लूका की साक्षी - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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लूका की साक्षी

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: सुसमाचार

एक क्षण के लिए कल्पना कीजिए कि आप प्रथम शताब्दी के समय के रोमी साम्राज्य के एक नागरिक हैं। आप उस समय के कैसर के शासन में शान्ति और समृद्धि के समय में जीवन जी रहे हैं, जिसे कई लोग “प्रभु” (lord) कहते हैं। अपने अधिकांश जीवन में आपने यहूदी नीति की प्रशंसा की है, यद्यपि आप खतना जैसे अभ्यासों को अस्वीकार करते है। सम्भवतः आप एक परमेश्वर का भय मानने वाले, गैरयहूदी बन गए हैं जो मूसा के नियम के रीति सम्बन्धी अधिनियमों को अपनाए बिना यहूदी एकेश्वरवाद को ग्रहण करते हैं।

अब कल्पना कीजिए कि आपने अभी-अभी पौलुस नामक व्यक्ति से उद्धार का सुसमाचार सुना है। इस प्रेरित ने आपको बताया है कि यद्यपि आपको नागरिक प्राधिकरण का सम्मान करना है, परन्तु प्रभुत्व केवल परमेश्वर के पुत्र, यीशु ख्रीष्ट का है। आपने सुना है कि जो इस यीशु के अधीन होते हैं वे यहूदी अनुष्ठान तालिका, भोजन के नियमों, या खतना को अपनाए बिना यहूदी लोगों से की गयी प्रतिज्ञाओं के पूर्ण उत्तराधिकारी बन सकते हैं। इस सुसमाचार को सुनकर, आप यीशु का उस पंथ के हिस्से के रूप में अनुसरण करने लगते हैं जिसे बाहरी लोग निन्दात्मक रूप से “मसीही” कहते हैं।

यूनानी दर्शन के प्रभाव के अन्तर्गत, कई मूर्तिपूजक आपके विश्वास पर हसते हैं कि परमेश्वर ने नासरत के यीशु के रूप में देहधारण किया और बाद में उसे मृतकों में से जिला दिया। आप निरुत्साहित हैं कि आपके अधिकांश यहूदी मित्रों ने यीशु के सम्मुख घुटने नहीं टेके हैं। कुछ चकित हैं कि, आप एक गैरयहूदी, यह सोचते हैं कि इस्राएल के परमेश्वर ने आपको व्यवस्था के जुए को उठाए बिना इब्राहीम की सन्तान के रूप में स्वीकार किया है। स्थिति को और बुरा बनाने के लिए, पौलुस और उसके मित्र पतरस और यूहन्ना से समाचार आता है कि मसीही कहलाने वाले कुछ लोग यीशु के चेले नहीं हैं। प्रेरित होने का दृढ़ कथन करने वाले लोग यीशु के जीवन और सेवकाई के विषय में झूठी बातें सिखा रहे हैं।

आपको इन सबसे क्या करना है? आप कैसे जानते हैं कि परमेश्वर वास्तव में देहधारी हुआ और यीशु का पुनरुत्थान हुआ था? क्या आपके पास कोई प्रमाण है कि आप, एक परमेश्वर रहित गैरयहूदी, अब कैसे इस्राएल की कहानी में समाविष्ट होंगे? क्या आप उन लोगों के मध्य अन्तर कर पाएँगे जो यीशु के विषय में सत्य बताते हैं और जो झूठे हैं?

इन सभी प्रश्नों को हमें सुसमाचार को लिखने के उद्देश्य के विषय में सोचने के लिए प्रेरित करना चाहिए, विशेषकर लूका रचित सुसमाचार के विषय में। अपने सम्पूर्ण जीवन में पूरे नए नियम की प्रतियाँ होने से, हम सोच सकते हैं कि चारों सुसमाचार अपने अभिप्राय और महत्व में एकाधार (monolithic) हैं। निश्चित रूप से, चारों सुसमाचार सभी पाठकों के लिए हैं और यीशु के विषय में तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं जिससे कि हम उसका प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में अनुसरण कर सकें। परन्तु, किसी भी सुसमाचार लिखने वाले ने, शून्यता में नहीं लिखा। उनमें से प्रत्येक के मस्तिष्क में विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ प्राथमिक श्रोतागण थे, और इस बात ने उनके लेखन में उनके प्रकरणों के चुनाव को चिन्हाँकित करने के लिए प्रभावित किया। यदि हमारे पास केवल एक सुसमाचार होता तो उसकी तुलना में, प्रत्येक सुसमाचार के महत्व को समझना हमें ख्रीष्ट के व्यक्ति और कार्य में प्रचुर अन्तर्दृष्टि देता है।    

