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क्रोध मानवीय अवगुणों में दो प्रकार से अनोखा है। पहला, बाइबल में परमेश्वर के क्रोध को मानवीय रूप से दर्शाया गया है। वह वासना, घमण्ड या आलस्य से उत्तेजित नहीं होता, परन्तु क्रोधित होता है (उदाहरण के लिए, निर्गमन 32:11)। परमेश्वर बुराई के विरुद्ध ईश्वरीय अप्रसन्नता को अभिव्यक्त करता है। क्योंकि परमेश्वर पूर्ण रूप से धर्मी है, इसलिए क्रोध की उचित समझ और प्रदर्शन होना आवश्यक है।
दूसरा, क्रोधित लोग प्रायः अपने क्रोध से अनभिज्ञ रहते हैं। निस्सन्देह, पाप हमें अन्धा कर देता है, परन्तु क्रोध का प्रभाव अलग होता है। क्रोध प्रायः सभी को स्पष्ट दिखाई देता है, परन्तु क्रोधित व्यक्ति को नहीं। आत्म-जागरूकता की यह कमी क्रोध की विशेषता है। सच तो यह है कि जितना अधिक हम क्रोधित होते हैं, उतना ही अधिक हम इस बात में आश्वस्त होते हैं कि हम सही हैं और अन्य लोग दोषी हैं। क्रोध के इन अद्वितीय गुणों को ध्यान में रखते हुए, यहाँ क्रोध का संक्षिप्त बाइबिलीय विवरण प्रस्तुत है।
क्रोध के आवश्यक तत्व
क्रोध कहता है, “वह दोषी है।” यह एक निर्णय है, और निर्णय लेना हमारी मानवता का अभिन्न अंग है। मनुष्य निर्णय न लेने में असमर्थ हैं। हमें भले और बुरे में भेद करने के उद्देश्य के साथ बनाया गया था, और हमें प्रभु का अनुकरण करते हुए और उसके अधीन रहकर निर्णय लेने के लिए बनाया गया था।
क्रोध कहता है, “मैं उसे ठीक करूँगा।” क्रोध किसी गलत काम के विषय में कुछ करने के लिए विवश होता है। गलती किसी अपराध को अनदेखा करने के स्तर से आगे बढ़ गया है, और क्रोध स्वीकार करता है कि इसके विषय में कुछ किया जाना चाहिए।
परमेश्वर का क्रोध
परमेश्वर अपने क्रोध में भला और न्यायी है। परमेश्वर घमण्ड से चढ़ी हुई आँखें, झूठ बोलने वाली जीभ, हत्यारों, षड्यंत्रकारियों, झूठ बोलने वाला साक्षी, मतभेद को उत्पन्न करने वालों (नीतिवचन 6:16-19), घटिया माप-तौल (नीतिवचन 20:10) और तलाक द्वारा किए गए अन्याय (मलाकी 2:16) से घृणा करता है। ये सभी शैतान के चरित्र का अनुकरण करते हैं और उनका न्याय किया जाएगा। हमारा परमेश्वर एक योद्धा है जो सब कुछ को ठीक करेगा (भजन 18:6-8)।
इस पवित्र क्रोध को क्रियान्वित होते देखें; यह हमारे क्रोध से पूर्णतः भिन्न है। परमेश्वर “क्रोध करने में धीमा” है (निर्गमन 34:6)। अपने धर्मी क्रोध में भी, वह अपने लोगों को छुटकारा प्रदान करने के लिए तैयार रहता है (निर्गमन 32:14)। उसका क्रोध बंधनों में बंधा रहता है, जबकि ख्रीष्ट में उसका प्रेम कोई सीमा नहीं जानता। यह प्रेम सबसे अधिक तब प्रकट हुआ जब उसने ईश्वरीय योजना को प्रकट किया जिसमें उसका क्रोध हमारे ऊपर से हट गया: हमारे स्थान पर उसका धर्मी पुत्र कुचला गया।
यीशु, पूर्ण रूप से परमेश्वर और पूर्ण रूप से मनुष्य, अपने क्रोध में अच्छा है। यीशु क्रोधित होता है जब फरीसी उसे सूखे हाथ वाले व्यक्ति को चंगा करने से रोकने का प्रयत्न करते हैं (मरकुस 3:5), जब मुद्रा बदलने वाले गैर-यहूदी उपासकों की उपासना में विघ्न डालते हैं (यूहन्ना 2:13-17), और जब उसके शिष्य उसे छोटे बच्चों से दूर रखने का प्रयास करते हैं (मरकुस 10:14)। फिर भी इस पर ध्यान दें। यीशु का क्रोध केवल उसकी प्रतिक्रिया नहीं है, वरन् परमेश्वर पिता की इच्छा की अभिव्यक्ति भी है (यूहन्ना 6:38)।
हमारा क्रोध
