेचन ने लिखा, परन्तु ऐसा दृष्टिकोण सदा “शक्तिहीन” प्रमाणित होता है। “मसीहियत में आश्चर्य की बात यह थी,” उन्होंने समझाया, “कि इसने एक पूरी रीति से अलग पद्धति अपनाया। इसने लोगों के जीवन को, मानवीय इच्छा से याचना करके नहीं, वरन् एक कहानी बताकर बदल दिया; प्रोत्साहन द्वारा नहीं, वरन् एक घटने के वर्णन करने के द्वारा।” उन्होंने माना कि ऐसी पद्धति “अव्यावहारिक” प्रतीत होता है। इसे पौलुस ने “‘सन्देश की मूर्खता कहा।’… यह प्राचीन जगत को मूर्खतापूर्ण लगा, और आज उदारवादी शिक्षकों को भी मूर्खतापूर्ण लगता है।” फिर भी, “इसका प्रभाव इस जगत में भी दिखाई देता है। जहाँ सबसे वाक्पटु प्रोत्साहन विफल हो जाता है, वहाँ एक घटना की सरल कहानी सफल होती है; लोगों का जीवन एक समाचार के द्वारा परिवर्तित हो जाता है।”
सामाजिक सुसमाचार ने मानवीय समस्या को भौतिक दरिद्रता तक सीमित कर दिया। मेचन के लिए, जो पौलुस के छात्र और ऑगस्टीनवादी थे, हमारी समस्या कहीं अधिक गम्भीर है। अपने 1935 के आकाशवाणी (radio) सम्बोधन में, उन्होंने समझाया कि पाप “असामाजिक आचरण” से कहीं अधिक है, जैसा कि प्रगतिवादियों और सामाजिक सुसमाचार प्रचारकों का कहना था। पाप की सही परिभाषा “परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन” है। जैसा कि वेस्टमिन्स्टर की लघु प्रश्नोत्तरी ने बहुत ही गौरवशाली ढंग से कहा है, पाप “परमेश्वर की व्यवस्था के अनुरूप होने की कमी या उसके प्रति उल्लंघन” है (प्रश्न और उत्तर 14)। सामाजिक सुसमाचार प्रचारकों के लिए, पाप की मजदूरी केवल निर्धनता है, परन्तु मेचन के लिए, जैसा कि पौलुस और ऑगस्टीन के लिए, “पाप की मजदूरी मृत्यु है” (रोमियों 6:23), और एक बहुत ही विशेष रीति की मृत्यु: अनन्त दण्ड। जिस रीति से ख्रीष्ट की धार्मिकता उन सभी पर अभ्यारोपित (imputed) किया जाता है जो “ख्रीष्ट में” हैं, केवल अनुग्रह द्वारा केवल विश्वास के द्वारा, उसी रीति से आदम का पाप उन सभी पर अभ्यारोपित किया जाता है जो उसमें हैं, और शाप यह था “जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा” (उत्पत्ति 2:17)। पाप का अपराध “अनन्त दण्ड के योग्य है।”
इसी सन्दर्भ में, फिर, हमें मेचन के उद्धार के धर्मसिद्धान्त को समझना चाहिए—अर्थात् कि उद्धार परमेश्वरीय प्रकोप से छुटकारा और परम सुख (blessedness) और कृपा की स्थिति में पहुँचना। जिन्हें परमेश्वर बचाता है वे दोषी पापी होते हैं, और वे केवल विश्वास से अनुग्रह के द्वारा बचाए जाते हैं। मेचन ने अपने आकाशवाणी बातचीत में प्राचीन विधर्मी पेलाजियस (उसकी मृत्यु लगभग 410 ई.) के विषय में बताते हुए पर्याप्त समय बिताया, जिसने पाप और अनुग्रह के विषय में ऑगस्टीन के दृष्टिकोण को अस्वीकार कर दिया था और जिसके विचारों की इफिसुस की परिषद (431 ई.) द्वारा अभियुक्त की गई थी। पेलाजियस ने सिखाया कि हम सभी आदम के सम्मान भले जन्म लेते हैं, और हममें से प्रत्येक के पास अनुग्रह की सहायता के बिना पूर्णता तक पहुँचने की क्षमता है, यदि हम शैतान के स्थान पर यीशु का अनुकरण करें। मेचन निस्सन्देह आधुनिकतावादियों के साथ अपने विरोध के