
तीर्थयात्री प्रजा
11 दिसम्बर 2025बदलते हुए संसार में अटल सत्य
एक टेलीविज़न विज्ञापन में एक कार्टून-सा व्यक्ति दिखाया जाता है जो बादल, धुंध या रुई के गोले में अपना सिर डाले चलता है। और जैसे ही बादल हटता है, वह व्यक्ति खुशी-खुशी आगे बढ़ जाता है और नीचे लिखा है, “निश्चितता का आनन्द।” उस विज्ञापन में यह निश्चितता का आनन्द उन लोगों को प्राप्त होता जो फोन पर उपलब्ध भविष्य बताने वालों से बात करेंगे।
ऐसा विज्ञापन हमारे समय की बेचैन और जड़हीन प्रकृति को दर्शाता है। आज कई लोग स्वयं को तर्कसंगत, आधुनिक और वैज्ञानिक बताते हैं, परन्तु वे बहुत सरलता से ठगे जाते हैं और संदिग्ध स्थानों में निश्चितता और सत्य की खोज करते देखे जाते हैं। लगातार बदलते और अत्यंत अनिश्चित इस संसार में हम निश्चितता कहाँ पा सकते हैं? मसीही होने के रूप में, हम परमेश्वर के वचन की ओर देखते हैं और वहाँ मिलने वाले सत्य पर दृढ़ विश्वास रखते हैं।
हम दूसरों को कैसे इस भरोसे में सहभागी बनने में सहायता कर सकते हैं जो हमें बाइबल पर है? हम अपने विश्वास की सच्चाई के लिए तर्क दे सकते हैं और देना भी चाहिए, परन्तु आज के आधुनिक लोग प्रायः सोचते हैं कि उन्होंने हमारे तर्कों को पहले ही परख लिया है और वे हमसे अधिक जानते हैं। क्या ऐसी विधियाँ हैं जिनसे हम आधुनिक धारणाओं को चुनौती दे सकें और लोगों को मसीही दावों पर पुनः विचार करने के लिए प्रेरित कर सकें?
एक विधि होगी कि हम केवल सत्य की सत्यता पर ध्यान न देकर सत्य की सुन्दरता पर भी अधिक ध्यान दें। सत्य की सुन्दरता हमें परमेश्वर के वचन में मिलने वाले सत्य की सामग्री और उसके रूप—दोनों में दिखाई देती है। सुन्दरता से हमारा अर्थ है सत्य का सन्तुलन और सामंजस्य, सत्य का आकर्षण और उसकी तृप्ति। सुन्दरता का सम्बन्ध न केवल भावनात्मक पूर्ति से है, वरन् बौद्धिक दृढ़ विश्वास से भी है।
हम पवित्रशास्त्र में कई स्थानों पर ऐसी सुन्दरता देख सकते हैं, पर उसका एक सुन्दर उदाहरण भजन 103 है। अधिकाँश डच धर्मसुधारवादी लोगों का प्रिय भजन, भजन संहिता 103 परमेश्वर की स्तुति का भजन है, जो उसने अपने लोगों पर दिखाई अपनी भलाई के लिए किया है। यह भजन का आरम्भ और अन्त, दोनों में परमेश्वर के कार्यों के लिए स्तुति और आशीष के शब्दों से होता है, भले ही वह उसकी व्यक्तिगत और निजी देखभाल हो (पद 1–4) या फिर सब बातों पर उसका सार्वभौमिक शासन (पद 20–22)।
इस भजन के केन्द्र में परमेश्वर के स्वभाव का एक सुन्दर अंगीकार है, जिससे उसके करुणामय कार्य प्रवाहित होते हैं। पद 13, जो इस भजन का हृदय है, घोषणा करता है: “जैसे पिता अपने बच्चों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा उन पर दया करता है जो उससे डरते हैं।” अपने लोगों के प्रति यहोवा का प्रेम और कोमल दया उसी प्रकार है जैसे पिता अपने बच्चों के प्रति चिन्ता और देखभाल रखता है। परमेश्वर हमारा स्वर्गीय पिता है। हम केवल भौतिक और व्यक्तिहीन जगत में नहीं जीते; हम व्यक्तिगत देखभाल और प्रेम से घिरे हुए हैं।
भजन 103 में परमेश्वर की करुणा मनुष्यों की दो सबसे बड़ी आवश्यकताओं पर ध्यान केन्द्रित करता है। यदि हम लोगों से पूछें कि उनकी सबसे बड़ी आवश्यकताएँ क्या हैं, उनके कई उत्तर अपर्याप्त होंगे। मनुष्यों की खोई हुई स्थिति का एक भाग या है कि हम यह भी नहीं जानते हैं कि हमारी आवश्यकता क्या है। इस भजन में हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता हमारा पाप और हमारी नश्वरता है। हमारा पाप हमें परमेश्वर से अलग करता है और हमें उसके न्याय के अधीन लाता है। हमारी नश्वरता हमारे सम्पूर्ण जीवन में एक छाया डालती है और इसका अर्थ है कि जीवन के अन्त में मृत्यु निश्चित है।
