
ईश्वरविज्ञान, ईश्वरविज्ञान, ईश्वरविज्ञान: लिग्निएर क्यों?
3 मई 2022
ईश्वरविज्ञान और कलीसिया
10 मई 2022हमारा ईश्वरविज्ञान क्या है?

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: वर्तमान सर्वदा के लिए महत्व रखता है
कई महत्वपूर्ण दृढ़ विश्वास टेबलटॉक पत्रिका को वैसे ही संचालित करते हैं जैसे उन्होंने लिग्निएर की सेवकाई के पूरे इतिहास को संचालित किया। इनमें से एक दृढ़ विश्वास को लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व कोई और नहीं, वरन् मार्टिन लूथर द्वारा व्यक्त किया गया।
सब ईश्वरविज्ञानी हैं; अर्थात् हर एक मसीही। सब को ईश्वरविज्ञानी कहा जाता है, जिससे कि सब मसीही हो सकते हैं।
परन्तु ईश्वरविज्ञान क्या है? और विशेष रूप से, हमारा ईश्वरविज्ञान क्या है?
ईश्वरविज्ञान
ईश्वरविज्ञान परमेश्वर-वार्ता है (सर्वोत्तम और उच्चतम अर्थों में)—सामन्जस्यपूर्ण और तार्किक रूप से, परमेश्वर के विषय में सोचना और बोलना। और मसीही विश्वासी के लिए, उसका अर्थ है परमेश्वर द्वारा दिए गए प्रकाशन पर आधारित और अभिव्यक्त करने वाला ईश्वरविज्ञान। इसलिए एक सही अर्थ है जिसमें हमारे पास “सब कुछ का ईश्वरविज्ञान” होने के लिए बुलाया गया है क्योंकि एक न एक रूप में सम्पूर्ण विश्व—इतिहास का प्रकट होना, वे खोज जो हम करते हैं—सब सृष्टि, प्रयोजन, छुटकारे, और सम्पूर्णता में परमेश्वर के स्वयं के प्रकाशन के प्रकट होने के अनिवार्य अंग हैं। जैसा कि अब्राहम कयपर ने बताया है, विश्व में कुछ भी पूर्ण अर्थ में नास्तिक नहीं है। और एक उच्चतर अधिकारी की ओर से उद्धृत करते हुए, “उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है” (रोमियों 11:36)। इसीलिए ओमनस सम्मस थीयोलॉजी (omnes sumus theologi—कि सभी ईश्वरविज्ञानी हैं—भले ही हम परमाणु भौतिकशास्त्री हों, अन्तरिक्ष यात्री हों, साहित्य-प्रेमी हों, माली हों, कूड़ा बिनने वाले हों, या में “ईश्वरविज्ञानी” भी हों। यह किसी भी सोच सकने योग्य बुलाहट में हमारे जीवनों का सौभाग्य, चुनौती, और प्रेम है। अन्ततः, पौलुस के शब्दों के अनुसार, हम केवल एक कार्य कर रहे हैं (फिलिप्पियों 3:13)। क्या पौलुस ने कभी केवल एक ही कार्य किया? निश्चय ही नहीं। परन्तु हाँ, वह केवल एक ही कार्य कर रहा था परन्तु हज़ार भिन्न-भिन्न गतिविधियों में। ऐसा ही हमारे साथ है। हर एक बात में हम ईश्वरविज्ञानी हैं क्योंकि हम जानते हैं कि सारा जीवन परमेश्वर को जानने के लिए है।
परन्तु ईश्वरविज्ञान कैसे कार्य करता है? सम्भवतः एक उदाहरण सहायता कर सकता है। बीबीसी टीवी पर एक कार्यक्रम है जिसका मैं आनन्द लेता हूँ। इसका नाम है द रिपेएर शॉप (सुधार की दुकान), और—टीवी पर बहुत कुछ दिखाए जाने वाले निराशाजनक या अनैतिक या दोनों के मध्य —यह एक अत्यन्त आनन्द देने वाला कार्यक्रम है। साधारण लोग ठीक किए जाने के लिए अपनी क्षतिग्रस्त, सड़ी-गली, विकृत, और लगभग नष्ट विरासतों को लाते हैं। वे प्रायः