इन अन्त के दिनों में जीना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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इन अन्त के दिनों में जीना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: दो जगत के मध्य

कभी कभी लोग मुझसे पूछते हैं कि अन्त के दिन कब आएंगे, और मैं उन्हें बताता हूँ कि अन्त के दिन दो हज़ार वर्ष पूर्व आरम्भ हो चुके हैं। वे यीशु ख्रीष्ट की सेवकाई, मृत्यु, और पुनरुत्थान के साथ आरम्भ हो चुके हैं। पतरस हमें बताता है कि ख्रीष्ट आगमन नबूवत और पूर्वानुमानित था, और “इन अन्तिम दिनों में” वह “प्रकट” हुआ है (1 पतरस 1:20)। जैसा कि इब्रानियों 1:2 कहता है, “इन अन्तिम दिनों में [परमेश्वर ने] हमसे अपने पुत्र के द्वारा बातें की हैं,” यह दिखाता है कि पुत्र के आगमन के साथ अन्त के दिन आ गए हैं। और पुत्र ने अन्त के दिनों में अन्तिम और नियत शब्द बोले हैं।

उसी रीति से, पिन्तेकुस्त के दिन पतरस बताता है कि अन्त के दिनों के विषय में आत्मा के भेजने में योएल की नबूवत पूरी हो गयी है (प्रेरितों के काम 2:16-18)। चूंकि यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया और ऊँचा किया गया, आत्मा अब उन सब पर उड़ेंला जाता है जो अपने पापों से पश्चाताप करते हैं और अपना विश्वास यीशु ख्रीष्ट में रखते हैं। यहाँ तक कि प्रेरित यूहन्ना भी कहते हैं कि “यह अन्तिम घड़ी है” (1 यूहन्ना 2:18), और इस प्रकार हम दो हज़ार वर्षों से अन्तिम घड़ी में जी रहे हैं।

राज्य स्वयं यीशु में आया है, और यह आत्मा के सामर्थ के द्वारा यीशु का दुष्टात्माओं को निकालने के द्वारा प्रमाणित होता है (मत्ती 12:28)। मत्ती 13 में यीशु द्वारा बताया गया दृष्टान्त “स्वर्ग के राज्य के भेदों” को प्रकट करता है (पद 11), और हम दृष्टान्तों के सन्देश को यह कहते हुए सारांशित कर सकते हैं कि राज्य का उद्घाटन हुआ है परन्तु परिपूर्ति नहीं। राज्य पहले भविष्यसूचक सामर्थ में नहीं आया परन्तु राई के दाने के समान छोटा है और गूँधे हुए आटे में खमीर के समान अदृश्य है।   

अन्त के दिन आ गये हैं और राज्य का उद्घाटन हो चुका है, परन्तु एक दिन परमेश्वर के राज्य की परिपूर्ति भी हो जाएगी, इसी लिए हम प्रार्थना करते हैं, “तेरा राज्य आए” (मत्ती 6:10), और साथ ही हम प्रार्थना करते हैं, “हे प्रभु यीशु आ” (प्रकाशितवाक्य 22:20)। विश्वासियों के रूप में, हम दोनों समयों के मध्य जीवन जीते हैं, और इसलिए यद्यपि अभी भी ख्रीष्ट के अनुग्रह के द्वारा हमारा पवित्रीकरण हुआ है (1 कुरिन्थियों 1:2), हमारा पूर्ण और सम्पूर्ण पवित्रीकरण यीशु के पुनः आने वाले दिन पर होगा (1 थिस्सलुनीकियों 5:23-24; 1 यूहन्ना 3:2)। यीशु ख्रीष्ट में विश्वासियों के रूप में, अब हम परमेश्वर की लेपालक संतान हैं (रोमियों 8:15-16), परन्तु लेपालकपन की पूर्णता का आभास पुनरुत्थान के दिन होगा जब हमारे शरीर परिवर्तित हो जाएंगे (पद 23)। उसी रीति से, चूंकि अन्त के दिन आरम्भ हो चुके हैं, हम यीशु के लहु के द्वारा छुड़ाए गए हैं (इफिसियों 1:7; कुलुस्सियों 1:14), परन्तु हमारा छुटकारा तब पूरा होगा जब हमारे शरीर मृतकों में से जी उठेंगे (रोमियों 8:23)। विश्वासियों को अब केवल विश्वास के द्वारा अनुग्रह के द्वारा बचाया जाता है (इफिसियों 2:8), और फिर भी हम अन्तिम न्याय के दिन की प्रतीक्षा करते हैं जब हम परमेश्वर के क्रोध से बचाए जाएंगे (रोमियों 5:9)।

