ईश्वरविज्ञान और कलीसिया - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ईश्वरविज्ञान और कलीसिया

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: वर्तमान सर्वदा के लिए महत्व रखता है

ईश्वरविज्ञान, वह सत्य जो कि परमेश्वर की ओर से और परमेश्वर के विषय में है, कलीसिया के जीवन के लिए है। यीशु अपनी कलीसिया का निर्माण ऐसे चेले बनाने के द्वारा कर है जो उसके पीछे चलते हैं, जो इस सत्य का अंगीकार करते हैं कि “ख्रीष्ट, जीवित परमेश्वर का पुत्र है” (मत्ती 16:16)।  चेले वे हैं जिन्हें यीशु जीवन देता है ताकि वे उसकी सच्चाई के अनुसार उसके मार्ग में चल सकें। जैसा कि यीशु ने कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे, और तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतन्त्र करेगा”(यूहन्ना 8:31:32)।

महान आदेश में, यीशु अपने चेलों को चेले बनाने और संसार भर में कलीसिया निर्मित करने के लिए भेजता है। चेले कैसे चेले बनाते हैं? यीशु इस विशाल कार्य को दो उल्लेखनीय संक्षिप्त बिन्दुओं में सारांशित करते है: उसके चेले उन्हें बपतिस्मा दे कर और उन्हें शिक्षा दे कर चेला बनाएँगे। यदि यीशु के शब्द इतने परिचित न होते, तो हम में से कई को यह सारांश कुछ आश्चर्यजनक लग सकता था। हम सम्भवतः शिक्षा देने की आज्ञा की अपेक्षा कर सकते हैं, परन्तु इतने छोटे सारांश में बपतिस्मा देने की आज्ञा को सम्मिलित करना कदाचित ही अनापेक्षित है। परन्तु आश्चर्य प्रतिबिम्ब और मनन को आमन्त्रित करते हैं। जैसा कि हम इसके विषय में विचार करते हैं, हम देख सकते हैं कि यह कितना उपयुक्त और सहायक है।

हम इस आज्ञा में देखते हैं कि चेले बनाने के दो भाग हैं: उन्हें लाना और उनका निर्माण करना। चेले वे हैं जो बपतिस्मा के द्वारा लाए गए हैं और जीवन को परिवर्तित करने वाली शिक्षा के द्वारा निर्मित किए गए हैं।

यीशु बपतिस्मा की ओर हमारा ध्यान केवल जल समारोह के संकीर्ण अर्थ में नहीं परन्तु बपतिस्मा में सम्मिलित सभी व्यापक अर्थों की ओर निर्देशित करता है। यह हम यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की सेवकाई में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। उसकी बपतिस्मा की सेवकाई में उसका सुसमाचार प्रचार (लूका 3:18); मनफिराव के लिए उसकी बुलाहट (पद 3), और मनफिराव के योग्य फल पर उसका आग्रह (पद 8)। बपतिस्मा में परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं का प्रचार और उन प्रतिज्ञाओं के लिए उचित प्रत्युत्तर की बुलाहट सम्मिलित हैं। बपतिस्मा वास्तव में चेलों को लाता है, उन्हें विश्वास का जीवन आरम्भ करने के लिए बुलाता है।

इस अर्थ में बपतिस्मा एक चेले होने के लिए यथायोग्य आधारभूत है क्योंकि बपतिस्मा परमेश्वर की प्रतिज्ञा को विस्तार से बताता और उन बपतिस्मा लेने वालों के विश्वास और प्रतिबद्धता की भी माँग करता है। बपतिस्मा में पापियों के लिए परमेश्वर की केन्द्रीय प्रतिज्ञा यह है कि परमेश्वर उनके पापों को धो देगा और उन्हें क्षमा कर देगा। जब यीशु महान आदेश में विशिष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है कि उसके चेले पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा देंगे, वह दिखाता है कि बपतिस्मा की प्रतिज्ञा त्रिएक परमेश्वर की ओर से आती है और त्रिएकता द्वारा इसकी निश्चितता दी जाती है।