सौभाग्यवश, लूका का सुसमाचार, सुसमाचार प्रचारक के उद्देश्य के स्पष्ट कथन के साथ खुलता है — एक थियोफिलुस को ख्रीष्ट के जीवन के एक व्यवस्थित विवरण को प्रदान करने (1:1-4)। स्पष्ट रूप से, उस समय यीशु से सम्बन्धित कई कहानियाँ फैल रही थीं, सम्भवतः उसके जीवन व्यक्तिगत प्रकरणों के अभिलेख, और लूका थियोफिलुस और अन्य पाठकों को उद्धारकर्ता की सेवकाई के एक अधिक सम्पूर्ण इतिहास को प्रस्तुत करना चाहता था। इन अपूर्ण अभिलेखों का, अन्य सुसमाचारों का, प्रत्यक्षसाक्षियों के साक्षात्कार का उपयोग करके, और इसी प्रकार से, लूका पवित्र आत्मा की प्रेरणा के अन्तर्गत, थियोफिलुस को एक लिखित प्रमाण देने के लिए बैठा जो उसकी चिन्ताओं को सम्बोधित करेगा।

जैसा कि हम अपेक्षा करते हैं, हमारे पिता के ईश्वरीय-प्रावधान ने लूका को हमारे उद्धारकर्ता के जीवन और सेवकाई के एक व्यवस्थित विवरण को अभिलिखित करने के लिए विशिष्ट रूप से तैयार किया। पौलुस के विश्वासयोग्य साथी के रूप में (2 तीमुथियुस 4:11), लूका ने न केवल स्वयं पौलुस से परन्तु उन प्रेरितों से भी जिनके साथ पौलुस का सम्पर्क था, यीशु के विषय में कई जानकारियाँ प्राप्त की होंगी। हम यह भी जानते हैं कि लूका एक प्रशिक्षित चिकित्सक था (कुलुस्सियों 4:14) जिसकी शिक्षा उसके सुसमाचार की रचना के लिए आवश्यक शोध और लेखन में सहायता करने के लिए एक अमूल्य सम्पत्ति होती। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ही था जिसने थियोफिलुस के रूप में लूका को एक मित्र प्रदान किया, एक ऐसा व्यक्ति जिसके यीशु के विषय में सम्बन्धित बातों को सम्बोधित करने की आवश्यकता थी। इस परिस्थिति ने लूका को थियोफिलुस के प्रश्नों को समाधान करने हेतु  एक सुसमाचार लिखने की आवश्यक प्रेरणा दी और हमें परमेश्वर के उद्देश्यों की एक झलक दी जो हमें ऐसे प्राप्त नहीं हो सकती थी।

उदाहरण के लिए, लूका प्रदर्शित करता है कि इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा, गैरयहूदियों का भी प्रभु है और उनकी दयनीय स्थिति के प्रति चिन्तित है। मत्ती, मरकुस, और यूहन्ना ने भी इस बात को बताते हैं, परन्तु यह विशेष रूप से लूका के कार्य में प्रकट है। उसके सुसमाचार की यूनानी भाषा शुद्ध और साहित्यिक गुणों की है, जिसकी हम किसी गैरयहूदी के वंश से अपेक्षा कर सकते हैं, यद्यपि हो सकता है कि लूका ने ख्रीष्ट को सुनने से पहले यहूदी मत में परिवर्तित हो गया हो। एक व्यक्ति को अपने पुत्र के जीवन को अभिलिखित करने के लिए प्रेरित करने से बेहतर क्या परमेश्वर का गैरयहूदियों के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित का कोई और माध्यम हो सकता है? साथ ही लूका 3:23-28 में लूका यीशु की वंशावली में राष्ट्रों के प्रति यहोवा की चिन्ता को भी लेकर आता है। सुसमाचार लेखक यीशु के वंश को देह के अनुसार आदम तक प्रस्तुत करता है, यह प्रकट करते हुए कि यहूदी मसीहा गैरयहूदियों का भी है, क्योंकि आदम से इब्राहीम तक हर कोई गैरयहूदी था।

