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बाइबलिय व्यवस्था को कैसे पढ़ें

How-to-Read-Biblical-Law

परमेश्वर की व्यवस्था, जिसे पंचग्रन्थ (उत्पत्ति, निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती और व्यवस्थाविवरण) के नाम से भी जाना जाता हैं, को समझना सर्वदा सरल नहीं होता है। व्यवस्था के प्रति एक उचित दृष्टिकोण इस बात पर बल देगा कि हम पुराने नियम की सभी व्यवस्थाओं से सीख सकते हैं, भले ही हम उनमें से कुछ का पालन अब न करें, क्योंकि वे ख्रीष्ट में पूरी हो चुकी हैं। इस बाइबलीय शैली को समझने में हमारी सहायता करने के लिए कई सिद्धान्त दिए गए हैं।

  1. व्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण विभाजन हैं।

व्यवस्था के तीन विभाजनों को सामान्यतः नैतिक व्यवस्था, अनुष्ठानिक व्यवस्था, और नागरिक व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है। नैतिक व्यवस्था को दस आज्ञाओं में संक्षेपित किया गया है। वे पूर्ण और सार्वभौमिक कथन हैं जिनके साथ कोई विशिष्ट दण्ड नहीं जुड़ा है और वे परमेश्वर की उँगली से लिखे गए थे (निर्गमन 31:18)। वे पुराने नियम के शेष नियमों के लिए आधारभूत हैं और प्रेरितों के द्वारा उद्धृत किए गए हैं, तथा आज भी मसीहियों के साथ जुड़े हुए हैं (रोमियों 13:8-10; इफिसियों 6:1)। 

अनुष्ठानिक व्यवस्था इस्राएल की आराधना, शुद्ध तथा अशुद्ध होने के विषय पर ध्यान केन्द्रित करती है, क्योंकि यदि कोई अशुद्ध अवस्था में हो, तो वह (स्त्री एवं पुरुष) तम्बू में आराधना करने के लिए अयोग्य माने जाते थे। इनमें बलिदान (लैव्यव्यवस्था 1-7), भोजन (लैव्यव्यवस्था 11) और अशुद्ध होने से सम्बन्धित विभिन्न नियमों की व्यवस्थाएँ सम्मिलित हैं। (लैव्यव्यवस्था 12-15) 

नागरिक व्यवस्था इस्राएल पर शासन करने पर ध्यान केन्द्रित करती है और इसमें ऐसे नियम सम्मिलित हैं जो व्यवस्था को लागू करने वाले न्यायियों से सम्बन्धित हैं (व्यवस्थाविवरण 17:8–13), विभिन्न सामाजिक स्थितियाँ जैसे दासत्व और अनुबन्धित दासता (निर्गमन 21:1–11; लैव्यव्यवस्था 25:39–55), और अन्य स्थितियाँ जिनमें मानव व्यवहार के विनियमन की आवश्यकता होती है (निर्गमन 21:12–26; लैव्यव्यवस्था 24:17–23; व्यवस्थाविवरण 19:1–22:8)। यद्यपि नैतिक, अनुष्ठानिक और नागरिक व्यवस्थाओं के बीच अन्तर निरपेक्ष नहीं है, फिर भी यह शिक्षा देने के लिए एक उपयोगी साधन है, जिसकी पुष्टि नए नियम में प्रेरितों के द्वारा पुराने नियम की व्यवस्था के सन्दर्भ में की गई है।

  1. व्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण उपयोग हैं।

व्यवस्था किस प्रकार से परमेश्वर के लोगों के जीवन से सम्बन्ध रखती है यह समझाने के लिए प्रायः, “व्यवस्था का तीन प्रकार से उपयोग” बताए गए हैं। व्यवस्था के साथ शाप भी जुड़े हुए हैं, जो परमेश्वर के लोगों पर तब लागू होते हैं जब वे परमेश्वर पर भरोसा नहीं करते और आज्ञा का उल्लंघन करते रहते हैं। इसे व्यवस्था के पहले उपयोग के रूप में जाना जाता है, जिसमें व्यवस्था एक दर्पण के समान कार्य करती है और हमें छुटकारे की आवश्यकता को दिखाती है। व्यवस्था का दूसरा उपयोग व्यवस्था के निरोधात्मक कार्य से सम्बन्धित है जो लोगों को नियम तोड़ने पर नागरिक परिणामों के प्रति चेतावनी देती है। व्यवस्था का तीसरा उपयोग परमेश्वर की व्यवस्था की आशीषों पर बल देता है। व्यवस्था परमेश्वर के लोगों को छुटकारे के सन्दर्भ में दी गई है (निर्गमन 20:2) जिससे कि परमेश्वर के लोग जान सकें कि उन्हें किस प्रकार से जीवन जीना चाहिए अर्थात् ऐसा जीवन जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है। इस अर्थ में देखा जाए तो व्यवस्था हमारे पवित्रीकरण में कार्य करती है, जिससे कि परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध को बढ़ाने में हमारी सहायता हो सके।

