बाइबल - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
परमेश्वर और मनुष्य
27 अगस्त 2024
ख्रीष्ट
3 सितम्बर 2024
परमेश्वर और मनुष्य
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बाइबल

यद्यपि धर्मसुधार के समय में केवल विश्वास के द्वारा धर्मीकरण के विषय बहुत प्रचण्ड विवाद हुए, यह सही रूप से समझा गया है कि रोम के कैथोलिक कलीसिया के साथ सबसे अधिक संघर्ष अधिकार को लेकर था। शुद्ध अनुग्रह के सुसमाचर को लेकर प्रश्नों के पीछे एक मौलिक प्रश्न था: “कौन कहता है?” यह अधिकार का प्रश्न छायाओं में नहीं छुपा। शताब्दियों के लिए, रोम ने स्पष्ट रूप से अपनी वाणी को सत्य के अन्तिम और अचूक निर्णायक के रूप में स्थापित किया, यह निर्धारित करते हुए कि कलीसिया को बाइबल और परम्परा की व्याख्या कैसे करनी चाहिए और विश्वास और समझ के विषय में अन्तिम वचन देते हुए। रोम के लिए, अन्तिम और अचूक वाणी मैजिस्टीरियम (पोप और बिशपों की अधिकारिक शिक्षा) के पास होती है, विशेष रूप से तब जब पोप एक्स कथेड्रा (ex cathedra, कुर्सी से) बोलता है।
धर्मसुधारकों ने अपने विरोध को ईश्वरीय तर्क के साथ व्यक्त किया। कलीसिया और उसके अधिकारियों को पवित्रशास्त्र के ऊपर न्याय करने का स्थान नहीं लेना चाहिए। कलीसिया एक क्रिएचुरा वर्बी (creatura verbi) है, अर्थात् यह वचन द्वारा सृजी गई है। इस प्रकार समझे जाने पर, कलीसिया और उसके सभी अधिकारी परमेश्वर के वचन के अधीन हैं। परन्तु रोम ने उस अधिकार को हड़प लिया था जो केवल परमेश्वर के वचन के पास होना चाहिए, कलीसिया के व्युत्पादित (derivative) अधिकार को निर्णायक अधिकार में परिवर्तित और विकृत करने के द्वारा। इसलिए, धर्मसुधारकों ने रोम के दावों को समान रूप से निरस्त कर दिया कि बाइबल और परम्परा समान अधिकार की वाणियों से बोलते हैं, इसके मध्यस्थता वाले अधिकार को अस्वीकार किया गया, रोम की कलीसिया की अधिकारपूर्ण निर्णय लेने वाली वाणी को ठुकराया, और कलीसिया की अचूकता के दावों को नकारा। केवल बाइबल (sola Scriptura) अचूकता का उपनाम उपयुक्त रूप से रखती है और केवल वही सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में कार्य करती है (वेस्टमिन्स्टर विश्वास अंगीकार 1.10)।

रोम द्वारा अधिकार का हड़पना मानवजाति का परमेश्वर के वचन के प्रति झुकने से निरन्तर अस्वीकृति की एक ही अभिव्यक्ति है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में संयुक्त राज्य अमरीका में, जे. ग्रेशम मेचन ने एक नया और भयंकर वचन-नकारक शत्रु का सामना किया: धार्मिक उदारवाद। जबकि यह प्रतिद्वन्दी धर्मसुधारकों के सामने आई चुनौती से भिन्न थी, इसका स्वर ऊँचा था, इसका प्रभाव दृढ़ था, और दाँव ऊँचे थे। मेचन को पता था कि वे किसका सामना कर रहे हैं, और पविशास्त्र के स्पष्ट अधिकार के अधीन लूथर जैसी दृढ़ता के साथ, उन्होंने साहसपूर्वक पूछा, “क्या हम नए नियम के यीशु को हमारे उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करेंगे, या उदारवादी कलीसिया के साथ उसे अस्वीकार करेंगे?”

