पवित्रशास्त्र - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
प्रकाशन
17 दिसम्बर 2024
परमेश्वर का वचन
24 दिसम्बर 2024
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पवित्रशास्त्र

परिचय
पवित्रशास्त्र एक बाइबलीय शब्द है जो परमेश्वर के लिखित प्रकाशन को सन्दर्भित करता है—अर्थात्, पुराने और नए नियम की पुस्तकें। पवित्रशास्त्र शब्द यूनानी शब्द ग्राफे का अनुवाद है—जिसका सीधा सा अर्थ है “लेखन।” नया नियम इस शब्द का उपयोग कभी-कभी सम्पूर्ण ग्रन्थ-संग्रह के लिए, कभी पुराना नियम के ग्रन्थ-संग्रह के लिए, कभी पुराने नियम के किसी विशेष खण्ड के लिए, और कभी किसी विशिष्ट उत्प्रेरित लेखक के लेखनों के लिए करता है।

व्याख्या
पवित्रशास्त्र शब्द एक आधारभूत प्रकार है जिससे नए नियम के उत्प्रेरित लेखक दोनों नियमों में परमेश्वर के लिखित प्रकाशन के बारे में बात करते हैं। नए नियम में, यह शब्द उन पवित्र लेखों को सन्दर्भित करता है जिन्हें परमेश्वर ने नबियों और प्रेरितों के माध्यम से उत्प्रेरित किया और जिसे उसने अपनी कलीसिया को सौंपा है। वेस्टमिंस्टर विश्वास अंगीकार वचन (वेस्टमिंस्टर कन्फ़ेशन ऑफ़ फेथ) पवित्रशास्त्र की विषय वस्तु का साराँश प्रस्तुत करता है जब यह कहता है, “पवित्रशास्त्र के नाम के अन्तर्गत, या परमेश्वर के लिखे गए वचन में, अब पुराने और नए नियम की सभी पुस्तकें सम्मिलित हैं।” इसके पश्चात् यह विश्वास अंगीकार वचन उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य तक बाइबल की छियासठ पुस्तकों को सूचीबद्ध करता है। धर्मसुधार के बाद से, प्रोटेस्टेंटों ने इन पुस्तकों को स्वीकार किया है—और केवल इन पुस्तकों को ही—परमेश्वर के उत्प्रेरित प्रकाशन के रूप में स्वीकार किया है। जिस अवधि के समयकाल में पवित्रशास्त्र लिखा गया था, उसी अवधि के अन्य प्राचीन लेखन, जैसे अप्रमाणिक ग्रन्थ (Apocrypha) की पुस्तकें, ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मूल्यवान हो सकती हैं, परन्तु उनका उपयोग सिद्धान्त स्थापित करने या ईश्वरीयविज्ञानीय विषयों को सुलझाने के लिए नहीं किया जा सकता है।

पुराने नियम का अधिकाँश भाग इब्रानी (परमेश्वर की पुरानी वाचा के लोगों की भाषा) में लिखा गया था। इसका एक छोटा सा भाग अरामी भाषा (यीशु मसीह के समय में बेबीलोन और इस्त्राएल में निर्वासन के दौरान यहूदियों की बोल-चाल की भाषा) में लिखा गया था । नया नियम यूनानी में लिखा गया था (प्रेरितीय युग के समयकाल में रोमन साम्राज्य की बोल-चाल की भाषा)।