गम्भीर मार्मिक कहानियों को बताते हैं—कि वह वस्तु (जो अपने आप में बहुत कम मूल्य की हो सकती है) उनके लिए इसलिए इतनी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसका सम्बन्ध एक प्रियजन से है। फिर हम कारीगरों के आसाधारण कौशल को देखते हैं —जो कि लकड़ी और धातु के कार्य, यान्त्रिक कार्य और फर्नीचर के कार्य, संगीत वाद्ययन्त्र और उसकी यंत्रावली, कोमल और कठोर वस्तुओं में निपुण—ऐसे कार्य करते हैं जो कि जादू प्रतीत होता है। जबकि मेरे जैसे लोग जुगाड़ करने और उत्तम की आशा करते हैं, वे पहले तोड़ते है और फिर उसे जोड़ते और उस बहुमूल्य वस्तुओं की लम्बे समय से खोयी महिमा को पुनःनिर्मित करते हैं। फिर अद्भुत समाप्ति होती है: हम विभिन्न स्वामियों के अत्याधिक कृतज्ञता, उनकी प्रशंसा, और प्रायः उनके आनन्द को देखते (और साझा करते हैं) जब वे भावुक हो कर आँसू बहाते हैं क्योंकि पुनः निर्मित वस्तु को प्रायः साधारण कम्बल के अन्दर से उसकी परिपूर्ण महिमा में अनावृत किया जाता है (एक महान पुनःनिर्माण का कितना ही सांकेतिक उदाहरण)।
ईश्वरविज्ञान सुसमाचार द्वारा सुधार की दुकान है। इसके विभिन्न “बिन्दुपथ (loci)” या विषय (परमेश्वर, सृष्टि, पतन, प्रावधान, छुटकारा, महिमा) ऐसे हैं जैसे कि, विशेषज्ञों के कई सारे विभाग हों जो कि पहले हमारी व्यक्तिगत क्षति को तोड़ते हैं और फिर हमारा पुनर्निर्माण करते हैं जब तक कि सृष्टि में हमारे मूल दर्शन का आभास नहीं हो जाता। इस प्रकार से, जिसे हमारे पूर्वज ईश्वरविज्ञान का तीर्थ कहते थे, जिसमें हम दर्पण में धुन्धला देखते थे, वह दर्शन का ईश्वरविज्ञान बन जाता है जिसमें हम आमने-सामने देखेंगे। परमेश्वर को महिमा देने और सदैव के लिए उसका आनन्द लेने के लिए उसके स्वरूप में बनाए जाने के बाद, अन्त में हम उसके समान बन जाएंगे।
तब फिर, हमारे ईश्वरविज्ञान की विषय वस्तु क्या है?
हमारा ईश्वरविज्ञान
जैसा कि थॉमस एक्वायनस ने कहा है, ईश्वरविज्ञान परमेश्वर से आता है, परमेश्वर के विषय में सिखाता है, और हमें परमेश्वर की ओर ले जाता है। और चूँकि अनन्त जीवन परमेश्वर और यीशु ख्रीष्ट जिसे उसने भेजा को जानना है (और ऐसा हम केवल आत्मा के माध्यम से कर पाते हैं; यूहन्ना 17:3; देखें 14:23, 25) हमारा ईश्वरविज्ञान परमेश्वर के साथ प्रारम्भ (और समाप्त) होता है। यह हमें बताता है कि वह कौन है—एक परमेश्वर जो कि तीन व्यक्ति है, एक सदा के लिए धन्य त्रिएकता, जो पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा के रूप में अपने तीन व्यक्तियों की अनन्त संगति में है। ऐसा ईश्वरविज्ञान हमें उसके अद्भुत एकीकृत, सरल चरित्र को जानने की ओर ले जाता है, जिसे हम अपनी सीमित क्षमता में पहलू दर पहलू समझने का प्रयास करते हैं जिसे हम उसके गुण कहते हैं। ये वास्तव में उसकी सिद्धता, उसकी ईश्वरीयता, उसके अनन्त और महिमावान देवत्व को वर्णित के केवल कई सारे उपाय हैं।
