मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की बुलाहट को परखना और उसका भण्डारी होना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की बुलाहट को परखना और उसका भण्डारी होना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: परमेश्वर की इच्छा को ढूंढना

हम सभी चाहते हैं कि हमारे जीवन का अर्थ हो। हम जानना चाहते हैं कि हम जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है—और डर भी सकते हैं कि यदि हम परमेश्वर की इच्छा से बाहर हैं तो बुरी घटनाएं हमारे साथ घटेंगी। परमेश्वर की इच्छा में रहने की इच्छा रखना त्रुटिपूर्ण नहीं है; स्वयं यीशु ने भी प्रार्थना की, “मेरी इच्छा नहीं, पर तेरी इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42)। वास्तविक कठिनाई तब होती है जब हम यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि हमारे जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है। यह बहुत सरल होता यदि प्रभु ने आकाश में एक सन्देश लिखता या प्रत्येक विश्वासी को कुछ अलौकिक चिह्न देता। कोई सन्देह नहीं होता यदि मैं एक सुबह उठा और बादलों में दिखता “इंजीनियर बनो!” (या इससे भी अच्छा होता, “फलाने कम्पनी के लिए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनो”)। परन्तु प्रभु ने अपने असीम बुद्धि में निर्धारित किया है कि वह अपनी विशेष इच्छा को इस प्रकार से प्रत्येक विश्वासी के लिए प्रकट नहीं करता है। यदि वह ऐसा करता, मुझे डर है कि मैं तब भी उसकी इच्छा से चूक जाता। एक व्यक्ति के बारे में एक पुरानी कहानी है जिसने आकाश में “G.P.C.” देखा और यह निष्कर्ष निकाला कि परमेश्वर उसे बता रहा था, “जाओ ख्रीष्ट का प्रचार करो!” (“Go preach Christ”)। परन्तु, कठिनाई यह थी कि उस व्यक्ति के पास वास्तव में संवाद करने की क्षमता नहीं थी और बहुत कम बाइबल का ज्ञान था। जब वह एक मित्र के पास गया और उसे अपनी योजना बताई, तो मित्र ने उत्तर दिया, “सम्भवतः संदेश यह था कि “जाओ मक्का लगाओ!”” (“Go plant corn”)।

फिर भी इसके साथ, यह सोचना बुद्धिमानी नहीं है कि सभी लोग सभी कार्य के लिए समान रूप से योग्य हैं। कार्य के लिए अंग्रेजी में वोकेशन (vocation) शब्द लतीनी भाषा में “बुलाहट” के शब्द से आता है, जिसका अर्थ है कि हम में से प्रत्येक को दिए गS वरदानों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर द्वारा बुलाया गया है। ख्रीष्टियों को इनकार नहीं करना चाहिए कि उनके पास वरदान, प्रतिभाएं और रुचियाँ हैं, क्योंकि बाइबल हमें बताती है कि प्रभु ख्रीष्टियों को ये सब देता है। हम में से प्रत्येक एक दूसरे से अलग है क्योंकि परमेश्वर ने निर्धारित किया है कि वह इसी रीति से अपनी कलीसिया और समाज का निर्माण करेगा। प्रेरित पौलुस हमें बताता है कि “वरदान और परमेश्वर की बुलाहट अटल है” (रोमियों 11:29) और कि वे वरदान भिन्न हैं (12:6)। हम अपने आस-पास के लोगों में हर दिन इसे देखते हैं—कुछ लोग गणित और अंकों में विशिष्ट हैं, जबकि दूसरे लोग भाषाओं में उज्जवल होते हैं; कुछ लोग ऐसे कार्य के लिए खिंचे जाते हैं जिनमें अन्य लोगों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता होती है, जबकि अन्य लोगों को एकांत में काम करना अच्छा लगता है; और कुछ लोग सदैव नये कार्यों और उद्यमों को आरम्भ कर रहे हैं, जबकि अन्य लोग स्थापित क्षेत्रों में कार्य करने में प्रसन्न होते हैं। भिन्नताएं बुरी नहीं है। परन्तु यह समझना महत्वपूर्ण है कि वे भिन्नताएं हमारे स्वयं के प्रयासों का परिणाम नहीं हैं, वरन् वे प्रभु से प्राप्त हुई हैं (1 कुरिन्थियों 4:7)।

मैं अपनी बुलाहट को कैसे परख सकता हूँ?

