मध्यवर्ती अवस्था - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
कलीसियाई सदस्यता
11 नवम्बर 2021
समाप्तिवाद
18 नवम्बर 2021
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मध्यवर्ती अवस्था

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का आठवां अध्याय है: त्रुटिपूर्वक समझे गए सिद्धान्तद

सेवक प्राय: मृत्यु और उसके साथ आने वाले अनिवार्य प्रश्नों से निपटते हैं। मृत्यु की वास्तविक प्रकृति ही कठिन प्रश्न उठाती है। परिवार के किसी सदस्य या उनके किसी परिचित की मृत्यु के बाद बच्चों को सान्त्वना के अच्छे कामना के शब्दों का दिया जाना असामान्य नहीं है। हम प्राय: कुछ इस प्रकार से कहते हैं जैसे “दादी स्वर्ग में हैं,” भ्रमित और थोड़े दुखी छोटे बच्चों को सान्त्वना देने की आशा करते हुए जो ऐसे विषय से निपट रहे हैं जिसे ज्ञानी ईश्वरविज्ञानी भी पूरी रीति से नहीं समझते हैं। फिर भी, जबकि “दादी स्वर्ग में हैं” निश्चित रूप से त्रुटिपूर्वक उत्तर नहीं है यदि दादी यीशु ख्रीष्ट में एक विश्वासी थीं, उत्तर अधूरा है और यहाँ तक कि भ्रमित करने वाला भी हो सकता है। बात को बाइबलीय दृष्टिकोण में रखने के लिए, यदि दादी एक विश्वासी थीं, तो वह अब प्रभु की उपस्थिति में हैं, उसके पुन: आगमन और उनकी देह के पुनरुत्थान की प्रतीक्षा करती हुई।

जब लोग मरते हैं तो उनके साथ क्या होता है, इसके विषय में प्राय: छान-बीन की जाती है परन्तु यह मसीही ईश्वरविज्ञान का ऐसा पहलू है जो निरन्तर त्रुटिपूर्वक समझा जाता है, जिसकी चर्चा प्रायः “मध्यवर्ती अवस्था” शीर्षक के अन्तर्गत की जाती है। सही रीति से न समझने की सम्भावना को देखते हुए, मध्यवर्ती अवस्था की सहायक होता है। यह एक विश्वासी की मृत्यु (और प्रभु की उपस्थिति में उनका तत्काल प्रवेश) और मसीह के पुनरागमन के समय देह के पुनरुत्थान के मध्य की अवधि है। जब यीशु अन्तिम दिन मरे हुओं को जिलाता है, तो देह रहित प्राण उनके शरीरों के साथ पुन: एक होते हैं, उन्हें अविनाशी बना दिया जाता है (1 कुरिन्थियों 15:35-58), अनन्त काल के लिए नए स्वर्ग और पृथ्वी में रहने की तैयारी के रूप में (प्रकाशितवाक्य 21)।

कई जाने-पहचाने खण्डों में, पौलसु विशेष रूप से इस बात को सम्बोधित करता है कि विश्वासियों के मरने के समय और ख्रीष्ट की वापसी के मध्य उनके साथ क्या होता है। 2 कुरिन्थियों 5:8 के अनुसार, विश्वासी अपनी शारीरिक मृत्यु के तुरन्त बाद परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करते हैं। जब हम स्वर्ग की बात करते हैं तो हमारा यही अर्थ होता है। प्रेरित लिखता है, “हम शरीर से दूर रहना चाहते हैं और प्रभु के साथ घर पर रहना चाहते हैं।” पौलुस ने यह भी बताया कि उसकी क्या अभिलाषा थी कि “ख्रीष्ट के पास जाना और साथ होना, क्योंकि यह तो कहीं उत्तम है” (फिलिप्पियों 1:23)। जब हम मरते हैं, हम “ख्रीष्ट के साथ” होते हैं, तुरन्त परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करते हैं।