तो हमारा ईश्वरविज्ञान उस त्रिएक परमेश्वर का ईश्वरविज्ञान है जो स्वयं के लिए और स्वयं में पर्याप्त है और जो अपनी सभी आत्म-अभिव्यक्ति में पवित्र प्रेम है। तब इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हमारा ईश्वरविज्ञान पवित्रता के भविष्यद्वक्ता और प्रेम के प्रेरित के दो दर्शनों के द्वारा संचालित है—यशायाह 6 और प्रकाशितवाक्य 4-5 में। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि इन दोनों दर्शनों में हमारा सम्पूर्ण ईश्वरविज्ञान सारांशित प्रतीत होता है।
वे परमेश्वर कि ईश्वरीयता को “जो था, और जो है, और जो आने वाला है”(प्रकाशितवाक्य 4:8) और सृष्टि की कहानी (पद 11) प्रतिबिम्बित करते हैं: कि स्वर्ग और पृथ्वी पर सब कुछ त्रिएक परमेश्वर द्वारा सृजा गया है, “जो पिता है, जो सर्वशक्तिमान है, जो स्वर्ग और पृथ्वी का और समस्त दृश्य एवं अदृश्य वस्तुओं का सृष्टिकर्ता है” (नीकिया का विश्वास वचन) अपने वचन के माध्यम से सनातन पुत्र, और प्रारम्भिक जल के ऊपर जो मण्डराता था उस आत्मा के आदेश देने, परिपूर्ण करने, पूरा करने की सेवकाई के द्वारा।
वे हमें ऐसा दर्पण प्रदान करते हैं जिसमें हम अपने सृजी हुई नियति को अपने पीछे पड़े देखते हैं जिसे लगभग पहचाना नहीं जा सकता। हम परमेश्वर के द्वारा उसकी महिमा और उसका आनन्द लेने के लिए बनाए गए हैं —एक शब्द में, उसके साथ संगति करने के लिए और उसका स्तुतिगान करने के लिए। परन्तु अब हम स्वयं को यशायाह के समान अभिभूत पाते हैं कि परमेश्वर कौन है—वह पवित्र जन— और हम आभास करते हैं कि हम, एक प्राचीन स्कॉटलैण्ड के महल के समान हैं जो कि शैतान के आक्रमण से नष्ट, उजड़ी हुई विरासत बन गया है। हम बिना स्वामी के, स्व-निर्माण में असमर्थ, अधूरे और अशुद्ध हैं। हम में से कोई भी पुस्तक को खोलने के योग्य नहीं है जिसमें सम्भवतः हमारे उद्धार और पुनःस्थापना की योजना हो (प्रकाशितवाक्य 5:4)।
परन्तु इस प्रकार से हमारा ईश्वरविज्ञान समाप्त नहीं होता है। परमेश्वर अपना स्वरूप पुनः चाहता है। सच में, इससे पहले कि हम पुनःस्थापना के कार्य की आवश्यकता को देख सकें हमें यह पता लग जाना चाहिए कि हम नष्ट हो चुके हैं। परन्तु फिर हमारा यशायाह-यूहन्ना का ईश्वरविज्ञान हमें बताता है कि यह कोई भिन्न परमेश्वर नहीं है, परन्तु वही तीन बार-पवित्र परमेश्वर है जिसका दूत एक वेदी पर बलिदान किए गए जलते अंगारे द्वारा पुनःस्थापना लाता है जो कि पहले भस्म करता है और फिर निर्माण करता है। और यह बाइबल द्वारा तैयार ईश्वरविज्ञान हमें बताता है कि यशायाह ने अपने दर्शन में प्रभु यीशु ख्रीष्ट की महिमा देखी (यूहन्ना 12: 41)। चूँकि हमारा ईश्वरविज्ञान इस बात को थामे है कि प्रकाशन प्रगतिशील और संचयी दोनो ही है, तब हम यह बात समझ पाते हैं कि यशायाह के दर्शन में जिस व्यक्ति की ओर संकेत किया गया है वह यहूदा के सिंह, परमेश्वर के बलि किए गए मेमने के अतिरिक्त और कोई नहीं है जो जगत के पाप दूर कर देता है (प्रकाशितवाक्य 5:6-10)। और जब हम “ख्रीष्ट को सीखने” के लिए गहराई में शोध करते हैं (इफिसियों 4:20), हम उसके एक ईश्वरीय व्यक्ति को उसके दो स्वभावों में जो कि उस एक व्यक्ति में एक है, उसके अपमान और महिमा की दो अवस्थाओं में, और एक प्रभु यीशु ख्रीष्ट के रूप में तीन पदों भविष्यद्वक्ता, याजक, और राजा में ध्यान से देखते हैं।
