मत्ती की साक्षी - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: सुसमाचार

बाइबलीय अध्ययन के इतिहास में, हमने पिछली दो शताब्दियों में तथाकथित “उच्चतर आलोचना” (higher criticism) का उदय देखा है। अत्याधिक उच्चतर आलोचना बाइबलीय स्थलों की विश्वसनीयता के सन्दर्भ में सन्देहवाद के द्वारा अधिक भड़काई जाती है। क्योंकि शास्त्रसम्मत मसीही उच्चतर आलोचना के कई तर्कों के विरोध में रहते हैं, वे कभी-कभी उन मूल्यवान अन्तदृष्टि को अनदेखा कर देते हैं जो कि स्थल के आलोचनात्मक विश्लेषण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इनमें से कुछ विश्लेषण बाइबल की सही समझ को पाने के प्रयत्न में सहायक हो सकते हैं।

आलोचनात्मक विद्वता का एक तत्व जो यह कर सकता है, वह परिमाण है जिसे स्रोत आलोचना (source criticism) के रूप में जाना जाता है। जैसा कि शीर्षक से पता चलता है, इस प्रकार की आलोचना उस मार्ग के पुनर्निर्माण का प्रयास करती है जिसमें सहदर्शी (synoptic) सुसमाचार (मत्ती, मरकुस, और लूका) लिखे गए।

स्रोत आलोचकों के मध्य सामान्य धारण यह है कि मरकुस सर्वप्रथम लिखित सुसमाचार है। यह मत्ती और लूका के विश्लेषण से देखा जाता है—मत्ती और लूका दोनों के पास उनके सुसमाचारों  में जो सामग्री है वह मरकुस के सुसमाचार के समान है। साथ ही, कुछ ऐसी सामग्री है जो कि लूका और मत्ती में पायी जाती है परन्तु मरकुस में नहीं पायी जाती। फिर विद्वान इन दोनों सुसमाचारों में पायी जाने वाली उस सामान्य जानकारी का पता लगाने का प्रयास करते हैं जो कि मरकुस के सुसमाचार से अनुपस्थित है। मानी जानी वाली प्राकल्पना यह है कि मत्ती और लूका के पास, अपनी जानकारी के लिए एक स्रोत के रूप में मरकुस के होने के साथ ही, एक दूसरा स्वतन्त्र स्रोत था जिसका उपयोग मरकुस ने नहीं किया था। इस दूसरे स्वतन्त्र स्रोत को “क्यू-स्रोत” (Q-source) कहा जाता है।

अक्षर Q का उपयोग किया जाता है क्योंकि यह जर्मन शब्द क़्वेले (quelle) का प्रथम अक्षर है, जिस का अर्थ स्रोत है। अर्थात्, क्यू-स्रोत एक ऐसा स्रोत है जो हमारे लिए अज्ञात है परन्तु सुसमाचार लेखक मत्ती और लूका के लिए ज्ञात है। इस विश्लेषण का अधिकांश भाग काल्पनिक और परिकल्पित है। विद्वान इस बात में असहमत हैं कि क्या तथाकथित क्यू-स्रोत मत्ती और लूका द्वारा साझा किया गया एक लिखित स्रोत था, या केवल मौखिक था जिस तक उन दोनों की पहुँच थी। उन विधियों के विषय में हम भले जहाँ जिस निष्कर्ष पर पहुँचे जिसके द्वारा सुसमाचार के लेखकों ने अपने पाठ को संकलित किया, वही विश्लेषण जिसे हमने देखा, हमें एक स्पष्ट लाभ देता है। उस सामग्री को पृथक करके जो मत्ती और केवल मत्ती में मिलती है, या उस सामग्री को पृथक करके जो लूका और केवल लूका में मिलती है, या उस सामग्री को पृथक करके जो मरकुस और केवल मरकुस में मिलती है, हमें उन श्रोताओं के संकेत मिलते हैं जिनको लेखक अपनी जानकारी और साथ ही उस विशेष सुसमाचार में प्रमुख विषयों को निर्देशित करता है।

