3 बातें जो आपको सपन्याह के विषय में पता होनी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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3 बातें जो आपको सपन्याह के विषय में पता होनी चाहिए

3-Things-about-Zephaniah

विलियम वूड

सपन्याह असाधारण रूप से एक जटिल पुस्तक है, जो जटिल परिवर्तनों, अद्भुत कविताओं, गहन प्रतिज्ञाओं, और कठोर चेतावनियों से भरी हुई है। दक्षिणी राज्य के अन्त की ओर नबुवत करते हुए, सपन्याह का सन्देश मुख्यतः  न्याय का है जिसे प्रभु पहले निर्वासन में भेजने के द्वारा यहूदा पर (सपन्याह 1:4-6) परन्तु अन्तिम दिन में विश्वव्यापी रूप से सम्पूर्ण मानवजाति के विरुद्ध में करेगा (सपन्याह 1:2-3), पुस्तक का अधिकाँश भाग इसी न्याय के विषय में है (सपन्याह 1:2-3:8)। और फिर भी, जबकि सपन्याह का ध्यान न्याय के ऊपर केन्द्रित है, वह अन्ततः अपने पाठकों को परमेश्वर का अपने लोगों के छुड़ाने की प्रतिज्ञा में आशा की ओर ले जाता है (सपन्याह 3:9-20)। तीन बातें हमें सपन्याह द्वारा न्याय और आशा के अपने नबुवतयुक्त सन्देश को चित्रित करने की रीति को और अधिक समझने में सहायता करती हैं।

  1. सपन्याह की पुस्तक पुराने नियम की पिछली पुस्तकों के संकेतों से भरी हुई है।

यदि आप सपन्याह को समझना चाहते हैं, तो मैं आपको सबसे उत्तम परामर्श यह दे सकता हूँ कि आप अपनी बाइबल को अच्छे से जानिए। सपन्याह का नबुवतयुक्त सेवकाई पहले के पुराने नियम के खण्डों के संकेतों से भरा  हूआ है जो उसके सन्देश को समझने के लिए कुँजी प्रदान करता है। कुछ उदाहरण जो इस बात को स्पष्ट करते हैं:  

  • सपन्याह 1:2-3 में, हम उत्पत्ति 1 को उल्टे क्रम में देखते हैं, जिसमें सपन्याह ने सृष्टि की प्रक्रिया को उलट कर, नाश और न्याय का दृश्य प्रस्तुत किया है। जबकि उत्पत्ति 1 प्रत्येक वस्तुओं के आरम्भ को परमेश्वर के रचनात्मक कार्य में अभिलेखित करता है, सपन्याह न्याय में विश्वव्यापी रूप से प्रत्येक वस्तुओं को “मिटा दिए जाने की” नबूवत करता है। उत्पत्ति 1 का संकेत करते हुए, नबी ने अन्तिम सन्दर्भ में “दुष्टों के साथ-साथ ठोकर खिलाने वाले (अर्थात्, मूर्तियों) को दूर करने” के सम्बन्ध में भी बताया है। यह मनुष्य ही है जो अपनी दुष्ट मूर्तिपूजा के कारण न्याय को शीघ्रता से लाता है।
  • सपन्याह 1:9 में, परमेश्वर द्वारा उन लोगों को दण्डित करने का संकेत है जो “मन्दिर की ड्योड़ी पर कूदते हैं”। यहाँ, सपन्याह दागोन के मन्दिर में पलिश्तियों की आराधाना की ओर हमारे ध्यान को खिंचता है (1 शमूएल 5:5) और परमेश्वर के लोगों को उसी समान व्यवहार से उसकी आराधना करते हुए वर्णित करता है, जो एक सच्चे परमेश्वर की आराधना को मूर्तिपूजक प्रथाओं के साथ जोड़ता है। यह संकेत न केवल इस्राएल की मिश्रित आराधना को परमेश्वर के न्याय के कारण के रूप में सुचित करता है, वरन् इसके बाद आए “स्वामी के घर” के उल्लेख को भी मन्दिर के रूप में पहचानता है जो झूठी आराधना के द्वारा “हिंसा और धूर्तता” से भरा हुआ है।
  • सपन्याह 2:15 में, अश्शूर कहता है, “मैं ही हूँ मुझे छोड़ कोई है ही हीं,” जो यशायाह 40-48 में एक प्रतिध्वनि से आता है जहाँ परमेश्वर ही वह है जो “है” और “दूसरा कोई नहीं है” (देखें यशायाह 44:6, 45:5, 6, 14, 18, 21; 46:9)। अश्शूर का पाप घमण्ड का और ईशनिन्दापूर्ण आत्म-प्रशंसा का है, जिसमें वे स्वयं को परमेश्वर के रूप में पहचानते हैं।
  • सपन्याह 2:4-15 में, सपन्याह का “राष्ट्रों के विरुद्ध नबुवत” का एक अच्छा भाग उत्पत्ति 10 में राष्ट्रों की तालिका से लिया गया है।
  • सपन्याह 3:9-12 में, छुटकारा बाबेल (उत्पत्ति 11:1-9) का उल्टा रूप है। 

