न्याय और दया - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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न्याय और दया

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का आठवा अध्याय है: सुसमाचार

जब मैंने यह विचार करना आरम्भ किया कि मुझे इन पृष्ठों में क्या कहना चाहिए, मैंने स्वयं को दो दिशाओं की ओर खिंचा हुआ पाया। मेरा प्रथम संवेग आत्मिक क्षय पर विलाप करना था जिसे मेरी पीढ़ी के लोगों ने बहुत समीप से देखा है और अगली पीढ़ी को इसके विरुद्ध में संघर्ष को अनवरत विश्वासयोग्यता और साहस के साथ आगे ले जाने के लिए प्रेरित करना था। किन्तु, चिन्तन करने पर, मुझे यह उचित प्रतीत हुआ कि हमें परमेश्वर को अनुग्रह के अद्भुत कार्यों के लिए धन्यवाद करना चाहिए जिन्हें वर्तमान समय में, यहाँ तक कि अन्धकारमय आकाश के नीचे और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी पूरा किया जा रहा है। सम्भवतः मैं एक ही समय में दोनों दिशाओं में चलने की प्रवीणता को सम्भाल सकता हूँ।

लगभग पचास वर्ष बीत चुके हैं जब मुझे सुसमाचार की सेवकाई के लिए नियुक्त किया गया था। जब मैं एक ईश्वरविज्ञानी विद्यार्थी और फिर एक युवा पास्टर था, तो हम में से कई उन बातो से जिन्हें हम कलीसिया में देखते थे, बहुत अधीर थे, परन्तु हमें यह भी विश्वास था कि हम एक जागृति की कगार पर थे। हम अपेक्षा कर रहे थे कि पवित्र आत्मा की ऐसी गतिविधि उदारवाद ईश्वरविज्ञान के अवशेषों को मिटा देगा, डगमगाती कलीसिया को पवित्रशास्त्र के विश्वास में पुनर्स्थापित करेगा, और हृदय-परिवर्तन की अकथित संख्या को पूरा करेगा। यह बात कि हमारी आशाएँ अधूरी रह गयीं, इसके लिए प्रमाणों की आवश्यकता नहीं है।

नीदरलैण्ड और इंगलैण्ड में कुछ वर्षों तक रहते हुए, जहाँ मसीही साक्षी पहले से ही अटलांटिक की इस ओर एक अकल्पनीय सीमा में बिगड़ने लगी थी, 1960 के दशक में मैंने एक नए दृष्टिकोण को पाया। मैंने पाया कि कई यूरोपवासी अमरीकी कलीसियाओं को ईष्या और उपेक्षित रूप से देखते थे: ईष्या से क्योंकि संयुक्त राज्य में अभी भी धार्मिक जीवन स्पष्ट रूप से जोशपूर्ण था; उपेक्षित इसलिए क्योंकि उनके दृष्टिकोण में हम आधुनिक जीवन और विचार की वास्तविकताओं के सही समझ पर अभी नहीं पहुंचे थे। तब से संयुक्त राज्य में स्थिति मूल रूप से परिवर्तित हुई है, और अपने अभिमान में जिसमें हम स्वयं को प्रतिरक्षित सोचते थे वह अवनति अब हर मोड़ पर स्पष्ट है।         

जो कुछ हो रहा है उसके लिए कोई भी साधारण व्याख्या नहीं दी जा सकती है, और ऐतिहासिक दृष्टिकोण को बनाए रखना भी आवश्यक है। बाइबल के समयों और शताब्दियों से इसी प्रकार की फलहीनता के अन्य काल भी हुए हैं जिसमें परमेश्वर ने दयापूर्वक धर्मसुधार और जागृति के साथ हस्तक्षेप किया। अपनी दृष्टि में बुद्धिमान लोगों ने, पूर्व और वर्तमान में, निरन्तर रूप से मसीहियों के “सहज विश्वास” को छोटा समझा है और सुसमाचार को गम्भीर विचार के अयोग्य बताया है, परन्तु अनेकों मूर्ख लोग, जिन्होंने स्वयं और अन्य लोगों से कहा कि, “कोई परमेश्वर नहीं है” अब मृत्यु प्राप्त कर चुके हैं।

यह भी विचार किया जाना चाहिए कि क्या हम एक ईश्वरीय न्याय, “यहोवा के वचन को सुनने” के अकाल के अधीन रह रहे हैं (आमोस 8:11)।  क्या परमेश्वर का ऐसा कार्य कई सम्प्रदायों में व्यापक क्षय का कारण है जिनकी साक्षी कभी तो दृढ़ थी परन्तु अब जो सैद्धान्तिक, ईश्वरविज्ञानीय, और नैतिक भ्रम में पतित हो गए हैं। विधिवत् रूप से शास्त्रसम्मत बनी हुई कलीसियाओं के मध्य व्यापक रूप से फैली प्रभावहीनता क्या परमेश्वर की अप्रसन्नता का चिन्ह है? मसीही विश्वास को सतही और वंशानुगत, ज्ञान, विश्वास और उत्साह की कमी के रूप में जो भी माना जाता है उसे वर्णित करने के लिए निश्चित रूप से मैं ही अकेला नहीं हूँ।

