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यीशु पुनरुत्थान और जीवन कैसे है?

The-Resurrection-and-the-Life

—जॉर्डन स्टोन 

सभोपदेशक का बुद्धिमान शिक्षक एक ऐसे स्थान के विषय में बात करता है जो ईश्वरभक्ति को बढ़ाती है, और उस स्थान का पता आपको आश्चर्यचकित कर सकता है। वह कहता है,  

“उत्सव मनाने वाले के घर जाने की अपेक्षा शोक मनाने वाले के घर जाना अधिक अच्छा है” (सभोपदेशक 7:2)। 

पुनः, वह स्मरण कराता हैं कि, “बुद्धिमान का हृदय शोक करने वालों के घर में लगा रहता हैं” (सभोपदेशक 7:4)। 

आप सम्भवत समझ गए होंगे कि उसका क्या अर्थ है। अन्तिम संस्कार में सम्मिलित होना या कब्रिस्तान जाना प्राण के लिए अच्छा हो सकता है क्योंकि इससे शाश्वत वास्तविकताएँ और भी पास आ जाती हैं। 

यूहन्ना 11 पाठक को शोक के घर में ले जाता है। पवित्र आत्मा हमें यहाँ इसलिए लाता है जिससे कि हम मृत्यु की निराशा और पराजय के विषय में कुछ सीख सकें। यूहन्ना के ग्यारहवें अध्याय के विषय में जे.सी. राइल लिखते हैं, “यूहन्ना का ग्यारहवाँ अध्याय नए नियम के सबसे उल्लेखनीय अध्यायों में से एक है। भव्यता और सरलता के लिए, करुणा और गम्भीरता के लिए, इसके जैसा कुछ भी कभी भी नहीं लिखा गया।”1     

परिस्थिति

पाठ का प्रारम्भ यीशु को यह सन्देश मिलने से होता है कि उसका मित्र लाज़र बीमार है (यूहन्ना 11:3)। मरियम और मार्था ने निश्चित रूप से बीमारी पर यीशु के अधिकार के विषय में सुना होगा, और कदाचित देखा भी होगा। उनका मानना ​​है कि यदि यीशु यथाशीघ्र लाज़र के पास चले जाये, तो वे लाज़र को बचा सकते हैं।     

परन्तु यीशु का प्रतिउत्तर ऐसा नहीं था जिसकी किसी ने अपेक्षा की होगी।  

यूहन्ना बताता है: “यीशु तो मार्था और उसकी बहिन और लाज़र से प्रेम करता था। फिर भी जब उसने सुना कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया” (यूहन्ना 11:5–6)। छोटा शब्द “तो” वह शब्द है जिसका सामान्य रूप से अनुवाद “इसलिए” किया जाता है। इस प्रकार, पाठ अधिक शाब्दिक रूप से कहता है, “यीशु तो मार्था और उसकी बहिन और लाज़र से प्रेम करता था। इसलिए … वह दो दिन और ठहर गया।” रूचिकर बात यह है कि यीशु के प्रेम ने उसे प्रतीक्षा करने के लिए प्रेरित किया। अपने शिष्यों में उसकी प्रसन्नता के कारण उसे विलम्ब करना पड़ा। वह इसलिए रुका जिससे कि पीड़ा और बीमारी अपना पूरा प्रभाव दिखा सकें। 

हम ख्रीष्ट की पाठशाला में इस महान् पाठ को बार-बार सीखते रहते हैं। आपने कितनी बार प्रभु से कुछ माँगा है, और उसने तुरन्त उत्तर नहीं दिया? या उसने समय पर उत्तर नहीं दिया? समझिए कि उसकी निष्क्रियता केवल उसकी प्रेममयी योजना का एक भाग हो सकती है, अर्थात् एक ऐसी योजना जो आपके माँगने या सोचने से कहीं अधिक करने के लिए बनी है।    

कथन

लाज़र की मृत्यु के चार दिन बाद, यीशु अंततः शोकाकुल घर में पहुँचता हैं। मार्था यीशु के पास दौड़ी आती है और उससे मिलने पर कहती है: “प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई नहीं मरता। अब भी मैं जानती हूँ कि तू परमेश्वर से जो कुछ माँगेगा, परमेश्वर तुझे देगा” (यूहन्ना 11:21-22)। विश्वास का बीज स्पष्ट रूप से मार्था में उपस्थित है। यीशु उसे आश्वस्त करता हैं कि “तेरा भाई फिर जी उठेगा” (यूहन्ना 11:22)।   