उदाहरण के लिए, मत्ती के सुसमाचार को देखने पर, हम किसी अन्य सुसमाचार की तुलना में पुराने नियम के अधिक उद्धरण और संकेत पाते हैं। यह तथ्य अकेला ही इस विचार को विश्वसनीयता प्रदान करता है कि मत्ती अपने सुसमाचार को प्रमुख रूप से यहूदी श्रोताओं की ओर निर्देशित कर रहा था यह दिखाने के लिए कि कैसे लम्बी अवधि से प्रतीक्षित मसीहा, यीशु ने, पुराने नियम की भविष्यद्वाणी को पूरा किया।

हम मत्ती के सुसमाचार में इतिहास के उस अवधि के यहूदी याजकों की कड़ी निन्दा को भी देखते हैं जो यीशु के विनाश के लिए उत्तरदायी थे। शास्त्रियों और फरीसियों को विशेष रूप से चुना जाता है, और मत्ती हमारे लिए शास्त्रियों और फरीसियों के पाखण्ड के लिए बोले गए शाप के न्याय को अभिलिखित करता है। कुछ सीमा तक सम्बन्धित विषय में, हम अन्य चारों सुसमाचार की तुलना में मत्ती में यीशु की नरक के विषय में शिक्षा सम्बन्धित अधिक जानकारी पाते हैं।

परन्तु, यदि हमें एक एकल विषय को देखना हो जो कि मत्ती के पूरे सुसमाचार का अत्याधिक केन्द्रीय और अत्याधिक महत्वपूर्ण विषय हो, तो वह राज्य के आगमन का विषय होगा। हम पहले सन्दर्भ में देखते हैं कि सुसमाचार शब्द राज्य के सुसमाचार को सन्दर्भित करता है—परमेश्वर के राज्य के आने की घोषणा का सुसमाचार। मत्ती में, वह ”परमेश्वर के राज्य” की शब्दावली के स्थान पर “स्वर्ग के राज्य” वाक्यांश का उपयोग करता है। वह ऐसा इसलिए नहीं करता है कि उसका परमेश्वर के राज्य के अर्थ या विषय वस्तु के प्रति भिन्न दृष्टिकोण था; वरन् अपने यहूदी पाठकों के प्रति संवेदनशीलता के कारण, उसने जो वाक्य विस्तार (periphrasis) कहलाता है, परमेश्वर के पवित्र नाम का उल्लेख करने से बचने के लिए एक निश्चित प्रकार की वक्रोक्ति (circumlocution ) का सामान्य उपयोग किया। इसलिए मत्ती के लिए, स्वर्ग के राज्य का सिद्धान्त वही राज्य है जिसको अन्य लेखक परमेश्वर का राज्य कहते हैं।

मत्ती देहधारण में राज्य के आने और यीशु के आगमन की बात करता है। वह यीशु की सार्वजनिक सेवकाई के आरम्भ में राज्य के आने की घोषणा करता है, और पुस्तक के अन्त में मत्ती जैतून पर्वत के उपदेश में उस राज्य के अन्तिम समापन के आने की बात करता है। तो मत्ती के प्रथम पृष्ठ से अन्तिम पृष्ठ तक, हम परमेश्वर के राज्य के आगमन और स्वयं उस राजा के आने के एकीकरणीय विषय को देखते हैं, जो मसीहा है और यहूदा को दिए गए राज्य की परिपूर्ति है।

मत्ती का सुसमाचार यीशु की शिक्षाओं और विशेषकर उसके दृष्टान्तों के विषय में विस्तृत जानकारी से समृद्ध है, जो सदैव अन्य सुसमाचारों में सम्मिलित नहीं होता। पुनः, यीशु के दृष्टान्तों का केन्द्र-बिन्दु राज्य है, जहाँ वह दृष्टान्तों का यह कह कर परिचय देता है, “स्वर्ग का राज्य इस प्रकार का है . . .” या “स्वर्ग का राज्य उस प्रकार का है . . . ।” यदि हम राज्य के उद्घाटन करने के लिए समय की पूर्णता में यीशु की प्रकटन के महत्व को समझना चाहते हैं, तो सन्त मत्ती के सुसमाचार में हमें वह केन्द्र को स्पष्ट रूप से दिखता हुआ प्रतीत होता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।