त्रिएकता
30 दिसम्बर 2024सुसमाचार
परिचय
सुसमाचार परमेश्वर के लोगों के उद्धार के लिए यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में शुभ सन्देश है। पवित्रशास्त्र में, सुसमाचार शब्द का उपयोग कभी-कभी पुराने नियम की प्रतिज्ञाओं की ऐतिहासिक पूर्ति के लिए और कभी-कभी नए नियम में उस संदेश की घोषणा के लिए किया जाता है। सुसमाचार अनुग्रह की वाचा का केंद्रीय सन्देश है, और सुसमाचार सबसे पहले आदम और हव्वा को वाटिका में उनके पतन के पश्चात सुनाया गया था जब परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किया था कि स्त्री का वंश सर्प के सिर को कुचल देगा (उत्पत्ति 3:15)। सुसमाचार परमेश्वर के स्वतंत्र और अयोग्य प्रतिज्ञाओं पर निर्मित है। यह मानवीय प्रयास द्वारा परमेश्वर की दया को प्राप्त करने के हर विधि सम्मत प्रयास के विपरीत है। यह केवल ख्रीष्ट में विश्वास से प्राप्त होता है। इस रीति से, यह व्यवस्था से भिन्न है, जो विधिक माँगों और कार्यों पर बनाया गया है। सुसमाचार में, परमेश्वर मनुष्य की अधार्मिकता की समस्या का समाधान प्रदान करता है। अपने पुत्र, यीशु ख्रीष्ट को भेजकर, यीशु के पापरहित जीवन के द्वारा व्यवस्था की सिद्ध माँगो को पूरा किया—और यीशु की मृत्यु के द्वारा व्यवस्था के शाप को दूर किया—परमेश्वर वह प्रदान करता है जो उसको चाहिए। सुसमाचार विश्वासियों के लिए केवल अनुग्रह के द्वारा यीशु ख्रीष्ट में प्रत्येक उद्धारकारी लाभ को सुरक्षित करता है (इफिसियों 1:3)। ये लाभ विश्वासियों पर ख्रीष्ट के साथ उनके मिलन के माध्यम से लागू होते हैं। ये केवल विश्वास से प्राप्त होते हैं, जो परमेश्वर के लोगों में उसके पवित्र आत्मा के द्वारा कार्य करता है। जो लोग केवल विश्वास के द्वारा सुसमाचार का लाभ प्राप्त करते हैं वे निश्चित रूप से पश्चाताप का जीवन व्यतीत करेंगे। तदानुसार, पवित्रशास्त्र की चेतावनियाँ सुसमाचार की प्रतिज्ञाओं के साथ आती हैं, जो पथभ्रष्ट और पाखंडी लोगों को अनुग्रह, दया और क्षमा के लिए ख्रीष्ट के पास लौटा लाती हैं।
व्याख्या
सुसमाचार (यूनानी में यूएंजेलियन) शब्द का अर्थ है “शुभ समाचार” या “शुभ सन्देश।” यह शुभ समाचार ही है जो इस बुरे समाचार का समाधान है कि सभी लोग अधर्मी हैं और परमेश्वर के प्रकोप और अभिशाप के अधीन हैं। बाइबल के लेखक कभी-कभी पुराने नियम के नबियों द्वारा बताई गई बातों की पूर्ति के बारे में बात करने के लिए सुसमाचार शब्द का उपयोग करते हैं—ख्रीष्ट में परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की उद्देश्यपूर्ण और ऐतिहासिक पूर्ति (गलातियों 1:3-7)। अन्य स्थान पर, इसका उपयोग इस संदेश—अर्थात्, ख्रीष्ट को क्रूस पर चढ़ाया गया और पापों की क्षमा और परमेश्वर के धन्य राज्य के आगमन के लिए पुनर्जीवित किया गया (1 कुरिन्थियों 15:1-3; प्रकाशितवाक्य 12:10)—के प्रचार को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। दोनों ही उपयोगों में, यीशु का जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान परमेश्वर के लोगों के उद्धार के केंद्रीय तत्व हैं। जॉन स्टॉट ने समझाया कि कैसे सुसमाचार विशिष्ट रूप से ख्रीष्ट के छुटकारे के कार्य के विषय में है, जब उन्होंने लिखा, “सुसमाचार मनुष्यों के लिए अच्छा परामर्श नहीं है, परन्तु ख्रीष्ट के बारे में शुभ समाचार है; हमें कुछ भी करने का निमंत्रण नहीं, परन्तु परमेश्वर ने जो किया है उसकी घोषणा है; माँग नहीं है, परन्तु प्रस्ताव है।” इसी प्रकार से बर्क पार्सन्स ने ठीक ही कहा है: “सुसमाचार परामर्श, निर्देश, धमकी या चेतावनी नहीं है। यह उन सभी कार्यों की विजय का शुभ समाचार है जो परमेश्वर ने ख्रीष्ट में आत्मा के द्वारा किये हैं।”
