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31 दिसम्बर 2024
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त्रिएकता

परिचय

त्रिएकता का सिद्धान्त मसीही विश्वास और मसीही जीवन के लिए आधारभूत है, क्योंकि परमेश्वर को जानना बाइबलिय धर्म के मूल में है और ईश्वरीय रहस्य को उजागर करने में परमेश्वर पूरी रीति से पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में प्रकट होता है। एकमात्र सच्चा और जीवित परमेश्वर तीन विशिष्ट परन्तु अविभाज्य व्यक्तियों में शाश्वत रूप से अस्तित्व में है। कलीसिया के विश्वास वचन और अंगीकार परमेश्वर की त्रिएकता के बारे में आवश्यक बाइबलिय सत्यों का साराँश देते हैं, जो इस आधारभूत धर्मसिद्धान्त के लिए ईश्वरविज्ञानीय सूक्ष्मता और समर्थन प्रदान करते हैं। फिर भी, त्रिएकता के सिद्धान्त को प्रायः त्रुटिपूर्ण रीति से समझा गया है, त्रुटिपूर्ण रीति से प्रस्तुत किया गया है और इसे विकृत किया गया है। त्रिएकता के सिद्धान्त के लिए बाइबलिय समर्थन और इसके ऐतिहासिक विकास पर विचार करने से हमें इस मूल्यवान सत्य को अधिक सटीक रूप से समझने में सहायता मिलेगी। 

व्याख्या 

बाइबलिय समर्थन 

यद्यपि त्रिएकता शब्द पवित्रशास्त्र में प्रकट नहीं होता है, परन्तु इस धर्मसिद्धान्त का सार पुराने और नए नियम दोनों में प्रकट होता है। पुराने नियम में, परमेश्वर की त्रिएकता को स्पष्ट रूप से प्रकट करने के स्थान पर उसका संकेत दिया गया है।  यह, आँशिक रूप से, पुराने नियम के प्रकाशन का तैयार करने वाली प्रकृति के कारण है। पुराने नियम में, परमेश्वर ने वह सब कुछ पूरी रीति से प्रकट नहीं किया जो वह पूरे छुटकारे के इतिहास में प्रकट करना चाहता था। हमें नए नियम के प्रकाशन की आवश्यकता है जिससे कि हम पुराने नियम के प्रकाशन का पूरा विस्तार समझ सके, जिसने परमेश्वर के लोगों को नई वाचा के लिए तैयार किया। इसके अतिरिक्त, पुराने नियम में परमेश्वर के एकेश्वरवादी चरित्र को इस प्रकार से बल देकर प्रस्तुत किया गया है कि यह इस्राएल के परमेश्वर की सच्चाई को आसपास के मूर्तीपूजक राष्ट्रों के बहु-ईश्वरवाद से अलग करता है। परमेश्वर की एकल प्रकृति पर यह बल लोगों को राष्ट्रों की मूर्तिपूजा से बचाने के लिए था। फिर भी, परमेश्वरत्व में व्यक्तियों की बहुलता के लिए पुराने नियम में  महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। 

निम्न बातों पर विचार करें: 

  • कुछ ईश्वरविज्ञानियों—विशेष रूप से पीटर लोम्बार्ड और मार्टिन लूथर—ने परमेश्वर के नाम एलोहीम के उपयोग में ईश्वरत्व में व्यक्तियों की विविधता का संकेत पाया।
  • पूरे कलीसियाई इतिहास में, कई ईश्वरविज्ञानियों ने उत्पत्ति 1:26, 11:7 और यशायाह 6:8 में ईश्वरिय महासभा के संवाद के त्रिएक चरित्र को स्वीकार किया है। यह वैकल्पिक प्रस्ताव कि परमेश्वर स्वर्गदूतों से बात कर रहे थे, सम्भव नहीं है, क्योंकि उत्पत्ति 1:26 में स्पष्ट किया गया है कि परमेश्वर ने मनुष्य को स्वर्गदूतों की स्वरूप में नहीं “अपने” स्वयं के स्वरूप में बनाया है।
  • पुराने नियम में ऐसे कई खण्ड हैं जिनमें परमेश्वरत्व के व्यक्ति एक-दूसरे से संवाद करते हैं या एक-दूसरे का उल्लेख करते हैं (उदाहरण के लिए, भजन 45:6-7; 110:1; ज़कर्याह 2:8-11; इब्रानियों 1:8–9). यह पुराने नियम में ईश्वर के त्रिएकतावादी चरित्र का एक दृढ़ प्रमाण है। 
  • कई प्रारम्भिक कलीसिया, लूथरन और धर्मसुधारवादी इश्वरविज्ञानियों का विचार था कि “प्रभु का दूत” (इब्रानी मलख यहोवा) परमेश्वरत्व के दूसरे व्यक्ति—अर्थात् लोगोस—की एक पूर्व-देहधारण अभिव्यक्ति थी।
  • पुराने नियम में पिता (यशायाह 63:16) और पुत्र (भजन 2:7; नीतिवचन 30:4) से अलग होकर परमेश्वर के आत्मा का प्रकाशन, परमेश्वरत्व में व्यक्तियों की बहुलता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है (उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 1:2; निर्गमन 35:31; 2 शमुएल 23:2; यशायाह 63:10; यहेजकेल 2:2)। आत्मा पुराने नियम में सृजन, भरण-पोषण, सामर्थ, प्रकाशन और मुक्ति के अनुप्रयोग का अभिकर्ता है।  