यह भजन हमें उन सभी आशीषों को स्मरण करने के लिए बुलाता है जिसे हम उस परमेश्वर से पाते हैं—“जो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता है, जो तेरी सब बीमारियों को चंगा करता है” (पद 3)। पापियों और नश्वर मनुष्यों के प्रति परमेश्वर की करुणा, जिसका परिचय पद 1–5 में दिया गया है, पद 8–12 और 14–17 की सुन्दर काव्य-पंक्तियों में गहराई से समझाई गई है।
पापियों के प्रति परमेश्वर की करुणा निर्गमन 34:6 के एक उद्धरण से आरम्भ होती है। मूसा ने परमेश्वर से उसकी महिमा दिखाने की विनती की थी, और परमेश्वर ने उत्तर में प्रतिज्ञा की कि वह अपनी सारी भलाई मूसा को दिखाएगा, जब वह चट्टान की दरार में छिपे मूसा के पास से होकर निकलेगा (निर्गमन 33:18–23)। जब परमेश्वर मूसा के पास से होकर निकला, उसने अपनी भलाई प्रकट करने के लिए भजन 103:8 में उद्धृत ये शब्द कहे: “यहोवा दयालु और अनुग्रहकारी है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्रेम से परिपूर्ण।” इसी महान दया के कारण परमेश्वर प्रतिज्ञा करता है कि वह हमारे साथ वैसा व्यवहार नहीं करेगा जैसा हमारे पाप वास्तव में योग्य हैं (पद 10)। हमारे पाप केवल न्याय और दण्ड के योग्य हैं। परन्तु परमेश्वर का अपार प्रेम—“जितना आकाश पृथ्वी से ऊँचा है” (पद 11)—हमारे पापों को बहुत दूर ले जाता है, “उदयाचल से अस्ताचल” जितनी दूर (पद 12)।
भजन 103 हमें यह नहीं बताता कि परमेश्वर हमारे पापों को कैसे दूर करता है, परन्तु यशायाह 53 स्पष्ट रूप से बताता है कि परमेश्वर का दुःख उठाने वाला दास हमारे पापों को अपने ऊपर ले लेगा और उन्हें दूर ले जाएगा। यशायाह की वह नबूवत हमें यीशु की ओर संकेत करती है, जिसने क्रूस पर हमारे पाप स्वयं पर ले लिए और उनका दण्ड चुकाया, जिससे कि हम सदा के लिए उनसे मुक्त हो जाएँ।
भजन 103 का यह विचार मनुष्यों पर परमेश्वर की करुणा को भी देखाता है, जो फिर से निर्गमन 34:6 की ओर संकेत करता है। परमेश्वर का प्रेम अनन्त है, जिसका अर्थ है कि मृत्यु उसे न तो हरा सकती है और न समाप्त कर सकती है: “परन्तु यहोवा की करुणा उसके डर मानने वालों पर युगानुयुग रहती है” (भजन 103:17)। अनन्त प्रेम उन्हीं के लिए है जो उसी प्रेम में अनन्तकाल तक जीवित रहेंगे।
हमें अनन्त प्रेम की आवश्यकता है क्योंकि यदि हमें अपने हाल पर छोड़ दिया जाए तो हम उस मिट्टी में लौट जाते हैं जिससे हम बनाए गए थे। प्रभु यह जानता है। वह स्मरण रखता है कि हमारे दिन शीघ्र बीत जाते हैं और हम मैदान के फूलों के समान हैं। यदि परमेश्वर के अनन्त प्रेम का सहारा न हो, यदि यह प्रतिज्ञा न हो कि हमारा परमेश्वर वही है “जो तेरे प्राण को विनाश के गड्ढे से छुड़ाता है, और तुझे अटल प्रेम और करुणा का मुकुट पहनाता है” (पद 4), तो जीवन पूर्णतः अर्थहीन हो जाएगा। हम देखते हैं कि यीशु का पुनरुत्थान हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम में अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा है। वास्तव में यहाँ एक अत्यन्त सुन्दर सत्य है।
संसार में कुछ लोग प्रभु की दया के विषय में सुनकर यह मान लेते हैं कि वे आने वाले न्याय के प्रकोप से स्वतः ही सुरक्षित हैं। परन्तु यह भजन स्पष्ट करता है कि परमेश्वर की करुणा उन पर है जो उसके साथ वाचा में हैं (पद 18), जो उसका भय मानते हैं (पद 11, 13, 17)। परमेश्वर की वाचा के आशीषों को हम पर प्रकट होने होंगे (पद 7), परन्तु जब हम उस प्रकाशन को ग्रहण करते हैं, तब हम सुसमाचार के उस सुन्दर सत्य को जान जाते हैं।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

