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प्रभु ने निर्वासन से लौटे अपने लोगों को मलाकी नबी के माध्यम से कई चुनौतिपूर्ण बातें कहीं। मलाकी की पुस्तक को सात नबूवतीय वाद-विवादों की एक शृंखला के रूप में व्यवस्थित किया गया है, प्रत्येक विवाद लोगों द्वारा कही गई कटु बातों से प्रारम्भ होता है, और फिर प्रभु स्वयं उनका प्रतिउत्तर देता है। इनमें से अधिकाँश नबूवतें मलाकी के समकालीन लोगों के व्यवहारों और कार्यों के प्रति कठोर ताड़ना हैं। फिर भी, प्रभु लोगों को ताड़ना देने से पहले, वह उनके लिए अपने चुनावीय प्रेम की पुष्टि करने के द्वारा प्रारम्भ करते हैं, यही प्रेम ही वह कारण है जिससे वे निर्वासन के न्याय के पश्चात् भी अस्तित्व में बने हुए हैं। इससे पहले कि परमेश्वर कहे “तुम्हारे विरोध में यही है मेरे पास” प्रभु पहले यह घोषणा करता है “मैं तुमसे प्रेम करता हूँ” (मलाकी 1:2)।
1. मलाकी यह प्रकट करता है कि परमेश्वर का चुनावीय प्रेम सर्वदा प्रारम्भिक बिन्दु होता है।
इस बीच, लोग झिड़कते हुए प्रतिउत्तर देते हैं, “तुमने किस बात में हम से प्रेम किया है?” (मलाकी 1:2)। यही प्रश्न है जिसका प्रभु एक आश्चर्यजनक प्रतिउत्तर देता है। हमने यह अपेक्षा किया होगा कि प्रभु मिस्र से निर्गमन और कनान पर उसके विजय की ओर संकेत करेगा, जहाँ वह अपने लोगों को सुरक्षा देने और उन्हें उत्तराधिकार प्रदान करने के लिए सामर्थी आश्चर्यकर्मों को दिखाता है। परन्तु, प्रभु इस्राएल को और भी पीछे की ओर ले जाता है और उनके पूर्वज याकूब को चुनने और उसके भाई एसाव को अस्वीकार करने की घटना को स्मरण दिलाता है (मलाकी 1:3)। यही वह पूर्णतः अनअर्जित प्रेम है जिसके कारण बाबुल द्वारा यरूशलेम के विनाश और निर्वासन के बाद भी इस्राएल अभी भी अस्तित्व में बना हुआ है। निश्चित रूप से, इस्राएल ने अपने पाप के कारण दुःख उठाया था, फिर भी प्रभु के महान् प्रेम के कारण उसे पुनः स्थापित किया गया। दूसरी ओर एसाव के वंशज एदोम, बेबीलोनियों की सहायता करके बेबीलोन के समय काल में बिना कोई जोखिम उठाए सुरक्षित बच गए (देखिए, ओबद्याह 1:10-14)। परन्तु एदोम का वर्तमान आराम शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा, और उसका पतन पूर्ण और अन्तिम होगा (मलाकी 1:4-5)। परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने पापों के कारण ठोकर खा सकते हैं, परन्तु वे पूर्णतः नहीं गिरेंगे, क्योंकि परमेश्वर अपने प्रेम के कारण उन्हें थामे रखता है (देखिए, भजन 37:23-24)।
2. मलाकी यह प्रदर्शित करता है कि जब जीवन कठिन होता है तो लोग निराशावादी होने के लिए प्रोलोभित होते हैं।
मलाकी की पुस्तक में, प्रभु के प्रति लोगों का प्रतिउत्तर प्रारम्भ से लेकर अन्त तक पूर्णतः निराशावादी है। प्रारम्भ में, वे उनके प्रति प्रभु के प्रेम की घोषणा को अस्वीकार कर देते हैं (मलाकी 1:2)। अन्त में, वे यह घोषणा करते हैं कि प्रभु की आज्ञा पालन करना व्यर्थ है क्योंकि दुष्ट लोग समृद्ध होते हैं और घमण्डी लोग धन्य होते हैं (मलाकी 3:15)। परमेश्वर का कथित न्याय कहाँ है (मलाकी 2:17)? प्रभु के प्रति लोगों का यह निराशावादी व्यवहार उनके आधे-अधूरे मन से की जाने वाली आराधना (मलाकी 1:12-13), अपनी विवाहित इस्राएली पत्नियों के प्रति विश्वासघात (मलाकी 2:14-16), और दान देने में उनकी की कंजूसी में दिखाई देता है (मलाकी 3:8-9)। यहाँ तक की याजक भी इस प्रकार के व्यवहार से संक्रमित हो गए हैं (मलाकी 2:1-9), लोगों को दोषपूर्ण बलिदान चढ़ाने के लिए अनुमति देते हैं और रिश्वत लेकर न्यायिक निर्णयों में पक्षपात किया (मलाकी 2:9)। कठिन समय प्रायः परमेश्वर के प्रति ठण्ढा हृदय उत्पन्न करता है, तब भी और अब भी।