मार्था उत्तर देती है, “मैं जानती हूँ कि अंतिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा” (यूहन्ना 11:24)। यीशु के दिनों में फरीसियों और सदूकियों के बीच पुनरुत्थान को लेकर बहुत बहस हुई थी। सवाल यह था कि क्या इतिहास के अन्त में पुनरुत्थान होगा। पुनरुत्थान के विषय में मार्था का झुकाव धार्मिक रूप से फरीसियों की ओर था। उसका मानना ​​था कि युग के अन्त में लाज़र फिर से जी उठेगा। लेकिन यीशु वर्तमान के विषय में बात कर रहा हैं। इसलिए, वह कहता हैं: “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ। जो मुझ पर विश्वास करता है यदि मर भी जाए, फिर भी जिएगा, और प्रत्येक जो जीवित है, और मुझ पर विश्वास करता है, कभी नहीं मरेगा। क्या तू इस पर विश्वास करती है?” (यूहन्ना 11:25-26)।    

यह यूहन्ना में पाँचवाँ “मैं हूँ” कथन है–और यह बहुत चौंकाने वाला है। यीशु कह रहा हैं: “मैं केवल पुनरुत्थान की शिक्षा नहीं देता; मैं ही पुनरुत्थान हूँ। मैं केवल जीवन के लिए परमेश्वर के सामर्थ्य का उपदेश नहीं देता; मैं ही जीवन के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य हूँ। केवल इस पर विश्वास मत करो; मुझ पर विश्वास करो।” सच्चा विश्वास केवल यीशु के विषय में जानकारी और तथ्यों पर विश्वास करना नहीं है। वरन्, यह उस पर विश्वास करना है — जिसमें सभी सत्य निवास करते हैं।      

निश्चितता

जब यीशु ने ऊँची शब्द से पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ,” तो मरा हुआ-से-जी उठा व्यक्ति उद्धार का चलता-फिरता दृष्टाँत बन जाता है। वह यीशु का जीवित स्मारक है जो पुनरुत्थान और जीवन है। लाज़र के जी उठने के बाद, यीशु ने आज्ञा दी, “उसके बन्धन खोल दो और उसे जाने दो” (यूहन्ना 11:43–44)। 

यहाँ सुसमाचार का कितना सुन्दर और सजीव चित्रण किया गया हैं! बाइबल कहती है कि हम सब अपने पाप में मरे हुए हैं। अविश्वास के चीथड़े हमें फँसाते हैं और पाप के वस्त्र हमें ढँके होते हैं। स्वयं को जीवित करने के लिए हम कुछ नहीं कर सकते, जैसा कि लाज़र के साथ हुआ था। परन्तु परमेश्वर मरे हुए पापियों को जीवित कर देता है जब वे यीशु पर विश्वास करते हैं। उद्धारकर्ता पापियों के स्थान पर मरा, फिर जी उठा, और इसलिए मृत्यु और नरक की कुँजियाँ उसके पास हैं। वह हमें पुकारता है, “बाहर निकलो। अपने पाप से फिरो और मुझ पर भरोसा करो। मैं तुम्हें पाप के बँधनों से मुक्त करूँगा और तुम्हें नया जीवन दूँगा।”   

आइए हम उसके चिह्न को देखें, उसके कथन को सुनें, और पाँचवें “मैं हूँ” कथन के प्रति मार्था के समान प्रतिउत्तर देते हुए कहें: “हाँ प्रभु, मैंने विश्वास किया है की तू ही परमेश्वर का पुत्र ख्रीष्ट है” (यूहन्ना 11:27)।   

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जॉर्डन स्टोन
जॉर्डन स्टोन
डॉ. जॉर्डन स्टोन मैकिन्नी, टेक्सास में रिडीमर प्रेस्बिटेरियन चर्च में वरिष्ठ पादरी हैं और डलास में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में पादरी धर्मशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें ए होली मिनिस्टर: द लाइफ एंड स्पिरिचुअल लिगेसी ऑफ रॉबर्ट मरे मैक'चेन शामिल हैं।