
बाइबलिय व्यवस्था को कैसे पढ़ें
13 मई 2025
इब्रानी कविता को कैसे पढ़ें
20 मई 2025क्या विधिवत ईश्वरविज्ञान सहायक होता है?

कुछ वर्ष पूर्व, ख्रीष्ट में दो भाइयों के साथ हुई एक बैठक मुझे स्मरण है। हम पुरुषों की सभा के लिए एक वक्ता की खोज कर रहे थे। उनमें से एक ने कहा, “हमें ईश्वरविज्ञान की नहीं वरन् कुछ व्यावहारिक चाहिए”, अधिकाँशतः यही माना जाता है कि: ईश्वरविज्ञान सहायक नहीं होता है। परन्तु जब सभा समाप्त हुई, तो वक्ता वास्तव में बहुत अधिक सहायक सिद्ध हुआ, क्योंकि वह ईश्वरविज्ञानी था। उसने परमेश्वर के वचन के सिद्धान्तों को स्पष्टता, दृढ़ विश्वास और प्रतिउत्तर देने के बुलाहट के साथ सिखाया था।
सहायक ईश्वरविज्ञान क्या है?
ईश्वरविज्ञान मसीही धर्मसिद्धान्त पर गम्भीर चिन्तन है। विश्वास के धर्मसिद्धान्त पवित्र शास्त्र की शिक्षाओं को संक्षिप्त में प्रस्तुत करते हुए व्याख्या करते हैं। बाइबल “खरे धर्मसिद्धान्त” की सराहना करती है। (तीतुस 2:1), जिसका अर्थ लाभकारी शिक्षा है।
विधिवत ईश्वरविज्ञान इस बात का अध्ययन है कि सम्पूर्ण बाइबल किसी दिए गए धर्मसिद्धान्त के विषय में तथा साथ ही अन्य धर्मसिद्धान्तों के साथ उसके सम्बन्ध के विषय में क्या शिक्षा देती है। उदाहरण के लिए, एक पापी को परमेश्वर के द्वारा कैसे धर्मी ठहराया जा सकता है या कैसे धर्मी माना जा सकता है? धर्मीकरण हमें परमेश्वर, ख्रीष्ट और स्वयं के विषय में क्या दिखाता है?
सभी मसीही शिक्षाओं के समान, विधिवत ईश्वरविज्ञान का उद्देश्य वाद-विवाद उत्पन्न करना नहीं है, वरन् विश्वास और भक्ति को दृढ़ करना होता है (1 तीमुथियुस 1:4-5)। जैसा कि धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानियों ने कहा है, “ईश्वरविज्ञान ख्रीष्ट द्वारा परमेश्वर के लिए जीने का धर्मसिद्धान्त है।”
परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सभी ईश्वरविज्ञान सहायक होते हैं। जब मैंने पहली बार विधिवत ईश्वरविज्ञान की पुस्तक खोली, तो मैंने सोचा कि, “यह बहुत अच्छा है! लेखक विश्वास के विषय में गहराई से सोच रहा था।” परन्तु उस पुस्तक में लेखक ने कहा कि ख्रीष्ट के भौतिक शरीर का मृतकों में से पुनरुत्थान, होने के विषय में बात करना मूर्खतापूर्ण है। लेखक अविश्वासी था। इसलिए कहने की आवश्यकता नहीं कि मैंने वह पुस्तक नीचे रख दी।
विधिवत ईश्वरविज्ञान केवल तभी सहायक होता है जब वह परमेश्वर के वचन के प्रति विश्वासयोग्य हो, विशेषकर उस सुसमाचार के प्रति कि ख्रीष्ट हमारे पापों के लिए मरा और मृतकों में से जी उठा (1 कुरिन्थियों 15:3-4)। इसलिए हमें समझदारी से विचार करना चाहिए। क्योंकि हम सभी से कुछ न कुछ सीख सकते हैं, यहाँ तक कि अविश्वासियों से भी सीख सकते हैं। परन्तु जब हम धर्मसिद्धान्त और ईश्वरविज्ञान का अध्ययन करते हैं, तो हमें अपने शिक्षकों को बुद्धिमानी के साथ चुनना चाहिए।
ईश्वरविज्ञान क्यों सहायक है?
विधिवत ईश्वरविज्ञान सहायक होता है क्योंकि ज्ञान अनुग्रह में बढ़ने की कुँजी है (2 पतरस 1:2; 2 पतरस 3:18)। और अनन्त जीवन का सार परमेश्वर को जानना है (यूहन्ना 17:3)। इसीलिए प्रेरित पौलुस ने ख्रीष्ट के ज्ञान को अन्य सब बातों से अधिक श्रेष्ठ समझा। (फिलिप्पियों 3:8) पौलुस ने स्वयं को “ख्रीष्ट के अथाह धन” का प्रचार करने में सौभाग्यशाली समझा। (इफिसियों 3:8)।
अधिकाँशतः, हम जीवन में बिना सोचे-समझे आगे बढ़ जाते हैं, और यह नहीं सोचते कि हम जो करते हैं, वह क्यों करते हैं। विधिवत ईश्वरविज्ञान जीवन के सबसे बड़े प्रश्नों के उत्तर बाइबल से देती है। जैसे परमेश्वर कौन है? संसार के लिए उसका उद्देश्य क्या है? मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ? बुराई क्यों है? मैं इस पर कैसे विजय पा सकता हूँ? वे कौन लोग हैं जो मेरी सहायता कर सकते हैं? इतिहास किस ओर जा रहा है?
