परमेश्वर की इच्छा को खोजने हेतु संघर्ष - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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परमेश्वर की इच्छा को खोजने हेतु संघर्ष

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: परमेश्वर की इच्छा को ढूंढना

“परमेश्वर क्या चाहता है कि मैं करूँ?” क्या आपने कभी स्वयं से यह प्रश्न पूछा है? मैं जानता हूँ कि मैंने पूछा है। मैंने पूछा है, क्या परमेश्वर चाहता है कि मैं यहां रहूँ? क्या परमेश्वर चाहता है कि मैं इस जन से विवाह करूँ? क्या परमेश्वर चाहता है कि मैं इस नौकरी को करूँ? परमेश्वर क्या चाहता है कि मैं करूँ ? ये प्रश्न उत्तर देने के लिए कष्टकारी हो सकते हैं क्योंकि वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के सम्बन्ध में यथासम्भव निश्चितता चाहते हैं। क्यों? क्योंकि जब हमारे पास निश्चितता की कमी होती है, तो हम प्रायः भय का अनुभव करते हैं। यह न जानना कि हमें आगे क्या करना चाहिए, हमें ऐसा लगता है जैसे हम त्रुटि कर सकते हैं। यह हमें चिंतित करता है। वास्तव में, यद्यपि हम इसे स्वीकार न करें, कभी-कभी हम यह भी डरते हैं कि हम परमेश्वर की इच्छा से चूक सकते हैं।

परमेश्वर की इच्छा को खोजने का संघर्ष निश्चितता के साथ संघर्ष है। हम स्वाभाविक रूप से निर्णयों के सम्बन्ध में यथासम्भव निश्चितता चाहते हैं। निश्चितता हमें यह अनुभव करने में सहायता करता है कि हम नियंत्रण में हैं, और जब हम अनुभव करते हैं कि हम नियंत्रण में, तो हम सुरक्षित अनुभव करते हैं।

त्रुटिपूर्ण मनसाएं

निर्णयों के सम्बन्ध में अधिक निश्चितता की खोज करना त्रुटिपूर्ण नहीं है। हमारे लिए यह अच्छा है कि हम निर्णयों के परिणामों पर विचार करें, बुद्धिमानीपूर्ण परामर्श लें और प्रार्थना के साथ विचार करें कि क्या करना है। कभी-कभी, हालाँकि, अनिश्चितता हमारे हृदयों को परमेश्वर की इच्छा के लिए त्रुटिपूर्ण मनसाओं का कारण बन सकती है। अर्थात्, ख्रीष्टीय के रूप में, हमें परमेश्वर पर उसके नियंत्रण के लिए भरोसा रखने के लिए बुलाया जाता है, परन्तु परमेश्वर की इच्छा को जानने की हमारी इच्छा वास्तव में स्वयं के लिए अधिक नियंत्रण रखने की गहरी इच्छा से आ सकती है। हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमें बताएं कि ठीक-ठीक क्या करना है ताकि किसी विश्वास की आवश्यकता न हो। यह हमारे हृदय को शान्ति देगा, है न? यह इस प्रकार अटपटा है कि कैसे अच्छी इच्छा (परमेश्वर की इच्छा को जानने की चाहना) को कभी-कभी एक बुरी इच्छा में विकृत किया जा सकता है (स्वयं के लिए और अधिक नियंत्रण चाहना)। यह मुझे फरीसियों के बारे में स्मरण दिलाता है। उन्होंने सोचा था कि वे अपने पोदीने और जीरे को सटीक मात्रा में दशमांश देने के द्वारा परमेश्वर की इच्छा को पूरा कर रहे हैं (लूका 11:42)। यीशु ने कहा कि वे मच्छर को तो छान डालते हैं परन्तु ऊँट को निगल जाते हैं (मत्त 23:24)। अर्थात्, उन्होंने बहुत छोटी से छोटी बातों को नियंत्रित करने का प्रयास किया, परन्तु वे परमेश्वर पर विश्वास करने से चूक गए। यीशु ने उन्हें चूने से पुती हुई कब्र कहा (पद 27)। वे बाहरी रूप से अच्छे दिख रहे थे, परन्तु आन्तरिक रूप से मृतक थे। उनके हृदय परमेश्वर पर भरोसा नहीं करते थे, यद्यपि वे अनुमानतः परमेश्वर की इच्छा की खोज कर रहे थे।