ईश्वरविज्ञानीय उदारवाद प्रथम विश्व युद्ध के बाद के आधुनिकतावाद के वातावरण में घुला हुआ था। और मुख्यधारा की कलीसिया (यह उन कलीसियाओं को दर्शाता है जो ऐतिहासिक रूप से प्रमुख और सामान्य मान्यता प्राप्त ख्रीष्टिय संप्रदायों से सन्बन्धित होते हैं) ने इसे ग्रहण कर लिया था। स्कोप्स की “”बन्दर” सुनवाई (Scopes “monkey” trial) से लज्जित होकर, मूलतत्ववादी मसीहिी समज में हँसी का पात्र बन गया था, जो शिक्षित और परिष्कृत लोगों के लिए समृद्ध उपहास के पात्र बन गया था। हैरी एमरसन फॉस्डिक का प्रसिद्ध 1922 के “क्या मूलतत्ववादी लोग जीतेंगे?” शीर्षक वाले उपदेश ने सर्वोच्च सहिष्णुता के सिद्धान्त के पक्ष में बोलते हुए, बहुत स्पष्टता से यह प्रकट किया कि वे सोचते थे ऐतिहासिक मसीही विश्वास के धर्मसिद्धान्त अनर्थक थे। फॉस्डिक ने सभी से केवल आपस में मिलजुल कर रहने का आग्रह किया।

परन्तु बात इतनी सरल नहीं था। फॉस्डिक और उनके उदारवादी साथियों की सहिष्णुता कितनी अद्भुत थी—जिनमें से सभी ने इस अडिग हठधर्मिता को अपनाया कि धर्मसिद्धान्त महत्वपूर्ण नहीं है। परन्तु फॉस्डिक ने विश्वास के मूलभूत तत्वों को पकड़े रखने वाले लोगों के प्रति बहुत कम सहिष्णुता दिखाई। स्पष्टतः प्रेम की सीमाएँ होती हैं और इसे परिभाषित किया जाना चाहिए। मेचन ने सराहनीय ढंग से परखा, “मानव स्नेह, जो प्रतीत होता है कि इतना सरल है, वास्तव में सिद्धान्तों से भरा हुआ है।”
जैसा कि मेचन ने प्रसिद्ध रूप से अवलोकन किया, ईश्वरविज्ञानिय उदारवाद मसीहियत का विकसित रूप नहीं था, परन्तु एक पूरी रीति से अलग ही धर्म था, जो उस समय के प्राकृतिकतावादी/मानवतावादी सिद्धान्तों पर आधारित था। क्रिश्चियैनिटी एण्ड लिबरलिज़्म (ख्रीष्टियता और उदारवादी) पुस्तक में, मेचन ने इस नए धर्म, इसके नए सिद्धान्तों, और इसके स्वयं-नियुक्त अधिकार को कुशलतापूर्वक उजागर किया। यह “रमेश्वर, मनुष्य, अधिकार के स्रोत और उद्धार के मार्ग की समढ में मसीहियत से भिन्न है।”

मेचन ने उदारवादी कलीसिया के इस “अधिकार के स्रोत” पर दावे को चुनौती दी, ठीक वैसे ही जैसे धर्मसुधारकों ने रोम के दावे को चुनौती दी थी। उसने पवित्रशास्त्र का सहारा लिया क्योंकि यह हमारे पास केवल मानवीय शब्दों के रूप में नहीं, वरन् ईश्वरीय वचन के रूप में आता है। यह मनुष्य द्वारा उत्पन्न नहीं किया गया (2 पतरस 1:19–21), परन्तु यह परमेश्वर के स्वयं के साँस से निकली वाणी है (2 तीमुथियुस 3:16) और “इसमें परमेश्वर की ओर से मनुष्य के लिए एक प्रकाशन का विवरण है, जो कहीं और नहीं पाई जाती है।” मेचन ने इस बात से साहस लिए कि बाइबल पूर्ण रीति से एक “सच्चा विवरण” है क्योंकि “जिस जन की आराधना मसीही लोग करते हैं वह सत्य का परमेश्वर है।” यदि परमेश्वर सत्य है, तो उसका वचन—उसका सम्पूर्ण वचन—सत्य है। पूर्ण अभिप्रेरणा (सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर का ही वचन है) के इस धर्मसिद्धान्त की सच्ची साक्षी स्वयं पवित्रशास्त्र और यीशु के स्वयं देते हैं। केवल पवित्रशास्त्र ही अधिकार का अन्तिम स्रोत है।

