पूर्ण आत्मसमर्पण - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पूर्ण आत्मसमर्पण

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का सातवा अध्याय है: सुसमाचार

गैरी थॉमस अपनी पुस्तक सीकिंग द फेस ऑफ गॉड (Seeking the Face of God – परमेश्वर के मुख की खोज), में यह कथन करते हैं: “मसीही स्वास्थ्य इस बात से परिभाषित नहीं होता कि हम कितने प्रसन्न हैं, हम कितने समृद्ध या स्वस्थ्य हैं, या फिर पिछले वर्षों में हम कितने लोगों को प्रभु के पास लाए हैं। मसीही स्वास्थ्य अन्ततः इस बात से परिभाषित किया जाता है कि हम कितनी निष्ठा से अपने आत्मसमर्पण करते हैं।” उसके कहने का अर्थ यह है: अपने आत्मिक स्वास्थ्य को मापने का एक प्रमुख रीति यह निर्धारित करना है कि हम परमेश्वर के प्रति कितना आत्मसमर्पण किया है। मेरा मानना है कि स्वस्थ्य, फलदायक मसीही जीवन जीने में हमारे कई बड़े संघर्ष इसलिए आते हैं क्योंकि हमारी इच्छा नहीं है कि हम परमेश्वर के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण करें। हमारी कलीसियाएँ ऐसे लोगों से भरी हुई हैं जो ख्रीष्ट के प्रति अपने आत्मसमर्पण में प्रगतिशील रूप से नहीं बढ़ रहे हैं; इसलिए, हमारी कई कलीसियाएँ आत्मिक रूप से अस्वस्थ हैं। अस्वस्थ कलीसियाएँ स्वयं पर केन्द्रित रहती हैं, वे सभी जाति के लोगों से ख्रीष्ट के चुने हुओं के उद्धार और पवित्रीकरण में उसकी महिमा से अधिक भवन और पूंजी के आकार के लिए अधिक चिन्तित रहती हैं।

मैं एक अमरीकी हूँ, वास्तव में एक अफ्रीकी अमरीकी; मुझे आत्मसमर्पण की अवधारणा से समस्या है। अमरीकी आत्मसमर्पण नहीं करते हैं। आत्मसमर्पण का अर्थ है निर्बलता। इसका अर्थ है पराजय। इसका अर्थ है मैंने हार मान ली, है न? परमेश्वर के प्रति आत्मसमर्पण करना उनके लिए भी चुनौती है जो महिमा के प्रभु, यीशु ख्रीष्ट को जान चुके हैं।

सर्वप्रथम, आइए हम उस प्रकार के आत्मसमर्पण की जाँच करें जिसके लिए मैं मानता हूँ कि प्रभु बुलाता है और फिर उसके पश्चात् उसके मार्ग की जाँच करें। रोमियों 12:1-2 वह खण्ड है जिसने मुझे इस पर विचार करने में सहायता की है। परमेश्वर ने हमें हमारे शरीरों को जीवित बलिदान के रूप में समर्पित करने के लिए बुलाता है। हमसे हमारे शरीरों को परमेश्वर को “समर्पित” करने के आग्रह के द्वारा, प्रेरित कह रहा है कि कि प्रत्येक मसीही एक याजक है — एक विश्वासी-याजक। यह कुछ नई बात नहीं है, क्योंकि हम देखते हैं कि पुरानी वाचा के लोगों को निर्गमन 19:6 में “याजकों का राज्य” के रूप में सन्दर्भित किया गया है। नई वाचा के लेखक, जैसे 1 पतरस 2:9 में इसे पुनः लेकर आते हैं, जहाँ कलीसिया “राजकीय याजकों का समाज” है। परमेश्वर के सम्मुख खड़े होने वाले याजकों के रूप में, हमें प्रायश्चित करने के लिए नहीं परन्तु प्रायश्चित के प्रत्युत्तर के रूप में उसके पास कुछ लेकर जाना चाहिए। हम क्या प्रस्तुत करते हैं? हमारे पास केवल हम स्वयं ही हैं। परमेश्वर उस आत्मसमर्पण को चाहता है जो उसके प्रति हमारे शरीरों का आत्मसमर्पण है। वह चाहता है कि हमारे जीवन और हमारे पास जो कुछ भी है वह सब परमेश्वर के अधिकार के अधीन होना चाहिए। पौलुस ने रोमियों 6:12-19 में हमारे शरीरों के अंगों को “धार्मिकता के हथियार” के रूप में सौंपने के विषय में बात की है। हमें अपने पैरों, हाथों, कानों, और मनों को परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए अब और नहीं देना है। क्योंकि ख्रीष्ट के द्वारा हमारा धर्मीकरण हो गया है, हमें अपने शरीरों के सभी अंगों को वह करने के लिए समर्पित करना चाहिए जो परमेश्वर कि दृष्टि में भला है। पौलुस सामूहिक रूप से इस कार्य के विषय में अध्याय 12 में बात करता है, यह दिखाते हुए कि यह पूर्ण आत्मसमर्पण है, और कुछ नहीं छूटा है। हमारे जीवन का कोई भी पहलू यीशु ख्रीष्ट के द्वारा परमेश्वर की भक्ति से बाहर होना नहीं है।

