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महिमा की खोज

The Quest for Glory

आर.सी. स्प्राउल

महिमा की खोज बहुत अधिक प्रोत्साहित करने वाली होती है। कितनी बार ऐसा हुआ है कि जब महिमा निकट प्रतीत होती है तो हम और अधिक प्रयास करते हैं या और आगे तक दौड़ जाते हैं। हम महिमा पाने के लिए अपने व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं का त्याग करने को भी तैयार रहते हैं। “कष्ट बिना लाभ नहीं!” दोहराते हुए, हम आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे जीवन का महत्व हो। हम चाहते हैं कि किसी सार्थक कार्य के लिए हमें सम्मानित किया जाए।

महिमा की इस गहरी प्यास का अनुभव करने का एक कारण है। परमेश्वर के वचन में हम पाते हैं कि हमें महिमा के लिए ही रचा गया है। उसने हमारे शरीरों को रचा और हममें जीवन की श्वास फूँका जिससे कि हम उसकी पवित्रता की महानता को जान सकें और उसके सामने प्रति विस्मय में खड़े हों। हमारे हृदय और मन परमेश्वर की भलाई से इतने अधिक प्रभावित होने चाहिए कि हम सहज ही उसकी आराधना करें और उसका आज्ञापालन करें। इस प्रकार, हम परमेश्वर की अद्भुत महिमा को प्रतिबिम्बित करेंगे।

फिर भी, अपने चारों ओर देखिए। क्या संसार पवित्रता की महिमा से चमक रहा है? संभवत: आपने गौर किया होगा कि बुराई ने हमारे संसार को कैसे विकृत कर दिया है। यहाँ दुःख, कड़वाहट, छल और मृत्यु है। यदि हमें परमेश्वर की महिमा को जानने के लिए बनाया गया था, तो फिर कहाँ त्रुटि हो गई?

परमेश्वर के वचन द्वारा दिया गया उत्तर हमारे अपने हृदयों की ओर संकेत करता है। हमें परमेश्वर पर निर्भर रहने और उसे महिमा देने के लिए रचा गया था। पर हम अपने लिए महिमा खोजने पर अड़े हुए हैं। हमने परमेश्वर की इच्छा को अपने स्वार्थपूर्ण इच्छाओं से बदल दिया है और अपने लिए नाम बनाने निकल पड़े हैं। इसे ही बाइबल ‘पाप’ कहती है और यह हमारे लिए परमेश्वर के उद्देश्य की अवज्ञा है। पाप हमें परमेश्वर की महानता के स्थान पर अपनी निर्बलता में संतुष्टि ढूँढ़ने के लिए लुभाता है। हम गलती से, अपनी पहचान, अपने काम या अपने सपनों में स्थायी महिमा ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं। परन्तु बार-बार हम स्वयँ को खोखला और असंतुष्ट पाते हैं। हम स्वयं को दोषी भी पाते हैं क्योंकि हमारा पाप परमेश्वर के सामने छिपा नहीं रहता। वह एक धर्मी न्यायाधीश है। हम दोषी हैं क्योंकि हमने उसकी सच्चाई को छोड़कर अपनी स्वयं की व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया है। इस पाप के दण्ड का वर्णन बहुत स्पष्ट रूप से किया गया है: मृत्यु और परमेश्वर से अनन्तकालीन दूरी।

परन्तु सुसमाचार का संदेश एक महिमामयी शुभ संदेश है! बाइबल कहती है, “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया”, “कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, कि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए” (यूहन्ना 3:16)। परमेश्वर के सिद्ध पुत्र, यीशु ख्रीष्ट ने मनुष्य का रूप धारण किया, परन्तु उसमें मनुष्य के पाप नहीं थे। वह मनुष्यों के बीच रहा फिर भी उनके अवज्ञा में भागी नहीं हुआ। वह परमेश्वर की इच्छा का पालन करने और परमेश्वर के नाम की महिमा करने से कभी विचलित नहीं हुआ। उसने परमेश्वर की महिमा को पूर्णतः प्रतिबिम्बित किया।

बाइबल कहती है कि यीशु ख्रीष्ट “यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु वरन् क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:8)। उसकी आज्ञाकारिता उसे क्रूस पर मरने तक ले गई। ऐसा क्यों?

इसका उत्तर यह है: यीशु ख्रीष्ट ने हमारा दोष अपने ऊपर ले लिया । वह हमारी मृत्यु मरा जिससे कि हम जी सकें। उसने वह दण्ड सहा जो हमें सहना चाहिए था। उसने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिए जिससे कि हम क्षमा पा सकें। उसने अपना जीवन दे दिया जिससे कि हम परमेश्वर के सामने स्वीकार किए जाएँ। वह हमारे लिए मरा जिससे कि हम अपने पापों से पश्चाताप कर सकें और उसमें मुक्ति पा सकें। यह अद्भुत, महिमामयी संदेश है! अपनी मृत्यु के तीसरे दिन, यीशु ख्रीष्ट फिर से जी उठा। उसने दोष, मृत्यु और पाप पर विजय प्राप्त की!

बाइबल इस सुसमाचार को इस प्रकार व्यक्त करती है: “अतः अब उन पर जो ख्रीष्ट यीशु में है, दण्ड की आज्ञा नहीं” (रोमियों 8:1)। यीशु में, हमें क्षमा, आशा, शांति और संतुष्टि का वरदान मिला है। यीशु में, हम परमेश्वर की उपस्थिति में सहजता से स्वीकार किए जाते हैं और उसके प्रेम और पवित्रता की सुंदरता को नए सिरे से खोजते हैं। यही उद्धार है। यह सचमुच महिमामय है। यही सुसमाचार है।

प्रिय मित्र, क्या आपने अपने पापों को स्वीकार किया है और यीशु ख्रीष्ट पर विश्वास किया है? क्या आप इस पर भरोसा करने को तैयार हैं कि उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान ही हमारे उद्धार का साधन है? हो सकता है आज ही आपका उद्धार हो जाए। वह आपको क्षमा कर देगा।

हमारी प्रार्थना है कि आप उस पर विश्वास करें और जानें कि उसकी महिमा ही वास्तव में संतुष्टि देती है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।