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मध्यवर्ती अवस्था
16 नवम्बर 2021![](https://hi.ligonier.org/wp-content/uploads/2021/11/TT_Parables_1200x630_BurkParsons_TheMasterStoryteller.jpg)
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दक्ष कहानीकार
23 नवम्बर 2021समाप्तिवाद
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सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का नौववां अध्याय है: त्रुटिपूर्वक समझे गए सिद्धान्तद
“वे उस रीति से आराधना करते हैं क्योंकि उनके पास पवित्र आत्मा नहीं है।” वर्षों पहले जब मैं एक पेंटोकॉस्टल/करिश्माई मसीही था मैं प्रायः इस कथन को सुनता था, जब भी हम पेंटोकॉस्टल लोग अ-पेंटोकॉस्टल विश्वासियों के विषय में बात करते थे, विशेष रूप से उन के विषय में जो औपचारिक आराधना-प्रार्थना रीति का पालन करते थे। हम यह विश्वास करते थे कि जबकि गैर-पेंटोकॉस्टल विश्वासी बचाए गए थे, परन्तु फिर भी उनके पास पवित्र आत्मा के अभिषेक की कमी थी, जैसा कि उनके आराधना शैली में स्पष्ट था जो बाहरी रूप से हमारी तुलना में कम आकर्षक और अधिक संरचित थी। हमारे पेन्टकॉस्टल ईश्वरविज्ञान ने हमें बताया कि अन्य भाषा बोलने और भविष्यवाणी करने का वरदान कभी बन्द नहीं हुआ, इसलिए कोई भी समूह जिसने इन वरदानों का और इनसे जुड़ी विशिष्ट बाहरी उल्लासपूर्ण मुद्राओं का अभ्यास नहीं किया, तो उनमें आत्मा की कमी थी, या कम से कम उसकी उपस्थिति की परिपूर्णता का अभाव था। हमारे विचार में, यह विश्वास करना कि वे वरदान समाप्त हो गए, यह विश्वास करना था कि पवित्र आत्मा उसके लोगों के मध्य कार्य नहीं कर रहा है। हम समाप्तिवाद के विरोध में थे, वह सिद्धान्त कि आत्मिक वरदान जो ईश्वरीय प्रकाशन को प्रकट या पुष्टि करते हैं— विशेष रूप से अन्य भाषा बोलने, आश्चर्यकर्म, और भविष्यवाणी करने के वरदान—अन्तिम प्रेरित के मृत्यु के साथ समाप्त हो गए।
सत्यता से, आत्मा की निरन्तर उपस्थिति और कार्य में अविश्वास के साथ समाप्तिवादी विचार पद्धति को जोड़ने का अधिकांश दोष मेरे और मेरे पेन्टेकॉस्टल मित्रों के चरणों में है। हमने समाप्तिवाद का विस्तार से अध्ययन नहीं किया या यह विचार रखने वाले उत्तम प्रतिनिधियों के साथ बात नहीं की। फिर भी, समाप्तिवादी त्रुटिरहित नहीं थे। हम सभी उन समाप्तिवादी विचार रखने वालें लोगों को जानते थे जो दृढ़ विश्वास से नहीं परन्तु केवल रीति-विधि से समाप्तिवादी थे। पेंटोकॉस्टल/ करिश्माई मसीहियों को समाप्तिवाद के भ्रान्तियों के लिए दोष देना कैसे उचित है जबकि वे केवल ऐसे समाप्तिवादियों को जानते हैं जो अन्य भाषा बोलने, आश्चर्यकर्म और भविष्यवाणी करने के वरदान तथाकथित चिह्नों की स्थायी वास्तविकता से इनकार करते हैं क्योंकि वे असाधारण घटनाओं से डरते हैं इसलिए नहीं क्योंकि उनके पास कोई विकसित, बाइबलीय तर्क है।
समाप्तिवाद के लिए एक पूर्ण तर्क प्रस्तुत करने में एक पूरी पुस्तक की आवश्यकता होगी, परन्तु इस दृष्टिकोण का अनिवार्य तत्व संक्षेप में कहा जा सकता है। जब परमेश्वर नया विशेष प्रकाशन देता है, तो वह उस प्रकाशन को देने के लिए भविष्यवाणी और अन्य भाषा बोलने जैसे असाधारण पद्धितियों को नियोजित करता है और आश्चर्यकर्म जैसे असाधारण चिह्नों उन लोगों की पुष्टि करने के लिए जिन्हें हमें (नबियों और प्रेरितों) को उस प्रकाशन के उनके प्रेरित साधन के रूप में ग्रहण करना चाहिए। परिणामस्वरूप, जब परमेश्वर नया विशेष प्रकाशन नहीं दे रहा है, तो वह असाधारण विधियों और चिह्न का उपयोग नहीं करता है, परन्तु, वह प्रतिभाशाली शिक्षकों और विधिवत नियुक्त कलीसिया के प्राचीनों द्वारा अपने विशेष प्रकाशन (पवित्रशास्त्र) की व्याख्या में और उसके माध्यम से कार्य करता है।