फरीसियों की कहानी ख्रीष्टियों के लिए सतर्क करने वाली कहानी है। हमें सावधान होना चाहिए कि दिखने में अच्छी इच्छाएं पापी मनसाओं से नहीं निकल रही हैं। यह करना एक जटिल कार्य है, और इसके लिए बहुत अधिक हृदय को जाँचने की आवश्यकता है। क्या फरीसी कुछ बातों में निश्चितता की इच्छा रखने के लिए त्रुटिपूर्ण थे? नहीं, वे नहीं थे। हम इसके बारे में निश्चित हैं, स्वाभाविक रूप से, कि परमेश्वर क्या चाहता है कि हम क्या करें। उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि उसने कहा है, “परमेश्वर के चुने हुओं के सदृश जो पवित्र और प्रिय हैं, अपने हृदय में सहानुभूति धारण करो” (कुलुस्सियों 3:12)। हम जानते हैं कि उसने कहा है, “ मेरी आज्ञा यह है, कि जैसे मैंने तुमसे प्रेम किया, वैसे ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम करो।” (यूहन्ना 15:12) और, “प्रभु में सदा आनन्दित रहो” (फिलिप्पियों 4:4)। ये परमेश्वर की इच्छा के उदाहरण हैं। उसने अन्य, और भी विशिष्ट बातें कही हैं। उदाहरण के लिए, उसने हमें बुलाया है, यदि हम विवाह करते हैं, केवल दूसरे ख्रीष्टीय से विवाह करने के लिए—किसी गैर-ख्रीष्टीय से नहीं ( 1 कुरिन्थियों 7:39; 2 कुरिन्थियों 6:14)। उसने हमें कार्य करने के लिए भी बुलाया है (कुलुस्सियों 3:23; 1 तीमुथियुस 5:8)।

ये खण्ड और दूसरे खण्ड हमें परमेश्वर की इच्छा बताते हैं। परन्तु हम वास्तव में कुछ और विशिष्ट बात की खोज कर रहे हैं, है न? हम प्रायः उसकी नैतिक इच्छा, अर्थात् उसकी आज्ञाओं के बारे में इतने चिंतित नहीं होते हैं (ईश्वरविज्ञानी प्रायः इसे परमेश्वर की आदेशात्मक इच्छा कहते हैं)। हम सोच रहे हैं, विशेष रूप से, नैतिक रीति से अच्छे विकल्पों के बीच में आगे क्या करना है। परमेश्वर की नैतिक इच्छा हमें कुछ विकल्पों के सम्बन्ध में अधिक निश्चितता दे सकती है, परन्तु यह इसे एक विशिष्ट निर्णय तक सीमित नहीं करती है। जब हम उन विशिष्ट निर्णयों के बारे में बात करते हैं जिन्हें परमेश्वर ने प्रकट नहीं किया है, तो हम उसके गुप्त इच्छा के बारे में बात कर रहे हैं—परमेश्वर की वह इच्छा जिसे उसने हमें प्रकट न करने के लिए चुना है। परमेश्वर का रहस्यात्मक, या छिपी हुई इच्छा रहस्यमय है। इसमें वह सब कुछ सम्मिलित है जो उसने हमें नहीं बताया है विशेष निर्णयों के विषय में (यदि वह मेरे स्थान पर होता तो परमेश्वर क्या चुनता?), भविष्य के विषय में (क्या मैं इस व्यक्ति से विवाह करूँगा?), और लगभग वे सब बातें जिन्हें परमेश्वर ने स्वयं के लिए रखा है (मेरा जन्म एक शताब्दी पहले के स्थान पर अब क्यों हुआ?)।