अन्त के दिन और पवित्रीकरण

जबकि अन्त के दिन आ चुके हैं, अब हम उस युग में जी रहे हैं जब परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ पूरी हो रही हैं। हमसे प्रतिज्ञा की गयी है कि जब हम यीशु को देखेंगे हम उसके समान हो जाएंगे (1 यूहन्ना 3:2), और अन्त-समय के परिवर्तन की यह आशा हमें अब भी यीशु के समान बनने के लिए प्रेरित करती है,  और इस प्रकार हम शुद्ध और पवित्र जीवन जीने का प्रयत्न करते हैं (पद 3)। परमेश्वर सब कुछ जो होता है उस पर सम्प्रभु है, और उसी समय हमारे पवित्र जीवन उसके आने के दिन को शीघ्र ला सकते हैं (2 पतरस 3:12)। अन्य शब्दों में, हमारे जीवनों की पवित्रता सम्भवतः उन साधनों में से एक हो सकता है जिसका परमेश्वर अन्तिम अन्त लाने के लिए करता है। अन्त समय की प्रतिज्ञा ख्रीष्ट के समान बनने की हमारी इच्छा को शान्त नहीं करती परन्तु हमारे जीवने जीने के उत्साह को इस रीति से प्रोत्साहित करती है जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है।

परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं का उद्घाटन और पूर्ति के मध्य के अन्तराल को प्रायः हो चुका  पर अभी तक नहीं  के सन्दर्भ में वर्णित किया जाता है। परमेश्वर ने पहले ही उद्धार की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर दिया है, परन्तु साथ ही इसमें एक अभी-नहीं का आयाम है जिसमें प्रतिज्ञाएँ अभी पूर्ण नहीं हुई हैं। हो चुका  परन्तु अभी तक नहीं  जीवन के हर क्षेत्र को बताता है। जब पवित्रीकरण की बात आती है, विश्वासियों को आशावादी होना चाहिए क्योंकि हम अन्तिम-समय के उपहार पवित्र आत्मा का आनन्द लेते हैं। चूँकि आत्मा दिया गया है, विश्वासियों को पवित्र आत्मा से भरा होना चाहिए (इफिसियों 5:18), पवित्र आत्मा के अनुसार चलना चाहिए (गलातियों  5:16); पवित्र आत्मा के चलाए चलना चाहिए (पद 18), आत्मा का फल प्रकट होना चाहिए (पद 22), आत्मा के अनुसार चलें (पद 25), और आत्मा को बोएं (6:8)। अन्य शब्दों में, पवित्र आत्मा के सामर्थ के द्वारा, अब हम उस प्रकार से जी सकते हैं जैसा परमेश्वर को प्रसन्न करता है। हम आत्मा के द्वारा एक दूसरे से प्रेम करने और व्यवस्था को पूरा करने के योग्य हैं (रोमियों 8:2-4)। हम परमेश्वर के अनुग्रह और सामर्थ से परिवर्तित हो रहे हैं क्योंकि अन्त के दिन आ गए हैं।       

दूसरी ओर, हमें नहीं भूलना चाहिए, कि पवित्रीकरण का एक अभी-नहीं आयाम भी है। विश्वासियों के रूप में, हम अभी पवित्रता में सिद्ध नहीं हुए हैं। शरीर और आत्मा के मध्य युद्ध अभी भी उग्र है (गलातियों 5:16-18), और हम अभी भी प्रतिदिन अपने “शारीरिकपन” का अनुभव करते हैं (रोमियों 7:14-25)। शारीरिक अभिलाषाएँ अनुपस्थित नहीं हैं, और वे अन्तिम छुटकारे के दिन तक दूर नहीं होंगी। शरीर और आत्मा के मध्य के युद्ध की प्रबलता ऐसी है कि जैसे विश्वासी शरीर के साथ युद्द कर रहे हैं (1 पतरस 2:11), और हमें अपनी शारीरिक अभिलाषाओं को  नष्ट कर डालना चाहिए (रोमियों 8:13; कुलुस्सियों 3:5)। हम परमेश्वर के अनुग्रह और उसके आत्मा के द्वारा परिवर्तित हो रहे हैं, और फिर भी हम प्रति दिन पाप करते हैं, और इसलिए इस जीवन में सिद्धता की कोई सम्भावना नहीं है। परमेश्वर हमको नम्र बनाए रखता है हमें यह स्मरण कराते हुए कि हमें कितना दूर जाना है। पाप के लिए कोई बहाना नहीं है, यद्यपि, पवित्रीकरण का हो चुका और अभी नहीं का आयाम हमें यथार्थवादी बनाता है ताकि जितने आत्मिक हम हैं उससे अधिक स्वयं को आत्मिक न सोचें।  

