कलीसिया में पक्षपात - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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कलीसिया में पक्षपात

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का नौववा अध्याय है: दो जगत के मध्य

ऐसा प्रतीत होता है कि आरम्भिक कलीसिया में पक्षपात एक समस्या थी, क्योंकि अधिक धन या प्रतिष्ठा वाले लोगों के साथ अन्य लोगों की तुलना में बेहतर व्यवहार किया जाता था। प्रेरित याकूब ने अपने पत्री में इस आवेग के विरुद्ध बात की है:

हे मेरे भाईयों, हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु ख्रीष्ट पर तुम्हारा विश्वास एक दूसरे के प्रति पक्षपात की भावना से न हो। यदि कोई मनुष्य सोने की अंगूठी और मूल्यवान वस्त्र पहने तुम्हारी आराधना-सभा में आए, उसमें एक निर्धन भी मैले कुचैले कपड़े पहने चला आए, और तुम उस मूल्यवान वस्त्र पहने हुए व्यक्ति की ओर विशेष ध्यान देकर कहो, “आप यहाँ इस अच्छी जगह पर बैठिए,” और उस निर्धन से कहो, “तू वहाँ खड़ा हो जा या मेरे पैर के पास बैठ,” तो क्या तुमने आपस में भेदभाव न किया और बुरे उद्देश्य से न्याय करने वाले न ठहरे? (याकूब 2:1-4)

वह आगे कहता है,

फिर भी, पवित्रशास्त्र के अनुसार यदि तुम उस राजकीय व्यवस्था को कि “तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” पूरा करते हो तो ठीक ही करते हो। परन्तु यदि तुम पक्षपात करते हो तो पाप करते हो और व्यवस्था तुम्हें अपराधी ठहराती है (पद 8-9)।

पक्षपात का आरम्भिक समाधान

यह रोचक है कि, आरम्भिक बारह प्रेरितों में से, चार मछुए थे और एक चुंगी लेने वाला, और हमें यह नहीं पता कि ख्रीष्ट द्वारा बुलाए जाने से पहले अन्य  चेले क्या करते थे। प्रभु ने उन “अशिक्षित” चेलों का उपयोग विश्वव्यापी कलीसिया के निर्माण में उत्प्रेरक बनने के लिए किया। इसकी कुंजी विश्वासयोग्यता, पवित्र आत्मा का कार्य, और ख्रीष्ट का प्रचार और उसका क्रूस पर चढ़ाया जाना था। प्रेरितों के काम की पुस्तक की सुन्दरता है कलीसिया को सर्वप्रथम यरुशलेम, फिर यहूदिया और सामरिया, और फिर पूरे रोमी साम्राज्य और उसके आगे बढ़ता हुआ देखना।

एक ऐसी घटना थी जिसने लगभग कलीसिया को विभाजित कर दिया था और कुछ समय के लिये गहरा दुख दिया था—यह पक्षपात से ही उत्पन्न हुई थी। यह प्रेरितों के काम 6 में अभिलिखित है, जहाँ यूनानी भाषा बोलने वाली विधवाओं (Hellenist widows) की कलीसिया द्वारा उपेक्षा की जा रही थी:

उन दिनों में जब चेलों की संख्या बढ़ रही थी तब यूनानी भाषा बोलने वाले यहूदियों का इब्रानी बोलनेवाले यहूदियों से यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि प्रतिदिन भोजन-वितरण में हमारी विधवाओं की उपेक्षा की जाती है (पद 1)।

यूनानी भाषा बोलने वाली विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार सम्भवतः अनजाने में था, परन्तु इब्रानी विधवाओं की देख-रेख हो रही थी और यूनानी भाषी विधवाओं की नहीं। इसने पक्षपात को दिखाया, और जब हम पक्षपात करते हैं तो हम किसी को खो देते हैं। इस समस्या का समाधान था सात विश्वास के पुरुषों का चुनाव करना जो इन महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करें, इसलिए धर्म-सेवकों के पूर्ववर्तियों को नियुक्त किया गया कि निर्धन और बीमारों की सेवा करें, पहले परमेश्वर के परिवार में और फिर उन लोगों का जो विश्वास के बाहर हैं (गलातियों 6:10)।

लोगों का महत्व

कलीसिया एक समाज है जिसमें सभी को सम्मिलित करने के लिए बनाया गया है। हमें सर्वप्रथम अपने पूरे हृदय, बुद्दि, प्राण, और शक्ति से प्रभु से प्रेम करने की आज्ञा दी गयी है (मरकुस 12:30)। परमेश्वर के लिए इस प्रेम से अपने भाईयों और पड़ोसियों के लिए प्रेम प्रवाहित होता है (1 यूहन्ना 4:21)। परमेश्वर लोगो के स्तर के अनुसार उनका सम्मान करने वाला नहीं है; वह अनुग्रह की वाचा में किसी प्रकार का पक्षपात नहीं दिखाता है। तो फिर, हम क्यों लोगों के स्तर का अनुमान लगाते हैं?       