जब प्रेरित सुसमाचार के एक आयाम के बारे में बात करते हैं, तो वे उपलक्ष्य अलंकार (एक भाग के विषय में ऐसे बात करना जैसे सम्पूर्ण बात को सन्दर्भित किया जा रहा हो) के माध्यम से ऐसा करते हैं। प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा, “मैंने इस बात को ठान लिया था कि तुम्हारे बीच यीशु ख्रीष्ट वरन् क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट को छोड़ और किसी बात को न जानूँ।” (1 कुरिन्थियों 2:2)। निश्चित रूप से, वह समझ गया था कि यीशु का पुनरुत्थान सुसमाचार संदेश का दूसरा आयाम था, जैसा कि 1 कुरिन्थियों 15:1-11 में सुसमाचार के उसके पूर्ण विवरण में देखा जा सकता है। यह मुक्तिदाता के रूप में यीशु के पाप रहित जीवन और व्यवस्था पालन के बारे में भी सत्य है। इस दृष्टिकोण से विचार करने पर, सुसमाचार पाप की क्षमा और परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप के लिए यीशु के जीवन, मृत्यु, पुनरुत्थान का संदेश है (रोमियों 3:21–4:26 देखें)।
परमेश्वर ने सबसे पहले आदम और हव्वा को उनकी अनाज्ञाकारिता के पश्चात वाटिका में सुसमाचार सुनाया। ईश्वरविज्ञानियों ने उत्पत्ति 3:15 को प्रोटोएवेंजेलियम (सुसमाचार का पहला प्रचार), रूप में उचित रीति से सन्दर्भित किया है जो समय में अनुग्रह की वाचा का आरम्भ है। आदम द्वारा कार्यों की वाचा को तोड़ने के पश्चात, परमेश्वर ने एक मुक्तिदाता को भेजने की प्रतिज्ञा किया जो उस पर विजय प्राप्त करेगा जिसने मनुष्य पर विजय प्राप्त की थी अर्थात् शैतान पर विजय। छुटकारे की उद्घोषणा परमेश्वर के शाश्वत आदेश पर आधारित थी जिसमें अनन्तकाल से उसने अपने लोगों को बचाने के लिए ख्रीष्ट को भेजने का विचार किया था। उत्पत्ति 3:15 में जो बीज की प्रतिज्ञा है वह पूरे पुराने नियम में चल रही है। यह वैसा ही है जैसा परमेश्वर ने अब्राहम और दाऊद से प्रतिज्ञा किया था (उत्पत्ति 12:7; 2 शमूएल 7:12)। अब्राहम का प्रतिज्ञा किया हुआ पुत्र (अर्थात, वंश) यीशु ख्रीष्ट है। नया नियम सिखाता है कि “पवित्रशास्त्र ने अब्राहम को पहले से ही सुसमाचार का प्रचार किया था” (गलातियों 3:8)। नए नियम में उद्धार का संदेश केवल ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा केवल अनुग्रह द्वारा वही संदेश है जो पुराने नियम में प्रतीकों और छायाओं के अन्तर्गत इब्राहीम को घोषित किया गया था। एक ऐसे पुत्र की प्रतिज्ञा जिसमें सभी राष्ट्र आशीषित होंगे, वह सन्देश है जो राष्ट्रों के लिए ख्रीष्ट के आशीष को दर्शाता है। यद्यपि जिस रीति से अनुग्रह की वाचा को पुरानी वाचा के अन्तर्गत और नई वाचा के अन्तर्गत प्रशासित किया गया था, उसमें अन्तर है, परन्तु यह पुराने और नए नियम दोनों में सुसमाचार का सार एक ही प्रतिज्ञा है।