3. मलाकी यह दिखाता है कि प्रभु उनका सम्मान करता है जो उसका सम्मान करते हैं।
मलाकी के दिनों में प्रत्येक लोग परमेश्वर के प्रति इस प्रकार के निराशावादी प्रवृति को साझा नहीं करते थे। कुछ लोग अभी भी प्रभु का भय मानते थे, और प्रभु ने उस प्रवृति को देखा और उनको अपना “निज भाग” ठहराया (सेगुल्लाह; मलाकी 3:17), यही शब्द (निर्गमन 19:6) में इस्राएल का वर्णन करने के लिए उपयोग किया गया था। प्रभु शीघ्र ही न्याय लाने के लिए अपने मन्दिर में प्रकट होगा जिसके लिए लोग अभिलाषी थे (मलाकी 3:1-2)। वह हमेशा के लिए धर्मी को दुष्ट से अलग करेगा, और जो प्रभु का भय मानते हैं वे उसके सच्चे लोगों के रूप में घोषित किए जाएँगे, जबकि दुष्टों का न्याय किया जाएगा और उनका विनाश किया जाएगा (मलाकी 4:1-3)। इस बीच, शेष विश्वासयोग्य बचे हुए लोग को मूसा की व्यवस्था, पवित्र जीवन जीने के लिए परमेश्वर के मापदण्ड को स्मरण रखना चाहिए और एक नए एलिय्याह, आदर्श नबी के आगमन की प्रतीक्षा करनी चाहिए, जो परमेश्वर के लोगों को पश्चाताप के लिए बुलाएगा (मलाकी 4:4-6)। जो लोग उसके सन्देश का प्रतिउत्तर करने में असफल होंगे वे शापयुक्त न्याय का सामना करेंगे (हेरेम; मलाकी 4:6)।
परन्तु यदि हम सभी पापी हैं जो मूसा की व्यवस्था का पालन करने में असफल हो जाते हैं, जैसा कि पौलुस रोमियों 3 में बताता है, तो परमेश्वर अन्तिम न्याय के दिन धर्मी और अधर्मी के बीच कैसे भेद कर सकता है बिना हम सब को दोषी ठहराए? प्रभु अधर्मी याकूब को कैसे बचा सकता है, जिससे वह प्रेम करता है और जिसे उसने चुना है? इस प्रश्न का उत्तर नए नियम का प्रतिक्षा करता है, जिसके लिए मलाकी की नबुवत हमें पूर्ण रूप से तैयार करती है।
लूका 1:17 में, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की पहचान उसके जन्म से पहले एलिय्याह के रूप में की गई है जो यीशु ख्रीष्ट के प्रथम आगमन से पहले आएगा। महत्वपूर्ण रूप से, स्वर्गदूत का सन्देश मलाकी की नबुवत के सकारात्मक पक्ष पर विशेष रूप से केन्द्रित है, यह घोषणा करते हुए “और वह उसके आगे-आगे एलिय्याह की आत्मा और सामर्थ्य में होकर चलेगा, कि पिताओं का हृदय बाल-बच्चों की ओर फेर दे, और आज्ञा न मानने वालों को धर्मियों की समझ पर ले आए, जिससे कि वह प्रभु के लिए एक योग्य प्रजा तैयार करे।” शापयुक्त न्याय की सम्भावना का उल्लेख नहीं किया है क्योंकि यीशु अपने प्रथम आगमन में, खोए हुओं को ढूँढ़ने और बचाने आया था (मत्ती 1:21)।
रूपान्तरण पर्वत पर, यीशु मूसा और एलिय्या दोनों से मिलता है, और यरूशलेम से अपने निर्गमन (एक्सोडोन) के विषय में बात-चित करता है, जिसके द्वारा वह अपने लोगों के लिए छुटकारा लाएगा (लूका 9:31)। क्योंकि जो लोग इस समय ख्रीष्ट को अस्वीकार करते हैं, उनको एक और आगमन की प्रतिक्षा करनी है जब ख्रीष्ट श्वेत घोड़े पर सवार होकर अपश्चातापी लोगों के लिए विनाश लेकर लौटेगा (प्रकाशितवाक्य 19:11-21)। परन्तु वे जिनका प्रभु के लिए भय ख्रीष्ट पर विश्वास में प्रदर्शित होता है, उनके लिए वह दिन बसन्त ऋृतु में उगते हुए सूर्य की पहली किरण के समान होगा, जो त्वचा को सुखद रूप से गर्म करेगा, न कि एक धधकते भट्ठे के समान जो अपने संपर्क में आने वाले सब कुछ को भस्म कर देता है (मलाकी 4:1-2)।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।