यूहन्ना की साक्षी - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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यूहन्ना की साक्षी

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: सुसमाचार

मैंने अभी-अभी यूहन्ना के सुसमाचार को पुनः पढ़ा है। हाँ, यह कई स्तरों पर एक अद्भुत पुस्तक है। साहित्य के स्तर पर, यह पढ़ने में आनन्ददायक है। शब्दावली अत्यन्त सरल है, परन्तु एक समान अभिव्यक्तियों का पुनरावर्ती उपयोग गहन है (उदाहरण के लिए, “मैं हूँ” कथन)। यद्यपि इसमें पुराने नियम के बहुत अधिक स्पष्ट उद्धरण नहीं हैं, यूहन्ना पुराने नियम के विषय और संकेतों (जैसे “चरवाह”, “रोटी”, ऊँचा उठाया गया सांप) से भरा हुआ है। इसमें विडम्बना के कई उदाहरण हैं (जैसे, अन्धा आदमी यीशु को “देखता” है, परन्तु जो “देखते हैं” नहीं देख सकते, यूहन्ना 9; यीशु की मृत्यु के विषय में काइफा की भविष्यद्वाणी जितना वह जानता था उसके अधिक सत्य थी, यूहन्ना 11:50)। यीशु के कथन प्रायः ऐतिहासिक श्रोताओं को भ्रमित करते है, परन्तु पाठक समझने में सक्षम है (उदाहरण के लिए, “इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिन में फिर खड़ा कर दूंगा”, यूहन्ना 2:19)। पुस्तक में एक रुचिकर कथानक है जिसमें यीशु, कभी-कभी भ्रमित चेले, और विरोधी “यहूदी” और फरीसी सम्मिलित हैं।

साहित्य के स्तर से अधिक, मैं एक बार पुनः उस अनूठी ध्यान से चकित था जो यूहन्ना की हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट पर लगाता है। लगभग प्रत्येक खण्ड में, पाठक केवल ख्रीष्ट की सर्वशक्तिमान सामर्थ से ही नहीं परन्तु पापियों के लिए उसकी दया से भी परिचित है। सचमुच, हमारे उद्धारकर्ता यीशु की अद्भुत बातों को यूहन्ना में दिखाए गए हैं।

व्यापक रूप से, यूहन्ना की रूपरेखा बाइबल में पाए जाने वाले अन्य सुसमाचारों के समान है। सभी सुसमाचार यीशु पर एकाग्रचित्त होते हैं और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले, यीशु की व्यस्क सेवकाई, और फिर यरूशलेम में अन्तिम सप्ताह के बड़े भाग को सम्मिलित करते हैं जिसमें फसह का पर्व, अधिकारियों के सामने लाया जाना, और ख्रीष्ट की मृत्यु सम्मिलित हैं। दूसरी ओर, मत्ती, मरकुस और लूका की रूपरेखाएँ यूहन्ना की तुलना में एक दूसरे से अधिक मेल खाती हैं। निम्नलिखित एक संक्षिप्त रूपरेखा है:

  • प्रस्तावना: 1:1-18
  • यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला 1:19-51
  • ख्रीष्ट की सार्वजनिक सेवकाई 2:1-12:50
  • ऊपरी कक्ष से पुरनुत्थान तक 13:1-20:29
  • पुस्तक का उद्देश्य 20:20-31
  • गलील में पतरस 21:1-25

यीशु “पुत्र” है

बाइबल की सभी पुस्तकों में से, यूहन्ना यीशु के व्यक्ति पर सबसे अधिक केन्द्रित पुस्तक है। किन्तु, इस बात पर आवश्यकता से अधिक नहीं बल नहीं दिया जाना चाहिए। पूरी बाइबल, पुराना नियम और नया नियम दोनों ही, यीशु की बात करती है (लूका 24:44-47; यूहन्ना 1:45; 5:39; 1 कुरिन्थियों 2:2)। साथ ही, अन्य तीनों सुसमाचार यीशु के व्यक्ति और कार्य पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। तब भी, यह सत्य है कि यूहन्ना सबसे अधिक ख्रीष्ट के व्यक्ति पर केन्द्रित है।

यूहन्ना के सुसमाचार में ही, यीशु के व्यक्ति का सबसे अधिक प्रमुख पहलू यह है कि वह पुत्र है। कभी कभी यीशु को केवल “पुत्र” (यूहन्ना 3:35-36), या “परमेश्वर का पुत्र” (1:34; 11:4; 20:31), या “(एकलौता/अनोखा) (परमेश्वर का) पुत्र” (1:14; 3:16-18) कहा जाता है। ये “पुत्र” सम्बन्धित सभी अभिव्यक्तियाँ  स्पष्ट रूप से यीशु के ईश्वरत्व (त्रिएकता की समझ से भीतर) से सम्बन्धित है जैसा कि यूहन्ना 1:1-3, 18; 5:18; 10:30;  20:28 में पुष्टि की गयी है।

