ख्रीष्टीय, क्या आप परमेश्वर की व्यवस्था से प्रेम करते हैं? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ख्रीष्टीय, क्या आप परमेश्वर की व्यवस्था से प्रेम करते हैं?

अक्टूबर 2015 में एक पी.जी.ए. टूर टूर्नामेंट में, बेन क्रेन ने अपना दूसरा राउंड पूरा करने के बाद स्वयं को अयोग्य घोषित कर दिया। उसने ऐसा आर्थिक कीमत को ध्यान में रखते हुए किया। कुछ भी हो—क्रेन ने माना कि ऐसा न करने की व्यक्तिगत कीमत अधिक होगी (वह एक भक्ति लेख द्वारा प्रोत्साहित था जिसे उसने उस सुबह पढ़ा था, जिसे प्रतिष्ठित पूर्व राइडर कप कप्तान डेविस लव III (तृतीय) ने लिखा था।

क्रेन ने यह समझा कि उसने गॉल्फ का एक बहुत ही छिपे हुए नियम को तोड़ा था। यदि मैंने कहानी को सही रीति से समझा, जब वह हज़ार्ड में था अपनी गंद खोजते हुए, उसने एक पत्थर को अपने क्लब से छूआ। उसने गेंद को छोड़ दिया, ऐसा करने के लिए उचित पेनलटी ली, खेलता गया और अपना राउंड पूरा किया। वह शुक्रवार की रात के स्तर को सरलता से पार चुका होगा; एक आर्थिक रूप से सफल सप्ताह आगे था। तब बेन क्रेन ने सोचा: “क्या मुझे अपने क्लब को हज़ार्ड में भूमि को छुआने के लिए पेनल्टी लेनी चाहिए था?” निश्चित रूप से (नियम 13.4a)। इसलिए उसने स्वयं को अयोग्य घोषित कर दिया। 

(क्या आप समझ पाए? आशा है, कोई भी पाठक आज रात यह जानते हुए नहीं जागेगा कि ट्रॉफी अवैध रूप से जीती गई थी।)

क्रेन को उसके कार्य के लिए व्यापक रूप से सराहा गया। इन्टरनेट पर घृणित या नीच आक्रमण का या घृणा से भरे पत्र नहीं आए संकीर्ण विचार वाला होने के लिए। सभी उसका सम्मान करते हैं। आश्चर्यजनक रूप से, ऐसा नहीं लगता है कि किसी ने भी यह कहा या लिखा कि, “बेन क्रेन इतना कर्मकाण्डवादी है।”

नहीं, हम इस महीने एक नया खेल कॉलम आरम्भ नहीं कर रहे हैं। परन्तु कितना विचित्र है कि गॉल्फ के नियमों पर विस्तृत ध्यान के लिए इतनी प्रशंसा दिखती है, और फिर भी जब जीवन के नियमों की बात आती है, परमेश्वर की (बहुत सुस्पष्ट) व्यवस्था की बात आती है, इसका ठीक विपरीत होता है, कलीसिया में भी। 

कही पर तो समस्या है:

समस्या

न तो यीशु और न ही पौलुस को व्यवस्था से कोई समस्या थी। पौलुस ने लिखा कि उसके अनुग्रह का सुसमाचार व्यवस्था को सम्भालता तथा दृढ़ करता है (रोमियों 3:31)—परमेश्वर की व्यवस्था उसके नकारात्मक रूप में भी, क्योंकि “परमेश्वर का अनुग्रह” हमें सिखाता है कि हम . . . ‘न’ कहें” (तीतुस 2:11-12)। और क्या आपको मत्ती 5:17-19 में यीशु के शब्द स्मरण हैं? व्यवस्था के प्रति हमारा व्यवहार एक लिटमस परीक्षण परमेश्वर के राज्य के साथ हमारे सम्बन्ध का।

तो समस्या क्या है? वास्तविक समस्या यह है कि हम अनुग्रह को नहीं समझते हैं। यदि हम समझते, तो हम इस बात को भी समझते कि जॉन न्यूटन, “अमेज़िग ग्रेस” गीत के लेखक क्यों लिख सकता था, “व्यवस्था की प्रकृति एवं रचना की अज्ञानता अधिकांश धार्मिक गलतियों की जड़ है।”