कारण पेलाजियस का उपयोग किया, क्योंकि आधुनिकतावादी पेलाजिसयस के जैसे सुनाई देते थे। मेचन ने असंतोष व्यक्त किया कि पेलाजियसवादी पाप के विषय में “उथला” दृष्टिकोण रखते हैं। बाइबलीय (और ऑगस्टीनवादी) धर्मसिद्धान्त के अनुसार भ्रष्टता यह है कि हम पाप और उसके प्रभावों से इतने अशिष्ट हो चुके हैं कि हम स्वयं को बचाने में पूर्ण रूप से असमर्थ हैं। हम पूरी रीति से परमेश्वर के स्वतन्त्र, सम्प्रभु अनुग्रह पर निर्भर हैं। मेचन का उद्धार का सिद्धांत आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट है:
[यीशु] ने केवल इस बात को सम्भव नहीं किया कि लोग स्वयं को बचाने सकें। नहीं, उसने उससे कहीं अधिक किया। उसने उन्हें बचाया। उसने उन्हें पूरी रीति से अप्रतिरोध्य शक्ति से बचाया। परमेश्वर के चुने हुए लोगों के उद्धार की ओर ले जाने वाला हर पग उसकी अनन्त योजना के अनुसार किया गया है। यही वह मुख्य बात है जिसे हम उद्धार के बाइबलीय धर्मसिद्धान्त के हमारे पूरे वर्णन में स्पष्ट करना चाहते हैं। मुझे दोहराने दें, और यदि केवल दोहराने से मैं इसे सदा के लिए आपके बुद्धि और हृदय पर छाप सकता हूँ, तो मैं इसे सौ बार दोहराना चाहूँगा। मैं कहता हूँ, परमेश्वर ने अपने उद्धार के कार्य को पापियों के लिए स्वयं को बचाना सम्भव नहीं बनाया; उसने उन्हें बचाया।
उन्होंने 1923 में क्रिस्चियैनिटी एण्ड लिबरेलिज़्म (मसीहियत और उदारवाद) में भी लगभग उन्हीं शब्दों में यही बात कही थी।
सामाजिक सुसमाचार प्रचारकों ने सिखाया कि हम “प्रेम के माध्यम से” स्वयं को “बचा” सकते हैं और बचाना चाहिए। परन्तु मेचन के लिए, ऐसा धर्मसिद्धान्त केवल “अर्ध-पेलाजियनवाद” (semi-Pelagianism) था। सामाजिक सुसमाचार प्रचारकों के लिए, जगत की आशा “यीशु के सिद्धान्तों को लागू करना” है, जैसे कि वह केवल एक शिक्षक या नबी थे। परन्तु मेचन के लिए, “ख्रीष्ट का छुड़ाने वाला कार्य जो बाइबल के केन्द्र में है… पवित्र आत्मा द्वारा व्यक्तिगत प्राण पर लागू होता है।” इसलिए, हम “केवल ‘यीशु के सिद्धान्तों’ या इसी प्रकार के अन्य बातों में समाज के लिए कोई स्थायी आशा नहीं पाते हैं, वरन् हम इसे व्यक्तिगत प्राणों के नए जन्म में पाते हैं।”
मेचन ने बालपन में जिस जगत को जाना था, वह प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस के युद्धक्षेत्रों में नष्ट हो गया, परन्त मेचन के लिए, सामाजिक सुसमाचार प्रचारकों के विपरीत, सुसमाचार उसके साथ नहीं मरा। राष्ट्र और साम्राज्य नष्ट हो जाते हैं, परन्तु ख्रीष्ट राज्य करता है, उसका सुसमाचार बना है, और उसकी कलीसिया स्थिर है क्योंकि भले ही संस्कृतियाँ ढह जाती हैं, परमेश्वर कभी नहीं बदलता है, और सबसे बढ़कर, पापियों को उसके क्रोध से ही बचाया जाना चाहिए।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर. स्कॉट क्लार्क
आर. स्कॉट क्लार्क
डॉ. आर. स्कॉट क्लार्क वेस्टमिंस्टर सेमिनरी कैलिफोर्निया में चर्च इतिहास और ऐतिहासिक धर्मशास्त्र के प्रोफेसर हैं और एस्कॉन्डिडो यूनाइटेड रिफॉर्म्ड चर्च के एसोसिएट मिनिस्टर हैं। वे रिकवरिंग द रिफॉर्म्ड कन्फेशन के लेखक हैं।