हमारा कराहने वाला आनन्द - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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हमारा कराहने वाला आनन्द

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का सातवां अध्याय है: आनन्द

आनन्द के लिए हमारी खोज सृष्टि के वृतान्त के अन्त में आरम्भ होती है, जहाँ परमेश्वर अपने द्वारा सृजे गए सब कुछ को देखता है और घोषणा करता है कि वह “बहुत अच्छा” है। दुख की बात यह है, कि यह अच्छी सृष्टि मूल रूप से हमारे पहले पूर्वजों के विद्रोह के द्वारा पाप से दूषित हो गई—एक ऐसा विद्रोह जिसने परमेश्वर के आशीष को उसके श्राप में परिवर्तित कर दिया। परन्तु अन्धकार के इस क्षण में भी एक आशा की किरण फूट पड़ती है। प्रेरित पौलुस हमें इस बात के लिए आश्वासन देता है कि एक दिन आ रहा है जब परमेश्वर अपने आशीषों को वहाँ तक प्रवाहित करेगा “जहाँ तक श्राप पाया जाता है”:

क्योंकि सृष्टि व्यर्थता के अधीन कर दी गई, परन्तु अपनी ही इच्छा से नहीं, वरन उसके कारण जिसने उसे अधीन कर दिया, इस आशा में कि सृष्टि स्वयं भी विनाश के दासत्व से मुक्त होकर परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतन्त्रता प्राप्त करे। क्योंकि हम जानते हैं कि सम्पूर्ण सृष्टि मिलकर प्रसव-पीड़ा से अभी तक कराहती और तड़पती है। और न केवल यह, परन्तु स्वयं हम भी जिनके पास आत्मा का प्रथम फल है, अपने आप में कराहते हैं और अपने लेपालक पुत्र होने और देह के छुटकारे की बड़ी उत्कण्डा से प्रतीक्षा कर रहे हैं। क्योंकि आशा में हमारा उद्धार हुआ है। (रोमियों 8:20-24)

परमेश्वर के लोग “इस आशा में” जी रहे हैं—ख्रीष्ट के आगमन के बीच का समय जब हमारा आनन्द पतित संसार से जुड़े अनगिनत “कराहने” के साथ मिला हुआ है।

तो हम यह सुनिश्चित करने में कैसे सहायता कर सकते हैं कि हमारा आनन्द कराहने से व्यग्र न हो?

आनन्द और उसके शत्रु

आनन्द के शत्रु हैं। इफिसियों 2:1-3 हमें बताता है कि हम किसका विरोध कर रहे हैं:

तुम तो उन अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे, जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति और आकाश में शासन करने वाले अधिकारी अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में क्रियाशील है। उन्हीं में हम सब भी पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, शारीरिक तथा मानसिक इच्छाओं को पूरा करते थे, और अन्य लोगों के समान स्वभाव से ही क्रोध के सन्तान थे।

ख्रीष्ट से अलग, हमने स्वेच्छा से इस संसार के पापी प्रकिया का पालन किया, शैतान के आज्ञानुसार जीवन जीया, और अपनी वासनाओं को पूरा किया। और अब, उद्धार पाए हुए पापी के रूप में, हम इस आनन्द के हत्यारों से युद्ध करते हैं। 

आनन्द के लिए संघर्ष

यदि प्रभु में हमारे आनन्द को बढ़ाना है, तो फिर अवश्य ही हमारे आनन्द के शत्रुओं को निरन्तर वश में किया जाना चाहिए। 

पहला, विचार करें कि कैसे संसार हमारे आनन्द पर आक्रमण करता है। संसार हमें व्यर्थ आनन्द को गले लगाने के लिए कहता है। अर्थात, ख्रीष्ट के स्थानापन्न पर जो कभी सन्तुष्ट नहीं करेंगे। यह मूर्तिपूजा है जिसके लिए डेविड वेल्स विलाप करते हैं जब वह “संसार” को “परमेश्वर के सामने झुकने, उसके सत्यों को प्राप्त करने, उसकी आज्ञाओं का पालन करने, या उसके ख्रीष्ट पर विश्वास करने के लिए प्रत्येक समाज के इनकार के सामुहिक अभिव्यक्ति” के रूप में वर्णन करते हैं। इसके अतिरिक्त ‘संसार’ वह है जिसे पापी मानवता परमेश्वर और उसके सत्यों के स्थानापन्न के रूप में उपयोग करता है।”