कुलपिताओं के समयकाल में, परमेश्वर ने स्वप्नों, दर्शनों और नबूबतों के माध्यम से स्वयं को और अपनी इच्छा को प्रकट करना आरम्भ किया। उसने नबियों को खड़ा किया जिनके माध्यम से उसने अपने प्रकाशन की मध्यस्थता की (उदाहरण के लिए, हनोक, नूह और अब्राहम)। ये नबी इस्राएल में मूसा से आरम्भ होने वाले नबियों के क्रम से भिन्न थे। यद्यपि, जो कुछ भी परमेश्वर ने उन पर प्रकट किया वह मौखिक परम्परा के माध्यम से आगे बढ़ाया गया। ईश्वरविज्ञानी इस एकल प्रकट प्रकाशन को प्रिस्का थियोलोगिया (प्राचीन ईश्वरविज्ञान) कहते हैं। डॉ. आर.सी. स्प्रॉल ने इस सिद्धान्त को समझाते हुए लिखा: “जीवित परमेश्वर की आराधना के लिए मूल कार्यक्रम और विधि बलिदान थी। आदम ने इसे कैन, हाबिल और शेत को बताया। शेत ने इसे हनोक को बताया, और उसने अपने पुत्रों को, और उन्होंने अपने पुत्रों को, इत्यादि। यह अब्राहम को सिखाया गया था। इसे इसहाक को सिखाया गया था। यह याकूब को सिखाया गया था। यह यूसुफ को सिखाया गया था। यह मूसा को सिखाया गया था। यह इश्माएल और एसाव को भी सिखाया गया था, और इस प्रकार विश्वास में बलिदान की आवश्यकता का विचार पूरी मानव जाति में व्याप्त हो गया।”

पुराने नियम में लिखित प्रकाशन का पहला उल्लेख स्पष्ट रूप से दस आज्ञाओं का ईश्वरीय लेखन था (निर्गमन 17:14)। तब परमेश्वर ने मूसा को उन विधियों को लिखने का निर्देश दिया जो उसने सीनै पर्वत पर मूसा की वाचा में प्रकट किया था (निर्गमन 34:27)। यीशु और प्रेरित इस बात की पुष्टि करते हैं कि मूसा ने पंचग्रन्थ का अधिकाँश भाग लिखा था (मत्ती 8:4; 19:7-9; लूका 20:37; रोमियों 9:15; 10:5, 19; 1 कुरिन्थियों 9:9)।

यद्यपि परमेश्वर ने मूसा को अपने प्रकाशन को लिखित रूप में सुरक्षित करने का आदेश दिया, ऐसा माना जाता है कि अय्यूब की पुस्तक सम्भवतः पवित्रशास्त्र का सबसे प्राचीन उत्प्रेरित स्थल है; यह सम्भवतः अब्राहम और इस्राएल के अन्य कुलपिताओं के समय में पूर्ण या आँशिक रूप से लिखा गया था। अय्यूब के दोस्तों (तेमानी, शूही और नामाती) से जुड़े आदिवासी नामकरण से पता चलता है कि वे उन लोगों के वंशज थे जो अब्राहम के समय के आसपास जीवित थे (उत्पत्ति 25:2; 36:15)।

पुराने नियम में लिखित प्रकाशन की प्रगति प्रमुख व्यक्तियों (नूह, अब्राहम, मूसा और दाऊद) के साथ परमेश्वर की वाचीय सहमति द्वारा संरचित है। इसके अतिरिक्त, इसमें ऐतिहासिक, बुद्धि, और भविष्यसूचक साहित्य सम्मिलित है। प्राचीन यहूदी धर्म में, पुराने नियम की उनतालीस पुस्तकों को प्रायः तोराह (व्यवस्था), नेविइम (नबीयों की पुस्तक), और केतुविम (लेख) के तीन प्रभागों में व्यवस्थित किया गया था। इस इब्रानी ग्रन्थ-संग्रह में वही पुस्तकें सम्मिलित हैं जो प्रोटेस्टेंट ग्रन्थ-संग्रह में हैं, परन्तु यह यहूदी परम्परा में चौबीस पुस्तकों के रूप में गिनी जाती हैं क्योंकि यहूदी निम्नलिखित समूहों की पुस्तकों को एक पुस्तक के रूप में गिनते थे: 1-2 शमूएल, 1-2 राजा, 1-2 इतिहास, एज्रा-नहेमायाह, और बारह छोटे नबियों की पुस्तकें। इस त्रिस्तरीय विभाजन को यीशु के समय के यहूदियों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था।

