गहन ईश्वरविज्ञान - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
ख्रीष्टीय, क्या आप परमेश्वर की व्यवस्था से प्रेम करते हैं?
14 फ़रवरी 2021
सत्य के लिए गढ़: मार्टिन लूथर
17 फ़रवरी 2021
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गहन ईश्वरविज्ञान

क्या आपने कभी कल्पना की है कि कैसे होगा यदि आप कुछ ही घंटों के भीतर मरने जा रहे हैं—एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में नहीं, वरन् ऐसे व्यक्ति के रूप में जो मरने के लिए  दोषी ठहराया गया हो यद्यपि वह सब अपराध से निर्दोष है? आप उनसे क्या कहना चाहेंगे जो आपको सबसे अच्छी रीति से जानते हैं और जो आपसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं? निश्चित रूप से, आप उन्हें बताएंगे कि आप उनसे कितना अधिक प्रेम करते हैं। आप आशा कर सकते हैं कि आप उन्हें कुछ सान्त्वना और आश्वासन दे सकते हैं—उस भयावह अनुभव के होते हुए भी जिसका सामना आप कर रहे थे। आप अपना हृदय खोलना चाहेंगे और वे बातें कहेंगे जो आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण थीं।

ऐसा सन्तुलन निश्चित रूप से प्रशंसनीय होगा। नि:सन्देह, यह सर्वश्रेष्ठ मानव स्वभाव होगा—क्योंकि यीशु ने ऐसा ही किया, जैसे प्रेरित यूहन्ना ऊपरी कोठरी के वार्तालाप में वर्णन करता है (यूहन्ना 13–17)।

उसके क्रूसीकरण से पहले चौबीस घंटों में, प्रभु यीशु ने अपने प्रेम को उत्तम रीति से व्यक्त किया। वह भोजन से उठा, अपनी कमर के चारों ओर एक सेवक का तौलिया लपेटा, और अपने शिष्यों के गन्दे पैर धोए (ऐसा प्रतीत होता है, यहूदा इस्करियोती सहित; यूहन्ना 13:3-5, 21-30)। यह एक क्रियान्वित दृष्टान्त था, जैसा कि यूहन्ना समझाता है: “अपनों से जो संसार में थे जैसा प्रेम करता आया था उन से अन्त तक वैसा ही प्रेम किया” (पद 1)।

उसने उनसे गहरे सान्त्वना के शब्द भी कहे: “तुम्हारा हृदय व्याकुल न हो” (14:1)।

इसके साथ यीशु ने अधिक बढ़कर भी किया। उसने अपने चेलों को “परमेश्वर की गहराई (गूढ़ बातें)” (1 कुरिन्थियों 2:10) को प्रकट करना आरम्भ किया। जब उसने पतरस के पैर धोए, तो उसने उससे कहा कि वह उसके कार्यों को “बाद में” ही समझेगा (यूहन्ना 13:7)। यही बात उसकी बातों के विषय में भी सत्य था, क्योंकि वह अपने चेलों को परमेश्वर के भीतरी स्वरूप के बारे में प्रकट करने लगा। वह है पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा—पवित्र त्रिएकता।

प्रकट किया गए रहस्य की महिमा

कई ख्रीष्टिय त्रिएकता को एक अव्यवहारिक, काल्पनिक सिद्धान्त के रूप में सोचा करते हैं। परन्तु प्रभु यीशु ऐसा नहीं सोचता है। उसके लिए, यह न तो काल्पनिक है और न ही अव्यवहारिक—किन्तु इसका ठीक विपरीत। यह सुसमाचार का आधार है। पिता के प्रेम, पुत्र के आगमन, और पवित्र आत्मा के द्वारा नया बनाने वाली सामर्थ्य के बिना कोई उद्धार नहीं हो सकता है। (अद्वेतवादियों के पास, उदाहरण के लिए, परमेश्वर द्वारा परमेश्वर के लिए कोई प्रायश्चित नहीं हो सकता है।)

अपने अन्तिम वार्तालाप के समय, यीशु ने फिलिप्पुस को समझाया कि उसे देखना पिता को देखना है (यूहन्ना 13:8-11)। फिर भी वह स्वयं पिता नहीं है; अन्यथा, वह पिता तक पहुँचने का मार्ग नहीं हो सकता था (यूहन्ना 14:6)। वह पिता “में” भी है, और पिता “उस में” है। यह पारस्परिक निवास, जैसा कि ईश्वरविज्ञानी कहते हैं, “अवर्णनीय” है— हमारी समझने की क्षमता से परे। फिर भी यह विश्वास करने की क्षमता से परे नहीं है।

इसके साथ, पवित्र आत्मा, पिता और उसके पुत्र के मध्य सम्बन्ध के केन्द्र में है। परन्तु अब पिता ने अपने पुत्र को भेजा है (जो पिता “में” है)। विश्वासियों के लिए पिता और पुत्र का ऐसा प्रेम है कि वे विश्वासियों को अपना निवास स्थान बनाने आएंगे।

