क्या इसका आधार दृढ़ है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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क्या इसका आधार दृढ़ है?

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का नौवा अध्याय है: सुसमाचार

यदि मैंने यह एक एक बार सुना है, तो मैंने यह हज़ार बार सुना है: “एक कैल्विनवादी (Calvinist) सुसमाचार प्रचारक? क्या यह एक विरोधाभास नहीं है? कैल्विनवाद (Calvinism) सुसमाचार प्रचार को क्षीण कर देता है।“ यह आरोप इतनी बात दोहराया गया है कि कुछ ही लोग इस पर तर्क-वितर्क करने का प्रयास करते हैं। इसके स्थान पर, इसको केवल मान लिया जाता है। इस बात को नहीं देखा जाता है कि कलीसिया के कुछ महान सुसमाचार प्रचारक कैल्विनवादी (Calvinist) रहे हैं। उन्हें केवल जॉर्ज व्हिटफील्ड, डेविड ब्रेनर्ड, या “आधुनिक मिशन के पिता,” विलियम केरी जैसे पुरुषों के विषय में स्मरण कराने की आवश्यकता है। “हाँ,” हमें बताया जाता है, “ये पुरुष महान सुसमाचार प्रचारक और कैल्विनवादी (Calvinist) थे, परन्तु ऐसा इसलिए क्योंकि वे अपने विचारों में असंगत थे।” परन्तु क्या यह सत्य है?  

वास्तविकता यह है कि कैल्विनवाद (Calvinism) सुसमाचार प्रचार से असंगत नहीं है; यह केवल कुछ सुसमाचार प्रचार की विधियों से भिन्न है। उदाहरण के लिए, यह चार्ल्स फिनी जैसे पुनर्जागरणवादी (revivalists) द्वारा बनायी गयी भावनात्मक चालाक विधियों (emotionally manipulative methods) से असंगत है। परन्तु ये चालाक विधियाँ (manipulative methods) स्वयं पवित्रशास्त्र से भी असंगत हैं, इसलिए इन्हें अस्वीकार करना त्रुटि करना नहीं है। सुसमाचार प्रचार के अनुसार परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए, इसे बाइबलीय शिक्षा की पूरी प्रणाली के समान होना चाहिए। परन्तु ऐसा सुसमाचार प्रचार दिखता कैसा है?

उस प्रश्न का एक उत्कृष्ट उत्तर आर. बी. कुइपर की लघु पुस्तक परमेश्वर-केन्द्रित सुसमाचार प्रचार (God-Centred Evangelism) (बैनर ऑफ ट्रूथ Banner of Truth) में पाया जाता है। यह पुस्तक सुसमाचार प्रचार के विषय पर शिक्षा के सम्पूर्ण बाइबलीय विषय-क्षेत्र को बताती है। कुइपर सुसमाचार प्रचार को “सुसमाचार की घोषणा” के रूप में परिभाषित करता है। कुइपर बताते हैं कि उनकी पुस्तक “मनुष्य-केन्द्रित सुसमाचार प्रचार के विरोध में परमेश्वर-केन्द्रित के लिए निवेदन है।” फिर यह पुस्तक, सुसमाचार प्रचार के ईश्वरविज्ञान को प्रस्तुत करती है।

आरम्भ के अध्याय परमेश्वर-केन्द्रित सुसमाचार प्रचार की कुछ आवश्यक ईश्वरविज्ञानी पूर्वधारणाओं को बताते हैं। कूइपर बताते हैं कि परमेश्वर स्वयं सुसमाचार प्रचार का लेखक है, जिसमें जगत की उत्पत्ति से पहले ही, उसने पापियों के उद्धार की योजना बनाई थी। यह सीधे परमेश्वर के प्रेम, पापियों के उसके चुनाव, और उसकी वाचा पर अध्याय जितनी लम्बी चर्चाओं की ओर ले जाता है। इन आधारभूत ईश्वरविज्ञानीय मूल बातों को बताने के पश्चात्, फिर कूइपर परमेश्वर की सम्प्रभुता और महान आदेश से प्रारम्भ करते हुए, सुसमाचार के विभिन्न बाइबलीय पहलुओं का वर्णन करता है।

