लूथर का पागलपन

यदि परमेश्वर पवित्र और मनुष्य पापी है, तो मनुष्य के लिए इसका क्या अर्थ है? यह वही समस्या है जिससे मार्टिन लूथर ने वर्षों तक संघर्ष किया और इसने उसे निराशा के गर्त में ढकेल दिया। इस बात ने उसे एक बार तो यह चिल्लाने के लिए भी कर विवश कर दिया, “परमेश्वर से प्रेम? कई बार तो मैं उससे घृणा करता हूँ।” फिर एक दिन जब लूथर ईश्वरविज्ञान के अपने छात्रों को रोमियों 1 पढ़ाने की तैयारी कर रहा था, तो वह पद 17 पर आया और उसने पढ़ा, “क्योंकि इसमें परमेश्‍वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है…” लूथर ने बाद में कहा, “मैंने पहली बार अनुभव किया कि मेरा अपना धर्मी ठहराया जाना मेरी स्वयं की धार्मिकता पर निर्भर नहीं है, जो कि सदैव अपर्याप्त रहेगी, किन्तु यह केवल और पूरी तरह से यीशु ख्रीष्ट की उस धार्मिकता पर निर्भर है जिसे मुझे विश्वास से भरोसा करके थामे रहना चाहिए।” यह पाठ हमें यह समझने में सहायता करने के लिए बनाया गया है कि कैसे पापी लोग उस धार्मिकता के माध्यम से पवित्र परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े हो सकते हैं जो परमेश्वर यीशु ख्रीष्ट के द्वारा प्रदान करता है।