त्रुटिपूर्ण पद्धतियाँ

जब हम उन बातों को खोजते हैं जिन्हें परमेश्वर ने क्या प्रकट नहीं किया है—उसकी गुप्त इच्छा—हम प्रायः कई प्रकार की पद्धति अपनाते हैं। कभी-कभी हम बाइबल की आज्ञाओं को लेते हैं, जो भली हैं, और उन्हें अपने उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के लिए विकृत कर देते हैं। उदाहरण के लिए, निर्णयों के विषय में परामर्श प्राप्त करना अच्छा है (नीतिवचन 11:14; 15:22)। पास्टर, परिवार के सदस्य और मित्र प्रायः विशेष परिस्थितियों में हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम और दिशानिर्देश को प्रकट करते हैं। वे निर्णय लेने में हमारी सहायता कर सकते हैं और करते हैं। परन्तु कभी-कभी केवल परामर्शदाताओं से बुद्धि प्राप्त करने को छोड़कर, हम परामर्शदाताओं का उपयोग परमेश्वर की गुप्त इच्छा को “ढूंढ निकालने” के लिए करते हैं। हम किसी बात पर अपने पास्टर की राय लेते हैं जैसे कि वह परमेश्वर हो जो हमें सीधे अपनी इच्छा बता रहे थे, या हमें भरोसा है कि हमारे मित्र ने “प्रभु का एक शब्द” सुना है। प्रार्थना करना भी एक सराहनीय बात है, और हम बुद्धि माँगने के लिए बुलाए गए हैं ( 1 थिस्सलुनीकियों 5:17; याकूब 1:5)। हम प्रार्थना सकते हैं—और प्रार्थना करनी चाहिए— दिशा निर्देश के लिए। किन्तु कभी-कभी ख्रीष्टीय लोग इससे भी आगे चले जाते हैं। वे परमेश्वर से मांगते हैं उन्हें एक परमेश्वरीय चिह्न दे, जैसे कि उन्हें किसी सटीक समय पर एक फोन कॉल भेजना या यह बताना कि उनके लिए एक विशेष सन्देश वाला सूचना-पट्ट उनकी सुबह की यात्रा में दिखाई दे।

इस प्रकार की रीति विधियों को प्रायः परमेश्वर की इच्छा को जानने और करने की वास्तविक इच्छा के साथ किया जाता है, और कई लोगों ने विचित्र रीति विधियों द्वारा अच्छे और सही निर्णय लिए हैं। उदाहरण के लिए, हमारा निर्णय सफल हो सकता है यदि हम एक असामान्य सन्देश वाले सूचना-पट्ट को देखकर परमेश्वर की गुप्त इच्छा की पुष्टि करते हैं। किन्तु, इन विचित्र प्रकारों से परमेश्वर की गुप्त इच्छा की पुष्टि करना बाइबल आधारित नहीं है। पवित्रशास्त्र यह नहीं कहता है कि हम परामर्शदाताओं, शान्तिपूर्ण भावनाओं, असामान्य संयोग या अन्य बातों के माध्यम से परमेश्वर की गुप्त इच्छा को प्राप्त कर सकते हैं। उसकी रहस्यपूर्ण इच्छा, अपने स्वभाव ही से, गुप्त है।

क्या यह परमेश्वर को हमसे दूर करता है? नहीं, क्योंकि अनिश्चितता का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर दूर है। ध्यान दीजिए कि इस्राएलियों के पास कितना अधिक अनिश्चतता और भय था, जब वे लाल समुद्र के पास आए और देखा कि फ़िरौन की सेना आ रही है (निर्गमन 14:10-14)। इस्राएल के लोग अनिश्चित थे, पर परमेश्वर फिर भी उनके साथ था। उसने मिस्रियों से उनकी रक्षा की और अपने लोगों को सुरक्षित रूप से लाल सागर को पार कराया। हम इसी रीति से किसी विशेष निर्णय या स्थिति के बारे में अनिश्चित अनुभव कर सकते हैं, परन्तु हम तब भी यह जानते हुए विश्राम कर सकते हैं कि परमेश्वर हमारे साथ है। हम उस पर भरोसा कर सकते हैं जबकि उसने यह नहीं प्रकट किया कि क्या करना है। हमारे कदम उठाते हुए भी वह हमारे कदमों काे निर्देशित कर रहा है।