डच धर्मसुधारवादी कलीसियाओं (Dutch Reformed Churches) में बपतिस्मा की आराधना विधि, जो कि सोलहवीं शताब्दी में लिखी गयी और शताब्दियों से उन कलीसियाओं में उपयोग की गयी, त्रिएकता से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्टि भूमिकाओं और प्रतिज्ञाओं पर सहायक रूप से विस्तारपूर्वक बताती है। यह आराधना विधि बताती है कि बपतिस्मा का अर्थ क्या है और बपतिस्मा परमेश्वर के लोगों से क्या प्रतिज्ञा करता है न कि यह कि बपतिस्मा का पानी प्रत्येक बपतिस्मा लेने वाले में क्या पूरा करता है। बपतिस्मा में, परमेश्वर पिता प्रतिज्ञा करता है कि वह “हमारे साथ अनुग्रह की अनन्त वाचा बाँधता है और हमें अपनी सन्तान और वारिस होने के लिए गोद लेता है।” बपतिस्मा में, परमेश्वर पुत्र प्रतिज्ञा करता है कि वह “अपने लहू में हमारे सभी पापों को धो देता है, अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान की संगति में सम्मिलित करता है, ताकि हम अपने पापों से स्वतन्त्र हो जाएँ और परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहरें।” बपतिस्मा में, परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रतिज्ञा करता कि वह “हम में अन्तर्निवास करेगा, हमें पवित्र करेगा . . . जब तक कि हम अनन्त जीवन में चुने हुओं की सभा में निष्कलंक प्रस्तुत नहीं किए जाते।”  बपतिस्में में ये प्रतिज्ञाएँ हमारे सुसमाचार की आशा के हृदय और केन्द्र की घोषणा करती हैं। बपतिस्मा केवल एक बाहरी समारोह या केवल कलीसिया या एक विश्वासी का कार्य नहीं है। यह प्रथम स्थान में “एक दृश्य वचन” है जो कि सुसमाचार की प्रतिज्ञा के प्रचारित वचन को अभिव्यक्त करता है जैसा कि हम पढ़ते है, ”यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला पापों की क्षमा के लिए मन परिवर्तन के बपतिस्मा का प्रचार करता हुआ जंगल में आया” (मरकुस 1:4)।

इस डच धर्मसुधारक बपतिस्मे की आराधना विधि में, बपतिस्मा का ईश्वरविज्ञान कलीसिया के लिए तैयार किया गया है। यह परमेश्वर की ओर से घोषित प्रतिज्ञाओं में, परन्तु साथ ही मानवीय पक्ष की ओर से समर्पण की बुलाहट में बपतिस्मा के अर्थ को दिखाता है। समर्पण की उस बुलाहट को शक्तिशाली रूप से व्यक्त किया गया है:

जबकि सभी वाचाओं में दो भाग निहित होते हैं, इसलिए हम परमेश्वर के द्वारा, बपतिस्मा के माध्यम से, नई आज्ञाकारिता के लिए चिताए गए और उसके प्रति आभारी हैं, अर्थात्, कि हम इस एक परमेश्वर, पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा से लिपटे हुए हैं; कि हम उस पर भरोसा करते हैं, और अपने पूरे हृदय से, अपने पूरे प्राण से, अपने पूरे मन से, और अपनी पूरी सामर्थ्य से उससे प्रेम करते हैं; कि हम संसार को त्याग दें, अपने पुराने स्वभाव को क्रूस पर चढ़ा दें, और एक भक्तिपूर्ण जीवन में चलें। और यदि हम कभी निर्बलता के कारण पाप में गिर जाएँ, इस कारण से हमें न तो परमेश्वर की दया से निराश होना चाहिए, न ही पाप में बने रहना चाहिए, क्योंकि बपतिस्मा एक मुहर और संशयहीन साक्षी है कि हमारे पास परमेश्वर के साथ अनन्त की वाचा है।