महान आदेश में, यीशु अपने अनुयायियों को “सभी जातियों” के लोगों को चेला बनाने की आज्ञा देता है। इसलिए, सुसमाचार का क्षेत्र विश्वव्यापी है। सुसमाचार सभी को सुनाया जाना है। यदि हम वास्तव में उस पर विश्वास करते हैं जो पवित्रशास्त्र हमें उद्धार के लिए ख्रीष्ट में विश्वास की आवश्यकता के विषय में बताता है, तब सुसमाचार प्रचार की तात्कालिकता प्रकट हो जाएगी। बहुत सारे शास्त्रविरोधी ईश्वरविज्ञान (heterodox theologies) सुसमाचार प्रचार की तात्कालिकता को यह शिक्षा देते हुए क्षीण कर देती हैं कि मृत्यु के पश्चात् अविश्वासियों को “दूसरा अवसर” मिलेगा। परन्तु, ऐसी शिक्षा के लिए कोई बाइबलीय प्रमाण नहीं है और इस पर बल देना प्रकल्पना है।

 सुसमाचार प्रचार के लिए हमारी प्राथमिक प्रेरणा परमेश्वर का प्रेम और पड़ोसी का प्रेम होना चाहिए। जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं वह सुसमाचार प्रचार और चेले बनाने के उसके आदेश का आनन्दपूर्वक आज्ञापालन करेंगे। जो अपने पड़ोसियों से प्रेम रखते हैं वह उनके लिए अनन्त जीवन से बढ़कर और कुछ नहीं चाहेंगे। उनका उद्देश्य उनके जैसे पापियों के उद्धार के माध्यम से परमेश्वर की महिमा को देखना होगा जिससे कि कलीसिया का विकास हो।

परमेश्वर द्वारा ठहराया गया सुसमाचार प्रचार का साधन स्वयं उसका वचन है। यह परमेश्वर के वचन की घोषणा के माध्यम से है कि पवित्र आत्मा मनुष्यों के हृदयों में प्रभावी रूप से विश्वास का कार्य करता है। सुसमाचार प्रचार का विशिष्ट सन्देश सुसमाचार है। पौलुस ने इस सन्देश को 1 कुरिन्थियों 15:3-5 में सारांक्षित किया है: “मैंने यह बात जो मुझ तक पहुँची थी उसे सब से मुख्य जानकर तुम तक भी पहुँचा दी, कि पवित्रशास्त्र के अनुसार ख्रीष्ट हमारे पापों के लिए मरा, और गाड़ा गया, तथा पवित्रशास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा, तब वह कैफा को, और फिर बारहों को दिखाई दिया।” जब वे लोग, जिन्होंने सुसमाचार सुना, पूछते हैं कि उन्हें उद्धार पाने के लिए क्या करना चाहिए, तो पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि उसका उत्तर है: “प्रभु यीशु पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा” (प्रेरितों के काम 16:31)।

अपनी पुस्तक के अन्तिम अध्यायों में, कुइपर ने सुसमाचार प्रचार के लिए उत्साह, सुसमाचार प्रचार की बाइबलीय विधि, सुसमाचार प्रचार में सहयोग, सुसमाचार प्रचार के प्रतिरोध, और सुसमाचार प्रचार की विजय जैसे विषयों का सर्वेक्षण किया है। वह हमें स्मरण कराते हैं कि हम सुसमाचार की घोषणा, हमारे सुसमाचार प्रचार के फलों की ओर देखते हुए, एक महान आशा के साथ कर सकते हैं कि, एक ऐसा समय आएगा जब “प्रत्येक जाति, समस्त कुल, लोग और भाषा में से लोगों की एक विशाल भीड़ जिसे कोई गिन नहीं सकता” श्वेत वस्त्र पहने मेमने के सिंहासन के सम्मुख खड़ी होगी और पुकारेगी, “सिंहासन पर विराजमान हमारे परमेश्वर और मेमने से ही उद्धार है” (प्रकाशितवाक्य 7:9-10)।    

बहुत लम्बी अवधि तक, कलीसिया ने सांसारिक साधनों के माध्यम से उपयुक्त लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास किया है। आइए कुइपर के निवेदन को ध्यान में रखें और मानव-केन्द्रित विधियों को पीछे छोड़ दें। आइए हम महान आदेश को परमेश्वर की महिमावान रीति में पूरा करें।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
कीथ ए. मैथिसन
कीथ ए. मैथिसन
डॉ. कीथ ए. मैथिसन सैनफर्ड, फ्लॉरिडा के रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में विधिवत ईश्वरविज्ञान के प्रोफेसर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द लॉर्ड्स सप्पर और फ्रम एज टु एज समिमिलित हैं।