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मत्ती की साक्षी
12 जुलाई 2022![](https://hi.ligonier.org/wp-content/uploads/2022/07/1920x1080_TT_TheGospels_4_Rothwell_TheWitnessofLuke.jpg)
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लूका की साक्षी
19 जुलाई 2022मरकुस की साक्षी
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सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: सुसमाचार
मत्ती में मरकुस के 97 प्रतिशत पद हैं। तो फिर, हमारे पास मरकुस क्यों है, कयोंकि हम केवल मत्ती को ही पढ़ सकते थे? दो प्रतिस्पर्धी विचारधाराएँ उत्तर देते हैं कि या तो मरकुस वृहद मत्ती के सार के रूप में लिखा गया था या फिर मत्ती को बाद में मरकुस के विस्तारण के रूप में लिखा गया। सुसमाचार के सम्भावित आरम्भ मूल भले ही जो भी हो, हमें इस बात की सराहना करने में असफल नहीं होना चाहिए कि अन्य सुसमाचारों के साथ तुलना करने के साथ-साथ, नए नियम के ग्रन्थ-संग्रह (canon) में मरकुस का अपना स्वयं का मूल्य है। मरकुस एक ऐसा मसीहा के रूप में यीशु का एक बहुत बढ़िया, जीवन्त, रोमांचक प्रस्तुतिकरण है, जिसने क्रूस तक अनिवार्य रूप से कूच किया जहाँ वह स्वयं को अपने लोगों की छुड़ौती के रूप में देने के लिए और, मृत्यु के पश्चात्, परमेश्वर के राज्य के महिमावान राजा के रूप में जी उठने के लिए दृढ़ निश्चयी था। आइए इस अत्यावश्यक पुस्तक की कुछ विशेष बातों को देखें।
मरकुस का सुसमाचार अचानक ही आरम्भ होता और समाप्त होती हा। आरम्भ एक घुड़दौड़ के आरम्भ के समान है जिसमें यहून्ना बपतिस्मा देने वाले या यीशु के जन्म का कोई वर्णन नहीं है। पहला पद एक शीर्षक के समान प्रतीत होता है: “परमेश्वर के पुत्र यीशु ख्रीष्ट के सुसमाचार का आरम्भ।”फिर पुराने नियम से संयुक्त उद्धरण के तुरन्त पश्चात्, जिसमें यशायाह मुख्य नबी है, जो इस विषय में है कि यूहन्ना अग्रदूत है (मरकुस 1:2-3), हमें यूहन्ना के जीवन और कार्य का नाममात्र संकलन दिया जाता है (1:4-8)। यीशु के प्रकट होने से पहले और उसी तीव्र गति से शेष पुस्तक के वृतान्त को सम्भालने के मध्य कोई भी समय नहीं है।
मरकुस की वृतान्त की गति का कारण यह है कि वह कार्य पर ध्यान देता है और कदाचित ही शब्दों पर। उदाहरण के लिए, मत्ती के लम्बे पहाड़ी उपदेश के विपरीत (मत्ती 5-7; लूका 6; 12-13 भी देखें), मरकुस में यीशु की शिक्षाओं के दो छोटे खण्ड हैं (मरकुस 4 और 13), और कुछ छोटे हिस्से पूरी पुस्तक में फैले हैं। अधिकांश भाग में, मरकुस प्रभु के कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करता है।
