परमेश्वर की इच्छा को ढूंढना

जनवरी 2020 का टेबलटॉक प्रकाशन परमेश्वर की इच्छा पर विचार करेगा, विशेषकर हमारी बुलाहट और हमारे कार्य पर ध्यान देते हुए। बुलाहट एक व्यापक शब्द है, और एक प्रश्न जिसे मसीही कभी-कभी पूछते हैं यह है, “मैं क्या करने के लिए बुलाया गया हूँ?” अधिकांशतः, वे उस कार्य को पहचानना चाहते हैं जिसे प्रभु ने उनके लिए रखा है। यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, परन्तु इस विषय में बहुत त्रुटिपूर्ण शिक्षा है जो बहुत कम व्यावहारिक मार्गदर्शन देती है, लोगों को परमेश्वर की इच्छा को अनुपयुक्त स्थानों में ढूंढने के लिए निर्देशित करती है, या उन्हें विफल होने की अनुभूति दिलाती है जब ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने जीवनों के लिए परमेश्वर की इच्छा को नहीं पाते हैं।

टेबलटॉक का यह प्रकाशन मसीहियों को यह समझाने में सहायता करने का प्रयास करेगा कि पवित्रशास्त्र क्या कहता है हमारे जीवन के लिए परमेश्वर की बुलाहट के विषय में, कि हम उसे कैसे पहचानें, और हम कैसे उसको आदर दे सकते हैं।
 

 
4 मई 2021

परमेश्वर की इच्छा को जानना

जब लोग परमेश्वर की इच्छा को ढूंढने का प्रयास करते हैं, तो वे प्रायः अपने जीवन के लिए परमेश्वर के सम्पूर्ण योजना के अनुसार सही निर्णय लेने के विषय में सोचते हैं।
6 मई 2021

परमेश्वर की इच्छा को खोजने हेतु संघर्ष

“परमेश्वर क्या चाहता है कि मैं करूँ?” क्या आपने कभी स्वयं से यह प्रश्न पूछा है? मैं जानता हूँ कि मैंने पूछा है।
7 मई 2021

परमेश्वर की बुलाहट को परिभाषित करना

पवित्रशास्त्र हमारे जीवन में परमेश्वर की बुलाहट को विभिन्न प्रकार से वर्णन करता है जो विस्तृत से छोटे तक फैला हुआ है। इसलिए, यदि हम बाइबलीय समझ उन भिन्न प्रकारों का जिनमें बाइबल परमेश्वर की बुलाहट के विषय में बात करती है, तो हम कहाँ से प्रारम्भ करें? हम प्रायः अनुचित स्थान से आरम्भ करते हैं और अपने विशिष्ट सन्दर्भ, अपने जीवन, अपनी स्थिति के बारे में सोचते हैं।
8 मई 2021

पवित्रशास्त्र में बुलाहट के उदाहरण

जीवन के किसी न किसी समय पर, हर कोई पूछता है, मैं यहां किसलिए हूँ? सांसारिक उद्देश्य का बड़ा प्रश्न नहीं (मानव और विश्व इतिहास किसलिए है?), परन्तु व्यक्तिगत मानव बुलाहट से सम्बन्धित विशेष प्रश्न।
9 मई 2021

मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की बुलाहट को परखना और उसका भण्डारी होना

हम सभी चाहते हैं कि हमारे जीवन का अर्थ हो। हम जानना चाहते हैं कि हम जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है—और डर भी सकते हैं कि यदि हम परमेश्वर की इच्छा से बाहर हैं तो बुरी घटनाएं हमारे साथ घटेंगी। परमेश्वर की इच्छा में रहने की इच्छा रखना त्रुटिपूर्ण नहीं है; स्वयं यीशु ने भी प्रार्थना की, “मेरी इच्छा नहीं, पर तेरी इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42)।