यदि हम में से प्रत्येक के पास अलग-अलग वरदान और रुचियाँ हैं, तो अगला स्पष्ट प्रश्न है, मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी बुलाहट क्या है? यह प्रश्न उन लोगों के लिए आवश्यक है जो पेशेवर सेवकाई के लिए बुलाए गए हैं, परन्तु यह उन लोगों के लिए भी लागू होता है जो सेवकाई से हटकर अन्य कार्यों में हैं। हम अपने श्रम में सफलता और पूर्ति की इच्छा रखते हैं, और इसलिए यह उचित है कि हम सोचें कि हमारी बुलाहट क्या है। सबसे पहली बात जो हमें समझनी चाहिए वह यह है कि सेवकाई हेतु बुलाहट और किसी अन्य कार्य को करने की बुलाहट के मध्य कोई मूलभूत अन्तर नहीं है। मेरा तात्पर्य यह है कि ऑटो मैकेनिक या एक डॉक्टर या एक वास्तुकार होना कम ख्रीष्टिय नहीं है एक पास्टर या मिशनरी बनने से। प्रत्येक के लिए अलग-अलग वरदान और कौशल की आवश्यकता होती है, परन्तु एक विश्वासी को इसे कलीसिया या सेवकाई के स्थान पर “गैर-सेवकाई” के कार्य करने को एक विफलता नहीं समझना चाहिए। यह धर्मसुधार का एक महान सिद्धान्त था, जिसे मार्टिन लूथर द्वारा सर्वश्रेष्ठ रूप से व्यक्त किया गया। लूथर ने सिखाया कि कार्य, या किसी का कार्य (बुलाहट), उसके धार्मिक गुणों पर ध्यान दिए बिना प्रभु को प्रसन्न करता है। लूथर के दिन में यह क्रांतिकारी था क्योंकि लोगों को सिखाया गया था कि भिक्षु या कैथोलिक पादरी बनना बुलाहट का उच्चतम रूप था और अन्य सभी कार्य उससे कम थे। इसका निहितार्थ था कि परमेश्वर वास्तव में किसानों, बेकरी के कर्मचारियों और मोचियों से प्रसन्न नहीं था। पेशेवर सेवकाई से कम किसी भी कार्य में सम्मिलित होना अच्छे कार्यों के माध्यम से एक व्यक्ति के विश्वास को पूर्ण करने के अवसर से चूक जाना था और ऐसी बुलाहट से आने वाले उद्धार के आश्वासन को खोना था। लूथर ने इसके विपरीत यह सिखाया कि सभी ख्रीष्टियों के जीवन में एक परमेश्वर प्रदत्त क्षेत्र हैं, एक कार्य जो हमारे आसपास के लोगों की सेवा करता है। यहां तक ​​कि निर्धन दूधवाली, लूथर ने कहा, अपने कार्य के द्वारा परमेश्वर द्वारा “गायों को दुहने” का साधन थी।

इस महत्वपूर्ण सिद्धान्त के कारण, जब हम अपनी बुलाहट की जाँच करते हैं, तो हम सम्भावित कार्य के पदानुक्रम की खोज करके “सर्वश्रेष्ठ” का चयन करते हैं; इसके विपरीत हमें अपने वरदानों और रुचियों की जाँच करनी चाहिए यह परखने के लिए कि हम किस व्यवसाय के लिए सबसे उपयुक्त हैं। फिर से, यदि परमेश्वर ही वरदानों और प्रतिभाओं का दाता है, और यदि परमेश्वर अपने लोगों को उनके कार्य हेतु निर्देशित करने के लिए असाधारण रूप से अलौकिक संकेत नहीं देता है, तो हमारे कार्य के लिए सबसे अच्छी दिशा हमारे पास हो सकती है, यदि हम उसकी खोज करें जिसके लिए परमेश्वर ने हमें सबसे उपयुक्त रीति से तैयार किया। इस प्रकार, पेशेवर सेवकाई अन्य बुलाहट से भिन्न नहीं है—हम स्वयं को और अपनी योग्यताओं को देखते हैं और हम यह निर्धारित करने के लिए हमारे चारों ओर अन्य लोगों की पुष्टि और सम्मति लेते हैं कि क्या बुलाहट मेल खाती है। इन दोनों मूल्यांकनों को ऐतिहासिक रूप से “आंतरिक बुलाहट” और “बाहरी बुलाहट” के रूप में वर्णित किया गया है जब सुसमाचार की सेवा हेतु बुलाहट के लिए लागू किया जाता है। जब हम आन्तरिक और बाहरी बुलाहटों को देखते हैं, तो यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि वे सेवकाई से प्रथक सन्दर्भों में भी लागू होते हैं, केवल विभिन्न परिस्थितियों के साथ।