स्वर्ग का सबसे स्पष्ट बाइबल का चित्रण प्रकाशितवाक्य 4-6 में वर्णन किया गया है, यीशु के वापस आने से पहले स्वर्गीय सिंहासन कक्ष में क्या होता है, इसका एक महिमामय दृश्य। जबकि वहाँ प्रकाशित दृश्य अद्भुत है, यह ध्यान देने योग्य है कि स्वर्ग में सन्त उच्च स्वर से पुकार रहे हैं, “हे पवित्र और सच्चे प्रभु, तू कब तक न्याय न करेगा तथा कब तक पृथ्वी के निवासियों से हमारे रक्त का प्रतिशोध न लेगा?”(6:10)। वे जो हमसे पहले मर चुके हैं और पहले से ही परमेश्वर की उपस्थिति में हैं और जो अब पुनरुत्थान और न्याय के दिन यीशु ख्रीष्ट की पृथ्वी पर वापसी के लिए ललायित हैं मध्यवर्ती अवस्था का अनुभव कर रहे हैं।

मध्यवर्ती अवस्था की तीन महत्वपूर्ण भ्रान्तियाँ हैं जैसा कि अभी वर्णित किया गया है। मध्यवर्ती अवस्था की पहली भ्रान्ति, जिसे प्राय: “प्राण की नींद” के रूप में जाना जाता है, वह यह है कि एक विश्वासी की मृत्यु पर, प्राण पुनरुत्थान के दिन तक “सोता है”। इस दृष्टि से, हमारे मरने के समय से लेकर यीशु की वापसी के दिन जब तक हम जागते हैं, तब तक प्रभु की उपस्थिति में होने की कोई सचेत अवस्था नहीं है। हम मरते हैं और तब “सो” जाते हैं जब तक कि ख्रीष्ट वापस नहीं आ जाता। इस दृष्टिकोण को जॉन कैल्विन ने अपने पहले प्रमुख ईश्वरविज्ञानीय ग्रंथ, साइकोपेन्चिया  नाम के आकर्षक शीर्षक वाली एक पुस्तक में सम्बोधित किया था। यहाँ त्रुटि यह है कि मृत्यु एक अचेतन अवस्था लाती है, नींद के समान। विश्वासियों को अपने अन्तिम सांस लेने के क्षण से लेकर पुनरुत्थान में जागने तक कुछ भी स्मरण नहीं रहता है। परन्तु यह दृष्टिकोण बाइबिल के उन अंशों को नहीं समझा सकता है जिनका अभी उल्लेख किया गया है जो स्पष्ट रूप से मृत्यु के तुरन्त बाद प्रभु के साथ एक विश्वासी की सचेत उपस्थिति के बारे में बात करते हैं, प्रकाशितवाक्य 4-6 में वर्णित स्वर्गीय दृश्य की महिमा का अनुभव करते हैं।

दूसरी भ्रान्ति की धारणा है कि मध्यवर्ती अवस्था पापी मनुष्यों के लिए किसी भी बचे हुए वास करने वाले पाप की उपस्थिति से शुद्ध होने का समय है। इस त्रुटि का मुख्य उदाहरण रोमन कैथोलिक का शोधन स्थान का सिद्धान्त है। यह विचार कि मध्यवर्ती अवस्था शुद्धिकरण का समय है, इस त्रुटिपूर्वक धारणा से उत्पन्न होती है कि भले ही कोई यीशु ख्रीष्ट में विश्वास करते हुए मर जाता है, फिर भी वह स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए व्यक्तिगत पवित्रता की पर्याप्त स्थिति तक नहीं पहुँच पाया है। शुद्धिकरण के समय की आवश्यकता है ताकि मृत्यु के बाद उसके प्राण को “शुद्ध” किया जा सके ताकि वह संतों के साथ संगति के पूर्ण आनन्द में प्रवेश कर सके। यह दृष्टिकोण मानता है कि केवल यीशु ख्रीष्ट के गुण (उसकी आज्ञाकारिता का जीवन, हमारे पापों के लिए उसकी मृत्यु) एक विश्वासी को मृत्यु पर स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए पर्याप्त रूप से “पवित्र” नहीं बना सकता है। तथापि, सुसमाचार इस प्रतिज्ञा पर आधारित है कि यीशु वह सब प्रदान करता है जो हमें एक “संत” के रूप में गिने जाने के लिए चाहिए और विश्वास के माध्यम से यीशु ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन के आधार पर पवित्र बनाता है। स्थिति के सम्बन्ध से, हम अपने धर्मी ठहराए जाने पर पवित्र हैं, जबकि व्यावहारिक रूप से, हम अपने पूरे जीवन में पवित्रता में तब तक बढ़ते हैं जब तक कि हम अपने महिमान्वीकरण में पूर्णता पवित्र नहीं हो जाते।

