क्या याकूब 2:24 केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने को नकारता है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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क्या याकूब 2:24 केवल विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने को नकारता है?

यह प्रश्न मात्र आज ही महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु यह उस आँधी के बीच में भी महत्वपूर्ण था जिसे हम प्रोटेस्टेन्ट धर्म-सुधार कहते हैं, जिसने हिलाया और विभाजित किया ख्रीष्टिय कलीसिया को सोलहवीं शताब्दी में। मार्टिन लूथर ने अपने मत की घोषणा की: धर्मी ठहराया जाना मात्र विश्वास ही से होता है, हमारे कार्य कुछ भी नहीं जोड़ते हैं धर्मी ठहराए जाने में, और हमारे पास परमेश्वर को देने के लिए ऐसा कोई भी गुण नहीं है जो किसी भी रीति से हमारे धर्मी ठहराये जाने को सुधार सके। इसने सबसे बड़ी फूट उत्पन्न की ख्रीष्टिय इतिहास में।

लूथर के पक्ष को अस्वीकार करने में, रोमन कैथोलिक कलीसिया ने उसे कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया, फिर प्रोटेस्टेन्ट आन्दोलन के विस्तार के प्रतिउत्तर में एक प्रमुख कलीसियाई सभा, अर्थात् ट्रेन्ट की महासभा को आयोजित किया, जो तथाकथित प्रतिकूल-धर्मसुधार का भाग थी और सोलहवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। ट्रेन्ट के छठे सत्र ने, जिसमें धर्मी ठहराए जाने और विश्वास के लिए अधिनियम तथा उद्घोषणाएं स्पष्ट की गई, विशेष रूप से याकूब 2:24 के आधार पर प्रोटेस्टेन्टवादियों को फटकार लगाया जो कि कहते थे कि वे मात्र विश्वास से ही धर्मी ठहराए गए थे: “तुम देखते हो कि मनुष्य केवल विश्वास से नहीं वरन् कार्यों से धर्मी ठहराया जाता है।” याकूब इस बात को और अधिक स्पष्ट रूप से कैसे कह सकता है? ऐसा लगता है कि यह पद लूथर को सदा के लिए पराजित कर देगा।

निश्चय ही, मार्टिन लूथर बहुत अच्छी रीति से जानता था कि यह पद याकूब की पुस्तक में था। लूथर रोमियों को पढ़ रहा था, जहाँ पौलुस बहुत स्पष्ट करता है कि व्यवस्था के कार्यों के द्वारा कोई मनुष्य धर्मी नहीं ठहरता है और कि हम विश्वास के द्वारा और मात्र विश्वास के माध्यम से ही धर्मी ठहराए जाते हैं। यहाँ क्या हो रहा है? कुछ विद्वान कहते हैं कि यहाँ पौलुस और याकूब के बीच एक कट्टर विरोधात्मक संघर्ष है, कि याकूब पौलुस के बाद लिखी गई थी, और याकूब ने पौलुस को सही करने का प्रयास किया। दूसरे लोग कहते हैं कि पौलुस ने याकूब के बाद रोमियों को लिखा और वह याकूब को सही करने का प्रयास कर रहा था।

मैं निश्चित हूँ कि यहाँ वास्तव में कोई द्वन्द नहीं है। याकूब यह कह रहा है: यदि कोई व्यक्ति कहता है कि उसके पास विश्वास है, पर वह धर्मी कार्यों के माध्यम से उस विश्वास का कोई बाहरी प्रमाण नहीं देता है, तो उसका विश्वास उसे धर्मी नहीं ठहराएगा। मार्टिन लूथर, जॉन कैल्विन, या जॉन नॉक्स याकूब के साथ पूर्णतः सहमत होंगे। हम विश्वास के अंगीकार या विश्वास का दावा करने के द्वारा उद्धार प्राप्त नहीं करते हैं। उस विश्वास का वास्तविक होना आवश्यक है इससे पहले कि ख्रीष्ट के गुण को किसी पर हस्तांतरित किया जाए। आप मात्र कह नहीं सकते कि आपके पास विश्वास है। सच्चा विश्वास निश्चित रूप से और आवश्यक रीति से फल देगा आज्ञाकारिता और धार्मिकता के कार्यों का। लूथर कह रहा था कि वे कार्य उस व्यक्ति के धर्मी ठहराए जाने में कुछ नहीं जोड़ते हैं परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सम्मुख। परन्तु वे मनुष्य की आँखों के सामने उसके विश्वास करने के दावे को सही ठहराते हैं। याकूब कह रहा है, ऐसा नहीं है कि एक व्यक्ति परमेश्वर के सामने अपने कार्यों के द्वारा धर्मी ठहरता है, परन्तु यह कि उसके विश्वास करने का दावा तब सच्चा दिखता है जब वह प्रमाण को प्रकट करता है उस विश्वास के दावे को अपने कार्यों के द्वारा।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़् ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।
आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।