आन्तरिक बुलाहट

कार्य से सम्बन्धित पहला मूल्यांकन व्यक्ति के स्वयं के वरदानों, प्रतिभाओं और रुचियों का मूल्यांकन है। इसे आंतरिक बुलाहट कहा गया है। हालाँकि, उसका अर्थ यह नहीं है कि इसमें आंतरिक भावनाएं और इच्छाएं ही सम्मिलित हैं। ऐसी इच्छाएं आन्तरिक बुलाहट के भाग हैं, किन्तु विचार करने के लिए और भी है। आन्तरिक बुलाहट में स्वयं का अवलोकन भी सम्मिलित है। यह व्यक्तियों के लिए सही और अच्छा है कि उनके पास जो कौशल है, जो वरदान उन्हें दिए गए हैं, और कुछ विशिष्ट व्यवसाय के लिए उनके पास जो इच्छाएं हैं, उन पर चिन्तन करें। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र उचित आत्म-चिन्तन के लिए महत्वपूर्ण है। यह एक व्यक्ति को अपने वरदान या कौशल को अनदेखा करने से कोई लाभ नहीं होता है। हमारे दिन में, इस विचार को बहुत अधिक स्थान दिया गया है कि व्यक्ति को केवल वही कार्य करना चाहिए जिसके बारे में वह उत्साहित है, कि किसी को दूसरे कार्य के लिए “समझौता” कभी नहीं करना चाहिए, और व्यक्ति को सदैव “अपने मन का अनुसरण करना चाहिए।” कार्य को स्वीकार करने की लालसा महत्वपूर्ण है, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। यदि ऐसा होता, तो मैं मेजर लीग बेसबॉल खेल रहा होता।

उदाहरण के लिए, सुसमाचारी सेवकाई हेतु बुलाहट के सन्दर्भ में, दूसरों की सहायता करने की इच्छा रखने या अपने कार्य में अर्थ खोजने से बहुत अधिक आवश्यक है। यदि बुलाहट प्रभु से आती है, तो उसने आपको उस बुलाहट में उन्नति करने के लिए तैयार किया होगा। यह सुसमाचार की सेवकाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ आरम्भ होता है। ख्रीष्ट के द्वारा बुलाहट आज सम्भावित सेवक के पास नहीं आती है जैसा कि मत्ती के साथ हुआ, जब ख्रीष्ट के व्यक्ति में सीधे रूप से उससे कहा, “मेरे पीछे आओ।” परन्तु सेवकाई के लिए बुलाहट का आरम्भ उसके नाम काे धारण करने और उसके पीछे चलने हेतु ख्रीष्ट की बुलाहट के साथ होता है। प्रायः, लोग अपने हृदयों में असन्तुष्टि की आवाज़ को शान्त करने के लिए सेवकाई करते हैं। इस विचार में गिरना सरल है कि यदि मैं अपना जीवन सुसमाचार की सेवा के लिए समर्पित करता हूं, तो परमेश्वर मुझे स्वीकार करेंगे और उस समर्पण को अनन्त जीवन के साथ पुरस्कृत करेंगे। सुसमाचार की सेवकाई के लिए अति आवश्यक आधार यह है व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के द्वारा बुलाया जाना और ख्रीष्ट के पूर्ण किए हुए कार्य के माध्यम से उससे मेल-मिलाप होना, जिससे कि परमेश्वर आपके नाम को बुलाए। होराटियस बोनर ने एक शताब्दी से अधिक पहले ही इसी बात को रखा: “सच्चे सेवक को एक सच्चा ख्रीष्टीय होना चाहिए। इससे पहले कि वह दूसरों को परमेश्वर के पास बुला सके उसे परमेश्वर के द्वारा बुलाया जाना चाहिए।”