यह तीसरा सुसमाचार लेखक विश्व इतिहास के लिए अपनी विशेष चिन्ता के माध्यम से राष्ट्रों के प्रति पिता के प्रेम को भी दिखाता है। निस्सन्देहः चारों सुसमाचार, पवित्रशास्त्र की सभी पुस्तकों के साथ, ऐतिहासिक रूप से अचूक और अभिलिखित समय में परमेश्वर के कार्य से सम्बन्धित हैं। फिर भी लूका के सुसमाचार की ऐतिहासिक संरचना हमें हमारे सृष्टिकर्ता के सभी राष्ट्रों के लोगों को छुड़ाने के उद्देश्य पर एक अनोखी दृष्टि देती है। संरचनात्मक दृष्टि से कहें तो, विश्व इतिहास में परमेश्वर के कार्य की तीन-चरणीय प्रगति लूका के लेखन में समझने योग्य है, जिसमें उसका सुसमाचार और प्रेरितों के कार्य सम्मिलित हैं। लूका 1:1-3:22 इस्राएल में सर्वशक्तिमान के कार्य पर बल देती है; इस प्रकार, विश्व इतिहास का प्रथम-चरण यहूदी राष्ट्र का युग था जिसमें परमेश्वर ने एक पवित्रजन को उद्धारकर्ता को जन्म देने के लिए तैयार किया। लूका 3:23 –प्रेरितों के काम 1:26 ख्रीष्ट की पृथ्वी की सेवकाई के युग का प्रतिनिधित्व करता है, विश्व इतिहास का दूसरा चरण जिसमें यीशु ने पाप की सामर्थ, मृत्यु, और शैतान को हराया और यहूदियों एवं पुन्तियुस पिलातुस जैसे गैरयहूदियों के सामने परमेश्वर की महिमा की साक्षी दी। प्रेरितों के काम 2-28 और यीशु के वापस आने तक का समस्त कलीसियाई इतिहास  (प्रेरितों के काम 28:28 में निहित) सभी लोगों के उद्धार का समय है, जिसे परमेश्वर आत्मा-सशक्त कलीसिया के कार्य के माध्यम से पूरा करेगा। मानव इतिहास के इस तीसरे चरण के समय में, सुसमाचार यरूशलेम से लेकर पृथ्वी के छोर तक जाता है जब पवित्र आत्मा कलीसिया को ख्रीष्ट में सभी राष्ट्रों के लिए परमेश्वर के अनुग्रह की घोषणा के लिए प्रेरित करता है। इस अवधि की प्रमुख घटना कुरनेलियुस के परिवर्तन में गैरयहूदियों के लिए सुसमाचार और आत्मा का विस्तारण है, एक ऐसा चिन्ह जिसे गैरयहूदी भी “जीवन के लिए मन-फिराव का वरदान” समझ सकते हैं (10:1-11:18)।

विश्व इतिहास के लिए लूका की विशेष चिन्ता पाठकों को मसीहियत की सच्चाई के विषय में आश्वस्त करने में भी सहायता करती है। कुछ अन्य बाइबलीय लेखक कई उल्लेखों को सांसारिक इतिहास के व्यक्तियों और घटनाओं के साथ मेल करा सकते हैं जिन्हें हम लूका और प्रेरितों के काम में पाते हैं। हमें बताया गया है कि यीशु का जब जन्म हुआ तब औगुस्तुस कैसर था और क्विरिनियुस सीरिया का रोमी राज्यपाल था (लूका 2:1-7)। यह देहधारण को वास्तविक स्थान और समय में निर्धारित करता है और किसी भी उस व्यक्ति का खण्डन करता है जो यह कहता है कि कहानी मिथ्या या इतिहास की पहुँच से बाहर है। उसी प्रकार, प्रेरितों के काम 11:27-30 अकाल का उद्धरण करता है जो कि “क्लौदियुस के शासन-काल में हुआ,” वास्तविक इतिहास में परमेश्वर के कार्य को व्यवस्थित करता है, और इस प्रकार यह दर्शाता है कि प्रभु समय पर कार्य करने के लिए अपने से नीचे नहीं सोचते हैं। यूनानी मस्तिष्क के लिए जो भौतिक संसार को परमेश्वरीय चिन्ता के लिए बुरे और अयोग्य रूप में देखता था, परमेश्वर के कार्यों को वास्तविक, भौतिक इतिहास में निर्धारित करना क्रान्तिकारी था और यह दिखाता है कि परमेश्वर न केवल आत्मिक संसार को परन्तु भौतिक घटनाओं, व्यक्तियों, और साथ ही वस्तुओं को भी छु‌ड़ाने की इच्छा रखता है।