समाप्तिवाद के लिए कुछ बाइबलीय प्रमाण ध्यान देने योग्य हैं। पहला, परमेश्वर के लोग इतिहास में कई बार बिना किसी नबी के रहे हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने अपने लोगों से नबियों द्वारा बाते नहीं की—कम से कम ऐसे नबियों के द्वारा, जैसा कि हम सामान्य रूप से सोचते हैं—इब्राहीम से मूसा तक। इसके अतिरिक्त, पहली शताब्दी के यहूदियों ने पहचाना कि मलाकी और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बीच चार शताब्दियों के समयकाल के समय प्रभु ने कोई नबी नहीं भेजा। फिर भी, परमेश्वर उन युगों में कार्य कर रहा था जब एक भी नबी नहीं था।
दूसरा, बाइबल के समय में आश्चर्यकर्म, प्रतिदिन होने वाली घटनाएं नहीं थे। वे केवल तब हुए जब परमेश्वर अपने लोगों को नया प्रकाशन दे रहा था जो लिखा गया। पवित्रशास्त्र को सम्पूर्णता से देखने पर, हम आश्चर्यकर्म के तीन महान समय को देखते हैं: मूसा, एलिय्याह और एलीशा, और यीशु तथा उसके प्रेरितों के युगों में। परमेश्वर की ओर से नया विशेष प्रकाशन प्रत्येक युग का लक्षण था। मूसा ने व्यवस्था प्राप्त की और उसे पुरानी वाचा का मध्यस्थ बनाया गया। एलिय्याह और एलीशा नबी कार्य की औपचारिक विधि और उन सभी नबियों का जो नबूवत करते हैं का प्रतिनिधित्व करते हैं। यीशु और प्रेरितों ने नई वाचा की स्थापना की और नई वाचा के युग के लिए आवश्यक निर्देश प्रदान किए। यह देखते हुए कि बाइबल आधारित आश्चर्यकर्म भी इतने सीमित थे, यह अपेक्षा करने का कोई कारण नहीं है कि प्रत्येक पीढ़ी में ऐसे लोग होंगे जिनको आश्चर्यक्रम करने का वरदान प्राप्त होगा।
तीसरा, इब्रानियों 1:1-4 हमें बताता है कि हमारे लिए परमेश्वर का अन्तिम वचन उसका पुत्र है और यह कि अपने पुत्र के द्वारा बोलने की उसकी रीति—और इस प्रकार प्रेरितों के द्वारा जिन्होंने कलीसिया से उसके अधिकार के साथ बात की—यह वैसा नहीं है जैसा उसने यीशु के आने से पहले विभिन्न प्रकार से लोगों से बातें की। यह देखते हुए कि यीशु हमारा नबी है और पहली शताब्दी के प्रेरितों ने एक प्रेरित सेवकाई का कार्य किया, यीशु और उसके प्रेरितों और पुरानी वाचा के नबियों के बीच विभिन्नता यह नहीं है कि यीशु और उसके प्रेरितों ने शिक्षा में नई विधियों का प्रयोग किया परन्तु यह कि उन्होंने निर्णायक रूप से बात की। उन्होंने कलीसिया की नींव रखी (इफिसियों 2:18-22), इसलिए हम निरन्तर प्रकाशन की अपेक्षा नहीं करते हैं, क्योंकि नींव केवल एक बार रखी जाती है। अब यीशु को नबियों और प्रेरितों के द्वारा मार्गदर्शन प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अन्त में, जब हम उस निर्देश पर ध्यान देते हैं जो यीशु और प्रेरित ने प्रेरितों के बाद के समय के लिए देते हैं, तो हमें कलीसिया के लिए नबियों की खोज करने या लोगों के द्वारा आश्चर्यकर्म करने की आशा करने या अन्य भाषा बोलने वालों की खोज करने के लिए प्रभु का नया सन्देश या निर्देशन का बुलाहट नहीं मिलता है। यहाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण ऐसे स्थल हैं जैसे प्रेरितों के काम 20 में पौलुस के द्वारा इफिसियों के प्राचीनों के लिए पौलुस की विदाई और उनके मृत्यु से पहले प्रेरितों द्वारा लिखे गए अन्तिम पत्री, जिनमें 1 और 2 तीमुथियुस और यूहन्ना से 1, 2 और 3 यूहन्ना सम्मिलित हैं। ये स्थल कलीसिया को क्या करने के आदेश देते हैं? परम्परा— प्रेरितों की शिक्षा—को दृढ़ता से पकड़ने का जिसे कलीसिया ने पहले ही से प्राप्त कर लिया है, न कि एक नये प्रकाशन को खोजने का।