सुसमाचार मनुष्यों द्वारा उनके प्रयास या व्यवस्था-पालन के आधार पर परमेश्वर के समक्ष अपनी धार्मिकता स्थापित करने के हर प्रयास के विपरीत है। यीशु ने नियमित रीति से इस्राएल में स्व-धर्मी और व्यवस्थावादी धार्मिक अगुवों को चिताया, जिन्होंने मानव निर्मित नियमों और विनियमों के साथ सुसमाचार की सच्चाई को विकृत कर दिया था। प्रेरित पौलुस ने झूठे शिक्षकों के हानिकारक व्यवस्थावाद का खण्डन किया जो रोम, गलातिया और कुलुस्से में विश्वासियों के बीच सुसमाचार की सच्चाई को संकट में डाल रहे थे। छुटकारे के इतिहास में व्यवस्था और सुसमाचार के बीच अन्तर एक आवश्यक अन्तर है। परमेश्वर के सामने किसी के खड़े होने के लिए व्यवस्था का पालन करने का कोई भी प्रयास सुसमाचार में कभी नहीं जोड़ा जा सकता है। इसके विपरीत, ख्रीष्टियों की आज्ञाकारिता ख्रीष्ट में परमेश्वर के अनुग्रह से छुटकारा पाने का फल है। हम व्यवस्था का पालन इसलिये नहीं करते कि सुसमाचार हमें बचाएगा; परन्तु, सुसमाचार द्वारा बचाए जाने के पश्चात, हम अपने उद्धार के लिए कृतज्ञतापूर्वक व्यवस्था का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
छुटकारे के इतिहास में मूसाई व्यवस्था ने एक अनोखी भूमिका निभाई है। मूसा की अगुवाई के काल में, परमेश्वर ने प्रतिज्ञा में व्यवस्था को भी सम्मिलित किया जिससे कि वह लोगो को उनके पापों को दिखा सके और पापों की क्षमा के लिए ख्रीष्ट के पास लाए (रोमियों 3:19, 7:13; गलातियों 3:19,24)। पौलुस ने व्यवस्था और सुसमाचार में विरोधाभास दिखाया, रोमियों और गलातियों में, धर्मी ठहराए जाने के लिए कार्यों और विश्वास आपस में विरोधी हैं (रोमियों 4:5; गलातियों 3:12)। व्यवस्था के लिए कार्यों की आवश्यकता है। सुसमाचार के लिए विश्वास की आवश्यकता है। सुसमाचार में, परमेश्वर वह प्रदान करता है जिसकी वह माँग करता है। समस्त मानवजाति से अपेक्षा की जाती है कि वह व्यवस्था की उचित आवश्यकताओं का पूर्णतः पालन करे। यीशु का जन्म चुने हुए लोगों की ओर से इसकी धर्मी मागों को पूरा करने के लिए व्यवस्था के अधीन हुआ था। यीशु ने मूसाई व्यवस्था को सिद्ध रीति से पूर्ण किया—साथ में जिससे कि वह परमेश्वर की मध्यस्थता सम्बन्धि आज्ञाओं को जैसे की वह अपने लोगों के लिए मर जाएगा (यूहन्ना 10:17)—कि वह अन्तिम आदम और सच्चा इस्राएल हो। उसने उन लोगों का प्रतिनिधित्व किया जो उनके सिद्ध जीवन, प्रायश्चित मृत्यु और मृतकों में से पुनरुत्थान पर विश्वास करेंगे। अपने निर्दोष व्यवस्था-पालन के माध्यम से पूर्ण धार्मिकता की स्थिति अर्जित करके, यीशु उस धार्मिकता को उन लोगों पर अभ्यारोपित करने में सक्षम है जिनका वह मध्यस्थ के रूप में प्रतिनिधित्व करता है। दूसरे शब्दों में, जब हम विश्वास करते हैं, तो उसका सम्पूर्ण व्यवस्था-पालन परमेश्वर के सामने हमारे खाते में डाल दिया जाता है, और हम उसकी दृष्टि में धर्मी घोषित किए जाते हैं (2 कुरिन्थियों 5:21)।
क्रूस पर अपनी मृत्यु में, यीशु ने अपने लोगों के पापों का दोष अपने ऊपर ले लिया। विश्वासियों के सारे पाप उस पर अभ्यारोपित कर दिये गए। वह उनके प्रतिस्थापक के रूप में पाप उठाने वाला बन गया। उसने उनके स्थान पर व्यवस्था के अभिशाप को अपने ऊपर ले लिया, और उनके लिए अभिशाप बन गया (गलातियों 3:13)। यीशु की मृत्यु परमेश्वर के प्रकोप के कारण हुई (मत्ती 27:46)। क्योंकि वह परमेश्वर का शाश्वत पुत्र है, उसने अपनी देह में जो बलिदान दिया वह अनन्त और शाश्वत मूल्य का था। इस प्रकार यीशु परमेश्वर के प्रकोप को शान्त कर पाया और मृतको में से जिलाया गया।