ऐसा कैसे? पिता और पुत्र विश्वासी में निवास करते हैं पवित्र आत्मा के निवास करने के द्वारा (14:23)। वह ख्रीष्ट की महिमा करता है (16:14)। वह ख्रीष्ट सम्बन्धित बातों को लेता है, जो उसे पिता द्वारा दिए गए हैं, और इसे हम पर प्रकट करता है। बाद में, जब हमें अपने प्रभु की प्रार्थना को सुन पाने का सौभाग्य प्राप्त होता है, तो यीशु इसी रीति से परमेश्वर के साथ संगति की आत्मीयता के बारे में बात करता है, जिसने उसे इतने अद्भुत रूप से बनाए रखा “हे पिता, तू मुझ में है और मैं तुझ में हूँ”(यूहन्ना 17:21)।

यह सच में गहन ईश्वरविज्ञान है। फिर भी वास्तव में हम परमेश्वर के बारे में सबसे निपुण कथन यही कह सकते हैं कि पिता पुत्र “में” और पुत्र पिता “में” है। यह इतना सरल लगता है कि एक बच्चा इसे देख सकता है। क्योंकि में  से अधिक सरल और क्या शब्द हो सकता है?

फिर भी यह इतना अथाह भी है कि सर्वोत्तम मस्तिष्क भी इसकी गहराई को नहीं माप सकते हैं। क्योंकि जब भी हम पिता के एक जन के विषय में विचार करने का प्रयास करते हैं, तो हम पाते हैं कि हम यह उसके पुत्र के बारे में सोचे बिना नहीं कर सकते (क्योंकि वह बिना पुत्र के एक पिता नहीं हो सकता)। न ही हम इस पुत्र को पिता से अलग मान सकते हैं (क्योंकि वह बिना पिता के पुत्र नहीं हो सकता)। यह सब केवल इसलिए सम्भव है क्योंकि आत्मा प्रकाशित करता है कि पुत्र वास्तव में कौन है, उस एकमात्र माध्यम के रूप में जिसके द्वारा हम पिता के पास आ सकते हैं।

इस प्रकार, हमारे मन एक ही समय में इस त्रिएकता की एकता में आनन्द से फूल जाते हैं और फिर भी अपनी क्षमताओं से बढ़कर खींचे जाते हैं त्रिएकता में एकता के विचार के द्वारा। लगभग इतना ही चौंका देने वाला तथ्य यह है जिसे यीशु प्रकट करता और सिखाता है यह सब ताकि यह जीवन को दृढ़ करने वाला, सन्तुलित करने वाला, हृदय को सान्त्वना देने वाला और आनन्द भी देने वाला सुसमाचार सत्य है (15:11)।

त्रिएकता महत्व में इतनी व्यापक है क्योंकि यह ऐसे लोगों को सान्त्वना दे सकती है जो घेरने वाले दुख के वातावरण के द्वारा हताशा की सीमा पर हैं। वह त्रिएक एक सृष्टि में अन्य सभी वास्तविकताओं की तुलना में महिमा में अधिक बड़ा है, रहस्य में अधिक गहरा है, और अधिक सुन्दर है। कोई भी त्रासदी इतनी विशाल नहीं है कि उस पर हावी हो जाए; हमारे लिए कोई भी अबोधगम्य बात उसके लिए नहीं है, जिसका अस्तित्व ही हमारे लिए अबोधगम्य है। परमेश्वर की अस्तित्व की गहराई से अधिक गहरा कोई अन्धकार नहीं है।

यह सम्भवत: समझने योग्य है, तब, कि जॉनथन एडवर्ड्स अपने पर्सनल नैरटिव  में लिख सकता था:

परमेश्वर मेरे लिए महिमापूर्ण प्रकट हुआ है, त्रिएकता के कारण । इसके कारण परमेश्वर के विषय में मेरे विचार ऊँचे हैं, कि वह तीन जन के अस्तित्व में है; पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। मेरे अनुभव में सबसे मधुर आनन्द और सुख मेरी अपनी अच्छी अवस्था से उत्पन्न नहीं हुए हैं; किन्तु सुसमाचार की महिमान्वित बातों के प्रत्यक्ष दृष्टि में। जब मैं इस मधुरता का आनन्द लेता हूँ, तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुझे अपने अवस्था के विचारों से ऊपर ले जाता है; ऐसा प्रतीत होता है कि यह ऐसे समयों में ऐसी क्षति है जिसे मैं सहन नहीं कर सकता, कि मैं अपनी आंख को अपने बाहर उस महिमामय मनोहर वस्तु से हटा लूं, तथा अपनी आँख स्वयं पर, तथा मेरी अपनी अच्छी अवस्था की ओर घुमाता हूँ।

किन्तु त्रिएकता का प्रकाशन वास्तव में हमारी “अपनी अच्छी अवस्था” से सम्बन्धित है।

एकता का आश्चर्य प्रकट किया गया

यीशु की शिक्षा का उद्देश्य केवल हमारे मनों को चकित करना या हमारी कल्पनाओं को हिला देना ही नहीं है। यह हमें उसके साथ एकता के बड़े विशेष अधिकार की भावना देना है।