इस सन्दर्भ में, हम पाते हैं कि हमारे साथ कुछ होता है: अलौकिक आत्मा के द्वारा, हमारे जीवन ख्रीष्ट के प्रायश्चित बलिदान में उसके साथ जीवित सम्पर्क में लाए गए हैं। हम पाप के दोष से क्षमा किए गए और धर्मी ठहराए गए हैं। और उसी क्षण हम में पाप के जलाए जाने का आरम्भ हो जाता है। इसका कोई अन्य मार्ग नहीं हो सकता, क्योंकि कैल्विन ने नियमित रूप से यह व्यक्त किया है कि यह सोचना कि हम ख्रीष्ट को पवित्रीकरण के लिए प्राप्त किए बिना धर्मी ठहराए जाने के लिए प्राप्त कर सकते हैं उसे फाड़ कर पृथक कर देने के जैसा है क्योंकि उसे दोनों के लिए हमें दिया गया है। आत्मा हमें एक ख्रीष्ट के साथ जोड़ता है जो हमारे लिए “धार्मिकता और पवित्रता” दोनों है (1 कुरिन्थियों 1:30)। इसलिए, वह पापी जो कि धर्मी है वह साथ ही साथ परमेश्वर में नए जीवन के लिए पाप के प्रभुत्व पर उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान में भी सहभागी होता है (रोमियों 6:2-4)। किसी और ईश्वरविज्ञान के होने का अर्थ है यह त्रुटिपूर्वक समझना कि अनुग्रह “धार्मिकता से अनन्त जीवन के लिए हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट के द्वारा” राज्य करता है (5:21)।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि यशायाह का सर्वोपरि दर्शन अप्रतिबन्धित आज्ञाकारिता के साथ समाप्त होता है: “मैं यहाँ हूँ, मुझे भेज” (भले कितना भी ऊबड़ खाबड़ मार्ग क्यों न हो; यशायाह 6:8-13)। और कोई आश्चर्य नहीं है कि यशायाह का दर्शन यूहन्ना के स्वर्गीय गान के अनुभव में प्रतिध्वनित होता है: “पवित्र, पवित्र, पवित्र, प्रभु परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, जो था, और जो है, और जो आने वाला है” (प्रकाशितवाक्य 4:8); और अन्तहीन आराधना में शिखर तक जाता है: “जो सिंहासन पर बैठा है उसका, और मेमने का धन्यवाद और आदर, महिमा तथा राज्य युगानुयुग रहे” (5:8)। यह कोई दुर्घटना नहीं है कि लिग्निएर राष्ट्रीय सम्मेलन पराम्परागत रूप से हैण्डल के “हालेलुयाह गान” के साथ समाप्त होती है।
हाँ, यह हमारा ईश्वरविज्ञान है। “आर. सी. स्प्रोल की शिक्षण संगति” के आरम्भिक दिनों से ही यह लिग्निएर की हृदय की धड़कन रहा है —जिसे पचास वर्षों से विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। यहाँ हम सब उस शिक्षण संगति का भाग बनते हैं। और यह ईश्वरविज्ञान, हमारा ईश्वरविज्ञान, ईश्वरीय सुधार की दुकान बन गया है, जो हमें छुटकारे के माध्यम से विनाश से अन्तिम पुनःस्थापना तक आता है। केवल परमेश्वर की महिमा हो (Soli Deo gloria) !