ख्रीष्ट के साथ मिलन में, विश्वासी आत्मिक रीति से मर गए हैं, गाड़े गए हैं, और जीवन के नएपन के लिए जीवित किए गए हैं। पवित्रशास्त्र के अनुसार, यीशु को उसके पुनरुत्थान में परमेश्वर द्वारा दोषमुक्त ठहराया गया था। पुनरुत्थान इस बात का प्रमाण है कि उसके बलिदान को परमेश्वर ने स्वीकार किया था। उसके लहू की प्रभावकारिता और उसकी पूर्ण धार्मिकता ही वह आधार था जिस पर उसका पुनरुत्थान हुआ था (इब्रानियों 13:20-21)। यीशु का दोषमुक्त किया जाना विश्वासियों के धर्मी ठहराए जाने का आधार है। यीशु का पुनरुत्थान चुनें हुए लोगों के पुनरुज्जीवन का स्रोत है। उसका पुनरुत्थान उनके पवित्रीकरण का भी स्रोत है। यीशु का पुनरुत्थान विश्वासियों की महिमा का भी आधार है। जिस प्रकार परमेश्वर ने उसे महिमा में जी उठाया, उसी प्रकार विश्वासियों को भी अविनाशी रूप में जिला उठाया जाएगा और अन्तिम दिन अनन्त महिमा दी जाएगी (1 कुरिन्थियों 15:43)।
उद्धरण
सुसमाचार को ‘शुभ सन्देश’ कहा जाता है क्योंकि यह मनुष्य के रूप में आपकी और मेरी सबसे गम्भीर समस्या का समाधान करता है और वह समस्या यह है कि: परमेश्वर पवित्र है और वह न्यायी है, और मैं नहीं हूँ। और अपने जीवन के अन्त में, मैं एक न्यायी और पवित्र परमेश्वर के सामने खड़ा होऊँगा, और मेरा न्याय किया जाएगा। और मेरा न्याय या तो मेरी स्वयं की धार्मिकता के आधार पर–या उसके अभाव के आधार पर–या दूसरे की धार्मिकता की आधार पर किया जाएगा। सुसमाचार का शुभ सन्देश यह है कि यीशु ने पूर्ण धार्मिकता, परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता का जीवन जीया, अपनी स्वयं की भलाई के लिए नहीं परन्तु अपने लोगों के लिए ऐसा किया। उसने मेरे लिए वह किया है जो मैं सम्भवतः स्वयं अपने लिए नहीं कर सकता था। लेकिन न केवल उसने पूर्ण आज्ञाकारिता का जीवन जीया, परन्तु उन्होंने ईश्वर के न्याय और धार्मिकता को सन्तुष्ट करने के लिए स्वयं को एक पूर्ण बलिदान के रूप में भी दे दिया।
आर.सी. स्प्रोल
“सुसमाचार क्या है?”
टेबलटॉक मैगज़ीन
मेरे मसीही जीवन के आरम्भ में, मैंने सोचा था कि सुसमाचार लोगों को ख्रीष्ट के प्रति आकर्षित करने का सन्देश है, फिर, शिष्योन्नति में, व्यक्ति ‘गहरी बातों’ की ओर बढ़ जाता है। क्या ही भ्रान्ति है यह! आप कभी भी सुसमाचार से परे नहीं होंगे। आप सुसमाचार के साथ गहराई और ऊँचाई में जाते हैं, परन्तु कभी सुसमाचार से परे नहीं होते हैं। सुसमाचार यह परिभाषित करता है कि एक मसीही पुरुष, महिला, जीवनसाथी, माता-पिता और नागरिक कैसे बन सकते हैं। सुसमाचार ख्रीष्ट के राज्य को हमारे हृदयों और पूरे विश्व में लाता है। सुसमाचार की आशीष मसीही जीवन को आनन्द देता है और कष्टों में भी आनन्दित होने की क्षमता देता है। सुसमाचार की अनिवार्यताएँ प्रेमपूर्वक हमारे प्रभु की आज्ञा मानने की हमारी नई इच्छा को निर्देशित करती हैं। सुसमाचार नींव, गठन और प्रेरणा प्रदान करता है क्योंकि यह ख्रीष्ट के प्रति हमारी प्रेमपूर्ण आज्ञाकारिता को प्रज्वलित करता है जब हम इस परिवर्तनकारी सत्य को पा लेते हैं कि ‘पहले उसने हमसे प्रेम किया’ (1 यूहन्ना 4:19)।
हैरी रीडर
“सुसमाचार चलित जीवन”
टेबलटॉक मैगज़ीन
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।