सुसमाचार की पुस्तकों में, यीशु पुराने नियम के ग्रन्थ-संग्रह को “पवित्रशास्त्र” के रूप में सन्दर्भित करता है (मत्ती 21:42; 22:29; 26:54, 56; यूहन्ना 5:39; 10:35)। नासरत के आराधनालय में (लूका 4:21) प्रचार करते समय उन्होंने यशायाह 61:1-2 को “पवित्रशास्त्र” के रूप में बताया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यशायाह 53:12 को लूका 22:37 में “पवित्रशास्त्र” के रूप में बताया। लूका ने पुराने नियम के ग्रन्थ-संग्रह को “पवित्रशास्त्र” के रूप में सन्दर्भित किया है, जब उसने देखा कि यीशु ने— इम्माऊस की सड़क पर अपने पुनरुत्थान के बाद की उपस्थिति में— “व्याख्या की थी . . . सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में उसके स्वयं के विषय में बातें हैं” (लूका 24:27, 32)। यीशु ने त्रिस्तरीय विभाजन का उल्लेख किया जब उसने अपने शिष्यों को “मूसा की व्यवस्था और नबियों और भजनों में” अपने विषय में सब कुछ सिखाया (लूका 24:44)। लूका ने इस संग्रह को “पवित्रशास्त्र” कहा (लूका 24:45)। विचारणीय बात यह है कि फरीसियों, सदूकियों, शास्त्रियों और याजकों के साथ यीशु के सभी विवादों में, इस बात पर कोई विवाद नहीं हुआ कि कौन सी पुस्तकें प्रेरित पवित्रशास्त्र थीं।
प्रेरित जब पुराने नियम के उत्प्रेरित ग्रन्थ-संग्रह के बारे में बोलते है तो पवित्रशास्त्र शब्द का उपयोग करते हैं। सबसे परिचित स्थल जिसमें परमेश्वर की उत्प्रेरित लिखित प्रकाशन को पवित्रशास्त्र के रूप में सन्दर्भित किया गया है वह है 2 तीमुथियुस 3:16, जहाँ प्रेरित पौलुस ने लिखा है, “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की उत्प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।” पौलुस 1 तीमुथियुस 5:18 में व्यवस्थाविवरण 25:4 को पवित्रशास्त्र कहता है।

प्रेरितों ने एक दूसरे के लेखन को भी पवित्रशास्त्र कहा। प्रेरित पतरस ने स्वीकार किया कि पौलुस आत्मा की उत्प्रेरणा से पवित्रशास्त्र लिख रहा था, जब उसने उसकी पत्रियों को “अन्य पवित्रशास्त्र” के श्रेणी में रखा (2 पतरस 3:15-16), जो पुराने नियम के ग्रन्थ-संग्रह लेखन का स्पष्ट सन्दर्भ है। नयी वाचा की सत्ताईस पुस्तकें—जिन्हें सुसमाचार, प्रेरितों के काम, पत्रियाँ और प्रकाशितवाक्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है—पुराने नियम के पवित्रशास्त्र के समान ही परमेश्वर की उत्प्रेरणा से दिए गए पवित्रशास्त्र हैं।

पुराने और नए नियम की छियासठ पुस्तकें पापियों के उद्धार के लिए क्रूस पर चढ़ाए गए और जी उठे यीशु ख्रीष्ट के एकल, एकीकृत सन्देश से जुड़ी हुई हैं। पवित्रशास्त्र का हर भाग—चाहे कविता हो या ऐतिहासिक कहानी, बुद्धि के वचन या भविष्यसूचक कथन, व्यवस्था या सुसमाचार—परमेश्वर द्वारा अपने लोगों को लॉगोस, परमेश्वर के जीवित वचन, यीशु ख्रीष्ट की उनकी आवश्यकता को देखने के लिए अगुवाई करने के लिए दिया गया है।

