परमेश्वर को जानना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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परमेश्वर को जानना

परिचय

त्रिएक परमेश्वर ने स्वयं को प्रकट प्रकृति और पवित्रशास्त्र दोनों के द्वारा स्वयं को प्रकट करके स्वयं से अवगत करा दिया है। सामान्य प्रकाशन में, परमेश्वर स्वयं को सम्पूर्ण सृष्टि के सृष्टिकर्ता और पालनहार के रूप में प्रकट करता है। विशेष प्रकाशन में, वह स्वयं को यीशु ख्रीष्ट में अपने लोगों के उद्धारकर्ता के रूप में प्रकट करता है। यद्यपि परमेश्वर और उसकी अनन्त सामर्थ्य का ज्ञान समस्त मानवजाति में प्रकट है—इस तथ्य के आधार पर कि उसने उन्हें अपने स्वरूप में बनाया है—फिर भी वे सभी जो आदम में गिर गए हैं, उन्हें ख्रीष्ट में परमेश्वर के उद्धार करने वाले अनुग्रह के विशेष प्रकाशन की आवश्यकता है जिससे कि वे उसके उद्धार करने वाले ज्ञान तक पहुँच सकें। इसके अतिरिक्त, हमें परमेश्वर के वचन के माध्यम से पवित्र आत्मा के पुनरुज्जीवित और प्रदीप्त करने वाले कार्य की आवश्यकता है जिससे कि हम परमेश्वर के इस उद्धार करने वाले ज्ञान तक पहुँच सकें। परमेश्वर के एक सच्चे और उद्धार करने वाले ज्ञान में ख्रीष्ट के साथ एकता, परमेश्वर के साथ संगति, उद्धार के लिए परमेश्वर की इच्छा को जानना, आराधना, कार्य, विश्राम, अनुग्रह में वृद्धि, पारिवारिक सम्बन्ध, विवाह, सेवा और दान देना सम्मिलित है। परमेश्वर ने अनुग्रह के साधन नियुक्त किए हैं जिनके माध्यम से उसके लोग उसके ज्ञान में बढ़ सकते हैं।

व्याख्या

मानवीय सम्बन्धों में, केवल एक व्यक्ति का दूसरे को जानने की इच्छा रखना पर्याप्त नहीं है। दूसरे व्यक्ति की ओर से भी स्वयं के विषय में खुलकर बताने की इच्छा होनी चाहिए। उसी प्रकार, परमेश्वर को भी मनुष्य के सामने स्वयं को प्रकट करना चाहिए जिससे कि वे उसे जान सकें। जबकि परमेश्वर अज्ञेय है और इसलिए उसे पूर्ण रूप से नहीं जाना जा सकता, फिर भी अपने स्वरूप धारकों पर स्वयं को प्रकट करके उसे वास्तव में जाना जा सकता है।

परमेश्वर ने सृष्टि में अपनी अनन्त सामर्थ्य ईश्वरीय स्वभाव को प्रकट किया है जिससे कि समस्त मानवजाति—उसके स्वरूप में बनाए जाने के कारण—परमेश्वर से सम्बन्धित स्वभाविक ज्ञान प्राप्त कर सके (रोमियों 1:19-20)। ईश्वरविज्ञानियों ने इस स्वभाविक ज्ञान को _सेंसस डिविनिटैटिस_ (परमेश्वरत्व का बोध) कहा है। जॉन कैल्विन ने परमेश्वरत्व के बोध को स्पष्ट करते हुए लिखा, “मनुष्य के मन में और वास्तव में स्वभाविक प्रवृत्ति द्वारा, परमेश्वरत्व का कुछ बोध पाया जाता है… क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं, किसी भी मनुष्य को अज्ञानता का बहाना बनाने से रोकने के लिए, सभी मनुष्यों को अपने परमेश्वरत्व के विषय में कुछ बोध दिया है, जिसकी स्मृति को वह निरन्तर नवीनीकृत करता है और समय-समय पर बढ़ाता है, जिससे कि सभी मनुष्य यह जान सकें कि परमेश्वर है, और वह उनका सृष्टिकर्ता है, और जब वे न तो उसकी आराधना करते हैं और न ही अपने जीवन को उसकी सेवा में समर्पित करते हैं तो उनका अपना विवेक उन्हें दोषी ठहराए” (इंस्टीट्यूट्स ऑफ दि क्रिश्चियन रिलीज़न 1.3.1)।