ईश्वरीय वचन से सुसज्जित, मेचन ने गहरी अन्तर्दृष्टि, सच्ची करुणा और निरस्त्र करने वाले स्पष्टता से साथ बोला। उन्होंने उदारवादी सिद्धान्तों को चुनौती दी: अलौकिकता का खण्डन, पाप का पापपूर्ण विनाश, मानव जाति की मूल भलाई पर अहंकार, हृदयस्पर्शी सहिष्णुता की मृगतृष्णा के पीछे ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान का विकृत छिपाया जाना, और यीशु को परमेश्वर के स्थान पर गुरु में परिवर्तित करने की चालाकी। रोम के अधिकारिता के स्थान पर, उस समय की प्रमुख वाणी ईश्वरविज्ञानीय उदारवाद था, जो “पापी मनुष्यों की परिवर्तनशील भावनाओं पर आधारित थ।”

भावनाओं की बदलती रेत पर पैर स्थित, मुख्यधारा के सम्प्रदायों ने अपनी नई स्वतन्त्रता का उत्सव मनाया: चूंकि बाइबल एक मानव-निर्मित पुस्तक है, हम इसे अपनी इच्छानुसार व्याख्या कर सकते हैं। हम बाइबल की पाप और उद्धार की परिभाषाओं से मुक्त हो सकते हैं, और प्राचीन सिद्धान्तों की बेड़ियों से भी। शास्त्रसम्मत धर्मसिद्धान्त तो अब पुराने हो गए हैं; इस नए युग में, हम अधिक जानते हैं।

जे. ग्रेशम माचेन तो निश्चय था कि वे लोग नहीं जानते हैं। और परमेश्वर की महिमा के प्रति उत्साह से, वे सत्य की रोशनी से अन्धकार को उजागर करने के लिए खड़ा हो गए:

आओ हम स्वयं को धोखा न दें। पहली शताब्दी का एक यहूदी शिक्षक कभी भी हमारे प्राणों की लालसा को सन्तुष्ट नहीं कर सकता। उसे आधुनिक शोध की सभी कलाओं से सुसज्जित करें, उस पर आधुनिक भावुकता की गर्म, भ्रामक रोशनी डालें; और इस सब के होते हुए भी सामान्य समझ फिर से अपनी स्थान पर लौट आएगी, और हमारी आत्म-धोखे की संक्षिप्त अवधि के लिए—मानो हम यीशु के साथ थे—निराशाजनक भ्रम के प्रतिशोध से हमें नाश कर देगी।

उदारवादियों ने विश्वास किया कि उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है। मेचन ने इस बात पर असहमति जताते हुए कहा: “परमेश्वर की धन्य इच्छा से दासत्व-मुक्ति में सदैव किसी दुष्टतर बेगार करानेवाला के बन्धन में पड़ जाना सम्मिलित होती है।”

परमेश्वर प्रदत्त जीवन शक्ति ने, जो पूरी रीति से पवित्रशास्त्र में विश्राम करने से आती है, यद्यपि उस पर रूढ़िवादी विचारों का आरोप लगाया गया हो, मेचन को प्रज्वलित किया और इसे प्रत्येक विश्वासी के हृदय को उत्साहित करना चाहिए:

यह न कहा जाए कि किसी पुस्तक पर निर्भरता एक मृत या कृत्रिम बात है। सोलहवीं शताब्दी का धर्मसुधार बाइबल के अधिकार पर आधारित था, फिर भी इसने संसार को आग की भाँति जलाया। मनुष्य के वचन पर निर्भर रहना दासत्व होगी, परन्तु परमेश्वर के वचन पर निर्भर रहना जीवन है। यदि हमें अपने उपायों पर छोड़ दिया जाए और हमारे पास परमेश्वर का कोई धन्य वचन न हो, तो संसार अन्धकारमय और उदास हो जाएगी। बाइबल, मसीहियों के लिए बोझिल व्यवस्था नहीं है, वरन् यह तो मसीही स्वतन्त्रता का महाधिकार पत्र है।

उस स्वतन्त्रता में, मेचन सुरक्षित खड़ा था, और उसी स्वतन्त्रता में, प्रत्येक मसीही हर्षित होता है। क्योंकि जो व्यक्ति दिन-रात परमेश्वर के वचन का आनन्द लेता है, वही व्यक्ति आन्धियों का सामना करता है और फल लाता है (भजन 1)।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डेविड बी. गार्नर
डेविड बी. गार्नर
डॉ. डेविड बी. गार्नर फिलाडेल्फिया में वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में सुव्यवस्थित ईश्वरविज्ञान के प्रोफेसर और प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में शिक्षक प्राचीन हैं। वे सन्स इन द सन और हाउ कैन आई नो फॉर श्योर पुस्तकों के लेखक हैं?