उदाहरण के लिए, यीशु की परीक्षा के विषय में सोचें। अन्य सहदर्शी सुसमाचारों में अधिक पूर्ण विवरण की तुलना में (मत्ती 4:1-11; लूका 4:1-13) मरकुस में केवल दो ही पद हैं (मरकुस 1:12-13)। अन्यों में, यीशु जंगल में “ले जाया गया” और परीक्षा को अभिलिखित किया गया, परन्तु मरकुस में यीशु जंगली जानवरों के साथ रहने के लिए जंगल जाने की ओर प्रेरित किया गया और परीक्षा के विषय वस्तु को अभिलिखित नहीं किया गया है। मरकुस यीशु की परीक्षा के तथ्य पर ध्यान केन्द्रित करता है और कैसे उसके बपतिस्मा ने उसके लोगों के स्थान पर जंगल और जंगली जानवरों के अभिशाप से जाने का उद्घाटन किया (देखें मरकुस 10:39; लैव्यव्यवस्था 26:22; यिर्मयाह 12:9; 50:39; यहेजकेल 14:21) जिससे कि अब परिणामस्वरूप हम जंगल में सुरक्षित रूप से जंगल में निवास कर सकें (यहेजकेल 34:25; प्रकाशितवाक्य 12:14-16)।
मरकुस की शैली की तत्परता कई प्रकार से चिन्हित है। वह यूनानी लेखकों द्वारा अधिक उपयोग की जाने वाली अत्यन्त घुमावदार शैली के स्थान पर संक्षिप्त, सक्रिय कथनों का उपयोग करता है। साथ ही मरकुस जीवन्त, प्रत्यक्ष उद्धरणों को वरीयता देता है, और कभी-कभी वह आसामन्य अतिरिक्त जानकारी देता है, जैसे कि: “संध्या के समय, सूर्यास्त के पश्चात् . . .” (मरकुस 1:32) या “जब उसके साथियों को भूख लगी और आवश्यकता पड़ी . . .” (2:25)। मरकुस की एक और उल्लेखनीय विशेषता है कि वह एक नयी घटना का परिचय कराने के लिए प्रायः कहता है: “और तुरन्त” —का लगभग चालीस बार उपयोग किया गया है, जो कि मत्ती और लूका में संयुक्त रूप से लगभग दोगुना है।
जब आप मरकुस को एक-एक पद करके पढ़ते हैं, मरकुस की अतिरिक्त जानकारी, जीवन्त शैली की आसामन्य विशेषताओं का पूर्ण प्रभाव खो जाता है, परन्तु यह हमें एक महत्वपूर्ण अवलोकन पर लाता है। प्राचीन काल में, अधिकांश पुस्तकें उच्च स्वर में पढ़ने के लिए लिखी जाती थी और इसलिए सुनने के द्वारा अनुभव की जाती थीं (विशेष रूप से प्रकाशितवाक्य 1:3 देखें)। उस समय पर साक्षरता सामान्य बात नहीं थी, और यहाँ तक कि जो पढ़ सकते हैं, उनको भी एक ऐसे पाठक द्वारा प्रस्तुत किए गए कार्य के पढ़े जाने का अनुभव अच्छा लगता था, जो पाठ में पात्रों के लिए मनोभाव, हाव-भाव, और यहाँ तक कि विभिन्न स्वरों को भी जोड़ सकता था। सार्वजनिक स्थिति में, श्रोताओं का कहानी में सम्मिलित हो जाना और बुरे व्यक्तियों का उपहास करना और भले व्यक्तियों के लिए ताली बजाना और वाहवाही करना सामन्य था।
पिछले कुछ वर्षों में, मरकुस की मौखिक विशेषताएँ का बहुत अधिक फलदायी रूप से पता लगा है। इसका एक निष्कर्ष यह है कि यह दोहराया गया वाक्यांश “और तुरन्त”, मरकुस को छोटे-छोटे टुकड़ों में पढ़ते समय अस्थिर प्रतीत होते हैं जैसा कि हम आजकल करते हैं, वे वास्तव में श्रोता को नयी कथावस्तु का विकास करने और वृतान्त को प्रवाहित रखने की ओर प्रवृत्त करने में सहायता करता है। जैसे यीशु अपने दृष्टान्तों के साथ, वैसे मरकुस एक निपुण कहानीकार है। इसे स्वयं अनुभव करने के लिए, मरकुस को उच्च स्वर में पढ़कर सुनें। पुरी पुस्तक को सुनने में केवल नब्बे मिनट लगता है और यह अनुभव इसके लिए प्रयास के योग्य है।
मरकुस की एक विशेषता जो इसे सुनते समय ध्यान आकर्षित करती है यह है कि पृथक अध्यायों की प्रकरणों के मध्य सम्बन्ध पाए जाते हैं। आइए कुछ केन्द्रीय प्रकरणों को देखें, जो मरकुस के सुसमाचार की मुख्य रूपरेखा को प्रदर्शित करते हैं।