यह एक गहरा विषय है। पवित्रशास्त्र में, जो व्यक्ति अनुग्रह को समझता है, व्यवस्था से प्रेम करता है। (संयोग से, स्वतंत्रतावाद के विरुद्ध केवल विवादात्मक कुशलता कभी भी यह उत्पन्न नहीं कर सकती है।)

बेन क्रेन के बारे में पुन: विचार करें। गॉल्फ के जटिल नियम क्यों मानें? क्योंकि आप खेल से प्रेम करते हैं। कुछ इसी तरह, किन्तु इससे भी बढ़कर, (यह) विश्वासी के बारे में सत्य है। परमेश्वर से प्रेम करो, और हम उसकी व्यवस्था से प्रेम करेंगे—क्योंकि व्यवस्था परमेश्वर की है। यह सब इस बाइबलीय सरलता में निहित है।

इसके बारे में तीन पुरुषों और उन तीन “चरणों” या “युगों” के सन्दर्भ में सोचिए जिसके वे प्रतिनिधित्व करते हैं: आदम, मूसा, और यीशु।

आदम 

सृष्टि के समय, परमेश्वर ने आज्ञाएं दी। वे उसकी इच्छा को व्यक्त करती थी। और क्योंकि वह एक भला, बुद्धिमान, प्रेमी और उदार परमेश्वर है, उसकी आज्ञाएं सर्वदा हमारी भलाई के लिए हैं। वह हमारे लिए पिता बनना चाहता है। 

जैसे ही परमेश्वर ने पुरुष और स्त्री को अपने स्वरूप में बनाया (उत्पत्ति 1:26-28—एक बहुत महत्वपूर्ण कथन), उसने उन्हें अनुसरण करने के लिए नियम दिए (पद 29)। यहाँ का सन्दर्भ मूल कारण को स्पष्ट करता है: वह प्रभु है; वे उसके स्वरूप हैं। उसने उन्हें बनाया ताकि वे उसको प्रतिबिम्बित करें। वह पूरे ब्रह्माण्ड का अधिकारी है, और वे पृथ्वी पर उप-अधिकारी हैं। उसका लक्ष्य है कि वें एक दूसरे और सृष्टि में उनका पारस्परिक आनन्द जीवन के एक मेल में (उत्पत्ति 1:26–2:3)। इसलिए, उसने उन्हें एक आरम्भ दिया है—अदन की वाटिका (2:7)। वह चाहता है कि वे उस वाटिका को पृथ्वी के छोर तक बढ़ाएं, और छोटे रचनाकारों के रूप में इसका आनन्द लें (उत्पत्ति 1:28-29)।

परमेश्वर की सृष्टि की आज्ञाओं का उद्देश्य था कि हम उसे स्वरूप और उसकी महिमा को प्रतिबिम्बित करें। उसके स्वरूप-धारण करने वाले उसके जैसे होने के लिए बनाए गए हैं। एक या दूसरे रूप में, सभी परमेश्वरीय आज्ञाओं में यह सिद्धान्त निहित है: “तुम मेरे स्वरूप में और मेरी समानता में हो। मेरे समान बनो!” यह उसकी आज्ञा में दिखाई देता है: “तुम पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ” (लैव्यव्यवस्था 19:2)।

इसमें यह निहित है कि परमेश्वर के स्वरूप को धारण करने वाले सृजे गए, मानो यंत्रस्थ किए गए, उसको प्रतिबिम्बित करने के लिए। हाँ, उनके लिए बाहरी नियम दिए गए हैं, किन्तु वे नियम उन “नियमों” के विशेष लागूकरण को प्रदान करते हैं जो परमेश्वरीय स्वरूप के अन्तनिर्हित हैं, ऐसी नियम जो पहले से उनके विवेक में हैं।

तब आदम और हव्वा के लिए स्वभाविक था परमेश्वर का अनुकरण करना, उसके जैसा बनना, क्योंकि वे उसके स्वरूप और समानता में बनाए गए थे—जैसे छोटा शेत अपने पिता आदम के समान स्वभाविक रीति से व्यवहार करता था, क्योंकि वह “उसकी समानता” में, “उसके स्वरूप के अनुसार” था (उत्पत्ति 5:3)। जैसा पिता, वैसा पुत्र।

