परमेश्वर की इच्छा को जानना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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परमेश्वर की इच्छा को जानना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पहला अध्याय है: परमेश्वर की इच्छा को ढूंढना

जब लोग परमेश्वर की इच्छा को ढूंढने का प्रयास करते हैं, तो वे प्रायः अपने जीवन के लिए परमेश्वर के सम्पूर्ण योजना के अनुसार सही निर्णय लेने के विषय में सोचते हैं। यह सत्य है कि चाहे हम अपने लिए निर्णय ले रहे हों या फिर हम जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को लेने में अपने प्रियजनों की सहायता कर रहे हों। इन निर्णयों में सम्मिलित हो सकती हैं किस कॉलेज में किस विषय को चुनना है, किस से विवाह करना है, कब बच्चे उत्पन्न करना है और कितने बच्चे होने चाहिए, कैसे हम अपने बच्चों को शिक्षित करें, किस कलीसिया में जुड़ना है, कहाँ रहना है, और किस चिकित्सक से उपचार लेना है।

ये विषय महत्वपूर्ण हैं, और उनके महत्व को कम नहीं करना चाहिए। फिर भी, उनको गम्भीरता से लेने का अर्थ यह नहीं है कि हम परमेश्वर के मन को जानने का प्रयास करें ताकि हम सुनिश्चित हो सकें कि हमने सही निर्णय लिया है। वास्तविकता तो यह है कि हम परमेश्वर के मन को नहीं समझ सकते, और हम परमेश्वर के गुप्त और आदेशात्मक इच्छा (राजकीय इच्छा) को नहीं जान सकते हैं, जो कि सम्पूर्ण सृष्टि के लिए उसकी सार्वभौमिक रूप से स्थापित अनन्त योजना है। दूसरी ओर, हम परमेश्वर की प्रकट और निर्देशात्मक इच्छा (निर्देश की इच्छा) को जान सकते हैं, जिसे परमेश्वर ने स्वयं के विषय में सार्वभौमिक रूप से वचन के द्वारा हम पर प्रकट किया है, जो कि हमारे लिए उसके मार्ग और उसकी व्यवस्था हैं। परमेश्वर की निर्देशात्मक इच्छा हमें बताती हैं कि परमेश्वर अपने पवित्र चरित्र के अनुसार किस में आनन्द पाता है।

यह जानना कि हम परमेश्वर की इच्छा के विषय में क्या जान सकते हैं और क्या नहीं, हमें परमेश्वर के वचन के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र करता है। जब हम निर्णय लेने में सहायता के लिए परमेश्वर के वचन को देखते हैं, तब हम प्रभु से बुद्धि और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के लिए पूछना सीखते हैं; विनम्रता और पवित्रता में आत्मा द्वारा चलना सीखते हैं; भरोसेमन्द, बुद्धिमान परामर्शदाताओं और अगुवों से समझ की बातों को ग्रहण करना सीखते हैं; अपने माता और पिता की सुनना और सम्मान करना सीखते हैं; अपने वरदानों, प्राथमिकताओं, और साधनों के विषय में सोचना सीखते हैं; केवल उस द्वार से नहीं जाना जो खुला है और परन्तु कभी-कभी उस द्वार को खटखटाना सीखते हैं जब वह बन्द प्रतीत होता है; कभी-कभी कुछ भी करना, और कभी-कभी परमेश्वर की प्रतीक्षा करना सीखते हैं जब तक हमारे मार्ग स्पष्ट न हों। क्योंकि जैसे पौलुस लिखता है, “इस संसार के अनुरूप न बनो, परन्तु अपने मन के नए हो जाने से तुम परिवर्तित हो जाओ कि परमेश्वर की भली, ग्रहणयोग्य और सिद्ध इच्छा को तुम अनुभव से मालूम करते रहो” (रोमियों 12:2)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.