भावी सुसमाचार सेवक को पूर्णतावादी प्रवृत्ति के शिकार होने जाने से सावधान रहना चाहिए, और उसे अपनी क्षमता पर अति आत्मविश्वास भी नहीं होना चाहिए। सेवकाई की प्रकृति को ही व्यक्ति को उस मार्ग पर चलने से पहले रोकना चाहिए और व्यक्ति को कार्य की महानता को देखना चाहिए और पौलुस के साथ रोना चाहिए कि वह इन बातों के लिए पर्याप्त नहीं है (2 कुरिन्थियों 3:5)। जब वह स्वयं को देखता है, तो उसे उस को देखना चाहिए जो लोगों को वरदान देता है। परमेश्वर ही है जो मनुष्य को वह क्षमता, कौशल और व्यवहार प्रदान करके उसे पर्याप्त बनाता है जिसे वह पेशेवर सेवकाई में सफल हो सके। इन वरदानों का किसी पुरुष में पूर्ण रूप में नहीं पाए जाने की आवश्यकता है, इससे पहले कि वह सुसमाचार की सेवकाई करे, परन्तु एक विनम्र आत्म-मूल्यांकन को आवश्यक वरदानों की उपस्थिति दिखना चाहिए (उदाहरण के लिए, पवित्रशास्त्र की समझ और सिखाने की क्षमता)। भावी सुसमाचार के सेवक को 1 तीमुथियुस 3 और तीतुस 1 में निर्धारित चरित्र योग्यताओं के विषय में स्वयं से कठिन प्रश्नों को पूछना चाहिए। उसे जानना चाहिए कि चरित्र योग्यताएं केवल पार करने के लिए बाधा नहीं है परन्तु पेशेवर सेवकाई में सफल होने के लिए आवश्यक आचरण और गुण हैं। अन्त में, व्यक्ति को स्वयं को देखना चाहिए यह निर्धारित करने के लिए कि क्या वह पेशेवर सेवकाई के लिए समर्पित है। सेवकाई के लिए समर्पण अत्यावश्यक है, आत्मिक उन्नत्ति, विनम्रता, ज्ञान, अनुशासन, बुद्धि और नेतृत्व, के साथ अन्य बातों के प्रति विश्वास का समर्पण। जब कोई व्यक्ति हल पर हाथ रखता है, तो वह पीछे मुड़कर नहीं देख सकता (लूका 9:62)। पौलुस आत्म-मूल्यांकन के लिए उत्कृष्ट मार्गदर्शन देता है: वह जानता था कि वह सिद्ध नहीं था, वह जानता था कि वह अभी तक वह नहीं बन पाया है जो वह होगा, परन्तु वह यह भी जानता था कि उसे लक्ष्य की ओर अग्रसर होते जाना था (फिलिप्पियों 3:12)। आन्तरिक बुलाहट का एक उचित दृष्टिकोण इसे हृदय में लागू करता है।

बाहरी बुलाहट

आंतरिक बुलाहट जितनी महत्वपूर्ण है, यह परमेश्वर की बुलाहट को परखने का एकमात्र भाग नहीं है। एक सावधानीपूर्वक किए गए स्व-मूल्यांकन में अन्धस्थल या कमियाँ होते हैं। इस कारण से, किसी व्यक्ति की बुलाहट की व्यक्तिनिष्ठ भावना का बाहरी पुष्टिकरण से पुष्टिकृत होना अच्छा है। सुसमाचार की सेवा के विषय में, यह ख्रीष्ट की देह के द्वारा व्यक्ति की बुलाहट की पुष्टिकरण होगी। क्योंकि ख्रीष्ट एक व्यक्ति को वरदान नहीं देता है बिना उन्हें अभ्यास करने का अवसर दिए, कलीसिया द्वारा एक पुरुष के वरदान का मूल्यांकन हो सकता है और उसे प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह निर्धारित करने में सबसे अच्छी सहायता कि क्या आपको सेवकाई में बुलाया गया है, आपके लिए वर्तमान में परमेश्वर की सेवा करना है, और इस प्रकार की सेवा का परीक्षण करके अपने वरदानों को परखना। वास्तव में, अधिकांशतः कलीसिया की सेवा करते समय सेवकाई के लिए बुलाहट आती है। एक व्यक्ति में सेवकाई के लिए वरदानों की उपस्थिति उसे परमेश्वर के लोगों के मध्य ऐसे पुरुष के रूप में चिह्नित करेगी जिसे सेवा के लिए बुलाया गया है, क्योंकि उसके पास जो भी वरदान हैं वे देह में उपयोग करने के लिए हैं, और ऐसे वरदान कलीसिया के द्वारा सम्मान के योग्य हैं।