तीसरी भ्रान्ति (सम्भवतः आधुनिक अमेरिका में सबसे सामान्य दृष्टिकोण) मध्यवर्ती अवस्था (देह रहित अस्तित्व) को अनन्त स्थिति के साथ भ्रमित करना है जिससे कि देह के पुनरुत्थान की कोई अपेक्षा न हो जैसा बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है (1 कुरिन्थियों 15:12)। इस दृष्टि से, मृत्यु प्राण (पहले से ही “शुद्ध”) को पापी देह से मुक्त करती है। क्योंकि मरे हुओं में से किसी का पुनरुत्थान नहीं है, लोग मृत्यु के बाद सचेत, अदृश्य आत्माओं के रूप में अस्तित्व में हैं। कई लोग, जिन में मसीही होने का दावा करने वाले भी सम्मिलित हैं, यह भी मानते हैं कि ये आत्माएं इस जीवन में हमारे साथ उपस्थिति हैं, हमें परीक्षाओं के क्षणों में सान्त्वना और ढांढ़स  प्रदान करती हैं, या जब हम उनके लिए शोक करते हैं और तब उनकी उपस्थिति का “अनुभव” करते हैं। इस प्रकार के विश्वास गहराई से अनुभव किए हुए हो सकते हैं, परन्तु उनका कोई बाइबलीय आधार नहीं है, क्योंकि वे देह के पुनरुत्थान के विषय में बाइबल की शिक्षाओं की उपेक्षा करते हैं। यह त्रुटिपूर्वक विचारधारा उन लोगों को भी प्रोत्साहित करती है जो अपने दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की अनदेखी उपस्थिति से सान्त्वना पाने के लिए दुखी हैं, न कि देह के पुनरुत्थान की महान मसीही आशा के लिए।

हम जान सकते हैं कि, जब दादी की मृत्यु हुई, तो उन्हें नींद नहीं आई। स्वर्ग में, उन्हें पाप से शुद्ध नहीं किया जा रहा है। यदि दादी विश्वासी थीं, तो वे तुरन्त महिमान्वित की गई और वे ख्रीष्ट की उपस्थिति में चली गईं। यीशु ने क्रूस पर उनके लिए और सिद्ध आज्ञाकारिता के अपने जीवन में इसे पूरा किया। वह सचेत रूप से पुनरुत्थान की प्रतीक्षा कर रही है, अब भी जब वह अपने उद्धारकर्ता का चेहरा देखती है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
किम रिडलबर्गर
किम रिडलबर्गर
डॉ. किम रिडलबर्गर अनाहाइम, कैलिफ़ोर्निया में क्राइस्ट रिफॉर्म्ड चर्च के वरिष्ठ पास्टर और व्हाइट हॉर्स इन रेडियो कार्यक्रम के सह आयोजक हैं। वह लेक्टियो कॉन्टिनुआ ( Lectio Continua) श्रृंखला में सहस्त्रवर्षीयहीनवाद का पक्ष (A Case for Amillennialism) और पहला कुरिन्थियों (First Corinthians) के लेखक हैं।