जब हम नए नियम में आते हैं, तो हम यीशु के बपतिस्मा के समय त्रिएकता के रहस्य को और अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होते हुए देखते हैं। जब यीशु को बपतिस्मा दिया जाता है तो परमेश्वरत्व के सभी तीन व्यक्ति उपस्थित होते हैं। पिता पुत्र के बारे में बोलता है जबकि आत्मा पुत्र पर उतरता है (मत्ती 3:13-27)। इसके अतिरिक्त, नए नियम में परमेश्वरत्व के व्यक्तियों का एक दूसरे के साथ विशेष रूप से उल्लेख किया गया है (लूका 1:35; 3:21-22; मत्ती 28:19; 1 कुरिन्थियों 12:3-4; 2 कुरिन्थियों 13: 14; 1 पतरस 1:2)। सुसमाचार में, पुत्र कई अवसरों पर पिता से प्रार्थना करता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि वह कुछ बातों में पिता से भिन्न है और पिता और पुत्र केवल एक ही ईश्वरीय व्यक्ति के अलग-अलग रूप या अभिव्यक्ति नहीं हैं, जैसा कि रूपात्मकता दृष्टिकोण में व्यक्त किया गया है (लूका 22:42; 23:34, 46; यूहन्ना 12:28; 17:1)। किन्तु, यीशु देहधारित परमेश्वर है—परमेश्वर का शाश्वत पुत्र—अपने पिता और आत्मा के साथ पूर्ण एकता में है और फिर भी उनसे भिन्न भी है। यीशु यूहन्ना 14-16 में अपने संवाद में परमेश्वरत्व के सभी तीन व्यक्तियों के बारे में स्पष्ट रूप से बात करता है। आत्मा के ईश्वरीय व्यक्तित्व को नए नियम के पृष्ठों में सिखाया गया है—और सबसे उल्लेखनीय रूप से आत्मा के बोलने के सन्दर्भों में (प्रेरितों के काम 13:2; प्रकाशितवाक्य 2:7, 11, 17, 29; 3:6, 13, 22; 14:13; 22:17). “पवित्र आत्मा कहता है,” “आत्मा ने कहा…,” और “जैसा की आत्मा ने कहा,” ऐसे सामान्य ढंग हैं जिनसे पुराने नियम के उद्धरणों को नए नियम में दिखाया जाता है। 