मरकुस 6:30-44 में, यीशु पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराता है और चेले यीशु की आज्ञा पर उलझन में पड़ जाते हैं: “तुम ही उन्हें कुछ खाने को दो” (6:37)। इसके पश्चात् वृतान्त शीघ्रता से मरकुस 8:1-10 की ओर बढ़ती है जहाँ यीशु चेलों को बताता है कि उसे अपने पीछे आने वाले चार हज़ार लोगों पर दया आती है और वह उन्हें खिलाना चाहता है। परन्तु बारह प्रत्युत्तर देते हैं: “इन्हें तृप्त करने के लिए इस जंगल में कोई इतनी रोटी कहाँ से ला सकता है?” (8:4)। श्रोताओं के रूप में हम सोच रहे हैं, “एक मिनट, क्या अभी उन्होंने यीशु को पाँच हज़ार को खिलाते नहीं देखा? क्या वे नहीं देख सकते कि यीशु कुछ भी कर सकता है?!” मरकुस ने हमें कहानी की ओर खींच लिया है।
जैसा कि मरकुस 8 के दूसरे भोजन कराने के चमत्कार के पश्चात् मरकुस आगे बढ़ता है, यीशु चेलों को फरीसी के ख़मीर से बच कर रहने के लिए कहता है, परन्तु वे केवल उस एक भौतिक रोटी के विषय में सोच रहे थे जो उनके पास थी। तो यीशु उन्हें दो बार भोजन कराने के विषय में स्मरण कराते है (मरकुस 8:14-21)। मरकुस के वृतान्त के इस बिन्दु पर हम श्रोता लोग चेलों से निराशा होने लगते हैं, परन्तु फिर मरकुस 8:27-30 में चमत्कार होता है। यीशु चेलों की अपनी पहचान के विषय में जाँच करता है, और पतरस, कमसमझ के चेलों का प्रतिनिधित्व करते हुए, अन्ततः स्वीकार करता है, “तू ख्रीष्ट है” (8:29; मत्ती 16:16 और लूका 9:20 से तुलना करें)।
पतरस द्वारा यीशु का अंगीकार करना मरकुस के सुसमाचार का केन्द्रबिन्दु और द्वार के कब्जे के समान है, जिसे देखने के लिए उसने निपुणता से हमें आकर्षित किया है। सुसमाचार के पहले आधे भाग में, यीशु के सामर्थी कार्य उसकी उस ख्रीष्ट (या मसीहा) के रूप में पहचान को प्रमाणित करते हैं. जो कि परमेश्वर के राज्य में शासन करेगा। यह यीशु की शिक्षा का मुख्य बात रही है: “समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट है, मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो”(मरकुस 1:15)। परन्तु मरकुस 1:1 के अतिरिक्त, शीर्षक “ख्रीष्ट” का उपयोग तब तक नहीं होता है जब तक सुसमाचार की धुरी के समय जब पतरस यीशु द्वारा दबाव डाले जाने पर अंगीकार करता है: ”तू ख्रीष्ट है” (8:29)। अब चेले समझ गए हैं। भोजन कराने की घटनाओं ने हमें और उन्हें अन्ततः यह देखने की ओर प्रेरित किया कि यीशु कौन है।
तो फिर, मरकुस के सुसमाचार का प्रथम भाग, यीशु की सब लोगों पर मसीहाई पहचान के प्रदर्शन पर निर्भर है। परन्तु हर कोई उसके विषय में भ्रम में है—दुष्टात्माओं को छोड़कर! (मरकुस 1:24, 34; 3:11)। मरकुस यीशु के प्रति लोगों की भ्रमित प्रतिक्रियाओं को उनके भय, आश्चर्य, विस्मय, विभ्रान्ति और यहाँ तक कि स्तब्धता को उनतीस स्थानों पर आठ विभिन्न यूनानी शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। यह यीशु कौन है जो शास्त्रियों के समान नहीं है (1:22)? फरीसी सोचते हैं कि वह दुष्टात्माग्रस्त