सुसमाचारों का सुसमाचार - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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सुसमाचारों का सुसमाचार

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवा अध्याय है: सुसमाचार

बिना विलम्ब करे बताइए। सुसमाचार क्या हैं? समय समाप्त। क्या आपने उत्तर दिया: “सुसमाचार यीशु ख्रीष्ट की जीवनी हैं? जब हम सुसमाचरों को केवल जीवनी के रूप में पढ़ते हैं, तो मूल रूप से हम मुहावरे के अनुसार वृक्षों को इतना अधिक ध्यान देते हैं कि हम वन को ही नहीं देखते हैं। उन्हें इसे उत्तर रीति से पढ़ा और सुना जा सकता है। सुसमाचार जीवनी हैं, परन्तु वे इस्राएल के राजा के आगमन और पूरे पृथ्वी पर उसके राज्य के उद्घाटन की घोषणा करने के उद्देश्य से लिखे गाए यीशु ख्रीष्ट के जीवन की ईश्वरविज्ञानी व्याख्याएँ हैं।

जब इन्हें इस प्रकार से पढ़ा जाता है, तो हम सुसमाचारों में सुसमाचार को भविष्यद्वकताओं की प्रतिज्ञाओं की परिपूर्ति की घोषणा के रूप में पढ़ने में सक्षम होते हैं। उनकी प्रतिज्ञाओं में से एक था कि एक राजा इस्राएल में आएगा, जैसा कि प्रभु ने इब्राहीम से (उत्पत्ति 17:6), यहूदा से (उत्पत्ति 49:10), दाऊद से (2 शमूएल 7:12-13), और सुलैमान के गीत (भजन 72) और जकर्याह की भविष्यद्वाणी (जकर्याह 9:9) के माध्यम से परमेश्वर के लोगों से प्रतिज्ञा की। जब यह राजा आएगा, वह सभी जातियों के लिए शान्ति के राज्य में प्रवेशक का कार्य करेगा (यशयाह 2:2-4; 9:1-7)। हम इस आने वाले राजा और उसके राज्य को जीवन्त रंग में सुसमाचार वृतान्तों में देखते हैं।

राजा और उसके राज्य का प्रवेश हमारे प्रभु के जन्म के वृतान्त में व्यक्त किया गया है। यीशु की वंशावली में उसे “दाऊद के पुत्र” के रूप में वर्णित किया गया है (मत्ती 1:1)। इब्राहीम से दाऊद तक की चौदह पीढ़ियाँ इस्राएल के महान राजा और राज्य की ओर बढ़ीं (1:2-6), जबकि दाऊद से बेबीलोन तक की चौदह पीढ़ियाँ उस महिमावान राजा के राज्य से दूर हो गयीं (1:7-11)।  यीशु के आने से बेबीलोन से ख्रीष्ट तक की चौदह पीढ़ियाँ दाऊद के राजत्व और राज्य की पुनर्स्थापना है (1:12-16)। इस बालक की वास्तविक पहचान “पूर्व दिशा के ज्योतिषियों” की यात्रा द्वारा दिखाई जाती है (2:1), जिन्होंने “यहूदियों के राजा जिसका जन्म हुआ है” को खोजने के लिए यात्रा की जिससे कि वे उसे “दण्डवत कर सकें” (2:2)।

यूहन्ना ने इस राजा के आगमन की घोषणा की, यह प्रचार करते हुए, “स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है” (3:2),   जबकि आराधनालय में हमारे प्रभु के स्वयं का प्रचार उसके राज्य की एक घोषणा के द्वारा चित्रित होता है (4:17)। अपनी पूरी सेवकाई में यीशु ने “राज्य के सुसमाचार” का प्रचार किया (4:23; 9:35; लूका 16:16), एक वाक्यांश जिसका अर्थ है कि सुसमाचार का विषय राज्य है। हमारे प्रभु ने अपने दृष्टान्तों का प्रचार अपने चेलों को “स्वर्ग के राज्य के भेदों” को बताने के लिए किया (मत्ती 13:11; साथ ही देखें 19, 24, 31, 33, 38, 41-45, 47,52)। यीशु ने राजा के रूप में अपनी पहचान को फरीसियों को उलझन में डालने के लिए उपयोग किया, उनसे यह पूछते हुए: “ख्रीष्ट के बारे में तुम क्या सोचते हो? वह किसका पुत्र है? उन्होंने उससे कहा,  ‘दाऊद का’” (22:42)। फिर यीशु भजन 110 में यह इंगित करता है, दाऊद,”आत्मा में उसे [ख्रीष्ट को] प्रभु कहता है, ‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा’” (मत्ती 22:43-44a)। यीशु का निष्कर्ष निर्विवादित था, जिसने फरीसियों को अवाक् कर दिया: “यदि दाऊद उसे प्रभु कहता है तो वह उसका पुत्र कैसे हुआ?” (22:45)।