फिर भी, परमेश्वर का यह ज्ञान पापियों को परमेश्वर के साथ एक बचाने वाले मिलन में लाने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि सभी लोग, स्वभाव से, परमेश्वर के सत्य को अधर्म से दबाते हैं (रोमियों 1:18, 23)। यह न्याय के दिन सभी लोगों को बिना किसी बहाने के छोड़ देता है (रोमियों 1:20)।

अपनी निर्दोषता की अवस्था में, आदम को परमेश्वर से विशेष प्रकाशन की आवश्यकता थी। परमेश्वर को सच्चे अर्थ में जानने के लिए, आदम को स्वयं के विषय में परमेश्वर की इच्छा, सृष्टि की विधियों और कार्यों की वाचा के विषय में उसकी कृपाशील व्यवस्था के प्रकाशन की आवश्यकता थी। आदम सृष्टि के पूर्ण अर्थ को समझने में सक्षम नहीं था, क्योंकि यह वह क्षेत्र था जहाँ उसे वाटिका में परमेश्वर द्वारा उससे कहे गए परमेश्वर के वचन के अतिरिक्त प्रभु की महिमा के लिए परिश्रम करना था। दूसरे शब्दों में, आदम प्राकृतिक प्रकाशन को पूर्ण रीति से नहीं समझ सकता था और विशेष प्रकाशन के बिना परमेश्वर के सामने उसके कर्तव्यों के विषय में जो कुछ भी बताता था, उसे समझ नहीं सकता था। तदनुसार, धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानियों ने बल दिया है कि परमेश्वर का सच्चा ज्ञान केवल प्राकृतिक और विशेष प्रकाशन के एक साथ काम करने के माध्यम से आता है। बर्क पार्सन्स अपने लेख “दि सैलवेसन ऑफ नॉलेज (ज्ञान का उद्धार)” में परमेश्वर के सच्चे ज्ञान के महत्व को सारांशित करते हैं जब वे लिखते हैं, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर से सच्चा ज्ञान, सद्गुण की नींव है, प्रेम की स्थापना है, और वह साधन है जिसके द्वारा हम परमेश्वर की महिमा करने में सक्षम हैं जैसा कि उसने स्वयं को प्रकट किया है।”

पवित्रशास्त्र में, परमेश्वर अपने विषय में सत्य की विविधता को प्रकट करता है जिससे कि लोग उसके विषय में एक उद्धार करने वाले ज्ञान को प्राप्त कर सकें (रोमियों 10:14)। परमेश्वर अपने पवित्र चरित्र को अपनी व्यवस्था के द्वारा प्रकट करता है। परमेश्वर की नैतिक व्यवस्था उसके स्वरूप धारकों के लिए उनके नैतिक कर्तव्यों के सम्बन्ध में परमेश्वर की इच्छा को प्रकट करता है। अपने नामों के साथ, परमेश्वर अपने चरित्र और विशेषताओं के आयामों को अपने लोगों के सामने प्रकट करता है। अपनी प्रतिज्ञाओं के द्वारा, विश्वासियों को यह समझाया जाता है कि परमेश्वर अनुग्रहकारी और दयालु है—एक ऐसा परमेश्वर जो अधर्म, अपराध और पाप को क्षमा करता है (निर्गमन 34:7; गिनती 14:18; मीका 7:18)। अन्ततः, यीशु परमेश्वर का पूर्ण और अन्तिम प्रकाशन है (यूहन्ना 17:3; इब्रानियों 1:1) जो अपने व्यक्ति और कार्यों के द्वारा अपने लोगों के लिए परमेश्वर की पूर्णता को प्रकट करता है। परमेश्वर के पुत्र के देहधारण, क्रूस पर चढ़ने, पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण, शासन और प्रतिज्ञात पुनःआगमन के विषय में बाइबल की सच्चाई विश्वासियों को परमेश्वर के चरित्र के विषय में सिखाती है कि वे उसे पूर्ण रूप से जान सकें और उस पर भरोसा कर सकें।