परन्तु, मैं विषम परिस्थितियों में कार्य करने वाले व्यक्ति के रूप में नहीं लिखता हूँ। वर्तमान की अव्यवस्था भ्रान्तिमुक्ति या निराशा के लिए कारण नहीं है। इसके विपरीत, यदि उन्हें देखने के लिए हमारे पास आँखे हैं, तो कृतज्ञ और आशावान होने के कई कारण हैं। मैंने थोड़े का ही उल्लेख किया है।   

हमें मसीही पुस्तकों और सामयिक पत्रिकाओं की उपलब्धता के लिए धन्यवादी होना चाहिए। मुझे स्मरण है कि जैसे कल की ही बात हो जब बैनर ऑफ ट्रूथ ट्रस्ट (Banner of Truth Trust) द्वारा प्रकाशित हुई प्रथम पतली पुस्तकों के अंक हमारे धर्मविद्यालय के पुस्तकों की दुकान की अलमारियों में 1958 में दिखाई दीं थी। कोई इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता था कि तत्पश्चात् क्या होगा, परन्तु वे लघु पुस्तकें साहित्यिक प्रवाह की अग्रगामी सिद्ध हुईं जिन्हें संसार के कई प्रकाशकों द्वारा अपनाया गया। धर्मसुधारकों (Reformers), शुद्धतावादियों (Puritans), और उनके उत्तराधिकारियों के लेखन बिना किसी ऐतिहासिक आधिकारिक निर्णय के बड़ी संख्याओं में पुनः प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त, अन्य लोग उस नींव पर निर्माण कर रहे हैं और हमें ऐसी पुस्तकें दे रहे हैं जो पवित्रशास्त्र की शिक्षाओं की खोज करती हैं और उन्हें हमारी स्वयं की परिस्थिति पर लागू करती हैं।

हमें सुसमाचार के तत्पर, विश्वासयोग्य प्रचारकों के लिए धन्यवादी होना चाहिए। जबकि यूरोप, कनाडा, और संयुक्त राज्य में ऐतिहासिक मसीही कलीसियाएँ ध्वस्त हो गयी हैं, सुसमाचार का प्रचार हमारी स्वयं की भूमि और संसार के अन्य भागों में व्यापक पहुँच के साथ सामर्थ के साथ प्रचारित किया जा रहा है। यह तथ्य कि कलीसियाई सम्बन्धों को खींचा और यहाँ तक कि तोड़ा जा रहा है वह स्वयं में प्रमाणिक जीवन का एक संकेत है। विभाजन की रेखाएँ साहसी अगुवों के द्वारा खींची गयी हैं जिन्होंने मतसम्बन्धी निष्ठा से बढ़कर परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का मार्ग चुना। हमारा समय अफ्रीका, एशिया, और दक्षिणी अमरीका में प्रबल विकास का समय है, यह एक एक ऐसा तथ्य था जिसे हमें कभी भूलना नहीं चाहिए।

यह सही है कि हम दृढ़. स्थिर मण्डलियों के लिए धन्यवादी हों,  जिनमें सुसमाचार का दीपक प्रज्वल्लित हो रहा है। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने सत्य के स्थान पर “भावनाओं” को नहीं रखा है; जो परमेश्वर और उसके वचन के प्रति विश्वासयोग्यता को अन्य सभी विचारों से ऊँचा करता है; जो प्रभु के दिन का निरन्तर सम्मान करता है; जो बाइबलीय सिद्धान्तों के अनुरूप आनन्द से आराधना करता है; और जिसमें —चुने हुए— लोगों को बचाने वाले विश्वास में ख्रीष्ट के समीप लाया जा रहा है।     

इन सबसे बढ़कर, हमें धन्यवादी होना चाहिए कि जगत, संसार, और कलीसिया सम्प्रभु परमेश्वर का हाथों में हैं जिसके उद्देश्य त्रुटिहीन हैं, जिसकी योजना प्रति दिन पूरी होती है, जो अविरत रूप से हर उस व्यक्ति को अपने पास लाएगा जिसके लिए हमारा उद्धारकर्ता मरा, और अन्त में जिसे सारी प्रशंसा और महिमा प्राप्त करनी चाहिए।      

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
जॉन आर. डे विट्ट
जॉन आर. डे विट्ट
जॉन आर. डे विट्ट ने पास्टर के रूप में लगभग साठ वर्ष सेवा की। वे द बैनर ऑफ ट्रूथ पत्रिका के सहायक सम्पादक थे, हर्मन रिडरबोस द्वारा लिखित पॉल: ऐन आउटलाइन ऑफ हिस थियॉलजी के अनुवादक हैं, और कईं पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें व्हाट इज़ द रिफॉर्म्ड फेथ? सम्मिलित है।