दुख-भोग का वृतान्त भी राजा और उसके राज्य के बारे में है, न कि किसी जीवनी के दुखद अन्त के बारे में। जब महायाजक काइफा यीशु से पूछताछ करता है, वह कहता है, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र ख्रीष्ट है तो हमसे कह दे” (26:63)। यीशु ने उत्तर दिया, “तू ने स्वयं ही कहा। फिर भी मैं तुझसे कहता हूँ कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान के दाहिनी ओर बैठा हुआ और स्वर्ग के बादलों पर आता हुआ देखोगे”(26:64)। फिर भी यह राजा पहले उपहास को सहेगा: “हे यहूदियों के राजा,” उसकी पीठ पर गाढ़े लाल रंग का चोगा, सिर पर कांटों का मुकुट, और हाथों में सरकण्डा (27:28-29)। यहाँ तक कि उसके सिर के ऊपर एक दोषपत्र लगाया: “यह यहूदियों का राजा यीशु है” (27:37)। फिर भी जैसा कि यूहन्ना का सुसमाचार स्पष्ट करता है, निन्दा के माध्यम से हमारे प्रभु ने उत्कर्षता का अनुभव किया: :और मैं, यदि मैं पृथ्वी पर से ऊँचे पर चढ़ाया जाऊँगा, तो सब लोगों को अपने पास खींचूँगा” (यूहन्ना 12:32)।

निस्सन्देहः, हमारे प्रभु का पुनरुत्थान उसके राजत्व और राज्य सुसमाचार का सबसे शक्तिशाली प्रमाण है: “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है” (मत्ती 28:18)। जैसा कि याकूब ने यरूशलेम की महासभा में कहा, इसका कारण था कि पुनरुत्थान, दाऊद के गिरे हुए तम्बू को खड़ा करना है (प्रेरितों के काम 15:13-18; आमोस 9:11-12 देखें)। राजा आ चुका है और उसने अपने राज्य को स्थापित किया है जैसा कि भविष्यद्वक्ताओं ने पहले से ही बता दिया था।

सुसमाचार पढ़ने के इस रीति को हमारे लिए क्या करना चाहिए? पहला, यह हमारे सुसमाचार पढ़ने की तत्परता का कारण होना चाहिए, क्योंकि राजा आ चुका है और उसका राज्य निकट है। मरकुस के विशिष्ट शब्द, तुरन्त ही, हमें पढ़ने और इसके सन्देश को समझने का प्रभाव दिखाता है (1:12, 18, 21, 23, 29, 42)। दूसरा, चूंकि सुसमाचार केवल जीवनियाँ नहीं हैं, वे दूर से पढ़ने के लिए नहीं हैं, जैसे कि वे केवल “बहुत पहले, बहुत-बहुत दूर” की कहानियाँ हों। हमें इन वृतान्तों में विश्वास के साथ भागीदारी लेनी चाहिए: “यीशु ने बहुत से अन्य चिन्ह भी चेलों के सामने दिखाए जो इस पुस्तक में नहीं लिखे गए हैं, परन्तु ये जो लिखे गए हैं इसलिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र ख्रीष्ट है, और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ” (यूहन्ना 20:30-31)। तीसरा, प्रचारकों को सुसमाचार को एतिहासिक शिल्पाकृति के समान नहीं, विजयी मसीही जीवन के सिद्धान्तों के रूप में नहीं, न ही पवित्र सप्ताह की सभाओं की बाहरी दिखावट के रूप में प्रचार करने की आवश्यकता है, परन्तु एक अनन्त जीवन के आरम्भ के तत्काल कारणों के रूप में करने की आवश्यकता है जिसे हमारे राजा ने इस संसार में स्थापित किया है। सेवकों को सुसमाचार को सुसमाचारों में से प्रचार करना चाहिए और उन्हें नई व्यवस्था के नियमों में उन्हें नहीं परिवर्तित करना चाहिए।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
डैनियल आर. हाय्ड
डैनियल आर. हाय्ड
रेव डैनियल आर. हाय्ड ओशनसाइड कैलिफॉर्निया में ओशनसाइड युनाइटेड रेफॉर्म्ड चर्च के पास्टर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें गॉड इन अवर मिड्स्ट (God in Our Midst) और वेलकम टु अ रिफॉर्म्ड चर्च (Welcome to a Reformed Church) सम्मिलित हैं।