ख्रीष्ट में अपने आनन्द की रक्षा करने के लिए,  “हम [अपने] मन के नए हो जाने से परिवर्तित” होते समय संसार के अनुरूप होने से बचते हैं (रोमियों 12:2)। हमारे जीवन में आत्मा का यह कार्य परमेश्वर के वचन के हमारे परिश्रमपूर्ण उपयोग के द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। जब हम अपने मनों को परमेश्वर के सत्यों से तृप्त करते हैं, “पृथ्वी की वस्तुएं उसकी महिमा और अनुग्रह के प्रकाश में असाधारण रीति से धुंधली हो जाएंगी।”

दूसरा, विचार करें कि कैसे शैतान हमारे विश्वास पर प्रहार करने के द्वारा आनन्द पर आक्रमण करता है। हम लूका 22:31-32 में इसके एक भयप्रद चित्रण को देखते हैं, जहाँ यीशु पतरस को शैतान की लालसा के विषय में चेतवानी देता है: “शमौन, हे शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ के समान फटकने के लिए आज्ञा मांग ली है, परन्तु मैंने तुम्हारे लिए प्रार्थना की है कि तेरा विश्वास चला न जाए।”

शैतान विश्वास को नष्ट करना चाहता है। और यदि यीशु में हमारा विश्वास डगमगाता है, तो हमारा आनन्द भी ऐसा होगा। क्योंकि कौन ऐसे ख्रीष्ट में आनन्दित होता है जिस पर वह भरोसा नहीं करता है?

जब हम अपनी ओर से यीशु के मध्यस्थता के कार्य के साहस में विश्राम करते हैं, हम शैतान का सामना करते हैं अपने विश्वास को परमेश्वर के प्रतिज्ञाओं से तृप्त करने के द्वारा। इस आक्रमण की युक्ति को मार्टिन लूथर ने अपने महान युद्ध के गीत “हमारा परमेश्वर एक सामर्थी गढ़ है” (“A Mighty Fortress Is Our God”) में वर्णन किया है। वास्तव में, “एक छोटा सा शब्द उसे गिरा देगा।”

अन्त में, विचार करें के हमारे भीतर वास करने वाले पाप कैसे हमारे आनन्द पर प्रहार करते हैं। जब हम शरीर के अनुसार चलते हैं, तो हम आत्मा के अनुसार नहीं चलते हैं। और आत्मा का फल एक भाग आनन्द है (गलातियों 5:22)। इसलिए, एक मसीही को अपने देह को नियन्त्रण में रखना चाहिए (रोमियों 8:12-14; कुलुस्सियों 3:5-10)। जॉन ओवेने के एक वाक्यांश को उद्धरण करते हुए, “पाप को मारते रहिए अन्यथा पाप आपके आनन्द को मार देगा।”

 मसीही आनन्द का अनुभव किया जाता है पाप के बोझ तले कराहते हुए संसार में। परन्तु हमारा आनन्द “परमेश्‍वर की महिमा की आशा से” कराहता है (रोमियों 5:2)। इसलिए उस महान दिन तक, हम अपने आनन्द को उसमें जड़ पकड़ते रहते हैं जो हमें अपने पास बुलाता है “कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए” (यूहन्ना 15:11)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डॉ. मय्क पोह्लमैन
डॉ. मय्क पोह्लमैन
डॉ मय्क पोह्लमैन सदर्न बैपटिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनरी में ख्रीष्टिय प्रचार के सहायक प्रोफेसर हैं और लुइविल, केंटकी में सीडर क्रीक बैपटिस्ट कलीसिया के प्रमुख पास्टर हैं।