विश्वास की आवश्यकता 

मैं विश्वास में कई वृद्ध पुरुषों और महिलाओं से मिला हूँ जो अपने जीवन के विषय में सोचते हैं और गहराई से परन्तु लगभग अवर्णनीय रीति से समझते हैं कि उनकी यात्रा में परमेश्वर उनके साथ कैसे रहा है। बार-बार, इन वृद्ध संतों को आश्चर्य होता है कि परमेश्वर उन्हें कैसे लाया है जहां वे हैं। वे प्रायः मुझे बताते हैं कि उनका इससे बहुत कम लेना-देना था, हालाँकि यदि मैंने उनसे पूछा, तो वे मुझे बताएंगे कि वे हर समय निर्णय ले रहे थे। मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि अब्राहम ने इसी प्रकार से अपने जीवन को देखा होगा। इन कहानियों के बारे में मुझे जो सान्त्वना मिलती है, वह यह है कि हम जहां कहीं भी जाते हैं परमेश्वर हमारे साथ है, और वह हमारे कदमों का निर्देशन कर रहा है—यद्यपि रहस्यमय रीति से (नीतिवचन 16:9)।

इन कहानियों पर सोचने से मुझे स्मरण आता है कि परमेश्वर हमारे जीवन में कैसे काम करता है। वह हमें उस पर भरोसा करने के लिए बुलाता है। इब्राहीम को विश्वास करने के लिए बुलाया गया था, और हमें भी। विश्वास परमेश्वर में भरोसा करना है—परमेश्वर में निश्चितता। फरीसियों में इसी बात की कमी थी। यह एक फरीसी नहीं था, परन्तु एक साधारण मछुआरा, जो यीशु के साथ पानी पर चला था। विश्वास से पतरस ने गलील के झील पर कदम रखा, और वह ठोस भूमि के जैसा था। उसकी निश्चितता, यद्यपि सिद्ध नहीं थी, परमेश्वर में थी। जब उसने सन्देह किया, तो वह फिरकर परमेश्वर के पास गया और पुकारा, “मुझे बचाओ” (मत्ती 14:30)। यीशु उसके पास पहुँचा, उसने उसे पकड़ा, और उससे पूछा, “तुम्हें सन्देह क्यों हुआ?”

अनिश्चितता के साथ हमारे संघर्ष को समाप्त करना विश्वास की आवश्यकता को समाप्त करना है। हम वह सब कुछ नहीं जानते हैं जो परमेश्वर जानता है। फिर भी हमें परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए बुलाया जाता है जब हम अनिश्चित कदम उठाते हैं, पतरस के जैसे। जब हम करेंगे, परमेश्वर हमारे साथ होगा। कभी-कभी हम ऐसे निर्णय लेंगे जो बहुत सफल प्रतीत होते हैं। अन्य समयों में, हम ऐसे निर्णय लेंगे जो एक त्रुटि के जैसे प्रतीत होते हैं। हमें सन्देह हो सकता है। फिर भी परमेश्वर के पास हमारी निर्बलताओं को शक्तियों में बदलने और बुराई को भलाई में परिवर्तित करने की विशेष क्षमता है (उत्पत्ति 50:20; 2 कुरिन्थियों 12:9)। और, जब हम पतरस के जैसे पुकारते हैं, “मुझे बचाओ,” वह बचाने के लिए तत्पर और इच्छुक है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
थॉमस ब्रूअर
थॉमस ब्रूअर
थॉमस ब्रूअर टेबलटॉक पत्रिका के वरिष्ट सहयोगी सम्पादक हैं, रेफॉर्मेशन बाइबल कॉलेज में अनिबद्ध प्राध्यापक हैं, और प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में एक शिक्षा देने वाले प्राचीन हैं।