परन्तु तब पतन आया: पाप, परमेश्वर के द्वारा प्रकट की गई व्यवस्था के साथ सहमति की कमी, और स्वरूप के विकृति के कारण आतंरिक मानव प्रवृत्ति में बिगड़ाव हुई। दर्पण जैसा स्वरूप परमेश्वर की  दृष्टि और उसके जीवन से फिर गया, और तब से सभी लोगों ने (ख्रीष्ट को छोड़कर) इस स्थिति में साझा किया है। प्रभु एक सा बना रहता है। उसके स्वरूप के लिए उसका उद्देश्य एक सा बना रहता है। किन्तु स्वरूप दूषित हो गया। पृथ्वी का उप-अधिकारी जिसको परमेश्वर ने धूल को एक वाटिका में बदलने के लिए बनाया था स्वयं धूल बन गया है:

तू अपने माथे के पसीने

की रोटी खाया करेगा,

और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा,

क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है।

तू मिट्टी तो है,

अत: मिट्टी में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति 3:19)

हम परमेश्वर के स्वरूप में बने रहते हैं, और नियम जो नियंत्रित करते हैं कि हम कैसे जिएं, वे अपरिवर्तित रहते हैं। परन्तु अब हम थके-मांदे, क्षीण, अन्दर से विकृत, बिगड़े, मृत्यु के सुगन्ध को लिए हुए हैं। एक समय क्रिया संचालन अधिकारी थे, किन्तु अब हम अवारा हैं जो केवल कम्पनी के स्वामी (यहोवा और पुत्र) से चोरी करके जीते हैं जिसने हमारे लिए उदारता से प्रदान किया। भीतरी व्यवस्था अभी भी कार्य करती है, किन्तु सबसे अच्छी स्थिति में वह अविश्वसनीय है, इसलिए नहीं क्योंकि व्यवस्था दोषी है, वरन् इसलिए क्योंकि हम दोषी हैं।

फिर जब गै़रयहूदी जिनके पास व्यवस्था नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्था की बातों का पालन करते हैं, तो व्यवस्था उनके पास न होने पर भी उस दिन वे अपने लिए आप ही व्यवस्था हैं – इस प्रकार वे व्यवस्था के कार्य अपने हृदय में लिखा हुआ दर्शाते हैं, और उनके विवेक भी साक्षी देते हैं, और उनके विचार कभी उन्हें दोषी या कभी निर्दोष ठहराते हैं।  (रोमियों 2:14-15, और देखें 7:7-25)

परन्तु परमेश्वर अपना चित्र—अपना स्वरूप—पुनः चाहता है। 

मूसा 

संक्षेप में, मूसा की व्यवस्था—दस आज्ञाओं में सारांशित—संविधान के पत्थर की पटियाओं पर एक पुनर्लेखन था, जो सृष्टि के समय में मनुष्यों के हृदय में लिखा गया। परन्तु अब व्यवस्था पतित मनुष्य के पास आई, और उसमें मनुष्यों की नई स्थिति को सम्बोधित करने के लिए पाप बलिदान सम्मिलित थे। यह एक विशिष्ठ राष्ट्र के एक विशेष भूमि पर आया। और यह उत्पत्ति 3:15 में प्रतिज्ञा किए गए छुटकारा देने वाले के समय तक आया। इसलिए, इसे व्यापक रीति से नकारात्मक सम्बन्धों में दिया गया, अतिरिक्त लागूकरण के साथ एक ही राष्ट्र में विशेष भूमि के लिए, उस दिन तक जब तक कि व्यवस्था के प्रारूप और बलिदान ख्रीष्ट में पूरे न हो जाएं।

व्यवस्था को “बाल्यावस्था” के रूप में लोगों को दिया गया (उत्पत्ति 3:23-4:5)—अधिकतर नकारात्मक रूप से। हम भी, अपने बच्चों को सिखाते हैं कि “पेचकस को बिजली के सॉकेट में न लगाएं!” इससे पहले कि हम उन्हें समझाएं कि बिजली कैसे काम करती है। यह सबसे सरल और सुरक्षित तरीका है उनकी रक्षा करने के लिए।