अन्त के दिन और पारिवारिक जीवन

जिस सत्य में हम रह रहे हैं वह पारिवारिक जीवन को भी प्रभावित करता है, जिससे मेरा तात्पर्य विवाह और बच्चों के पालन-पोषण से है। परमेश्वर के अनुग्रह से, हमारे विवाह जीवनसाथी के प्रति व्यक्त की जाने वाले अपने प्रेम और चिन्ता के कारण ध्यान देने योग्य होने चाहिए। विवाह एक भेद है जो कलीसिया के साथ ख्रीष्ट के सम्बन्ध को प्रतिबिम्बित करता है (इफिसियों 5:32), और वह भेद पति और पत्नी के मध्य के सम्बन्ध में प्रतिबिम्बित होना चाहिए। पतियों को अपनी पत्नी से प्रेम करना चाहिए, उनकी देखभाल करनी चाहिए, उनका पालन-पोषण करना चाहिए, जैसा कि ख्रीष्ट ने कलीसिया से प्रेम किया और स्वयं को दे दिया (इफिसियों 5:25-29)। पत्नियों को अपनी पतियों के अगुवाई के प्रति समर्पित होना और उनका अनुसरण करना चाहिए, जैसा कि कलीसिया सब बातों में ख्रीष्ट के प्रति होती है (पद 22-24)। चूँकि ख्रीष्ट आ चुका है और पवित्र आत्मा दिया जा चुका है, हमारे विवाह को संसार को प्रदर्शित करना चाहिए कि विवाह क्या हो सकता है और क्या होना चाहिए। फिर भी, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी हम स्वर्गलोक में नहीं हैं। हमारे विवाह अच्छे हो सकते हैं, परन्तु वे सिद्ध नहीं होंगे, क्योंकि हम पर छुटकारे के दिन तक पाप के धब्बे हैं। हमारे अच्छे विवाह हो सकते हैं, परन्तु कोई सिद्ध विवाह नहीं होता है और जो सिद्ध विवाह की खोज में रहते हैं वे एक अच्छे विवाह—या एक विवाह जो भविष्य में परमेश्वर के अनुग्रह से अच्छा हो सकता है, उसे त्यागने की दुखद और पापी भूल कर सकते हैं। जैसा कि एक पुरानी कहावत है, सिद्धता अच्छे की शत्रु हो सकती है।

यही सत्य हम बच्चों के पालन-पोषण के क्षेत्र में देखते हैं। बच्चों को अपने माता-पिता की आज्ञा मानने के लिए कहा गया है (इफिसियों 6:1-3), और माता-पिता के रूप में हम उन्हें प्रभु की बातों में प्रशिक्षित करना चाहते हैं (पद 4)। हम जानते हैं कि बच्चों को अनुशासन की आवश्यकता है, और हम उन्हें अनुशासित करते हैं ताकि वे ईश्वरीय चरित्र का निर्माण करें। हमारे बच्चे शिष्ट और ईश्वरीय, विश्वासयोग्य और भरोसेमन्द होने चाहिए (तीतुस 1:6)। यदि हमारे बच्चे असभ्य और नियंत्रण से बाहर हैं, तो हम माता-पिता के रूप में अपने उत्तरदायित्वों से भाग रहे हैं।

परन्तु अत्याधिक आभाषित युगान्त-विज्ञान (eschatology) जानने का जोखिम भी है (यह सोचना कि हम महिमा की परिपूर्णता अभी प्राप्त कर सकते हैं), और हम अपने बच्चों के पालन पोषण में पृथ्वी पर स्वर्ग की अपेक्षा करने की भूल कर सकते हैं। हम बिना जाने अपने बच्चों से सिद्धता की अपेक्षा करने के जाल में फंस सकते हैं। जब ऐसा होता है, हम अपने बच्चों को अत्याधिक सही करने लगते हैं, और हम अपने बच्चों को दोषों को निरन्तर बोलते रह कर उन्हें क्रोध दिला सकते हैं, और जिसके परिणामस्वरूप हमारे बच्चे निराश और निरुत्साहित हो जाते हैं (कुलुस्सियों 3:21)। हम पुनः देखते हैं कि अन्त के दिनों की शिक्षा अत्यन्त व्यावहारिक है। हम अपने बच्चों को आज्ञाकारी होने के लिए प्रशिक्षित करते हैं, परन्तु हम उनसे सिद्ध होने की अपेक्षा नहीं करते।