यूनानियों और गैरयहूदियों के लिए लूका के लेखन में प्रकट चिन्ता वास्तव में उन लोगों के लिए सुसमाचार है जो इस्राएल के साथ वाचा के बाहर और संसार में बिना आशा के हैं। यदि त्यागे हुओं को भी बचाया जा सकता है, तब पतित सृष्टि के लिए एक वास्तविक आशा है। और लूका का सुसमाचार हमें दिखाता है कि त्यागे हुओं के लिए परमेश्वर का प्रेम गैरयहूदियों तक ही सीमित नहीं है, परन्तु उनके लिए भी है जो यहूदी राष्ट्र के भीतर त्यागे समझे जाते हैं। प्रथम शताब्दी में महिलाओं को यहूदी समाज में नीची दृष्टि से देखा जाता था, परन्तु ख्रीष्ट ने उन्हें निर्देश देने की अपनी इच्छा प्रकट करके सम्मान दिखाया जैसे उसने पुरुषों को भी निर्देशित किया था (लूका 10:38-42)। यह एक क्रान्तिकारी  कार्य था क्योंकि अधिकतर रब्बी महिला चेलों को नहीं लेते थे। लूका हमें बताता है कि कई धनी महिलाओं ने यीशु के मिशन की आर्थिक रूप से सहयोग किया (8:1-3), और, अन्य सुसमाचार के लेखकों के समान, वह प्रकट करता है कि कैसे वे यीशु के साथ उसके आवश्यक  की सबसे घोर समय में साथ रहने के प्रति विश्वासयोग्य थीं जबकि उसके पुरुष चेले कठिनाई के पहले ही संकेत में भाग गए थे (23:44-24:10; मत्ती 27:45 -28:10; मरकुस 15:33-16:8; यूहन्ना 19:25-27; 2-:1-3 भी देखें)।

दरिद्र लोग, जो प्रथम शताब्दी के समाज के कई भागों में इस विश्वास के कारण कि धार्मिकता और धन साथ-साथ रहते हैं त्यागे हुए समझे जाते थे, लूका के सुसमाचार में उन पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। लूका हमें बताता है कि, परमेश्वर की उनके प्रति विशेष चिन्ता है जो दरिद्रता में हैं। मरियम और यूसुफ इस संसार की वस्तुओं के अनुसार दरिद्र थे, क्योंकि मन्दिर में वे केवल पण्डुकों या कबूतरों को ही चढ़ा सकते थे (लूका 2:22; लैव्यव्यवस्था 5:1-3; 12 भी देखें)। विरोधाभासी रूप से, दम्पति अत्याधिक धनी था, क्योंकि उन्हें मसीहा को व्यस्कता तक पालने-पोसने का कार्य सौंपा गया था। लूका यीशु की उन लोगों के प्रति चिन्ता को भी सामने लाता है आवश्यकता में थे, प्रभु की यह शिक्षा अभिलिखित करते हुए कि राज्य उन दरिद्र और भूखों का है जो ख्रीष्ट पर भरोसा करते हैं (6:20-21; 12:13-21; 16:19-31)। बात निस्सन्देह यह नहीं है कि कंगाल किसी भी रीति सहज रूप से धर्मी या परमेश्वर के प्रेम के योग्य हैं। इसके स्थान पर, दरिद्र लोगों के लिए चिन्ता यह इंगित करती है कि हमारा सृष्टिकर्ता उन लोगों की खोज करेगा जिन्हें समाज सम्भवतः या तो भूल गया है त्याग दिया है। उसका राज्य दृढ़ और शक्तिशाली के लिए नहीं है, परन्तु नम्र और दुर्बल के लिए है, और उनके लिए जो दरिद्र हैं क्योंकि उनके पास भरोसा करने के लिए कोई भौतिक वस्तुएँ नहीं हैं, वे प्रायः उन लोगों में से होते हैं जो अपनी दुर्बलताओं के प्रति जागरुक होते हैं। आत्मा की ऐसी दरिद्रता उन सभी के लिए आवश्यक है जो बचाए जाएँगे, चाहें वे भौतिक रूप से सफल हों या नहीं।

मानवीय रूप से कहें तो, यीशु के जीवन और सेवकाई के इस पहलुओं को अभिलिखित करने की लूका को कोई आवश्यकता नहीं थी। वह वर्णन के लिए अन्य घटनाओं को चुन सकता था, क्योंकि उसके पास, अन्य सुसमाचार लेखकों के समान, बताने के लिए सामग्री की कोई कमी नहीं थी (यूहन्ना 21:25)। किन्तु, परमेश्वर पवित्र आत्मा के निर्देशन के अन्तर्गत, लूका ने हमें एक ऐसा सुसमाचार दिया है जो मसीही विश्वास की ऐतिहासिकता को दिखाता है और गैरयहूदियों और अन्य त्यागे हुओं के लिए सर्वशक्तिमान की चिन्ता पर बल देता है। हम इन महत्वों के प्रति आभारी हो सकते हैं क्योंकि वे, जो यहूदी और गैरयहूदी के समान, हमारे पाप के कारण राज्य से निकाल दिए गए हैं, हम सबको वास्तविक आशा देते हैं कि परमेश्वर ने इतिहास में हस्तक्षेप किया और वह सदैव के लिए उन सभी को त्यागा हुआ नहीं समझेगा जो उसके पुत्र पर विश्वास करते हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल टेबलटॉक पत्रिका के सहयोगी संपादक, लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के लिए वरिष्ठ लेखक और रिफॉर्मेशन बाइबल कॉलेज के निवासी सहायक प्राध्यापक हैं।