ये संकेत, कुछ और संकेतों के साथ, यह दिखाता है कि सपन्याह पुराने नियम के अन्य खण्डों से भर हुआ है।    

2. प्रभु का दिन न्याय और पुनःस्थापना का दिन है।

सपन्याह के कई विषयों में से एक महत्वपूर्ण विषय है “प्रभु का दिन,” यह वाक्याँश जो पुराने नियम में सोलह बार आया है, उनमें से तीन बार सपन्याह (सपन्याह 1:7,14) में हैं। अन्य वाक्याँश भी पाठकों को उस सटिक भाषा “प्रभु का दिन” की ओर ले जाते हैं, जैसे “दिन” (बीस बार) वर्णन किया गया है, “उस समय” (चार बार), या साधारण रूप से “तब” (दो बार), कुल मिलाकर प्रभु के दिन के विषय में उनतीस बार स्पष्ट वर्णन है। विद्वान लम्बे समय से इस बात पर उलझन में थे कि प्रभु का दिन क्या है, प्राथमिक सिद्धान्त यह है कि यह एक धार्मिक अनुष्ठान, पवित्र युद्ध, ईश्वरीय प्रकटन, वाचा, या इनके संयोजन का दिन है।   

सपन्याह हमें इस “दिन” का अधिक आधारभूत विचार देने के द्वारा इस चर्चा में अपना योगदान देता है। जबकि विद्वानों के सिद्धान्तों की प्रत्येक विशेषताएँ सपन्याह में उपस्थित हैं, वह परमेश्वर के आगमन की सच्चाई की अवधारणा को और अधिक आधारभूत रूप से चित्रित करता है। सपन्याह में प्रभु का दिन वह दिन है जब स्वर्ग का परमेश्वर धार्मिक उद्देश्यों को उपयोग करके अपने स्वर्गीय मन्दिर से स्वयं को उठाता है (सपन्याह 1:7, 9), अपने स्वर्गीय सेनाओं के साथ एक ईश्वरीय योद्धा के रूप में आता है (सपन्याह 1:7, 14, 16), अपनी वाचा के शापों और आशिषों को लागू करता है (सपन्याह 1:13, 18; 3:19-20), और ईश्वरीय प्रकटन के महिमा में आता है (सपन्याह 1:15)। प्रभु का दिन, मूलतः, प्रभु के आगमन का दिन है। यह उनके लिए एक धन्य आशा है जो विश्वास करते हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर के पर्वत पर लाया जाता है (सपन्याह 3:11) जहाँ वे अनन्त काल तक सुरक्षित वास करेंगे (सपन्याह 3:9-20), परन्तु दुष्टों के लिए यह क्रोध का भयानक दिन होगा (सपन्याह 1:2-18, 2:4-3:8)।

3. नम्रता और घमण्ड मुख्य विषय हैं।

अन्त में, सपन्याह में प्रभु के दिन का रूपांकन घमण्डीयों और नम्र लोगों के लिए विपरीत नियति के उसके मुख्य ईश्वरवैज्ञानिक विचार से जुड़ा हुआ है। घमण्डी आत्म-प्रशंसा ही प्रभु के दिन पर न्याय का मुख्य कारण है। परमेश्वर के लोगों के विरुद्ध उनके घमण्ड भरे तानों के प्रतिउत्तर में मोआब के विरुद्ध शाप देने के पश्चात्, सपन्याह स्पष्ट रूप से कहता है:

यही उन के घमण्ड का प्रतिफल होगा, क्योंकि उन्होंने सेनाओं के यहोवा की प्रजा की निन्दा की और अहंकारी हो गए हैं। (सपन्याह 2:10)  

घमण्डी वे लोग हैं जो प्रभु के पवित्र पर्वत से “निकाल” दिए जाएँगे (सपन्याह 3:11)। न केवल उनका घमण्डी आत्म-प्रशंसा, वरन् उनका ईशनिन्दा अनुरूपी घमण्ड और घमण्ड से भरा हुआ आत्म-उल्लास भी। अश्शुर राष्ट्र को इस “उल्लसित नगरी” के रूप में वर्णित किया गया है जो यशायाह 40-48 से ऊपर परमेश्वर के विषय में वर्णित उस कथन को अपने लिए अपनाती है कि परमेश्वर कौन है –  “मैं ही हूँ मुझे छोड़ कोई है ही नहीं” (सपन्याह 2:15)। घमण्ड से भरा आत्म-प्रशंसा स्वयं को ईशनिंदात्मक आत्म-उल्लास में प्रकट करती है। परन्तु प्रभु के दिन, जो लोग अपने आपको बड़ा समझते और अपने आप में आनन्दित रहते हैं, उन्हें नीचा किया जाएगा।

सपन्याह में छुटकारा, उन नम्र लोगों की प्रशंसा है जो प्रभु में उल्लसित हैं। सपन्याह 3:9 में न्याय से उद्धार की ओर परिवर्तन है, सम्पूर्ण राष्ट्रों से आराधकों का इकट्ठा होना है जिनको सपन्याह “नम्र और दीन लोग” करके चित्रित करता है (सपन्याह 3:12)। वे अपने आपको ऊँचा नहीं उठाते हैं, वरन् वे अपने उद्धार के लिए “यहोवा के नाम को पुकारते हैं” (सपन्याह 3:9)। नम्र लोग स्वयं में उल्लसित नहीं होते हैं वरन् प्रभु की आराधना करते हैं और उसमें उल्लसित होते हैं (सपन्याह 3:14)। इससे बढ़कर, परमेश्वर के प्रेम और नम्र लोगों के प्रशंसा के एक चित्र में, सपन्याह 3:17 में प्रभु नम्र लोगों पर उल्लसित होता है‍‍! 

जबकि कुछ समय के लिए परमेश्वर के लोगों को  “लंगड़े” या “बहिष्कृत” (सपन्याह 3:19) के रूप में वर्णित किया जा सकता है जिन्हें राष्ट्र तुच्छ मानते हैं (सपन्याह 2:8) और लज्जित करते हैं (सपन्याह 3:19), परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि वह नम्र लोगों को ऊँचा करेगा और उन्हें “पृथ्वी की सारी जातियों में प्रसिद्ध और प्रशंसनीय” बनाएगा (सपन्याह 3:19, 20)। वास्तव में, मुख्य प्रोत्साहन 2:3 में आता है जहाँ सपन्याह हमें “धार्मिकता को ढूँढ़ने; नम्रता को ढूँढ़ने,” के लिए बुलाता है, जो कि “प्रभु को ढूँढ़ने” का आह्वान है। 

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि सपन्याह का ईश्वरवैज्ञानिक सन्देश, पुराने नियम के अन्य खण्डों के साथ अनेक प्रकार के सम्बन्धों के माध्यम से चित्रित किया गया है, कि प्रभु के दिन, “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह नीचा किया जाएगा; और जो स्वयं को नीचा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा” (मत्ती 23:12)।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

विलियम वूड
विलियम वूड
डॉ. विलियम एम. वुड, रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी अटलांटा में ओल्ड टेस्टामेंट के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और मैरीएटा, जॉर्जिया में क्राइस्ट ऑर्थोडॉक्स प्रेस्बिटेरियन चर्च में नियुक्त शिक्षक हैं।