कलीसियाई इतिहास के मध्यकालीन युग में, अनेकों मसीहियों ने परमेश्वर के रहस्यमय ज्ञान को बढ़ावा दिया, एक अतिशीघ्र बचाने वाला ज्ञान जिसके द्वारा परमेश्वर अपने लोगों के प्राणों पर स्वयं को प्रकट करता है। इस रहस्यमय योजना में, मनुष्य किसी भी साधन के बिना परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। कुछ कम चरम मध्यकालीन रहस्यवादी ईश्वरविज्ञानी—जैसे बर्नार्ड ऑफ़ क्लेयरवॉक्स थे—जिन्होंने पवित्रशास्त्र के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ अनुभव को सीमित कर दिया। बर्नार्ड के पवित्रशास्त्र के प्रति उच्च दृष्टिकोण ने जॉन कैल्विन को अपनी पुस्तक इंस्टीट्यूट्स ऑफ दि क्रिश्चियन रिलीज़न में उनका उल्लेख करने के लिए प्रेरित किया।

इसके विपरीत, धर्मसुधारकों ने परमेश्वर के लोगों के हृदयों में परमेश्वर के आत्मा द्वारा परमेश्वर के वचन के अलौकिक प्रदीपन की आवश्यकता पर बल देते हुए परमेश्वर के अतिशीघ्र प्रकाशन के किसी भी दावे को अस्वीकार कर दिया। आधुनिक युग में विश्वास करने वाले लोग प्रायः प्रकाशन को प्रदीपन से भ्रमित करते हैं। बीसवीं शताब्दी के पेंटेकोस्टल और करिश्माई आन्दोलनों में से कई इस त्रुटि में पड़ गए। सिंक्लेयर फर्गसन बताते हैं कि इतने सारे लोगों को परमेश्वर के आत्मा द्वारा परमेश्वर के वचन के निरन्तर प्रदीपन की तुलना में परमेश्वर का अतिशीघ्र प्रकाशन क्यों प्रिय लगता है:

  1. बाइबल प्रकाशन की तुलना में प्रत्यक्ष प्रकाशन प्राप्त करना अधिक रोमांचक है। यह अधिक “आत्मिक”, अधिक “ईश्वरीय” प्रतीत होता है। 
  2. कई लोगों को, “बाइबल मुझे ऐसा बताती है” कहने की तुलना में “परमेश्वर ने मुझे यह बताया है” कहना अधिक आधिकारिक लगता है। 
  3. प्रत्यक्ष प्रकाशन हमें परमेश्वर की इच्छा जानने के लिए श्रमसाध्य बाइबल अध्ययन और मसीही धर्मसिद्धान्त पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता से मुक्त करता है। तत्काल प्रकाशन की तुलना में, बाइबल अध्ययन—स्पष्ट रूप से—उबाऊ लगता है।

इस तथ्य के बाद भी कई लोग परमेश्वर के लिखित प्रकाशन के प्रदीपन के स्थान पर तत्काल प्रकाशन की खोज करते हैं, पवित्रशास्त्र त्रिएक परमेश्वर के विषय में पूर्ण और अंतिम प्रकाशन है (1 यूहन्ना 5:13; 2 पतरस 1:19, प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। यह हमारे परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु ख्रीष्ट के ज्ञान के माध्यम से पापियों के उद्धार और पवित्रीकरण के लिए परमेश्वर द्वारा नियुक्त साधन है (2 पतरस 1:2, 3, 8; 2:20; 3:8)।

