3 बातें जो आपको 1 पतरस के विषय में पता होनी चाहिए । - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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3 बातें जो आपको 1 पतरस के विषय में पता होनी चाहिए ।

3 Things You Should Know about 1 Peter

पतरस की पहली पत्री का अध्ययन करना मसीहियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ तीन बातें बताई गई हैं जो आपको 1 पतरस के विषय में पता होनी चाहिए:

1.   इसका लेखक, पतरस को यीशु ने चुनकर “चट्टान” कहा (मत्ती 16:18), इस पत्र में इसी प्रकार के चित्रण का उपयोग करता है।

यद्यपि, इस पद और इसमें यीशु के सटीक अर्थ के विषय में बहुत चर्चा हुई है, परन्तु यह स्पष्ट है कि यीशु यहाँ पतरस को ही सम्बोधित कर रहा है, जिसने अभी-अभी अंगीकार किया था कि यीशु “ख्रीष्ट, जीवित परमेश्वर का पुत्र” है (मत्ती 16:16)। हम यह कल्पना कर सकते हैं कि इस घटना के बाद चट्टानों और पत्थरों के प्रति पतरस का अनुराग बढ़ गया होगा। तो यह रुचिकर है कि पतरस ने अपनी पहली पत्री में 1 पतरस 2:4-8 में बारम्बार चट्टानों या पत्थरों की बात की है। वह यशायाह और अन्तिम हल्लेल (स्तुति) भजन (भजन 113-118, जिन्हें फसह के अवसर पर पढ़ा जाता है) से तीन खण्ड उद्धृत करता है, जिसमें विशेष रूप से पत्थरों या चट्टानों का उल्लेख है।

एक उद्धरण एक “कोने के पत्थर” की बात करता है जिसे परमेश्वर “सिय्योन में स्थापित करेगा” जो यीशु के विषय में है, जो एक ऐसा पत्थर है जिसे भवन बनानेवाले अस्वीकार कर देंगे (यशायाह 28:16; भजन 118:22)। सोचें कि यीशु के समय में यहूदियों ने उसे कैसे अस्वीकार कर दिया था। अन्तिम उद्धरण एक ऐसे पत्थर, या चट्टान की बात करता है, जिस पर लोग ठोकर खाएँगे (यशायाह 8:14-15)। यह चट्टान, “जिसे मनुष्यों ने तो ठुकरा दिया था, परन्तु जो परमेश्‍वर की दृष्टि में चुना हुआ और मूल्यवान है” निस्सन्देह, यीशु है (1 पतरस 2:4)।

पतरस चाहता है कि उसके पाठक यह समझें कि मसीही लोग “जीवित पत्थर” हैं, जिन्हें सावधानीपूर्वक और सुरक्षित रूप से उस कलीसिया में रखा गया है जिसका निर्माण यीशु कर रहा है, और जिसका कोने का पत्थर ख्रीष्ट है। यह भवन (कलीसिया) इस प्रतिज्ञा द्वारा दृढ़ है: “अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे” (मत्ती 16:18)।  

2. पहला पतरस मुख्य रूप से मसीही जीवन की स्थिति के विषय में है।

पतरस यह कहते हुए पत्री का आरम्भ करता है कि मसीहियों को “परमेश्‍वर पिता के पूर्व-ज्ञान के अनुसार तथा आत्मा के पवित्र करने के द्वारा आज्ञा मानने और यीशु ख्रीष्ट की आज्ञा पालन करने और उसके लहू के छिड़के जाने के लिए चुने गए” हैं (1 पतरस 1:2)। पतरस अपनी इस पत्री का आधे से अधिक भाग में इस विषय में बात करता है कि पवित्रीकरण कैसा दिखता है। उसने अध्याय 1 में लैव्यव्यवस्था की पुस्तक से लिया गया “पवित्रता संहिता” का उद्धृण किया: “तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ” (1 पतरस 1:16; लैव्यव्यवस्था 11:44, 45; 19:2; 20:7)। फिर, इस पत्री के शेष भाग में, वह इस विषय में व्यावहारिक टिप्पणियाँ करता है कि दैनिक जीवन के संघर्षों में पवित्रता कैसे प्रकट होती है: कार्यस्थल और समाज में, विवाहित जीवन में और कलीसियाई जीवन में अधिकारियों के प्रति अधीनता (1 पतरस 2:13-25; 3:1-7; 5:1-11) के द्वारा।