किसी के विषय में पूर्वधारणा रखने का अर्थ है उसकी योग्यता और अयोग्यता का निर्धारण करना। सामान्यतः जिन लोगों को अधिक महत्व दिया जाता है वे वो लोग हैं जो प्रतिभाशाली शिक्षक, धनी सदस्य, और वह युवा परिवार जो बच्चों को लाएगा या अन्य युवा परिवारों को लाए होते हैं। वह आभावग्रस्त व्यक्ति जो अधिक समय लेता है और जिसे अत्याधिक शिष्यता की आवश्यकता होती है उन्हें प्रायः कलीसिया में शीघ्र सहायता नहीं मिलती है। उस वृद्ध विधवा/विधुर के लिए फिर क्या स्थान रह जाता है? वह सम्भवतः आपका सबसे उत्तम प्रार्थना योद्धा और आंगतुकों का गर्मजोशी के साथ अभिवादन करने वाला हो सकती या सकता है। एक पवित्रजन जो सत्तर या उससे अधिक आयु का है जिसने अपने सम्पूर्ण जीवन में प्रभु का अनुसरण किया और उसके महिमा के लिए जिया वह परमेश्वर की आशीषों और उसके पवित्र लोगों के लिए उसके दृढ़ प्रेम की एक शक्तिशाली साक्षी है। हमारी कलीसिया में वे बच्चे जिनके अपने जैविक परिवार में विश्वासी दादा-दादी नहीं हैं, कलीसिया के वृद्ध पवित्र लोग उस भूमिका में बड़े स्तर पर कदम रखते हैं। एकल जो नए आगंतुकों से मित्रता करते हैं, वृद्धों की सहायता करते हैं, और मिशन के लिए अपना समय देते हैं या कार्य परियोजनाओं में भाग लेते हैं, वे ख्रीष्ट की देह के लिए अत्याधिक महत्व रखते हैं।

एक देह, कई भाग

रोमियों 12 हमें सिखाता है कि हमें समझना है कि भिन्न लोगों के भिन्न उपहार होते हैं, परन्तु हम सब ख्रीष्ट की देह के भाग हैं। हाथ को आँख या कान या पैर का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। हम सब महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि हम ख्रीष्ट के मुकुट की मणियाँ बनते हैं (मलाकी 3:16-18)। हम सरलता से उस नए व्यक्ति के पक्ष में हो सकते हैं, जिसके लिए हम सोचते हैं कि वह मण्डली के जीवन के लिए कुछ अद्भुत और अत्यावश्यक ला सकता है। हम किसी छात्र या सेवानिवृत्त या युवा के स्थान पर किसी निपुण व्यवसायी या शिक्षक की सराहना कर सकते हैं।

क्या आप स्वर्ग में पक्षपात की कल्पना कर सकते हैं? क्या इक्कीसवीं शताब्दी के पवित्र लोग सातवीं शताब्दी के सरल पवित्र लोगों के साथ संगति करने से बचेंगे? यह एक अनरर्थक चित्र बनाता है, है न? तो, वर्तमान में उस अनर्थकता का अभ्यास क्यों करें? मसीही ख्रीष्ट के स्वरूप में नए किए गए हैं, और इसलिए हम सभी लोगों को उनके स्तर, परिस्थिति, या इतिहास पर ध्यान दिए बिना उन्हें स्वीकार कर सकते हैं, और उन्हें स्वीकार करने के लिए बुलाए गए हैं। यीशु ख्रीष्ट पृथ्वी पर अपनी सेवकाई में इस्राएल में सब स्थान पर गए। उन्होंने विश्वासियों और गैर-विश्वासियों दोनों की सेवा की। उन्होंने सभी पर दया और करुणा दिखाई। उन्होंने कोई पक्षपात नहीं किया, क्योंकि परमेश्वर पक्षपात नहीं करता (गलातियों 2:6)।

हम परमेश्वर के परिवार में गोद लिए गए हैं। यदि हम सच्चे विश्वासी हैं तो परमेश्वर हमसे प्रेम करता है। क्या हमारा प्रेम निष्पक्ष नहीं होना चाहिए उन लोगों के लिए जिन्हें ख्रीष्ट की आवश्यकता है, और विशेषकर विश्वास के घराने के लोगों के लिए?  

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

रेव्ह कैन्ट बटरफील्ड
रेव्ह कैन्ट बटरफील्ड
रेव्ह कैन्ट बटरफील्ड दुर्हम, नॉर्थ केरोलिना में फर्स्ट रिफॉर्मड प्रेस्बिटेरियन चर्च ऑफ दुर्हम के पास्टर हैं।