ईश्वरत्व दिखाने और इसके साथ-साथ चलते हुए, “पुत्र” पर यह बल परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्र के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध और प्रेम की व्याख्या पर बल देता हैा। मानवीय स्तर के जैसे, पिता सामान्यतः अपने पुत्रों से प्रेम करते हैं; तो इसलिए त्रिएकता में इससे भी अधिक पिता और पुत्र के मध्य सिद्ध प्रेम है। “पिता पुत्र से प्रेम करता है और उसने उसी के हाथ सब कुछ सौंप दिया है” (3:35)। “इसलिए कि  संसार जान ले कि मैं पिता से प्रेम करता हूँ और जिस प्रकार पिता ने मुझे आज्ञा दी है वैसे ही मैं उसका पालन करता हूँ” (14:31)। यूहन्ना में, कई ऐसे विस्तृत खण्ड हैं जिसमें यीशु पिता से अपने सम्बन्ध की और उस कार्य की जो पिता ने उसे दिया है उनके पहलुओं की चर्चा करता है (5:19-24; 8:16-29; 10:24-29; 14:6-13; 17:1-26)। साथ ही, ऐसे कई पद हैं जो परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र, और परमेश्वर पवित्र आत्मा के मध्य के सम्बन्ध की चर्चा करते हैं (14:16-17, 26, 15:26; 16:13-15)।

यीशु का व्यक्ति और कार्य

परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्र के मध्य के सम्बन्ध का एक और पहलू यह है कि कुछ निश्चित रीतियों में यीशु को पिता के समान प्रस्तुत किया गया है; अन्य रीतियों में, उसे अधीनस्थ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ईश्वरविज्ञानी इन दो प्रकार के स्थलों को पृथक करने के लिए “सत्ताशास्त्रीय” (ontological – होने के सम्बन्ध में एक समान) और “विधानीय” (economic कार्य के सम्बन्ध में अधीन) शब्दों का उपयोग किया है। परमेश्वर पुत्र के ईश्वरत्व के अनुसार, वह अस्तित्व, सामर्थ, और महिमा में परमेश्वर के पूर्णतः समान है (सत्ताशास्त्रीय त्रिएकता – ontological Trinity)। उदाहरण के लिए, यूहन्ना इस बात को अपने सुसमाचर की महान आरम्भ में दिखाता है जो कि यह घोषणा करता है कि वचन (यीशु) “परमेश्वर के साथ” और “परमेश्वर” दोनों ही था (1:1-2)। यह पुस्तक के चरम बिन्दु पर भी (उद्देश्य कथन से ठीक पूर्व) दिखाया गया है जहाँ थोमा कहता है, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर” (20:28)।

जब यीशु पृथ्वी पर अपने मिशन और कार्य का वर्णन करता है, वह स्वयं को पिता के अधीन समझता है (विधानीय त्रिएकता – economic Trinity)। उदाहरण के लिए: “मैंने अपने आप कुछ नहीं कहा, परन्तु पिता जिसने मुझे भेजा है उसी ने आज्ञा दी है . . .। जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसे ही बोलता हूँ” (12:49-50; यूहन्ना 5:30; 8:29; 14:28 भी देखें)। त्रिएकता में तीन व्यक्तियों का यह त्रिएक सम्बन्ध कि वे अस्तित्व में एक समान है परन्तु कार्य में भिन्न, कलीसिया में प्रकट होता है। परमेश्वर की दृष्टि में सभी मसीही समान हैं, परन्तु कलीसिया में उनके पास भिन्न-भिन्न दान और अधिकार हैं।

यीशु के ईश्वरत्व, उसके अनन्त अस्तित्व, और उसकी सर्वशक्तिमान सामर्थ पर बल को ध्यान में रखते हुए, यूहन्ना का सुसमाचार यीशु की मानवता की भी साहसपूर्वक घोषणा करता है। प्रस्तावना में प्रसिद्ध शब्द हैं कि “वचन [यीशु] देहधारी हुआ” (1:14)। यीशु के क्रूसीकरण और मरने के रूप में उसकी मानवता को दिखाया गया है (19:30)। उसकी मानवता पुनरुत्थान के पश्चात् भी बनी रहती है जब यीशु के हाथों और पंजर को थोमा छूता है (20:27)। हाँ, यीशु पूर्ण ईश्वरीय और पूर्ण मनुष्य है और सदैव के लिए बना रहेगा। जैसा कि वेस्टमिन्सटर लघु प्रश्नोत्तर 21 बताता है: “परमेश्वर के चुने हुओं का एकमात्र छुड़ाने वाला प्रभु यीशु ख्रीष्ट है, जो, परमेश्वर का अनन्त पुत्र होने के कारण, मनुष्य बन गया, और ऐसा था, और ऐसा ही रहेगा, परमेश्वर और मनुष्य दो भिन्न स्वभावों में, और एक व्यक्ति, सदैव के लिए।” हमारे पास एक अद्भुत उद्धारकर्ता है!