पवित्रता पूरे जीवन में व्यावहारिक रीतियों से प्रकट होती है। पतरस की बातों में से कुछ को व्यवहार में लाना बहुत कठिन लगता है, परन्तु वह अपने पाठकों को स्मरण दिलाता है, “तुम इसी अभिप्राय से बुलाए गए हो, क्योंकि ख्रीष्ट ने भी तुम्हारे लिए दु:ख सहा और तुम्हारे लिए एक आदर्श रखा कि तुम भी उसके पद–चिह्नों पर चलो” (1 पतरस 2:21)। जब हम पूरी रीति से यह बात समझते है कि यीशु ने हमें अपने लहू से छुड़ाया है, तब यह हमें क्रूस को उन कठिन परिस्थितियों में वहन करने में सहायता करती है जिनका सामना आगे चलकर हमें उसके लिए करना होगा।

3. पहला पतरस निष्कपट है।

पतरस अपने सन्देश को भावनाओं में छिपाकर मधुर नहीं बनाता, वरन् अपने साथी विश्वासियों को स्मरण दिलाता है कि मसीही जीवन एक “युद्ध” है जिसमें मसीही  परदेशी और यात्री” हैं (1 पतरस 2:11)। बुरा व्यवहार करने के लिए मसीही कष्ट उठा सकते हैं, परन्तु कभी-कभी वे “धार्मिकता के लिए” भी कष्ट उठाएँगे (1 पतरस 3:13-14, 17)। हमारे “भले” कार्य कभी-कभी उन लोगों के द्वारा अपराध के रूप में देखा जाएगा जो यीशु को उद्धारकर्ता और परमेश्वर के रूप में नहीं जानते हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमें “ख्रीष्ट को पवित्र प्रभु जानकर अपने हृदय में [रखना चाहिए]। अपनी आशा के विषय में पूछे जाने पर प्रत्येक पूछने वाले को सदैव नम्रता व श्रद्धा के साथ उत्तर देने को तत्पर [रहना चाहिए]” (1 पतरस 3:15)। यह स्मरण रखने से कि हम अपने स्वामी के रूप में ख्रीष्ट की सेवा करते हैं, हमें सही चुनाव करने और सही शब्द चुनने में सहायता मिलेगी जब हम स्वयं को युद्ध क्षेत्र में पाएँगे। 1 पतरस 4:12-19 में, पतरस उन परीक्षाओं पर ध्यान केन्द्रित करता है जिनका मसीहियों को सामना करना पड़ सकता है, और वह अपने पाठकों से आग्रह करता है कि “यह दुःख रूपी अग्नि-परीक्षा जो तुम्हारे मध्य इसलिए आई कि तुम्हारी परख हो–इसे यह समझकर अचम्भा न करना कि कोई अनोखी घटना तुम पर घट रही है” ( 1 पतरस 4:12)।

रोमियों 5 के आरम्भिक भाग में पौलुस के जैसे, पतरस चाहता है कि मसीही क्लेशों में “आनन्दित” हों (1 पतरस 4:13; रोमियों 5:3)। पतरस के मन में ऐसी पीड़ाएँ हैं जिनका अर्थ हम समझ नहीं सकते। हम दुख उठा सकते हैं क्योंकि हम वास्तव में अनुचित चुनाव करते हैं, परन्तु  पतरस उस प्रकार के दुःख उठाने के विषय में सोच रहा हैं जिसे मसीही अनुभव करते हैं जब वे पवित्र जीवन जीते हैं और यीशु के विषय में श्रद्धा और विस्मय के साथ बोलते हैं: “पर यदि कोई मसीही होने के कारण दुःख उठाता है, तो वह लज्जित न हो, वरन् अपने इस नाम के लिए परमेश्‍वर की महिमा करे” (1 पतरस 4:16)। पतरस इस प्रोत्साहन को जोड़ता है: “इसलिए वे भी जो परमेश्‍वर की इच्छानुसार दुःख उठाते हैं, उचित  कार्य करते हुए अपने प्राण को विश्‍वासयोग्य सृष्टिकर्ता के हाथों में सौंप दें” (1 पतरस 4:19)।

मसीहियों को सुख शान्ति की शय्या में सोने के लिए नहीं, वरन् “आज्ञाकारिता” के जीवन के लिए बुलाया गया है (1 पतरस 1:2)। और आज्ञाकारिता बहुधा कष्टदायक और भारी हो सकता है। ये कसौटी हमारी परीक्षा हैं, जिससे कि “तुम्हारा विश्‍वास—जो आग में ताए हुए नश्वर सोने से भी अधिक बहुमूल्य है—परखा जाकर यीशु ख्रीष्ट के प्रकट होने पर प्रशंसा, महिमा, और आदर का कारण ठहरे” (1 पतरस 1:7)।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डेरेक डब्ल्यू.एच. टॉमस
डेरेक डब्ल्यू.एच. टॉमस
डॉ. डेरेक डब्ल्यूएच थॉमस लिगोनियर मिनिस्ट्रीज के टीचिंग फेलो और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में सिस्टेमेटिक एंड पास्टोरल थियोलॉजी के चांसलर प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें स्ट्रेंथ फॉर द वेरी और लेट अस वर्शिप गॉड शामिल हैं ।