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संयम क्या है?

What is Temperance

शब्द टूटा हुआ का प्रयोग जब काँच या साइकिल के लिए किया जाता है तो इसका अर्थ घोड़े के लिए प्रयुक्त अर्थ से, यदि विपरीत नहीं तो, बहुत भिन्न अवश्य होता है। एक टूटा हुआ काँच या साइकिल अनुपयोगी होता है, जबकि एक घोड़ा जो टूट चुका है उपयोगी हो जाता है। जब मसीही जीवन के विषय में सोचते है, तो टूटा हुआ पहले वाले अर्थ की तुलना में बाद वाले अर्थ के अधिक अनुरूप बैठता है। पतन और अपनी ही पापपूर्णता से नष्ट हुए और टूटे हुए पापियों को परमेश्वर और उसके राज्य के लिए उपयोगी सेवा में लाया जाता है।। यह परिवर्तन पवित्र आत्मा के फल के माध्यम से होता है जिसे संयम कहा जाता है।

संयम आज के समय में बीते युग की किसी बात जैसा प्रतीत होता है, जो निषेध और मद्य पर प्रतिबंध के “संयम आंदोलन” से जुड़ा हुआ है। इस विषय पर बात करते समय मदिरा और मतवालापन को ध्यान में रखा जाता है, परन्तु यह निश्चित रूप से केवल इसी तक सीमित नहीं है। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “संयम” के रूप में किया जा सकता है, उसे प्रायः अधिक आधुनिक अनुवादों में “आत्म-नियंत्रण” या “आत्म-अनुशासन” के रूप में अनुवादित किया जाता है (1 कुरिन्थियों 9:25; 2 पतरस 1:6)। प्रेरित पौलुस गलातियों 5 में शरीर के पापपूर्ण कार्य (गलातियों 5:18-2) बनाम आत्मा के फल (गलातियों 5:22-23) के बीच तुलना करता है और उस खंड को यह कहते हुए समाप्त करता है, “और जो ख्रीष्ट यीशु के हैं, उन्होंने अपने शरीर को दुर्वासनाओं तथा लालसाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।,” जिससे कि वे “पवित्र आत्मा के अनुसार चलें भी” (गलातियों 5:24-25)। संयम का आत्म-नियंत्रित स्वभाव सभी बातों में आत्मा-नियंत्रित होने से आता है।

पवित्रशास्त्र संयम या आत्म-नियत्रंण के बिना व्यक्ति या राष्ट्र की तुलना “बिना चारदीवारी के नगर” (नीतिवचन 25:28), “जंगली गदहे” (उत्पत्ति 16:12) और “जंगली दाखलता” (यिर्मयाह 2:21) से करता है, जो सभी अनियंत्रित उत्साह और सुखों व्यक्त करते हैं जो विनाश की ओर ले जाते हैं। इसके विपरीत, मसीही को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जो संयमी, पवित्र, विनम्र, सुनने में तत्पर और बोलने में धीमा है। उग्र होने के बदले, ख्रीष्ट का शिष्य विचार, वचन और कार्यों में अनुशासित होता है। पौलुस कहता है, “परन्तु भक्ति के लिए अपने आप को अनुशासित कर” (1 तीमुथियुस 4:7)। भक्ति में यह प्रशिक्षण संयम और आत्म-नियंत्रण के चरित्र से आता है। हर इच्छा और आवेग को सरलता से संतुष्ट करने के बजाय, आज्ञाकारिता और परमेश्वर की महिमा की अधिक इच्छा ही शासनकारी कारक बन जाते हैं। अतः संयम एक विश्वासी के जीवन में आत्मा द्वारा उत्पन्न फल है जो पापपूर्ण वासनाओं से भक्तिपूर्ण परहेज़ और मसीह के अनुरूप अच्छी इच्छाओं पर भी संतुलन रखने में प्रकट होता है।

बाइबिल का एक पात्र जो यह दर्शाता है कि यह आत्मिक चरित्र मुख्य रूप से ह्रदय में और मस्तिष्क में स्थित होना चाहिए, न कि मात्र बाहरी आज्ञाकारिता में, वह है शिमशोन। बाहरी रूप से वह संयम की नाज़ीर शपथ के अधीन था (न्यायियों 13:7), फिर भी आंतरिक रूप से उसमें आत्म-नियंत्रण का अभाव था। उसने अपने पिता से पलिश्तियों के बीच से एक विदेशी पत्नी लाने की माँग की क्योंकि उसने उसे “देखा” और कहा, “क्योंकि मुझे वही अच्छी लगती है।” (न्यायियों 14:1-3)। अनियंत्रित वासना शिमशोन के लिए एक बड़ा फंदा बन गया (न्यायियों 14:15-17; न्यायियों 16:1, 5, 15-18)। यहाँ तक ​​कि पलिश्तियों से उसका प्रतिशोध लेना भी पवित्र उत्साह से प्रेरित न होकर, व्यक्तिगत क्रोध के विस्फोट से प्रेरित प्रतीत होता है, जिसके परिणामस्वरूप उसके शत्रुओं के विरुद्ध प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हुई।। अंत में, शिमशोन एक सामर्थी व्यक्ति की दुखद कहानी है जो अपनी आंतरिक संयम की कमी के कारण दुर्बल और नष्ट हो गया।