नया नियम पिता, पुत्र और आत्मा के बीच शाश्वत इश्वरिय समानता और छुटकारे के कार्य में पिता के लिए पुत्र की कार्यात्मक अधीनता की बात करता है जो उसने देहधारी परमेश्वर-मनुष्य के रूप में किया था। ईश्वरविज्ञानियों ने सत्ताशास्त्रीय त्रिएकता और विधानीय त्रिएकता के बीच अन्तर किया है। सत्ताशास्त्रीय त्रिएकता परमेश्वर का वर्णन उस रूप में करता है जैसे वह स्वयं में है। सत्ताशास्त्रीय त्रिएकता में बिना किसी अधीनता के पूर्ण ईश्वरीय समानता है। जहाँ तक परमेश्वर के अस्तित्व और गुणों की बात है, पुत्र पूर्णतः पिता के समान है (यूहन्ना 1:1; 8:58; कुलुस्सियों 1:15, 19; इब्रानियों 1:3)। विधानीय त्रिएकता परमेश्वर के बाह्य कार्य में परमेश्वरत्व के व्यक्तियों का वर्णन करता है। जहाँ तक छुटकारे में परमेश्वर के कार्य की बात है, तो देहधारी ख्रीष्ट की पिता के प्रति कार्यात्मक अधीनता है (यूहन्ना 5:19-23; 1 कुरिं. 11:3)। यह अधीनता समय के सन्दर्भ में थी, जब ख्रीष्ट ने उद्धार का कार्य पूरा किया, पुत्र को भेजने की पिता की प्रतिबद्धता को पूरा किया और पुत्र की हमारे छुटकारे को मोल लेने की प्रतिबद्धता को पूरा किया जो छुटकारे की वाचा में की गई थी (यूहन्ना 10:17-18, 12:49; तीतुस 1:2)।

ऐतिहासिक विकास

प्रारम्भिक कलीसियाई पिता टर्टुलियन को त्रिएकता शब्द का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में माना जाता है। अपने ग्रंथ एडवर्सस प्रैक्सियन में, टर्टुलियन ने “ट्रिनिटास यूनिस डिविनिटैटिस, पैटर एट फिली एट स्पिरिटस सैंक्टी” (एक ईश्वरत्व की त्रिएकता, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) का उल्लेख किया है।

टर्टुलियन ने व्यक्तियों की बहुलता (लातिनी परसॉने) के लिए आधार तैयार किया, परन्तु बाद के पिताओं ने त्रिएकतावादी धर्मसिद्धान्त को समझने और बचाव के लिए आवश्यक शब्दावली विकसित की। एथनेसियस पिता और पुत्र की एक तत्वता का महान् रक्षक था—अर्थात्, कि पिता और पुत्र मूल रूप से एक ही तत्व हैं—निकिया की महासभा और कप्पादुकियाई पिता (सीज़रिया के बेसिल, नाज़ियानज़स के ग्रेगरी, और ग्रेगरी के निसा) ने सार और व्यक्ति के अर्थ के बीच स्पष्ट अन्तर बताया। कप्पादुकियाई पिता कॉन्स्टेंटिनोपल के महासभा के परिणाम में निर्णायक स्वर थे, जिन्होंने पिता और पुत्र के साथ उनके सार की एकता के प्रकाश में पवित्र आत्मा के विशिष्ट व्यक्तिपन को स्पष्ट किया जो निकिया की महासभा पर आधारित थी। निकोलस नीधम बताते हैं, “कप्पादुकियाई पिताओं ने शास्त्रसम्मत त्रिएकता की भाषा बनाई जिसे हम आज भी उपयोग करते हैं। ईश्वरिय स्वभाव के लिए औसिया शब्द के अतिरिक्त, उन्होंने ईश्वरिय व्यक्तियों की वास्तविकता को व्यक्त करने के लिए हाइपोस्टैसिस शब्द को परिभाषित किया।”

प्रारम्भिक कलीसिया में, पुत्र का ईश्वरिय होना धर्मसैद्धान्तिक विवाद का केन्द्रीय बिन्दु था। त्रिएकता के धर्मसिद्धान्त की मूल सच्चाइयों की मसीही कलीसिया की निश्चित प्रस्तुति नीकिया महासभा (325 ई.) और कॉन्स्टेंटिनोपल महासभा (381 ई.) में स्थापित की गई थी। दोनों महासभा में, ख्रीष्ट सम्बन्धी त्रुटि का खण्डन किया गया और धर्मसैद्धान्तिक सटीकता स्थापित की गई। ख्रीष्ट की ईश्वरता और त्रिएकता के धर्मसिद्धान्त के आवश्यक तत्वों को नीकिया विश्वास वचन (जिसे निकेनो-कॉन्स्टेंटिनोपोलिटन विश्वास वचन के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसे कॉन्स्टेंटिनोपल की महासभा में परिष्कृत और विस्तारित किया गया था) में संहिताबद्ध किया गया था। 

कप्पादुकियाई पिताओं के पश्चात्, ऑगस्टीन ने स्थापित त्रिएकतावादी भेदों को और अधिक परिशोधित किया। उनकी पुस्तक डी ट्रिनिटैटिस (त्रिएकता पर) कलीसिया के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण ईश्वरविज्ञानीय कृतियों में से एक है। हरमन बाविंक ने त्रिएकता के विषय में ऑगस्टीन की अभिव्यक्ति के महत्व को समझाया:   