वह हमारी भेंटो को जीवित और पवित्र होने के लिए बुलाता है। ध्यान दें, परमेश्वर एक मृत बलिदान नहीं चाहता है; उसे जीवित बलिदान चाहिए। वह चाहता है कि उसके लोग उसके प्रति आनन्दमय आत्मसमर्पण करें, और सांसारिक कार्यों के स्थान पर, अपना आनन्द उसमें पाएँ। स्वाभाविक रूप से, क्योंकि हमारा प्रभु परमेश्वर पवित्र है, उसको प्रस्तुत करने वाली भेंट को भी पवित्र होनी चाहिए — शुद्ध और केवल उसकी सेवा के लिए समर्पित। जैसे परमेश्वर के लोग नम्रता से स्वयं को पवित्रता में अर्पित करते हैं, पौलुस कहता है कि हमारी कलीसियाएँ अधिक मात्रा में “आत्मिक आराधना” का अनुभव करेंगी। हम आराधना के तत्वों के लिए कैसे आपस में संघर्ष करते हैं! कुछ लोगों को कुछ गीत अच्छे नहीं लगते हैं। कुछ लोगों को आधुनिक प्रशंसा के गीत अच्छे नहीं लगते हैं। कुछ लोगों को वाद्य यन्त्र अच्छे नहीं लगते हैं। सब सोचते हैं कि दूसरे की तुलना में वे अधिक बाइबलीय हैं। परन्तु हम में से कोई तब तक वास्तव में परमेश्वर की आराधना नहीं कर सकता जब तक कि हम ख्रीष्ट के प्रति आनन्दमय आत्मसमर्पण में न बढ़ा रहे हों। यह जीवित परमेश्वर की आराधना का विकृतिकरण है कि हम अपने पवित्र शरीरों को छोड़कर उसे मृत बलिदान चढ़ाते हैं। हम कहते हैं कि हम उसके हैं, परन्तु हमारे जीवन स्व-धार्मिकता, लालच, कड़वाहट, जातिवाद, वासना और ईर्ष्या से दूषित हैं। तो फिर, कैसे, हम अपने जीवनों और साक्षियों में परमेश्वर की सामर्थ्य का अनुभव कर सकते हैं? इसका उत्तर है प्रतिदिन पूर्ण रूप से परमेश्वर के सामने आत्मसमर्पण करने में, “सब मैं देता हूँ” (I Surrender All) गाने में, और परमेश्वर पर भरोसा करने में निहित है कि वह अपनी सामर्थ्य के द्वारा हमें परिवर्तित करेगा।

इस आत्मसमर्पण का मार्ग हमारी समस्या का एक हिस्सा भी है। हमारा मन इस संसार की वस्तुओं से भरा हुआ है। हम और अधिक की भूख रखते हैं और कम में सन्तुष्ट नहीं होंगे, इसलिए हम ऋण में चले जाते हैं। हमारे विवाह विफल हो जाते हैं जब हम अमरीकी स्वप्न का पीछा करने लगते हैं। क्या इसमें कोई आश्चर्य की बात है कि हमारे बच्चे जिनको वचन सिखाया जाता है और प्रदूषण से बचाया जाता है, महाविद्यालय जाते हैं और मूर्तिपूजकों के समान व्यवहार करने लगते हैं? उन्होंने ख्रीष्च के प्रति आत्मसमर्पण को न अनुभव किया न देखा भी है, और यह नहीं देखा है कि इस प्रकार के आराधक समुदाय में परमेश्वर की सामर्थ्य कैसे कार्य करती है।

हमें क्यों स्वयं को पूर्ण रूप से परमेश्वर के प्रति आत्मसमर्पित करना चाहिए? हमारे स्वर्गीय पिता ने अपनी दया के विशाल धन को ख्रीष्ट में हम पर उण्डेल दिया है। दया परमेश्वर की करुणा है जो उन्हें दी जाती है जो दयनीय हैं। यह इस रीति से अनुग्रह के समान है कि यह अयोग्य लोगों को दी जाती है। क्या हम वास्तव में समझते हैं कि ख्रीष्ट के बिना हम क्या हैं? 

परमेश्वर के लोगों को उससे विनती करनी चाहिए कि वह हमें  हमारी पूर्ण भ्रष्टता को प्रकट करे जिससे कि हम अपने पापों और अपनी संस्कृति के पापों पर शोक करने में सक्षम हो सकें। यह धन्यता का मार्ग है (मत्ती 5:4)। ख्रीष्ट के माध्यम से धर्मीकरण, पवित्रीकरण, चुनाव, और महिमावान्वीकरण में परमेश्वर की दया स्पष्ट रूप से दिखती है जब हम परमेश्वर की पवित्रता और अपनी आत्मिक निर्धनता के मध्य के दूरी को समझ जाते हैं। परमेश्वर की महान दया के द्वारा दीन किए गए लोगों और कलीसियाओं के लिए दिन-प्रतिदिन ख्रीष्ट के प्रति आत्मसमर्पण में बढ़ने की अधिक सम्भावनाएँ हैं। हमारी आराधना परमेश्वर-केन्द्रित होगी और हमारे मन उसके प्रेम की अधिकाईयों की सामर्थ्य से नए होंगे। और परमेश्वर के अद्भुत अनुग्रह के द्वारा, ऐसी कलीसियाएँ उन जातियों के शिष्य बनाने में सक्षम होंगी जो उनके समुदायों में रहती हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
केविन स्मिथ
केविन स्मिथ
रेव. केविन स्मिथ कटलर बे, फ्लॉरिडा में पाइनलैण्ड्स प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ट पास्टर हैं।