ख्रीष्टियों को अपने आदतन पापों से कैसे व्यवहार करना चाहिए ? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
धार्मिकता को आत्मिकता के साथ भ्रमित न करें
5 फ़रवरी 2021
धर्मसुधार कैसे फैला?
5 फ़रवरी 2021
धार्मिकता को आत्मिकता के साथ भ्रमित न करें
5 फ़रवरी 2021
धर्मसुधार कैसे फैला?
5 फ़रवरी 2021

ख्रीष्टियों को अपने आदतन पापों से कैसे व्यवहार करना चाहिए ?

ख्रीष्टिय साहित्य में एक उत्कृष्ट लेख है एक भक्ति पुस्तिका जो सन्त थॉमस ए केम्पिस द्वारा लिखित जिसका नाम द इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट  है। उस पुस्तक में वह बात करता है उस संघर्ष के बारे में जो कई ख्रीष्टियों का है ऐसी आदतों के साथ जो पापमय हैं। वह कहता है कि पवित्रीकरण के लिए संघर्ष होता है प्रायः इतना कठिन और जो विजय हम प्राप्त करते हैं इतनी कम और असाधारण प्रतीत होती हैं, यहाँ तक कि महान सन्तों के जीवनों में भी, कुछ ही थे जो अपने आदतन पापों पर विजय पाने में सक्षम थे। हम बात कर रहे हैं उन लोगों के बारे में जो आवश्यकता से अधिक खाते हैं और इस प्रकार के पापों से संघर्ष करते हैं, न कि उन लोगों के बारे में जो दास हैं भयंकर और घोर पाप के। अब थॉमस ए केम्पिस के शब्द पवित्र वचन नहीं है, परन्तु वह हमें बुद्धि देता है एक महान सन्त के जीवन से। 

इब्रानियों का लेखक कहता है कि हम  उस पाप का विरोध करने के लिए बुलाए गये हैं, जो सरलता से हमें घेर लेता है और कि हम चिताए और प्रोत्साहित किए जाते हैं साधारणत: कठिन परिश्रम करके इन पापों पर विजय प्राप्त करने के लिए। आप कहते हैं, कैसे हम इन पाप के क्षेत्रों से बचें जिनसे हम बहुत अधिक संघर्ष करते हैं, जिनके प्रति हम सत्यनिष्ठा से और हृदय से इच्छा रखते है कि हम न करें? यदि न करने की इच्छा वास्तव में सत्यनिष्ठ है और हृदय को भेदती है, तो हम नब्बे प्रतिशत घर पहुंच गए हैं। वास्तव में, हमें किसी बात में बन्धें नहीं होना चाहिए। हम इसलिए इन दोहराए जाने वाले पापों में बने रहते हैं क्योंकि हमारी हृदय की इच्छा है उनमें बने रहने की, इसलिए नहीं क्योंकि हमारी हृदय की इच्छा है कि उन्हें रोके। मैं सोचता हूँ कि हमारा समर्पण कितना सच्चा है छोड़ने के लिए। हम में प्रवृत्ति है अपने आप को धोखे में डालने कि जब भी हम एक प्रिय पाप को पालते हैं। हमें इस तथ्य का सामना करने की आवश्यकता है कि हम इसलिए पाप करते हैं क्योंकि हम उस क्षण में उस पाप को करना चाहते हैं ख्रीष्ट की आज्ञा का पालन करने से बढ़कर। इसका यह अर्थ नहीं है कि हम में कोई इच्छा नहीं है उस से स्वत्रन्त होने के लिए, परन्तु हमारी इच्छा का स्तर घटता-बढ़ता रहता है। भोज के बाद परहेज करना सरल है परन्तु यदि आपने पूरे दिन भोजन नहीं किया है तो परहेज में बने रहना कठिन होता है। यही होता है विशेष रूप से आदतन पापों के साथ जिनमें शारीरिक या कामुक भूख निहित हैं। इच्छा का क्षीण होना और प्रवाह कभी घटता और कभी बढ़ता है। यह बढ़ता है और धुंधला हो जाता है। हमारा पश्चात्ताप करने का संकल्प बड़ा है जब हमारी भूखों को तृप्त कर दिया जाता है, उसके बाद भी जब वे तृप्त नहीं होती हैं, तो हमारे पास एक बढ़ता हुआ आकर्षण है उन विशेष पापों को करने के लिए।

मैं सोचता हूँ कि हमें सबसे पहले सच्चा होना चाहिए इस तथ्य के बारे में कि वास्तव में हमारी इच्छा में द्वन्द इन बातों के मध्य कि हम क्या करना चाहते हैं और परमेश्वर क्या चाहता है कि हम करें। मैं सोचता हूँ कि हमें अपने प्राणों को परमेश्वर के वचन से भरना चाहिए ताकि हम उस बात को अपने मष्तिक में स्पष्टता से समझ सकें कि परमेश्वर हमसे क्या चाहता है कि हम करें और फिर आज्ञापालन करने लिए एक दृढ़ इच्छा को बना सकें।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।
आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।