नये नियम में व्यवस्था के तीन प्रकार के उपयोग के अधिकार के उदाहरण के रूप में हम देखते हैं कि पौलुस छठी आज्ञा “तू हत्या न करना” का तीनों ही उपयोगों में कैसे प्रयोग करता है: पहला याकूब 2:9–11 में, दूसरा 1 तीमुथियुस 1:9–10 में, और तीसरा रोमियों 13:9–10 में किया गया है। हम व्यवस्था के द्वारा दोषी ठहराए जाते हैं क्योंकि हमने इसे तोड़ा है, परन्तु सुसमाचार यह है कि ख्रीष्ट ने इसे पूर्ण रूप से पालन करके हमारे लिए इसे पूरा किया है। जब हम अपने न्यायी परमेश्वर के सामने खड़े होते हैं, तो वह हमें ख्रीष्ट में हमारे लिए जो कुछ किया है उस पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी घोषित करके सही ठहराता है। पवित्रीकरण में हम परमेश्वर को अपना पिता मानते हुए सम्बन्ध रखते हैं और व्यवस्था उसके साथ हमारे सम्बन्ध को दृढ़ बनाने के लिए एक आशीष है।

  1. पुराने नियम की व्यवस्था को ख्रीष्ट के आगमन के सम्बन्ध में समझा जाना चाहिए।

जब ख्रीष्ट ने व्यवस्था को पूरा किया तो निश्चित रूप से परिवर्तन हुआ, जिसका प्रभाव व्यवस्था के सम्बन्ध में आज परमेश्वर के लोगों पर पड़ता है। यद्यपि नैतिक व्यवस्था बाध्यकारी है, परन्तु नैतिक व्यवस्था में भी अनुष्ठानिक सिद्धान्त हैं, जो ख्रीष्ट के आगमन से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए चौथी आज्ञा के अनुसार विश्राम और आराधना का दिन सृष्टि और छुटकारे के स्मरण के रूप में सातवाँ दिन था (निर्गमन 20:8–11; व्यवस्थाविवरण 5:12–15)। नये नियम में विश्वासी लोग पहले दिन आराधना करते हैं क्योंकि ख्रीष्ट के पुनरुत्थान ने नई सृष्टि का आरम्भ किया है। हम पाप और मृत्यु पर उसकी विजय से आनन्दित होते हैं और उसके पुनः आगमन पर अपने अन्तिम युगान्तिक विश्राम की प्रतीक्षा करते हैं (प्रकाशितवाक्य 1:10; इब्रानियों 4:1-11)।

पुराने नियम में नागरिक व्यवस्था इस्राएल से एक राष्ट्र के रूप में सम्बन्धित है। वे हमारे धर्मी राजा के द्वारा दिए गए धार्मिकता के सिद्धान्तों को स्थापित करते हैं जो संसार के शासकों और मसीही होने के नाते हमारे जीवन के लिए शिक्षाप्रद हो सकते हैं, भले ही उसी व्यवस्था को आज उसी प्रकार से स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है (नागरिक व्यवस्था की “न्यायसंगतता” पर” वेस्टमिंस्टर कन्फैसन ऑफ फेथ 19.4 को देखें)। प्रेरितों ने नागरिक व्यवस्था  के मृत्यु दण्ड को कलीसियाईअनुशासन में बहिष्कार की सम्भावना से जोड़ा है, जिसका परमेश्वर के लोगों को शुद्ध बनाए रखने में समान प्रभाव पड़ता है (देखें 1 कुरिन्थियों 5:13; व्यवस्थाविवरण 17:7)।  

अनुष्ठानिक व्यवस्था बलिदान, शुद्ध एवं अशुद्ध होने के सिद्धान्तों और मन्दिर से सम्बन्धित समारोहों को नियंत्रित करती है। परन्तु अब ये नियम निरस्त हो चुके हैं और ख्रीष्ट के कार्य के द्वारा पूरे हो चुके हैं। वह परमेश्वर को चढ़ाया जाने वाला बलिदान है जिससे कि हम अपनी आराधना के भाग के रूप में बलिदान न लाएँ (इब्रानियों 10:11-14)। वह ऐसा मन्दिर है जो परमेश्वर की उपस्थिति की सच्चाई को हमारे पास लाता है जिससे कि हम एक ही भौगोलिक स्थान पर आराधना न करें, वरन् राष्ट्रों में फैल जाएँ तथा “आत्मा और सच्चाई से” आराधना करें (यूहन्ना 2:19; 4:24)। भोजन और लहू से सम्बन्धित नियम अब परमेश्वर के लोगों को अशुद्ध नहीं करते हैं जिससे कि यहूदी महान् आज्ञा को पूरा करने के लिए सुसमाचार को गैर-यहूदियों तक पहुँचा सकें (मत्ती 28:19-20; प्रेरितों के काम 10:9-14)। इसलिए जो लोग ख्रीष्ट के अनुयायी हैं, उनके लिए व्यवस्था भली है:

अहा, मैं तेरी व्यवस्था से कितनी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। (भजन संहिता 119:97)

यह लेख व्याख्याशास्त्र संग्रह का भाग है।।     

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रिचर्ड पी. बेल्चर जूनियर
रिचर्ड पी. बेल्चर जूनियर
डॉ. रिचर्ड पी. बेल्चर जूनियर शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में रिफॉर्म़्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में पुराने नियम के प्राध्यापक और शैक्षणिक अध्यक्ष हैं, और प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में शिक्षक प्राचीन हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द फुलफिलमेन्ट ऑफ द प्रॉमिसेस ऑफ गॉड: ऐन एक्सप्लेनेशन ऑफ कवनेन्ट थियोलॉजी पुस्तक सम्मिलित है।