इस सभी के प्रकाश में, तथा धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान में पवित्रशास्त्र के बहुत उच्च सिद्धान्त को देखते हुए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि समाप्तिवाद धर्मसुधारवादी की सामान्य पद्धति रही है। वास्तव में, यह विश्वास करना कि अन्य भाषाएं, नबूवत और आश्चर्यकर्म के वरदान समाप्त हो गए हैं, परमेश्वर के लिखित वचन की धर्मसुधारवादी अंगीकार की समझ और प्रेरितों के पश्चात कलीसिया की घोषणात्मक सामर्थ के साथ इतना लिपटा हुआ है कि यह वास्तव में दोनों धर्म धर्मसुधारवादी होना और यह विश्वास करना कि पूर्वकथित वरदान अभी भी जारी हैं असम्भव है। यदि ईश्वरीय विशेष प्रकाशन समाप्त नहीं हुआ है, यदि नबूवत और इससे सम्बन्धित वरदान जारी रहते हैं, तो हमारे पास इस प्रकाशन को लिखने और उसका पालन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि परमेश्वर की माँग है कि हम उसके वचन को मानें और पालन करें। यदि ईश्वरीय विशेष प्रकाशन समाप्त नहीं हुआ है, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र के द्वारा अन्तिम दिनों में बात नहीं की है, और पवित्रशास्त्र का बन्द प्रमाणिक ग्रन्थ (Canon) का सिद्धान्त हमारे विश्वास और कार्य के अन्तिम नियम नहीं हो सकता है। धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान को निरन्तरतावादी विचार पद्धति से जोड़ना कि नबूवत, आश्चर्यकर्म और अन्य भाषा बोलने के वरदान जारी हैं, एक अस्थिर और विरोधाभासी शिक्षाओं का असंगत मेल को उत्पन्न करना है।
परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि समाप्तिवादी पवित्र आत्मा की निरन्तर उपस्थिति और कार्य को अस्वीकार करते हैं। हम समाप्तिवादी यह विश्वास नहीं करते हैं कि पवित्र आत्मा आज नबियों से बोलने में असमर्थ है, परन्तु केवल यह कि उसने यह करने के लिए नहीं चुना है। हम समाप्तिवादी विश्वास करते हैं कि जब हम प्रार्थना करते हैं तो आत्मा अप्रत्याशित रीति से लोगों को चंगा कर सकता है और प्रायः करता है। हम विश्वास करते हैं कि पवित्र आत्मा अपने वचन के सही व्याख्या के द्वारा हमसे बात करता है। हम विश्वास करते हैं कि वह हमारे लिए द्वार खोलता है और यहाँ तक कि हमारे जीवन में “आकस्मिक परिस्थितियों” को उपलब्ध भी करता है। वास्तव में, मेरा तर्क है कि परम्परागत धर्मसुधारवाद समाप्तिवाद परम्परागत निरन्तरतावाद की तुलना में आत्मा की सामर्थ और स्वतंत्रता के विषय में एक उच्च दृष्टिकोण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अंगीकार करते हैं कि आत्मा को हमारे विश्वास करने के लिए मृत आत्माओं को अवश्य जीवित करना चाहिए; कि उसे हमारे पूछे बिना ऐसा करना चाहिए, क्योंकि ख्रीष्ट के बाहर अपनी आत्मिक रूप से मृतक स्थिति में हम नया जीवन नहीं मांगेंगे; और यह कि वह ऐसा केवल उन लोगों के लिए करता है जिन्हें वह अपने चुनाव के समय स्वतंत्र रूप से चुनता है।