परन्तु यह पहले से ही स्पष्ट था पुरानी वाचा के विश्वासियों के लिए कि व्यवस्था की असहमतियों में सकारात्मक आदेशों अन्तर्निहित थे। “मेरे सामने कोई अन्य ईश्वर नहीं” नेगेटिव में निहित है परमेश्वर को सम्पूर्ण हृदय से प्रेम करने का तैयार रंगीन चित्र निहित है, और दो से चार आज्ञाओं में इस चित्र को देखते हैं। शेष आज्ञाएं ऐसे नेगेटिव थी, जिनको तैयार किया जाना था “अपने समान अपने पड़ोसी से प्रेम करो” में।

इसके अतिरिक्त, क्योंकि मनुष्य के पापों के बदले में जानवरों का बलिदान किया जाता था, वे स्पष्ट रूप से अनुपात में कम थे और वे पापों की क्षमा प्राप्त नहीं करा सकते थे जिसका चित्रण वे करते थे। एक पुरानी वाचा का विश्वासी इस को समझ सकता था लगातार दो दिन मन्दिर में जाकर जाने के द्वारा: याजक अभी भी वेदी के सामने खड़ा थे, पुनः बलिदानों को चढ़ाते हुए (इब्रानियों 10:1-4,11)। पर अन्तिम पर्याप्त बलिदान का अभी भी नहीं आया था।

और तब दस आज्ञाओं को समाज सम्बन्धी लागूकरण दिए गए देश के लोगों के लिए। परन्तु ये स्थानीय नियम परमेश्वर के लोगों के लिए उसी प्रकार कार्य नहीं करेंगे जब वे सभी राष्ट्रों में बिखरे होंगे। उसके राज्य की सुरक्षा और उन्नति अब उन पर निर्भर नहीं होगी।

यह सब अच्छी रीति से व्यक्त किया गया है वेस्टमिंस्टर विश्वास अंगीकार की शिक्षा में कि “नैतिक व्यवस्था” बनी हुई है, “रीति-विधि सम्बन्धित व्यवस्था” पूरी हो गई है, तथा “सामाजिक व्यवस्था” निरस्त कर दिया गया है, यद्यपि हम स्पष्ट रूप से अभी भी रीति-विधि सम्बन्धित तथा सामाजिक व्यवस्था से बहुत कुछ सीख सकते हैं (19:3-5)। एक पुरानी वाचा का विश्वासी इसे समझ सकता था, किन्तु कम स्पष्टता के साथ। क्योंकि, केवल दस आज्ञाओं को सन्दूक में रखा गया था, परमेश्वर के चरित्र और हृदय की अभिव्यक्ति के रूप में। हाँ, एक ही व्यवस्था थी क्योंकि जिस परमेश्वर ने व्यवस्था दी है वह भी एक है। परन्तु मूसा की व्यवस्था अखण्ड नहीं थी—यह बहुआयमी थी, जिसका एक आधार है और लागूकरण का क्षेत्र भी। इसका पहला भाग स्थायी था; बाद वाले भाग मध्यकाल के आयोजन थे आने वाले दिन के उदय तक।

पुरानी वाचा के विश्वासी वास्तव में व्यवस्था से प्रेम करते थे। वे उसमें आनन्दित थे। उनकी वाचा के परमेश्वर ने इतना देखभाल किया कि उसने उनके लिए अपने मूल निर्देशों को फिर से परिभाषित किया ताकि वे लोगों का मार्गदर्शन कर सकें पापियों के रूप में। पुरानी वाचा के विश्वासी जो दस आज्ञाओं तथा तोरह (व्यवस्था) को जानते थे और उसमें मनन करते थे, इसे अपने जीवन में उसे लागू करने की क्षमता में बढ़ते परमेश्वर की ओर से प्रत्येक प्रावधान में (भजन 1)। उसके सभी नियमों तथा अधिनियमों के साथ, परमेश्वर की व्यवस्था ने सुरक्षा और दिशा प्रदान की सम्पूर्ण जीवन के लिए।