सेवकाई के इन कुछ घंटों के आरम्भ से ही, यीशु ने बात की थी कि उसके चेले उसके साथ “साझेदारी” रखते हैं (यूहन्ना 13:8)। उसने यह भी समझाया था कि आत्मा ख्रीष्टियों पर प्रकट करता है कि वे “ख्रीष्ट में” हैं और वह उनमें है (14:20)। यह एक ऐसी एकता है जो इतनी वास्तविक और अद्भुत है कि इसकी एकमात्र वास्तविक अनुरूपता है—साथ ही इसका आधार—पिता और पुत्र की एकता है आत्मा के द्वारा। चेले पुत्र के साथ एकता का आनन्द लेंगे तथा इसके कारण आत्मा के द्वारा पिता से उनकी सहभागिता होगी। “तुम उसे जानते हो,” यीशु ने कहा,  “क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और तुम में रहेगा” (पद 18)। ये गूढ़ शब्द आत्मा और पुरानी वाचा (“तुम्हारे साथ”) और नई वाचा के विश्वासियों (“तुम में”) के मध्य सम्बन्धों के अन्तर का उल्लेख नहीं करते हैं। वे प्राय: इस प्रकार से समझे जाते हैं, परन्तु यीशु वास्तव में यह कह रहा है: “तुम आत्मा को जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ मुझ में है, किन्तु वह आएगा (पिन्तेकुस्त के समय) तुम में वैसे ही होने के लिए जैसे वह मेरा विश्वासयोग्य साथी रहा है (और उस अर्थ में ‘तुम्हारे साथ’)। इस प्रकार से, वह कोई और नहीं है, परन्तु वही है जो पुत्र और पिता के मध्य संगति का बन्धन रहा है सनातन काल से।”

इस प्रकार, ख्रीष्ट के साथ एक होने का अर्थ है एक ऐसे मिलन में सांझा करना जो उस देहधारी पुत्र के आत्मा के अन्तर्वास के द्वारा अस्तित्व में आई जो स्वयं पिता “में” है जैसे पिता उस “में” है। ख्रीष्ट के साथ एक होने का अर्थ त्रिएकता के सभी तीन व्यक्तियों के साथ सहभागिता से कम नहीं है। ऐसा नहीं है कि परमेश्वरीय स्वभाव विश्वासियों में भर दिया गया है। ख्रीष्ट के साथ हमारा मिलन आत्मिक और व्यक्तिगत है—पिता के पुत्र के आत्मा के अन्तर्वास के द्वारा कार्यवन्त।

ध्यान दें, तब, उस उत्तम चित्र को जिसकी रचना यीशु करता है इस एकता की सुन्दरता और घनिष्टता को व्यक्त करने के लिए: यह पिता और पुत्र द्वारा विश्वासी के हृदय में अपना निवास स्थान बनाने से कम नहीं है (पद 23)।

महत्वपूर्ण रीति से, यीशु ख्रीष्टियों से एक दर्जन बातों को करने के लिए नहीं कहता है—  परन्तु केवल विश्वास करने और प्रेम करने के लिए। क्योंकि ख्रीष्ट के साथ एकता के द्वारा त्रिएक परमेश्वर के साथ इस एकता की वास्तविकता और महत्व का बोध (“उस दिन तुम जानोगे”; पद 20) है जो विश्वासी के सोच, भावना, इच्छा, प्रेम, और, परिणामस्वरूप उसके कार्य को परिवर्तित करता है। इस एकता में, पिता दाखलता की शाखाओं को छांटता है कि वह और फलें (15:2)। इसी एकता में, पुत्र उन सभी को बनाए रखता है जिन्हें पिता ने उसे दिया है (17:12)।

इसीलिए जॉन डन्न ने प्रार्थना की:

मेरे हृदय पर प्रहार कर, हे त्रिएक परमेश्वर; क्योंकि अभी तक तू केवल खटखटाता है; सांस फूंक दे, चमक दे, और सुधार दे; ताकि मैं उठकर खड़ा हो सकूँ। मुझे हरा, और अपनी सामर्थ्य का प्रयाग कर मुझे तोड़ने के लिए, बहाने के लिए, जलाने के लिए, और नया बनाने के लिए।  मैं, एक हड़प लिए गए शहर की तरह जो किसी और का है, यत्न करता हूँ तुझे स्वीकार करने के लिए, परन्तु ओह, मैं सफल नहीं होता; बुद्धि को, जो मुझ में आपका राजप्रतिनिधि है, मेरी रक्षा करनी चाहिए, परन्तु वह कैद में है और निर्बल या असत्य प्रमाणित होता है। फिर भी मैं तुम से बहुत प्रेम करता हूँ, और प्रसन्नता से प्रेम किया जाना चाहता हूँ, परन्तु मेरी मंगनी तेरे शत्रुओं से हुई है; मेरा तलाक करा, उस बन्धन को  खोल या पुनः तोड़,  मुझे अपने पास ले, मुझे बन्दी बना, क्योंकि मैं, जब तक तू मुझे मोहित न करे, कभी स्वतन्त्र नहीं होऊंगा, न ही कभी पवित्र होऊंगा, जब तक तू मुझे मोह न ले। (पवित्र सोनेट XIV)

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।