पवित्रशास्त्र की उपयोगिता के विषय पर जब पहुँचते है तो, प्रोटेस्टेंट और धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानियों ने पवित्रशास्त्र के गुणों के महत्व पर बल दिया है—अर्थात्, इसके अधिकार, आवश्यकता, पर्याप्तता और स्पष्टता। ये विशेषताएँ स्वयं-प्रमाणित पवित्रशास्त्र से ली गई हैं, क्योंकि केवल वे ही विश्वासियों के लिए विश्वास और व्यवहार का एकमात्र त्रुटिहीन और अचूक नियम हैं। इस प्रकार से, रोमन कैथोलिक में अपने स्थान के विपरीत प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार के लिए पवित्रशास्त्र आधारभूत था। रोम ने पुराने नियम में अप्रमाणिक लेखन को जोड़ा, जिससे कि पवित्रशास्त्र के ग्रन्थ-संग्रह में अप्रेरित लेखन सम्मिलित हो गया। इसके अतिरिक्त, रोम ने परम्परा और पादरी-सत्ता (मैजिस्टेरियम) को ईश्वरीय अधिकारियों के रूप में पुराने और नए नियम के समकक्ष या यहाँ तक ​​कि व्यवहार में उससे भी अधिक, स्थापित करने के द्वारा पवित्रशास्त्र के अधिकार, पर्याप्तता और स्पष्टता को दुर्बल कर दिया। अप्रमाणिक ग्रन्थ को सम्मिलित करने के लिए रोम का तर्क इस तथ्य पर आधारित है कि कई प्रारम्भिक कलीसिया के पिताओं ने उन पुस्तकों का उल्लेख करते समय पवित्रशास्त्र शब्द का प्रयोग किया था। परन्तु, जैसा कि विलियम हेनरी ग्रीन ने उल्लेख किया है, “पिताओं ने इन पुस्तकों को ऐसे शीर्षक देकर सम्भवतः यह संकेत देने का प्रयास किया कि ये धर्मनिरपेक्ष साहित्य या सांसारिक विषयों पर पुस्तकों के विपरीत, पवित्र श्रेणी में आती हैं।. . . परिणामस्वरूप, यह अपेक्षित था कि, इन पुस्तकों को वह सम्मान और आदर प्राप्त होगा जो अन्य मानवीय रचनाओं के लिए नहीं था।” दूसरे शब्दों में, आरम्भिक मसीहियों ने अप्रमाणिक ग्रन्थ का उतना ही सम्मान किया, जितना हम आधुनिक भक्ति लेखन और सुप्रतिष्ठित ईश्वरविज्ञानियों के लेखन का करते हैं, परन्तु उन्होंने उन्हें ईश्वरीय प्रेरणा से प्रेरित या सिद्धान्तात्मक मूल्यांकन करने में अंतिम निर्णय लेने के लिए उपयुक्त नहीं माना।

अप्रमाणिक पुस्तकों के बारे में ग्रीन का मूल्यांकन इंग्लैंड की कलीसिया के उनतालीस लेखों में कही गई बातों से मेल खाता है: “अन्य पुस्तकें . . . कलीसिया, जीवन के उदाहरण और शिष्टाचार की शिक्षा के लिए पढ़ती है; परन्तु फिर भी उन्हें किसी सिद्धान्त को स्थापित करने के लिए लागू नहीं किया जाता है।” अप्रमाणिक ग्रन्थ की प्रेरणा न होने के सम्बन्ध में वेस्टमिंस्टर विश्वास अंगीकार वचन की भाषा और भी अधिक दृढ़ है। इसमें कहा गया है, “सामान्यतः अप्रमाणिक कहलाने वाली पुस्तकें, ईश्वरीय उत्प्रेरणा से रहित होने के कारण, पवित्रशास्त्र के ग्रन्थ-संग्रह का भाग नहीं हैं; और इसलिए, ये परमेश्वर की कलीसिया में किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं रखते, न ही इन्हें अन्य मानव रचनाओं से भिन्न रूप में स्वीकृत या उपयोग किया जाना चाहिए” (WCF 1.3)।