चेले होने का अर्थ है प्रतिज्ञाओं को सुनें और फिर विश्वास करें और उन्हें जीएँ।

बपतिस्मा अनिवार्य रूप से हमें कलीसिया के साथ जोड़ता है। बपतिस्मा कभी भी व्यक्तिगत नहीं होता क्योंकि इसे किसी दूसरे के द्वारा किया जाना चाहिए। बपतिस्मा कलीसिया द्वारा और कलीसिया में होता है। मसीही जीवन एकाकी का जीवन नहीं है परन्तु विश्वास के समुदाय में जीया जाता है। ख्रीष्ट अपनी कलीसिया का निर्माण कर रहा है, और हमें इसका सदस्य बनना है, एक औपचारिक सम्बन्ध के रूप में नहीं परन्तु हमारे जीवन की एक प्रमुख भाग चेलों के रूप में।

बपतिस्मा की आज्ञा के साथ-साथ, यीशु हमें परमेश्वर के लोगों के जीवन का निर्माण करने की शिक्षा देने के लिए निर्देशित करता है। अपनी पृथ्वी पर की पूरी सेवकाई में, यीशु ने सत्य की शिक्षा दी कि उसके चेलों को क्या पता होना चाहिए और उन्हें कैसे उसके लिए जीना है। उसके प्रेरितों उस शिक्षा के कार्य को उसके अधिकार के साथ करते रहे। यीशु की शिक्षाएँ, उसकी पृथ्वी पर की सेवकाई और उसके प्रेरितों दोनों ही के द्वारा, उसकी कलीसिया के लिए पवित्रशास्त्र में एकत्रित और संरक्षित की गयीं। वह कलीसिया जो ख्रीष्ट का अनुसरण करती है विश्वासयोग्यता के साथ बाइबल से उसके ईश्वरविज्ञान को सिखाती है ताकि मसीही सत्य को जान सकें और उसे जी सकें।

ऐसी शिक्षा एक महान कार्य है। यीशु ने अपनी कलीसिया को आधारभूत सत्य या केवल कुछ सत्य या परमेश्वर के वचन के कई सत्यों को सिखाने के लिए बुलाहट नहीं दी है। उसने हमें वह सब सिखाने के लिए नियुक्त किया है जिसकी उसने आज्ञा दी है। हम सत्यों को प्राथमिकता दे सकते हैं, पर हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम उनमें से एक को भी हटा दें। वह हमें इस इच्छा के व्यापक ज्ञान और उसको अर्पित एक पूर्ण और सम्पूर्ण जीवन के लिए बुलाता है।

एक अत्यन्त गम्भीर जोखिम जो कलीसियाएँ अपने लिए उत्पन्न कर सकती हैं वह है बाइबल की शिक्षाओं के साथ छेड़खानी करना। वे ऐसा यीशु की शिक्षाओं को अस्वीकार करके,उन्हें तोड़ मरोड़ करके, अनदेखा करके, या फिर उसमें कुछ जोड़ करके कर सकती हैं। उदारवादी कलीसियाएँ उन शिक्षाओं को हटा देते हैं जो कि उनकी बुद्धि के लिए बौद्धिक या नैतिक न हो। सुसमाचारवादी कलीसियाओं ने भी सरल सुसमाचार सुना कर प्रायः अविश्वासियों के लिए मसीहियत को अधिक आकर्षक बनाने का प्रयास किया है।

इसके विपरीत, धर्मसुधारवादी कलीसियाओं ने व्यापक रूप से बाइबलीय होने का प्रयास किया है, जो कि उनके अंगीकार मानकों में प्रतिबिम्बित होता है, जो कि सिद्धान्तों और नीतियों से भरा है।