[ऑगस्टाइन] त्रिएकता को पिता से नहीं, परन्तु ईश्वरीय सारतत्त्व की एकता से प्राप्त करता है, न ही वह इसे आकस्मिक मानता है, परन्तु ईश्वरीय अस्तित्व की एक आवश्यक विशेषता के रूप में मानता है। त्रिएक होना परमेश्वर के सार से सम्बन्धित है। उस सम्बन्ध में व्यक्तितपन स्वयं परमेश्वर के अस्तित्व के समान है। . . . प्रत्येक व्यक्ति . . . सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ समान है और अन्य दो या तीनों एक समान बराबर है। सृजित प्राणियों के साथ यह अलग है। एक व्यक्ति तीन के समान नहीं है, परन्तु, ऑगस्टीन कहते हैं, “परमेश्वर में ऐसा नहीं है, क्योंकि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा मिलकर अकेले पिता या अकेले पुत्र से महान् नहीं हैं; परन्तु ये तीन सत्व या व्यक्ति, यदि उन्हें ऐसा कहना आवश्यक हो, तो एक ही समय में व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे के बराबर होते हैं” (डी ट्रिन., VII, 6)।

कलीसियाई इतिहास में एक विशेष वाक्यांश विवादास्पद बन गया। ग्यारहवीं शताब्दी में, पश्चिमी चर्च ने शताब्दियों से चली आ रही आराधना पद्धति और बाइबिल की साक्षी को ध्यान में रखते हुए नीकिया विश्वासवचन में फ़िलिओक (और पुत्र) शब्द जोड़ा, जिसमें कहा गया है कि पवित्र आत्मा केवल पिता से ही नहीं वरन् पिता और पुत्र दोनों से अग्रसर होता है। पूर्वी ऑर्थोडॉक्स कलीसियाओं ने फ़िलिओक वाक्यांश को अस्वीकार कर दिया (और अब भी अस्वीकार करते हैं), जिस कारण 1054 ईस्वी में पूर्वी और पश्चिमी कलीसियाओं के मध्य विभाजन हो गया। 

सत्रहवीं शताब्दी के धर्मसुधारवादी अंगीकार वचन और धर्मप्रश्नोत्तरी त्रिएकता के धर्मसिद्धान्त के सम्बन्ध में प्रारंभिक और मध्यकालीन कलीसिया से सहमत हैं। वेस्टमिंस्टर मानक त्रिएकता के नीकिया के धर्मसिद्धान्त का सारांश प्रस्तुत करते हैं। वेस्टमिंस्टर के छोटे धर्मप्रश्नोत्तरी में कहा गया है, “परमेश्वरत्व में तीन व्यक्ति हैं; पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा; और ये तीन एक परमेश्वर है, तत्व में एक, समार्थ्य और महिमा में एक समान है” (प्रश्नोत्तर 5)। वेस्टमिंस्टर बड़े धर्मप्रश्नोत्तरी में कहा गया है कि परमेश्वरत्व के सदस्य “अपने व्यक्तिगत गुणों द्वारा भिन्न हैंं” (प्रश्नोत्तर 9), जिन्हें इस प्रकार से परिभाषित किया गया है: “पिता के लिए पुत्र उत्पन्न करना उचित है, और पुत्र के लिए यह उचित है कि पिता के द्वारा उत्पन्न हो। और पवित्र आत्मा के लिए कि वह अनन्तकाल से पिता और पुत्र दोनों से अग्रसर होता है” (प्रश्नोत्तर)। यह भेद परमेश्वरत्व के सदस्यों के मध्य अस्तित्व के क्रम को चित्रित करने का कार्य करता है। सामान्यतः पिता को परमेश्वरत्व का पहला जन, पुत्र को दूसरा जन और आत्मा को तीसरा जन कहा जाता है। यह परमेश्वरत्व में किसी अधीनता का सुझाव नहीं देता है। किन्तु, यह परमेश्वरत्व के व्यक्तियों को उनकी व्यक्तिगत क्षमता और उनके संचालन के क्रम में दर्शाता है। उद्धार हमें पिता से पुत्र के माध्यम से और पवित्र आत्मा द्वारा मिलता है, और हम पुत्र के माध्यम से पिता के पास पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर की स्तुति करते हैं। 