उद्धरण
सोला स्क्रिप्टुरा (sola Scriptura) का धर्मसुधार तख्ता—‘केवल पवित्रशास्त्र’ (Scripture alone)—वास्तव में पवित्रशास्त्र का वर्णन करने वाले चार प्रमुख शब्दों से बना है। क्योंकि यह आधिकारिक, आवश्यक, स्पष्ट और पर्याप्त है, विश्वास और अभ्यास के मामलों में पवित्रशास्त्र हमारा अंतिम मानक है। परिणामस्वरूप, पवित्रशास्त्र का प्रचार किया जाना चाहिए, पढ़ा जाना चाहिए, अध्ययन किया जाना चाहिए और प्रकाशित किया जाना चाहिए। धर्मसुधार का निर्माण परमेश्वर के वचन की निश्चित नींव पर बनाया गया था।
स्टीफन जे निकोल्स
“पवित्रशास्त्र का धर्मसिद्धान्त”
टेबलटॉक पत्रिका

वह कौन है जो यह निर्णय करता है कि बाइबल का कौन सा भाग वास्तव में ग्रन्थ-संग्रह से सम्बन्धित है? एक बार जब हम अपने आपको टोटा स्क्रिप्टुरा के दृष्टिकोण से दूर कर लेते हैं, तो हम यह लेने और चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं कि पवित्रशास्त्र का कौन सा भाग मसीही विश्वास और जीवन के लिए आदर्श हैं, ठीक उसी तरह जैसे किसी पेड़ से चेरी चुनना। ऐसा करने के लिए हमें यीशु की शिक्षा पर पुनः जाना होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा। हमें इसे बदलना होगा, जिससे कि हमारा प्रभु कहें कि हम केवल रोटी से नहीं जीते हैं, परन्तु केवल कुछ उन वचनों से जीते हैं जो परमेश्वर की ओर से आता हैं। इस मामले में, बाइबल उस स्थिति में आ गई है जहाँ सम्पूर्ण उसके भागों के योग से कम है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसकी कलीसिया को हर पीढ़ी में सामना करना है, और यह आज कुछ सबसे आश्चर्यजनक स्थानों में फिर से प्रकट हुआ है। हम उन धर्मविद्यालयों में, जो स्वयं को धर्मसुधारवादी कहते हैं, प्राध्यापकों को ग्रन्थ-संग्रह के भीतर इस प्रकार के ग्रन्थ-संग्रह की वकालत करते हुए पा रहे हैं। कलीसिया को शास्त्रसम्मत मसीहत से इन विचलनों के लिए बलपूर्वक ‘नहीं’ कहना चाहिए, और उसे न केवल सोला स्क्रिप्टुरा में, परन्तु टोटा स्क्रिप्टुरा में भी अपने विश्वास की पुष्टि करनी चाहिए।
आर.सी. स्प्राेल
“टोटा स्क्रिप्टुरा ”
टेबलटॉक पत्रिका

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

लिग्निएर संपादकीय
लिग्निएर संपादकीय
हम डॉ. आर. सी. स्प्रोल का शिक्षण संघ हैं। हम इसलिए अस्तित्व में हैं ताकि हम जितने अधिक लोगों तक सम्भव हो परमेश्वर की पवित्रता को उसकी सम्पूर्णता में घोषित करें, सिखाएं और रक्षा करें। हमारा कार्य, उत्साह, और उद्देश्य है कि हम लोगों को परमेश्वर के ज्ञान और उसकी पवित्रता में बढ़ने में सहायता करें।