इसकी तुलना जंगल में यीशु की परीक्षा से करें (मत्ती 4:1-11)। शैतान की चाल यीशु को अच्छी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करने के लिए प्रलोभित करना था। ऐसा करने के लिए, यीशु को अपने पिता की आज्ञा मानने के स्थान पर स्वयं की इच्छा पूरी करनी पड़ती। परन्तु प्रत्येक बिंदु पर, उसने प्रतिरोध किया क्योंकि व्यक्तिगत पूर्ति ऐसी इच्छाओं को प्राप्त करने या प्राप्त करने के साधनों को उचित नहीं ठहरा सकती थी। इसलिए, पापरहित उद्धारकर्ता ने अपने को रोक कर रखा और बिना कुछ किए रहा क्योंकि आज्ञाकारिता और परमेश्वर की महिमा उसके लिए पापपूर्ण आत्म-पूर्ति से अधिक महान् थी। परमेश्वर के प्रति उसकी इच्छा ने सभी पापपूर्ण प्रलोभनों पर विजय प्राप्त की। यही है संयम के ईश्वरीय गुण का सजीव उदाहरण।

संयम का यह फल एक मसीही के जीवन में मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में दिखाई देगा। सबसे पहले, हमारे विचारों को “हमारे मन के नये हो जाने से परिवर्तित” होना चाहिए—अब चिंता और अशान्ति से हमारे मन को बंदी नहीं बनाया जाना चाहिए (फिलिप्पियों 4:4-8), परन्तु इसकी अपेक्षा स्वर्गीय बातों पर अपना मन लगाना चाहिए (कुलुस्सियों 3:2)। दूसरा, हृदय की भावनाओं को भक्ति और पवित्रता द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए (नीतिवचन 4:23-27), क्रोध, वासना, लालच, ईर्ष्या, द्वेष या लोभ द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए (मत्ती 15:18-19; गलातियों 5:18-21)। तीसरा, हमारे शब्दों और जीवन के कर्म और क्रियाएँ में आत्म-संयम का फल प्रदर्शित होना चाहिए हमारी वाणी उचित होनी चाहिए, भ्रष्ट नहीं; हमारे भोजन और पेय का सेवन सीमित होना चाहिए, पेटू या नशे में धुत्त नहीं; हमारी संपत्ति और वस्त्र साधारण हों, दिखावटी नहीं; हमारी कार्य नीति परिश्रमी होना चाहिए, आलसी या दबंग नहीं। आत्म-नियंत्रण का फल जीवन के लगभग हर क्षेत्र और हर अवस्था को छूता है जब आत्मा के नियंत्रण में लाया जाता है (तीतुस 2:2-6)। तो फिर, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एक अध्यक्ष के लिए एक विशिष्ट योग्यता यह है कि उसे अवश्य ही आत्म-संयमी होना है (1 तीमुथियुस 3:2; तीतुस 1:8)।

ऐसे संसार में जहाँ आत्म-संयम को आत्म-अभिव्यक्ति पर रोक लगाने और यहाँ तक ​​कि स्वयं के लिए चोट पहुँचाने वाला और हानिकारक माना जाता है, परन्तु बाइबल इसके विपरीत दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। ऐसे “मुक्त” लोग अपने सृष्टिकर्ता के आदेश के विरुद्ध जाते हैं और इस प्रकार अपनी अनियंत्रित पापपूर्णता द्वारा स्वयं को नष्ट कर लेते हैं। परन्तु, मसीही व्यक्ति को पवित्र आत्मा के संयम के बंधनों के अधीनता में रखा जाता है, इस प्रकार वह पाप और मृत्यु के बंधन को नष्ट कर देता है। अच्छा चरवाहा हमें बताता है: “चोर केवल चोरी करने, मार डालने, और नाश करने को आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन पाएँ और बहुतायत से पाएँ” (यूहन्ना 10:10)। एक विश्वासी के जीवन में संयम, आनंद में विघ्न डालने वाले के स्थान पर, मसीह में भरपूर जीवन का भाग है जो अच्छा और परमेश्वर को महिमा देने वाला फल लाता है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जोएल स्मिथ
जोएल स्मिथ
जोएल ई. स्मिट, स्मिर्ना, जॉर्जिया में स्मिर्ना प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ठ पादरी हैं।