ऊपर मैंने अधिकतर यीशु के “व्यक्ति” के विषय में बात की है, कि वह “कौन” था और है। परन्तु उसके “कार्य” का क्या? स्पष्टतः, यूहन्ना में यीशु का प्राथमिक कार्य, अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के शिखर पर, परमेश्वर के चुने हुओं का छुड़ानेवाला होना है। कम बल दिया हुआ, परन्तु फिर भी महत्वपूर्ण, सृष्टिकर्ता के रूप में यीशु का कार्य सृष्टिकर्ता के रूप में । यूहन्ना की प्रस्तावना यीशु के ईश्वरीय स्वभाव के कथनों के साथ आरम्भ होती है (1:1-2)। इसके तुरन्त पश्चात्, यीशु (पिता और पवित्र आत्मा के साथ) सृष्टि का सृष्टिकर्ता (और बनाए रखने वाला) है। “सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कुछ भी उसके बिना उत्पन्न न हुआ” (1:3)।  प्रस्तावना में थोड़ा आगे दुखद शब्द हैं कि यीशु सामान्यतः उस संसार द्वारा अस्वीकृत किया गया जिसे उसने बनाया था। “वह [यीशु] जगत में था, और [यद्यपि] जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे न पहचाना”(1:10)। सृष्टिकर्ता के रूप में यीशु पर यह आरम्भिक बल उन कई चमत्कारों की पृष्ठभूमि है जो यीशु पूरे यूहन्ना में करता है। (नए नियम के अन्य पद के लिए जहाँ यीशु सृष्टिकर्ता है, देखें 1कुरिन्थियों  8:6; कुलुस्सियों 1:15-18; इब्रानियों 1:1, 10-12)

यीशु के साथ हमारा सम्बन्ध पिता और पुत्र के सम्बन्ध का प्रतिरूप है।

यूहन्ना के सुसमाचार में, परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्र का निश्चित रूप से एक अनोखा सम्बन्ध है। दूसरी ओर, विरोधाभासी रूप से प्रतीत होते हुए, यीशु से मसीहियों का सम्बन्ध आंशिक रूप से पिता और पुत्र के मध्य के अनोखे सम्बन्ध के समान होता है। “जैसे हे पिता, तू मुझ [यीशु] में है और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही [मसीही] भी हम में हों” (यूहन्ना 17:21)। पिता और पुत्र के मध्य निकट और घनिष्ठ सम्बन्ध “में”) प्रतिरूप है कि कैसे मसीही अपने परमेश्वर से सम्बन्धित हैं। सच्ची दाखलता का उपदेश इस मिलन को प्रतिबिम्बित करता है (15:1-11)।

ऐसे कई पद हैं जो परमेश्वर और पुत्र के अनोखे प्रेम को पुत्र और हमारे प्रेम के साथ जोड़ता है। “जैसा पिता ने मुझ से प्रेम किया है, मैंने भी तुम [मसीहियों] से प्रेम किया है। मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे तो तुम मेरे प्रेम में बने रहोगे, वैसे ही मैंने अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में बना रहता हूँ” (15:9-10; साथ ही देखें यूहन्ना 14:21; 17:26)। इसके अतिरिक्त, मसीहियों के मध्य प्रेम हमारे प्रति यीशु के प्रेम का प्रतिरूप है (13:34)।

जिस प्रकार से यीशु और उसकी भेड़ें एक दूसरे को “जानती हैं” वह उस घनिष्ठ ज्ञान का प्रतिरूप है जो पिता और पुत्र के एक दूसरे के प्रति। “अच्छा चरवाहा मैं हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। वैसे ही जैसे पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ” (10:14-15)।

मसीही होने का एक पहलू है यीशु के नाम से भले कार्य करने के लिए संसार में भेजा जाना। “जैसे तू [पिता] ने मुझे [यीशु] संसार में भेजा, मैंने भी उन्हें संसार में भेजा है” (17:18; 20:21)। यीशु को “भेजा गया था” और उसके पास करने के लिए “कार्य” था। यीशु का अपने कार्य को पूरा करना हमारे कार्यों को पूरा करने के लिए एक सहायक प्रारूप है।

अन्त में, मसीहियों की एकता को आगे समझाया जाता है जब हमें यह आभास होता है यह पिता और पुत्र की एकता के प्रतिरूप है। “जैसे हम एक हैं, वे भी एक हों” (17:11ब)। स्पष्ट रूप से कहें तो, यूहन्ना का सुसमाचार एक अद्भुत पुस्तक है। इसे आरम्भ से अन्त तक पढ़ें। “पुत्र” के रूप में यीशु पर और इस बात पर मनन करें कि यीशु के साथ आपका सम्बन्ध कैसे पिता और पुत्र के सम्बन्ध के आंशिक प्रतिरूप है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
रॉबर्ट जे. कारा
रॉबर्ट जे. कारा
डॉ. रॉबर्ट जे. कारा शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में महाविद्यालय के अध्यक्ष, मुख्य शैक्षिक अधिकारी, और नए नियम के प्राध्यापक हैं। वे पौलुस पर नया दृष्टिकोण की नींव तो तोड़ना (Cracking the Foundation of the New Perspective on Paul) और इब्रानियों की पुस्तक पर एक आगामी टीका के लेखक हैं।