
3 बातें जो आपको सपन्याह के विषय में पता होनी चाहिए
6 मई 2025पास्टरीय पत्रियों को कैसे पढ़ें

पौलुस के तेरह पत्रों में से तीन पास्टरीय अनोखी हैं क्योंकि वे पत्रियाँ पौलुस के सहकर्मीयों तीमुथियुस और तीतुस के लिए लिखी गई थीं, जो कलीसियाओं की पास्टरीय देखरेख कर रहे थे। दोनों पुरुष झूठे शिक्षकों और अन्य परीक्षाओं से जूझ रहे थे, जिसके कारण पास्टरीय कार्य चुनौतीपूर्ण हो गया था। यद्यपि इन पत्रियों में तीमुथियुस और तीतुस को सम्बोधित किया था, परन्तु ये पत्रियाँ पौलुस के आशीष वचन के साथ समाप्त होती हैं, “अनुग्रह तुम पर बना रहे,” मूल यूनानी में “तुम” शब्द बहुवचन में है। इस प्रकार, वे एक अर्थ में आधे अर्ध-सार्वजनिक हैं। पौलुस को आशा थी कि ये पत्रियाँ पूरी कलीसियाओं को पढ़ कर सुनाई जाएँगी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए, आइए पास्टरीय पत्रियों को पढ़ने के लिए चार सुझावों पर दृष्टि डालें।
- ख्रीष्ट की सम्पूर्ण देह और उसमें आपकी भागीदारी के सन्दर्भ में पास्टरीय पत्रियों को पढ़ें।
आज बहुत से मसीही लोग कलीसिया के महत्व को भूल चुके हैं। उनके लिए मसीही जीवन का अर्थ ख्रीष्ट की देह का सक्रिय सदस्य होने की अपेक्षा, ख्रीष्ट के साथ उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध पर आधारित होता है। पास्टरीय पत्रियों में पौलुस की चिन्ता पूरी कलीसिया के स्वास्थ्य और विश्वासयोग्यता के लिए है। यह वह स्थान है जहाँ पर परमेश्वर के लोगों का पालन-पोषण होता है और वे विश्वास में बढ़ते जाते हैं। यही कारण है कि पौलुस ईश्वरभक्त अगुवों की योग्यताओं का विवरण देने में समय व्यतीत करता है, जिसमें एल्डर (1 तीमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:5-16) और डीकन (1 तीमुथियुस. 3:8-13) दोनों सम्मिलित हैं। इसी कारण पौलुस बार-बार तीमुथियुस को कलीसिया की शिक्षा और प्रचार की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित करने के लिए प्रेरित करता है। एक स्वस्थ कलीसिया के लिए यह आवश्यक है कि परमेश्वर के लोगों को परमेश्वर के वचन से पढ़े जाने के द्वारा और प्रचार करने के द्वारा वचन का मन्ना खिलाया जाए।
यद्यपि ये पास्टरीय पत्रियाँ अलग-अलग व्यक्तियों को लिखी गई हैं, परन्तु इनका उद्देश्य ख्रीष्ट की कलीसिया का निर्माण करना और सक्रिय सामूहिक जीवन को प्रोत्साहित करना है। इसमें एक साथ आराधना करना (1 तीमुथियुस 2; 4:13), एक साथ कार्य करना और सेवा करना (2 तीमुथियुस 2:21; तीतुस 3:1), कलीसिया में दूसरों के प्रति उदार होना (1 तीमुथियुस 6:17-19), और एक दूसरे की विश्वासयोग्यता के साथ सेवा करना सम्मिलित है। पास्टरीय पत्रियों में पौलुस कलीसिया को मसीही जीवन के केन्द्र के रूप में प्रस्तुत करता है, न कि एक बाद में सोचा गया या जोड़ा गया भाग।
- झूठी शिक्षा के संकट को पहचानें और उसका सामना करने की आवश्यकता को समझें।
पौलुस ने पास्टरीय पत्रियों में झूठी शिक्षाओं का सामना करने के लिए, किसी भी अन्य विषयों से अधिक समय लिया है। 1 तीमुथियुस में, उसने पूरे पत्र में तीन खण्ड झूठे शिक्षकों के विषय में समर्पित किया है। वास्तव में, पत्र के आरम्भ में, धन्यवाद के मानक भाग के स्थान पर, जो सामान्यतः पौलुस के पत्रों में आरम्भिक अभिवादन के बाद आता है और जो उसके समय में प्रथागत था, वह तुरन्त इफिसुस के झूठे शिक्षकों को सम्बोधित करता है (1 तीमुथियुस 1:3-11)। अध्याय 4 और अध्याय 6 में झूठे शिक्षकों के विषय पर पौलुस फिर से लौट कर आता है। झूठी शिक्षा का सामना करना 2 तीमुथियुस और तीतुस में भी मुख्य विषय है।
पौलुस इतनी दृढ़ता से झूठी शिक्षाओं का क्यों विरोध करता है, यहाँ तक कि ऐसा करने के लिए पत्र-लेखन की सामाजिक परम्पराओं की भी उपेक्षा कर देता है? क्योंकि झूठी शिक्षा जीवन एवं मृत्यु का कारण है। उद्धार और अनन्त जीवन, ख्रीष्ट में परमेश्वर के द्वारा प्रकट सत्य पर विश्वास करने और उसे दृढ़ता से थामे रहने पर निर्भर करता है। इस प्रकार, पौलुस इसे बहुत अधिक गम्भीर मानता है। जैसा कि पौलुस गलातिया में झूठी शिक्षा के विषय में लिखता है, “थोड़ा सा खमीर गूँधे हुए पूरे आटे को खमीर कर देता है” (गलातियों 5:9)।