उद्धरण

‘त्रिएकता’ शब्द बाइबिल का शब्द नहीं है, और हम बाइबिल की भाषा का उपयोग नहीं कर रहे होते हैं जब हम इसे इस धर्मसिद्धान्त के रूप में परिभाषित करते हैं कि केवल एक और सच्चा परमेश्वर है, परन्तु परमेश्वरत्व की एकता में तीन सहशाश्वत और समान व्यक्ति, सत्व में समान परन्तु निर्वहन में भिन्न हैं। इस प्रकार परिभाषित र्धमसिद्धान्त को बाइबिलय धर्मसिद्धान्त के रूप में केवल इस धर्मसिद्धान्त पर कहा जा सकता है कि पवित्रशास्त्र का अर्थ पवित्रशास्त्र है। और ऐसी अबाइबिल भाषा में बाइबिलय धर्मसिद्धान्त की परिभाषा को केवल इस धर्मसिद्धान्त पर उचित ठहराया जा सकता है कि पवित्रशास्त्र के शब्दों की तुलना में पवित्रशास्त्र के सत्य को संरक्षित करना उत्तम है। त्रिएकता का धर्मसिद्धान्त पवित्रशास्त्र के घोल में निहित है; जब इसे इसके विलायक से स्पष्ट किया जाता है तो ऐसा नहीं है कि अब यह पवित्रशास्त्रिय नहीं रह जाता है, परन्तु और अधिक स्पष्ट रूप से दिखता है। 

बी.बी. वारफ़ील्ड

“द बिब्लिकल डाक्ट्रिन ऑफ ट्रिनिटी”

त्रिएकता के सूत्र में, कलीसिया परमेश्वर की एकता और परमेश्वरत्व के व्यक्तियों के बीच भिन्नता दोनों का सम्मान करते हुए, पवित्रशास्त्र के सामने झुकती है। इस सूत्र ने स्वयं परमेश्वर के भीतर एकता और अन्तर को प्राप्त करने के प्रयास में व्यक्ति, निर्वाह, सारतत्व जैसे शब्दों का उपयोग किया है। यीशु के ईश्वरत्व की पुष्टि करने के साथ ही, जिसके बिना कलीसिया में उसकी आराधना करना कलिसिया के लिए ईशनिंदा होगी, पवित्र आत्मा का वर्णन भी ईश्वरीय गुणों के सन्दर्भ में ही पवित्रशास्त्र में किया गया है। वह सर्वशक्तिमान है। वह सर्वज्ञानी है। वह अनन्त है। वह शाश्वत है। वह सृष्टि के ईश्वरीय कार्य में सक्रिय रूप से सहभागी है, और जीवन और मानव बुद्धि के सृजनहार होने के साथ-साथ, वह छुटकारे में ख्रीष्ट के कार्य को सशक्त बनाने में सक्रिय है। हम बाइबल में देखते हैं कि सृष्टि के कार्य में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सहभागी हैं, वैसे ही जैसे छुटकारे के कार्य में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सहभागी हैं। इन तीनों को पवित्रशास्त्र समान रूप से ईश्वरीय होने की साक्षी देता है। वे तीन ईश्वर नहीं हैं, क्योंकि पवित्रशास्त्र के एकेश्वरवाद में ईश्वर की एकता स्वयंसिद्ध बनी हुई है। कलीसिया अब भी घोषणा करती है कि प्रभु हमारा परमेश्वर एक है। वह एक प्राणी है, जबकि हमें उस एक अस्तित्व के भीतर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के निर्वहन के बीच अन्तर करना चाहिए।

आर. सी. स्प्रोल

 “ट्रायून मानर्की”

 टेबलटॉक मैगज़ीन

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

लिग्निएर संपादकीय
लिग्निएर संपादकीय
हम डॉ. आर. सी. स्प्रोल का शिक्षण संघ हैं। हम इसलिए अस्तित्व में हैं ताकि हम जितने अधिक लोगों तक सम्भव हो परमेश्वर की पवित्रता को उसकी सम्पूर्णता में घोषित करें, सिखाएं और रक्षा करें। हमारा कार्य, उत्साह, और उद्देश्य है कि हम लोगों को परमेश्वर के ज्ञान और उसकी पवित्रता में बढ़ने में सहायता करें।