अन्त के दिन और कलीसियाई जीवन

अन्त के दिन यहाँ हैं। यीशु जी उठा है और आत्मा दिया जा चुका है। विशेष रूप से, पवित्र आत्मा परमेश्वर के लोग, यीशु ख्रीष्ट की कलीसिया पर उडेंला गया है। कलीसिया ख्रीष्ट की देह है, और यह ख्रीष्ट की परिपूर्णता से भरी है (इफिसियों 1:23)। कलीसिया ऐसा स्थान होना चाहिए जहाँ सभी का एक दूसरे के साथ मेल-मिलाप हो, ताकि काले और गोरे, पुरुष और महिलाएँ, उच्च पद पर कार्य करने वाले और शारीरिक श्रम करने वाले ख्रीष्ट में अपनी एकता को पाएं (2:11-22)। वास्तव में, परमेश्वर की बुद्धि कलीसिया में स्वर्गदूतीय सामर्थ को प्रकट की जाती है (3:10), ताकि वे कलीसिया को देखें और प्रभु के अनुग्रह और सामर्थ को देखें। कलीसिया एक वाहन होना चाहिए जिसके द्वारा सुसमाचार समुदाय और संसार में जाता है। संसार ध्यान दे कि कलीसिया के सदस्य एक दूसरे से प्रेम करते हैं (यूहन्ना 13:34-35) और यह समझे कि यीशु ही ख्रीष्ट है।

कलीसिया परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा परिवर्तित होती है और जैसा परमेश्वर चाहता है वैसे परिपक्व हो रही है (इफिसियों 4:11-16)। फिर भी, कलीसिया छुटकारे के दिन तक दागों और झुर्रियों और धब्बों से मुक्त नहीं होगी (5:27)। हम स्वर्ग और पृथ्वी की लालसा रखते हैं, और इसलिए हम सरलता से अपनी कलीसिया से असन्तुष्ट हो जाते हैं, तब भी यदि कलीसिया मज़बूत और अच्छी और परिपक्व हो। हम दाग और धब्बे देखते हैं और अपनी कलीसिया से प्रेम और उसका सहयोग करने के स्थान पर उसकी आलोचना करना शुरु कर देते हैं।

अन्तिम शब्द

हम सोच सकते हैं कि अन्त के दिनों में जीने का विचार एक अमूर्त सिद्धान्त है जो कि प्रतिदिन के जीवन से सम्बन्धित नहीं है। परन्तु जब हम इस मुद्दे पर आगे विचार करते हैं, हम देखते हैं कि यह अत्यन्त व्यवहारिक है, क्योंकि यह हमारे पवित्रीकरण, पारिवारिक जीवन, कलीसिया, राजनीति, और बहुत कुछ के विषय में दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। हम अत्यल्प युगान्त विज्ञान के प्रभाव में आ सकते हैं और भावहीन हो सकते हैं और यथास्थिति से सन्तुष्ट हो सकते हैं। उसके साथ-साथ, हम युगान्त विज्ञान के अत्याधिक आभाषित समझ को स्वीकारने की भूल कर सकते हैं और पृथ्वी पर स्वर्ग की अपेक्षा कर सकते हैं। हम देख सकते हैं कि जब हम युगों के मध्य में जीवन जीते हैं तो पथ पर रहने के लिए हमें क्यों परमेश्वर के वचन और परमेश्वर के आत्मा की आवश्यकता है।       

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

थॉमस आर. श्राइनर
थॉमस आर. श्राइनर
डॉ. थॉमस आर. श्राइनर लूईविल, केन्टकी मे सदर्न बैप्टिस्ट सेमिनेरी में नया नियम अर्थानुवाद के प्राध्यापक, बाइबलीय ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक, तथा ईश्वरविज्ञान के विद्यालय के सहायक डीन हैं। वे अनेक पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें स्पिरिचुअल गिफ्ट्स (Spiritual Gifts) सम्मिलित है।