हमें व्यक्तिगत अनुशंसा, नियुक्ति परीक्षा या एक मण्डली द्वारा चुनाव की आवश्यकता जैसी बातों को प्रशासनिक आवश्यकताओं के रूप में नहीं सोचना चाहिए। इसके विपरीत वे बाहरी बुलाहट की महत्वपूर्ण पुष्टिकरण की अभिव्यक्ति हैं। एक व्यक्ति अपनी बुलाहट पर पूर्ण रूप से सम्प्रभु नहीं होता है, विशेष रूप से सुसमाचार की सेवकाई के लिए बुलाहट के सम्बन्ध में। दूसरों के द्वारा किसी के वरदान की पुष्टि करना महत्वपूर्ण है यह निर्धारित करने के लिए कि वह कार्य करना है या नहीं। यदि किसी व्यक्ति को सेवकाई के लिए वरदानों का उपयोग करने और परीक्षण करने के अवसर दिए गए हैं, और यदि उन परीक्षणों को कलीसिया में दूसरों ने प्रोत्साहित और अनुमोदित किया गया, तो व्यक्ति अपनी बुलाहट के बारे में कितना अधिक आश्वस्त होगा? यदि किसी व्यक्ति की परख उन लोगों के द्वारा की गई है जो पहले ही से सुसमाचार की सेवकाई का कार्य कर चुके हैं, और परिक्षाएं उसे चरित्र और वरदानों में योग्य होने के लिए दिखाती है, तो यह एक आशीष है। उसी समय, यदि कोई व्यक्ति अपने सह ख्रीष्टियों से चेतावनी प्राप्त करता है कि वह सेवकाई के लिए अच्छे से उपयुक्त नहीं प्रतीत होता है, और वह सन्तोषजनक रीति से परीक्षाओं को पूर्ण करने में असमर्थ है, तो उसे रुकना चाहिए और पेशेवर सेवकाई हेतु अपनी अभिलाषा की जाँच-परख करना चाहिए। यह सम्भवतः परमेश्वर की दया हो सकती है जो उसे सम्भावित पीड़ा, हृदय की वेदना, और असफलता से बचाता है।

यह बाहरी बुलाहट सेवकाई से परे अन्य कार्यों के लिए भी लागू होती है। यह अच्छी रीति से स्थापित है कई कार्यों को करने के लिए, व्यक्ति को बाहरी अनुमोदन को प्राप्त करना होता है—एक डॉक्टर को मेडिकल बोर्ड परीक्षा को उत्तीर्ण करना चाहिए, वकीलों को बार परीक्षा को पूरी करना चाहिए, और एक वास्तुकार(आर्किटेक्ट), इंजीनियर, और तकनीशियन सभी के पास लाइसेंस और प्रमाणपत्र की आवश्यकताएं होती है। ये परीक्षाएं और प्रमाणपत्र वास्तव में उन लोगों को रोकने के लिए काम करते हैं जो ऐसे कार्य में अकुशल हैं, परन्तु वे लोगों के कौशलों और वरदानों की अभिपुष्टि करने में सहायता भी करते हैं। मुझे स्मरण है जब कई वर्षों पहले मैंने सफलतापूर्वक राज्य बार परीक्षा उत्तीर्ण की थी, तो मुझे प्रोत्साहन मिला था कि मैं वास्तव में एक वकील बन सकता हूँ। यह आश्वासन महीनों और वर्षों में बहुत सहायक था जब मैंने बहुत दिनों तक मांग करने वाली परियोजनाओं (कार्यों) को किया। यह मेरे मस्तिष्क में केवल एक विचार नहीं था कि मुझे उस कार्य को करना चाहिए—क्षेत्र में दक्ष लोग मानते थे कि मेरे पास सफल होने के लिए आवश्यक कौशल थे। इसलिए, चाहे जिस कार्य को आप करना चाहते हैं उसके लिए कोई औपचारिक परीक्षण या प्रमाणपत्र आवश्यक नहीं है तो मैं आपको परामर्श दूंगा कि आप अपने बाहर से उस कार्य के लिए अपने वरदान के विषय में विचार प्राप्त करें। अन्य लोगों से मिलने वाली बुद्धि और समर्थन अमूल्य है।

मैं अपनी बुलाहट का भण्डारिपन कैसे करूँ?