सबसे अच्छी बात यह है कि मसीही ईश्वरविज्ञान त्रिएक परमेश्वर को जानने का एक साधन है: पिता अपने अनन्त प्रेम में, पुत्र अपने उद्धार करने वाले अनुग्रह में, तथा पवित्र आत्मा उस मधुर सहभागिता में जो वह हमें परमेश्वर एवं एक दूसरे के साथ प्रदान करता है (2 कुरिन्थियों 13:14)। प्रभु का ज्ञान सारी मानवीय बुद्धि, सामर्थ्य और धन से बढ़कर है (यिर्मयाह 9:23-24)। परमेश्वर हमें स्वतंत्र करने और पवित्र बनाने के लिए अपने वचन का उपयोग करता है, जैसा कि वह स्वयं पवित्र है (यूहन्ना 8:31-32; यूहन्ना 17:17)।
हम ईश्वरविज्ञान को सहायक ढंग से कैसे पढ़ सकते हैं?
ईश्वरविज्ञान को सहायक बनाने का दायित्व केवल लेखक पर ही नहीं होता है। वरन् पाठक को भी कार्य करना होता है। नीचे विधिवत ईश्वरविज्ञान का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं।
- ईश्वरविज्ञान को अपने प्रेम को बढ़ाने के लिए पढ़ें, न कि अपने अभिमान को बढ़ाने के लिए।
ज्ञान हमें घमण्ड से भर देता है, परन्तु यदि हमारा उद्देश्य प्रेम है तो हमारा लक्ष्य दूसरों की उन्नति करना होगा (1 कुरिन्थियों 8:1)।
- ईश्वरविज्ञान को बाइबल के साथ पढ़ें।
पवित्रशास्त्र के सन्दर्भों को देखें। उन्हें सन्दर्भ के अनुसार पढ़ें। बिरीया के लोगों के समान बनें, क्योंकि जो कुछ भी वे सुनते थे, उसे सत्यापित करने के लिए वे “प्रतिदिन पवित्रशास्त्र में से खोज-बीन करते थे” (प्रेरितों 17:11)।
- ईश्वरविज्ञान को प्रार्थना के साथ पढ़ें।
केवल परमेश्वर के विषय में न पढ़ें; वरन् परमेश्वर की उपस्थिति में पढ़ें। अध्ययन करते समय परमेश्वर की खोज करें। अपने प्राण को उसकी महिमा और अनुग्रह से भरें (भजन 63:5–8)। परमेश्वर से “अपनी सारी बुद्धि” से प्रेम करें (मरकुस 12:30)।
- ख्रीष्ट में विश्वास के साथ ईश्वरविज्ञान को पढ़ें। क्योंकि ख्रीष्ट वचन है, और परमेश्वर को प्रकट करने वाला भी है (यूहन्ना 1:1, 18)।
वचन को समझने के लिए और अपने मन को खोलने के लिए उस पर निर्भर रहें (लूका 24:45)।
- ईश्वरविज्ञान को ध्यान एवं मनन के साथ पढ़ें (2 तीमुथियुस 2:7)।
हम अन्तर्दृष्टि के लिए कुछ पुस्तकों को शीघ्रता से पढ़ लेते हैं। परन्तु विधिवत ईश्वरविज्ञान की पुस्तकों को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए।
- अपनी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए ईश्वरविज्ञान को पढ़ें।
आप परमेश्वर नहीं हैं। इसलिए यह सोचना मूर्खता है कि आप परमेश्वर को पूरी रीति से समझ सकते हैं (भजन 145:3)। परन्तु आप परमेश्वर के स्वभाव में सृजे गए एक मनुष्य हैं (उत्पत्ति 1:27)। इसलिए, ख्रीष्ट के अनुग्रह से आप परमेश्वर को जान सकते हैं (1 यूहन्ना 5:20)।
- ईश्वरविज्ञान को स्तुतिगान के लिए पढ़ें।
परमेश्वर के द्वारा अपने विषय में प्रकट की गई बातों के लिए उसे बार-बार स्तुति और धन्यवाद दें (भजन 119:164)। और यही ईश्वरविज्ञान को स्वर्ग का पूर्वानुभव बनाता है!
यह लेख व्याख्याशास्त्र संग्रह का भाग है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।