झूठी शिक्षाओं का सामना करने का, दूसरा पक्ष सच्चाई सिखाने की आवश्यकता है। यह बात पास्टरीय पत्रियों को पढ़ने के लिए तीसरे सुझाव की ओर ले जाता है।
- वचन की सेवकाई की केन्द्रीयता पर ध्यान दीजिए।
पौलुस कलीसिया की कई सेवकाईयों के लिए निर्देश देता है, परन्तु जिस पर वह सबसे अधिक बल देता है वह है परमेश्वर के वचन का प्रचार करने और सिखाने की सेवकाई। वह तीमुथियुस को प्रेरित करता है कि वह [स्वयं] सार्वजनिक रूप से “पवित्रशास्त्र पढ़कर सुनाने, उपदेश देने, और सिखाने में लगा रह” (1 तीमुथियुस 4:13)। वचन की सेवकाई विश्वास के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि विश्वास सुनने से आता है और सुनना परमेश्वर के वचन से होता है। इसके अतिरिक्त, वचन के अधीन होने से परमेश्वर के लोगों का विश्वास और अधिक दृढ़ होता है। 2 तीमुथियुस में, पौलुस अपने युवा सहकर्मी को प्रोत्साहित करता है कि “समय और असमय वचन का प्रचार कर… क्योंकि समय आएगा जब वे खरी शिक्षा को सहन नहीं करेंगे, परन्तु अपने कानों की खुजलाहट के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार ही अपने लिए बहुत से गुरु बटोर लेंगे” (2 तीमुथियुस 4:2–3)। कलीसिया की सेवकाई में सामूहिक प्रार्थना भी सम्मिलित है – जैसे कि कलीसिया के सदस्यों के लिए प्रार्थना करना और साथ ही कलीसिया के बाहर के शासकों और पदाधिकारियों के लिए भी प्रार्थना करना है (1 तीमुथियुस 2:1-2)। इसमें एल्डरगण और डीकनगण की व्यावहारिक सेवा भी सम्मिलित है। चरवाहों के रूप में आत्मिक रूप से परमेश्वर के लोगों की देखभाल करने के लिए योग्य एल्डरगण की आवश्यकता होती है। डीकनगण को दया की सेवा सौंपी गई है, जिसमें भौतिक आवश्यकताओं की देखभाल की जाती है। जबकि डीकनगण अधिकाँशतः परदे के पिछे रह कर अपना काम करते रहते हैं, जो कि कलीसिया के अधिकाँश लोगों के द्वारा देखा नहीं जाता है तब परमेश्वर एक अद्भुत प्रतिज्ञा करता है, “क्योंकि जिन्होंने डीकन का कार्य अच्छी तरह से पूरा किया है, वे अपने लिए तो एक उच्च सम्मान तथा उस विश्वास में जो ख्रीष्ट यीशु में है, दृढ़ निश्चय प्राप्त करते हैं “(1 तीमुथियुस 3:13)। सभी सेवकाइयाँ कलीसिया के समुचित संचालन के लिए महत्वपूर्ण हैं, परन्तु वचन केन्द्रीय है।
- ख्रीष्ट के ईश्वरभक्त सेवक के हृदय के प्रति संवेदनशीलता के साथ पास्टरीय पत्रियों को पढ़े।
ऐतिहासिक रूप से, पौलुस को अधिकतर नकारात्मक रूप में चित्रित किया गया है – यहाँ तक कि कलीसिया में भी कई लोगों के द्वारा ऐसा ही किया गया है। पौलुस के विषय में प्रचलित शारीरिक विवरण यह है कि वह नाटा, गंजा और टेढ़े पैर वाला था, उसकी नाक भी बड़ी थी और भौंहें आपस में चिपकी हुई थी, तथा अधिकतर उसके मुख पर एक तिरस्कार भरा भाव दिखाई देता था। पौलुस को चिड़चिड़ा स्वभाव वाला व्यक्ति और लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने में असमर्थ बताया गया है। उसने बरनाबास, जो शान्ति का पुत्र कहलाता है, उससे सम्बन्ध तोड़ दिया। तथा उसने मरकुस को भी दूसरा अवसर देने से मना कर दिया था।
फिर भी, जैसा कि प्रेरितों के काम और उसकी अन्य पत्रियों में दिखाई देता है, दूसरों के प्रति पौलुस का प्रेम और तरस, पास्टरीय पत्रियों में भी उमड़ता है। वह तीमुथियुस को “मेरा प्रिय पुत्र” कहता है। वह तीतुस को “एक ही विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र” कहता है। परन्तु हम विशेष रूप से उसकी अन्तिम पत्री, 2 तीमुथियुस के अन्त में दूसरों के प्रति पौलुस के हृदय को देखते हैं। हम उन लोगों के प्रति उसकी पीड़ा को सुनते हैं जिन्होंने उसे छोड़ दिया था। परन्तु हम अन्य सहकर्मियों और मित्रों, जैसे तीमुथियुस, लूका और यहाँ तक कि मरकुस के प्रति भी उसके प्रेम को देखते हैं, जिसके साथ उसका स्पष्ट रूप से मेल-मिलाप हो चुका था। पास्टरीय पत्रियाँ स्पष्ट रीति से बताती हैं कि ख्रीष्ट के प्रति पौलुस का गहरा प्रेम दूसरों के प्रति उसके प्रेम में झलकता है।
यह लेख व्याख्याशास्त्र संग्रह का भाग है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।