अपने विश्वविद्यालय के प्रथम वर्ष के अन्त में, मैंने युवा अपराधियों के विद्यालय में पढ़ाया। उनके  जीवन बहुत प्रतिबन्धित थे। परन्तु मेरे लिए आश्चर्यजनक रूप से, वहाँ एक अद्भुत दल भावना थी, विद्यालय के प्रति एक गर्व और सामान्य निष्ठा। सर्वप्रथम, इस बात ने मुझे हैरान किया। और तब मैं  समझा कि ये लड़के जानते थे कि वे कहाँ हैं। वे सुरक्षित थे और बचे हुए थे स्वयं से तथा अपने हठधार्मिकता से। शिक्षकों ने उन्हें स्नेह के साथ अनुशासित किया। सम्भवत: उनके जीवन में पहली बार, उन्हें नियमित भोजन मिल रहा था। हाँ, नियमों ने कभी-कभी उन्हें परेशान किया—क्योंकि वे पापी तो थे। परन्तु वे सुरक्षित थे। उनमें से कुछ ने गलतियां की, केवल स्कूल में पुनः आने के लिए। मैं समझ गया कि क्यों मैं भी इसे अनदेखा नहीं कर सकता। वहाँ उनके पास देखभाल और सुरक्षा थी।

पौलुस गलातियों अध्याय 3 और 4 में कुछ इसी प्रकार का उदाहरण उपयोग करता है। पुरानी वाचा के विश्वासी नाबालिक उत्तराधिकारी थे, मूसा की व्यवस्था के प्रतिबन्धित वातावरण में रहते हुए। किन्तु अब ख्रीष्ट में, छुटकारे का इतिहास वयस्क हो गया है। स्वत्रन्त्रता का एक नया पहलू है। अब आपको तिथिपत्री में यह देखने की आवश्यकता नहीं है कि क्या यह कोई पवित्र दिन है। अब आपको भोजन की जांच करने तथा कपड़ों पर नाम-पत्र देखने की आवश्यकता नहीं है। अब आपको मन्दिर में और अधिक बलिदान लाने की आवश्यकता नहीं है। अब जबकि ख्रीष्ट आ गया है, हमें सुधार विद्यालय से बाहर छोड़ दिया गया है। “इस प्रकार ख्रीष्ट तक पहुंचाने के लिए व्यवस्था हमारी शिक्षक बन गई है जिस से हम विश्वास द्वारा धर्मी गिने जाएं” (गलातियों 3:24)। फिर भी, सहायता करने वाली व्यवस्था—यह क्यों बदलेगी? हम उसी पिता के प्रति कम आज्ञाकारी क्यों होंगे?

हम पहले से ही देख रहे हैं कि हम यीशु के बारे में सोचे बिना, मूसा की व्यवस्था को पूरी रीति से नहीं समझ सकते हैं। परन्तु परमेश्वर अपने चित्र पुनः पाने की इच्छा रखता है।

यीशु 

यीशु आया एक नए और सच्चे मनुष्यत्व को पुन: बनाने के लिए जो चिन्हित होगा प्रभु के लिए एक पुन:स्थापित आन्तरिक प्रेम और उसके जैसा बनने की इच्छा से। व्यवस्था स्वयं हम में इसे पूरा नहीं कर सकती है। यह करने के लिए क्षमा, छुटकारा, और शक्ति की आवश्यकता है। और इसे परमेश्वर प्रदान करता है ख्रीष्ट में आत्मा के द्वारा।

क्योंकि जो काम व्यवस्था, शरीर के द्वारा दुर्बल होते हुए, न कर सकी, उस काम को परमेश्वर ने किया; अर्थात, अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में तथा पाप के लिए बलिदान होने को भेज कर, शरीर में पाप को दोषी ठहराया, जिससे कि व्यवस्था की मांग हम में पूरी हो सके जो शरीर के अनुसार नहीं, परन्तु आत्मा के अनुसार चलते हैं (रोमियों 8:3-4)।

सम्भवत: क्योंकि वह जानता था कि लोग उसकी शिक्षा से गलत निष्कर्ष निकालेंगे (उन्होंने किया), यीशु ने समझाया कि वह व्यवस्था को नष्ट करने नहीं परन्तु पूर्ण करने आया। वह पूरी तरह से उस “ढाँचे” को भर देगा जिसे मूसा ने दिया था (मत्ती 5:17-21)। उसने स्पष्ट कर दिया कि उसका उद्देश्य था हम में परमेश्वर के चित्र और स्वरूप को पुनः स्थापित भी करना (मत्ती 17:21-48)। जैसा कि हम जानते हैं, उसने तुलना की एक श्रृंखला प्रस्तुत करता है। पर उसके शब्द इस प्रकार नहीं थे कि “लिखा है . . . परन्तु मैं कहता हूँ . . .”; बल्कि इस प्रकार थे “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था . . . परन्तु मैं तुमसे कहता हूँ . . .”। वह अपनी शिक्षा की तुलना परमेश्वर की व्यवस्था से नहीं, वरन् रब्बियों की व्याख्या और उसके तोड़ने -मरोड़ने से कर रहा था।