अन्तिम बात जिस पर हमें विचार करना चाहिए कि हमें अपनी बुलाहट का कैसे उत्तम रीति भण्डारी बनना चाहिए? लोग अपनी बुलाहट, अपने वरदानों, कुशलताओं, और रुचियों की अपनी विचार की जाँच कर सकते हैं, और फिर एक बाहरी मूल्यांकन के अधीन हो सकते हैं बिना अचूक निष्कर्ष तक पहुँचे। कभी-कभी हम समझते हैं कि हमने सबसे अच्छा निर्णय नहीं लिया है और हमें दिशा को परिवर्तित करने की आवश्यकता है। सबसे मूर्खतापूर्ण बात होगी किसी कार्य में लगे रहना जब हमारे सामने प्रमाण है कि हमने कार्य चुनने में त्रुटि की है। यह भी तथ्य है कि लोग समय के साथ बदलते हैं—जब हम विवाह करते हैं, हमारे बच्चे होते हैं, हम नये स्थानों में जाते हैं, या नए अनुभव का सामना करते हैं, हमारी रुचियाँ बदल सकती हैं। हम नए वरदानों और कौशलों को विकसित कर सकते हैं जो हमें कभी नहीं पता था कि हमारे पास हैं। यदि ऐसा है, तो परमेश्वर की करुणामय प्रावधान नए कार्यों के लिए अवसर ला सकती है। फिर से, पहले उल्लेख किए गए सभी मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए, एक अन्य कार्य को खोजना त्रुटिपूर्ण नहीं है। परमेश्वर प्रायः अपने लोगों की परिस्थितियों और जीवन को बदल देता है ताकि उन्हें ख्रीष्ट में बढ़ने में सहायता मिल सके।

जब बुलाहट के विषय में सोचते समय महत्वपूर्ण बात परमेश्वर की महिमा के लिए उन वरदानों के उपयोग की खोज करना जिन्हें परमेश्वर ने हमें दिए हैं। यदि इसका अर्थ है कि एक नया कार्य चुनना, तो ऐसा ही हो। मैं विश्वास करता हूँ कि परमेश्वर ने मुझे कम से कम तीन बुलाहट की ओर निर्देशित किया है: मैं सबसे पहले आश्वस्त था कि मैं एक शैक्षणिक होऊँगा और शिक्षा के माध्यम से उस कार्य की पुष्टि करूँगा। मुझे तब विश्वास हो गया कि शिक्षाविद होना मेरे लिए सबसे अच्छी बुलाहट नहीं है और इसके स्थान पर कानून का अध्ययन किया, और लगभग एक दशक तक मैंने वकील के रूप में काम किया। जब मैं वह कार्य करता था, तब मुझे सुसमाचार की सेवकाई (आंतरिक बुलाहट) में प्रवेश करने की बुलाहट का अनुभव किया, और उस बात को करने हेतु कलीसिया के लोगों के द्वारा उत्साहित किया गया (बाहरी बुलाहट)। मैं अपने दिनों के अन्त तक इस प्रकार से प्रभु की सेवा करने की आशा करता हूँ, परन्तु मुझे सदैव प्रभु की अगुवाई के लिए खुला रहना चाहिए। प्रभु आपको ऐसे भरोसे में अगुवाई करे, यह जानने के लिए कि वह आपके सभी दिन और आपके सभी कार्यों को अपने हाथों में थामे रहता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
रेव्ह. फ्रेड ग्रेको
रेव्ह. फ्रेड ग्रेको
रेव्ह. फ्रेड ग्रेको, कैटी, टेक्सस में क्राइस्ट चर्च (पी.सी.ए) के वरिष्ट पास्टर हैं।