है, (3:22-30); हेरोदेस सोचता है कि वह यूहन्ना है जो फिर से जी उठा है, जबकि अन्य सोचते हैं कि वह एल्लियाह या आने वाला महान नबी है (6:14-16; व्यवस्थाविवरण 18:15 देखें); यीशु का परिवार सोचता है कि उसका चित्त ठिकाने पर नहीं है (मरकुस 3:20-21), और यहाँ तक कि उसके चेले भी घबराए हुए हैं: “और वे अत्यन्त भयभीत हुए और आपस में कहने लगे, ‘आखिर यह है कौन कि आंधी और लहरें भी इसकी आज्ञा मानती हैं?’” (4:41)।
लोगों की भ्रमित प्रतिक्रिया यीशु के सच्चे, राजसी अधिकार को चिन्हांकित करती है: “लोग उसके उपदेश से चकित हुए, क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों के समान नहीं, वरन् अधिकार से उपदेश दे रहा था” (मरकुस 1:22)। यीशु, परमेश्वर का पुत्र (1:9-11) और वह जो यूहन्ना से अधिक पराक्रमी है (1:7-8), शक्तिशाली शब्दों और कार्यों में पवित्र भय और विस्मयपूर्णता को उत्पन्न करता है जब वह पापों को क्षमा करता है (2:1-12), विजयी रूप से दुष्टात्माओं की सेना के विरुद्ध लड़ता है (5:1-20; मत्ती 8:28-34 और लूका 8:26-39 से तुलना करें), और अन्ततः इन कार्यों को करने के अपने अधिकार के लिए यरूशलेम में अधिकारियों के साथ विरोध का सामना करता है (मरकुस 11:27-33)। परन्तु यीशु का शासन अन्यजाति के शासकों से पूर्णतः भिन्न है क्योंकि वह यशायाह की दुख उठाने वाले सेवक की भविष्यद्वाणी को पूरा करने आया था (मरकुस 10:42-45; यशायाह 40-66 देखें )।
फिर, पतरस के अंगीकार के साथ, अब हम जानते हैं कि यीशु कौन है: सम्प्रभु, परमेश्वरीय-मानव मसीहा। यीशु मरकुस के प्रथम भाग में इस विश्वास के अंगीकार की ओर कार्य कर रहा है, जिससे कि दूसरे भाग में वह अपने चेलों को क्रूस पर अपने सच्चे छुटकारे के मिशन को प्रकट करना आरम्भ कर सके। विशेषकर यूहन्ना के सुसमाचार के विपरीत, मरकुस में यह अवस्थान्तर, इस प्रकार रेखान्कित किया गया है कि मरकुस के प्रथम भाग में कार्य लगभग पूरी रीति से गलील में होता है, फिर दूसरे भाग में यीशु अपने मुख को यरूशलेम की ओर रखता है जहाँ उसे अपने लोगों की छुड़ौती के लिए इस्राएल के अगुवों के हाथों दुख उठाना होगा (उदाहरण के लिए, मरकुस 8:31; 9:12; और 10:45)।
अन्त में, मरकुस श्रोता को यीशु के शब्दों, परन्तु विशेषकर शक्तिशाली कार्यों में राजसी आधिकार के एक गतिशील विवरण को प्रदान करता है, जिसने उसके समकालीन व्यक्तियों को उनके अलौकिक चरित्र से स्तब्ध कर दिया। वे कार्य एक प्रदर्शन थे कि परमेश्वर का राज्य वास्तव में उसके आगमन के साथ निकट आ गया था। फिर भी इस राज्य का शुभारम्भ एक राजनैतिक क्रान्ति नहीं था, वरन् अपने लोगों के लिए राजा का स्वयं का स्थानापन्न बलिदान था, जो उसने अपने पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण से पहले किया जिसके बाद वह “दाहिनी ओर बैठा हुआ और स्वर्ग के बादलों से” आएगा (मरकुस 14:62)। मरकुस ने इस कहानी को इस प्रकार से सुनाया कि, ध्यान देने वाला श्रोता प्रथम चेलों के साथ यह अंगीकार करने की ओर ले जाए जाएंगे कि: “तू ख्रीष्ट है।”