उद्धरण

यदि हम परमेश्वर की अज्ञेयता के धर्मसिद्धान्त को त्रुटिपूर्ण ढंग से समझते हैं, तो हम बड़ी सरलता से दो गम्भीर त्रुटियों में फँस सकते हैं। पहली त्रुटि कहती है कि क्योंकि परमेश्वर अज्ञेय है, इसलिए उसे पूरी तरह से अज्ञात होना चाहिए, और परमेश्वर के विषय में हम जो कुछ भी कहते हैं वह अस्पष्ट है। परन्तु मसीहियत परमेश्वर की अज्ञेयता के साथ-साथ परमेश्वर की तर्कसंगतता की पुष्टि करता है। हमारा मन परमेश्वर को समझने में केवल इतना ही आगे जा सकता है, और परमेश्वर को जानने के लिए हमें उसके प्रकाशन की आवश्यकता है। परन्तु वह प्रकाशन समझ में आने वाला है, तर्कहीन नहीं। यह अस्पष्ट नहीं है। यह बकवास नहीं है। अज्ञेय परमेश्वर ने स्वयं को सच में प्रकट किया है।

आर.सी. स्प्रोल

“परमेश्वरीय अज्ञेयता”

टेबलटॉक पत्रिका

जीवन को सार्थक बनाने वाली बात है एक बड़े उद्देश्य का होना, कुछ ऐसा जो हमारी कल्पना को पकड़ ले और हमारी निष्ठा को थामें रखे; और यह मसीही के पास उस प्रकार से जिस प्रकार से किसी अन्य व्यक्ति के पास नहीं है। क्योंकि परमेश्वर को जानने से बढ़कर उच्च, अधिक महान् और अधिक सम्मोहक लक्ष्य और क्या हो सकता है?

जे.आई. पैकर

नोइंग गॉड (परमेश्वर को जानना)

हमारी बुद्धि, जहाँ तक इसे सच्ची और ठोस बुद्धि माना जाना चाहिए, लगभग पूरी तरह से दो भागों से बनी होती है: परमेश्वर का ज्ञान और स्वयं का ज्ञान… सबसे पहले, कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को उस परमेश्वर की ओर मोड़े बिना अपना सर्वेक्षण नहीं कर सकता, जिसमें वह रहता और चलता है; क्योंकि यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि हमारे पास जो उपहार हैं, वे सम्भवतः हमसे नहीं हो सकते; परन्तु, हमारा अस्तित्व परमेश्वर में ही अस्तित्व के अलावा और कुछ नहीं है… इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति, आत्म-ज्ञान प्राप्त करने पर, न केवल परमेश्वर की खोज करने के लिए प्रेरित होता है, परन्तु उसे उसे खोजने के लिए हाथों से भी चलाया जाता है… दूसरी ओर, यह स्पष्ट है कि मनुष्य कभी भी सच्चा आत्म-ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि वह पहले परमेश्वर के मुख का चिंतन न कर ले और ऐसे चिंतन के बाद स्वयं को देखने के लिए नीचे न आ जाए। क्योंकि (ऐसा हमारा जन्मजात अभिमान है) हम सदैव अपने आपको न्यायपूर्ण, सच्चा, बुद्धिमान और पवित्र समझते हैं, जब तक कि हमें स्पष्ट प्रमाणों के द्वारा अपने अन्याय, नीचता, मूर्खता और अशुद्धता का बोध न हो जाए।

जॉन कैल्विनइंस्टीट्यूट्स ऑफ दि क्रिश्चियन रिलीज़न, 1.1.1

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

लिग्निएर संपादकीय
लिग्निएर संपादकीय
हम डॉ. आर. सी. स्प्रोल का शिक्षण संघ हैं। हम इसलिए अस्तित्व में हैं ताकि हम जितने अधिक लोगों तक सम्भव हो परमेश्वर की पवित्रता को उसकी सम्पूर्णता में घोषित करें, सिखाएं और रक्षा करें। हमारा कार्य, उत्साह, और उद्देश्य है कि हम लोगों को परमेश्वर के ज्ञान और उसकी पवित्रता में बढ़ने में सहायता करें।