फिर भी, नई वाचा में एक महत्वपूर्ण अन्तर है। मूसा परमेश्वर के सांसारिक पर्वत पर चढ़ गया और पत्थर की पटियाओं पर लिखे व्यवस्था के साथ नीचे आया। पर बाद में, उसने एक लालसा व्यक्त की कि यहोवा के सभी लोगों के पास आत्मा हो (गिनती 11:29)। मूसा की व्यवस्था इसकी आज्ञा दे सकती थी पर सामर्थ्य नहीं दे सकती थी। इसके विपरीत, यीशु परमेश्वर के स्वर्गीय पर्वत पर चढ़ गया और आत्मा में नीचे आया हमारे हृदयों पर अपनी व्यवस्था लिखने के लिए।


इब्रानियों की पुस्तक दो बार स्पष्ट रूप से यह बताती है यिर्मयाह 31:31 को उद्धरण करते हुए (इब्रानियों 8:10; 10;16—यहाँ जो “व्यवस्था” है वह केवल दस आज्ञाओं की ही बात हो सकती है)। व्यवस्था के प्रभु ने अपने आत्मा के द्वारा हमारे हृदयों में प्रभु की व्यवस्था को पुन: लिखा है। भीतर से व्यवस्था का पालन करने वाले यीशु के आत्मा के द्वारा सामर्थ्य पाकर हम व्यवस्था से प्रेम करते हैं क्योंकि हम प्रभु से प्रेम करते हैं। जैसे पुरानी वाचा में जीवन का सिद्धान्त था “ मैं जो तुमसे प्रेम करता हूँ पवित्र हूँ, बदले में मुझ से प्रेम करो और पवित्र बनो,” वैसे ही नई वाचा में जीवन के सिद्धान्त को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: “परमेश्वर का पुत्र यीशु परमेश्वर का प्रतिरूप है हमारे मानव स्वभाव में; इसलिए ख्रीष्ट के समान हो जाओ।” क्योंकि, हमारा ख्रीष्ट के समान बनना सदैव हमारे लिए परमेश्वर पिता का अन्तिम लक्ष्य रहा है।

क्योंकि जिन के विषय में उसे पूर्व-ज्ञान था, उसने उन्हें पहिले से ठहराया भी कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हो जाएं, जिससे कि वह बहुत से भाइयों में पहलौठा ठहरे; फिर जिन्हें उसने पहिले से ठहराया है, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।  (रोमियों 8:29-30)

परमेश्वर की व्यवस्था से प्रेम करना

“आपको व्यवस्था से प्रेम करना है” के दो अर्थ हैं। आपको इससे प्रेम करना है—यह एक आज्ञा है। पर साथ ही साथ “आपको इससे प्रेम करना है” क्योंकि यह इतना अच्छा है। निश्चित रूप से यह है। यह आपके स्वर्गीय पिता से एक उपहार है। यह आपको सुरक्षित और अच्छी रीति से रखने और आपको सुरक्षा प्रदान करने और जीवन को संवारने में सहायता करने के लिए है। वेस्टमिंस्टर छोटी धर्मप्रश्नोत्तरी (या फिर उससे अच्छा वेस्टमिंस्टर बड़ी धर्मप्रश्नोत्तरी) को लें और आज्ञाओं के विषय में भाग को पढ़ें। वहाँ आप सीखेंगे कि जीवन के खेल के नियमों का उपयोग कैसे करें और कैसे लागू करें। वे गॉल्फ के नियमों को समझने में बहुत सरल हैं। जब यीशु ने कहा, “यदि तुम मुझ से प्रेम करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे” (यूहन्ना 14:15), वह अपने पिता के शब्दों को दोहरा रहा था। वास्तव में, यह सरल है, फिर भी सब कुछ की मांग करता है। जैसे जॉन एच. सैमिस के भजन व्यक्त करता है: 

भरोसा रखें और आज्ञा मानें, क्योंकि यीशु में आनन्दित रहने के लिए भरोसा करने और आज्ञा मानने से हटकर कोई और मार्ग नहीं है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।