हमारा क्रोध प्रायः छद्म रूप में आता है।
क्रोध हत्या, हिंसा, घृणा, चिल्लाना, बहस करना, शाप देना, कलह, दोषारोपण, प्रतिशोध, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या, निंदा, गपशप, दूसरों की समस्याओं में आनंद लेना, व्यंग्य, बड़बड़ाना और कुड़कुड़ाना, पीछे हटना और चुप रहने में पाया जा सकता है। अगर आपको लगता है कि आपको क्रोध से कोई समस्या नहीं है, तो मान लें कि आपको है।
हमारा क्रोध प्रायः अभिमान और स्वार्थी इच्छा से प्रेरित होता है।
हमें अपने क्रोध में यीशु का अनुकरण करने के लिए बुलाया गया है, और अब मसीहियों के पास ऐसा करने के लिए आत्मा की सामर्थ्य है, जैसा कि प्रेरितों के क्रोध की सकारात्मक अभिव्यक्तियों में देखा जा सकता है, जैसा कि प्रेरितों के काम, 1 और 2 कुरिन्थियों और गलातियों जैसे स्थानों में वर्णित है। फिर भी, हमें यहाँ एक चेतावनी देनी चाहिए: मानव क्रोध ऐसे जीना पसंद करता है जैसे कि हम धर्मी न्यायाधीश हों,मानो हमारी अपनी महिमा दाँव पर लगी हो, और जैसे कि निर्णय हमारे अपने हाथों में हो। हमारा क्रोध प्रायः घमण्डी और स्वार्थी इच्छा और हमारे तथाकथित अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता से भरा होता है (याकूब 4:1-10 देखें)। यहाँ तक कि जब हमारा क्रोध दूसरों के विरुद्ध हो रहे अन्याय के विरुद्ध निर्देशित होता है, तब भी प्रायः यह एक ऐसे स्वतंत्र न्यायधीश के रूप में कार्य करता है जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। पापी मानवीय क्रोध परमेश्वर की खोज नहीं करता, यह प्रेम की अपेक्षा सही होने की अधिक परवाह करता है, और यह उस दया को भूल जाता है जो हमें दिखाई गई है (मत्ती 18)।
हमारा क्रोध प्रायः शैतान का अनुकरण करता है।
क्रोध की घातक स्वभाव जितनी भयावह दिखती है, उससे कहीं अधिक भयावह है। हमारा क्रोध प्रायः प्रकट करता है कि हम शरीर-मृत्यु-शैतान के गठबंधन में भाग लेते हैं। हम उस व्यक्ति का अनुकरण करते हैं “जो आरम्भ से ही हत्यारा और झूठा रहा है” (यूहन्ना 8:44)। यह साझेदारी बताती है कि क्रोध को प्रायः बुरा के बजाय अच्छा क्यों समझा जाता है, और क्रोधित लोग अपने बारे में झूठ क्यों मानते हैं।
हमारा क्रोध प्रायः अपनी पापी जड़ के कारण मृत्यु के योग्य होता है; यीशु उस मृत्यु को स्वयं पर ले लेता है जिसके योग्य वह पाप है।
हमारी आशा है कि आत्मा हमें प्रकाश में ले आए, हमें हमारी हत्या करने की प्रवृत्तियों के विषय में कायल करे, यीशु के धैर्य और शुद्धिकरण के लहू को प्रकट करे, जिससे कि हम विश्वास और पश्चाताप में यीशु के पास आ सकें, अपने पापों पर शोक कर सकें (याकूब 4:9), जिनके विरुद्ध हमने पाप किया है उनसे क्षमा माँग सकें, प्रभु का भय मानना सीखें और आभार व्यक्त कर सकें (2 कुरिन्थियों 7:10)।
निस्सन्देह, और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, यह उस पास्टरीय समझ को नहीं दर्शाता है जिसकी हमें आवश्यकता है यदि हम क्रोधित लोगों की सहायता करना चाहते हैं। वह समझ भय, अकेलेपन, या क्रोधित लोगों द्वारा क्रोधित लोगों को कैसे पीड़ित किया गया है, इस पर ध्यान केंद्रित करना चुन सकती है। क्रोध निश्चित रूप से इन कारकों के साथ यात्रा कर सकता है। फिर भी, यह संक्षिप्त विवरण, कम से कम, हमारे अपने प्राण में क्रोध को खोजने का पर्याप्त कारण है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।