कलीसिया में, सेवक और लोग दोनों ही सम्पूर्ण शिक्षा के प्रति उत्तरदायी हैं। सेवक को सावधानीपूर्वक योजना बनानी चाहिए कि वे क्या सिखाएँगे और उसे किस प्रकार से संचारित करें जो कि वास्तव में लोगों का निर्माण करेगा। परमेश्वर का वचन कलीसिया के लिए सत्य का भण्डार है, और सेवकों को उसे सिखाना चाहिए। उन्हें मनोरंजनकर्ता या टीवी पर आने वाले  मनोवैज्ञानिक के जैसे बनने के दबाव का विरोध करना चाहिए।

परमेश्वर के लोगों का भी, विशेषकर एक लोकतान्त्रिक संस्कृति में, एक गम्भीर कर्तव्य है। उन्हें सेवकों को परमेश्वर की सम्पूर्ण सम्मति को सिखाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उत्सुकता से ऐसी शिक्षा की खोज और समर्थन करना चाहिए। अन्यथा, कलीसिया गम्भीर रूप से अपरिपक्व रह जाएगी। पौलुस ने कुरिन्थियों को चेतावनी देते हुए लिखा: “भाइयो, मैं तुमसे ऐसे बातें न कर सका जैसे आत्मिक लोगों से, परन्तु जैसे शारीरिक लोगों से, और उनसे जो ख्रीष्ट में बालक हैं। मैंने तुम्हें दूध पिलाया-अन्न नहीं खिलाया क्योंकि तुम इसे पचा नहीं सकते थे। वास्तव में, तुम अभी तक पचा नहीं सकते, क्योंकि तुम अब तक शारीरिक हो”(1 कुरिन्थियों 3:1-3)। यही बात इब्रानियों में भी कही गयी है:           

हमें उसके विषय में बहुत कुछ कहना है, जिसका समझना कठिन है, क्योंकि तुम ऊंचा सुनने लगे हो। तुम्हें अब तक तो शिक्षक हो जाना चाहिए था, फिर भी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें फिर से परमेश्वर के वचन की प्रारम्भिक शिक्षा दे। तुम्हें तो ठोस भोजन की नहीं पर दूध की आवश्यकता है। प्रत्येक जो दूध ही पीता है, वह धार्मिकता के वचन का अभ्यस्त नहीं, क्योंकि वह बालक है। परन्तु ठोस भोजन तो बड़ों के लिए है, जिनकी ज्ञानेन्द्रियां अभ्यास के कारण भले-बुरे की पहिचान करने में निपुण हो गयी हैं (5:11-14)। 

अपरिपक्व कलीसिया और अपरिपक्व मसीही अभी भी शरीर की पकड़ में हैं और इसलिए ऊँचा सुनने लगे हैं। परिपक्व कलीसिया सीखने और समझ एवं धार्मिकता में प्रशिक्षित होने के लिए उत्सुकतापूर्वक वचन को सुनती है। कलीसियाओं को चेले बनाने के लिए ईश्वरविज्ञान की आवश्यकता है, वे दोनों ही जिन्हें कलीसिया में लाया गया है और जिन्हें सत्य में निर्मित किया गया है। लिग्निएर चेलों का सत्य में निर्माण करने में सहायता के लिए विश्वासयोग्य शैक्षिक साधनों को प्रदान करने के लिए समर्पित है।

यीशु की चेले बनाने का महान आदेश तब तक पूरा नहीं होगा जब तक परमेश्वर के सब चुने हुओं को कलीसिया में नहीं ले आया जाता। परन्तु हमारे पास अपनी बुलाहट में बने रहने के लिए यीशु की महान प्रतिज्ञा है: “देखो, मैं युग के अन्त तक सदैव तुम्हारे साथ हूँ” (मत्ती 28:20)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
डब्ल्यू. रॉबर्ट गॉडफ्रे
डब्ल्यू. रॉबर्ट गॉडफ्रे
डॉ. डब्ल्यू. रॉबर्ट गॉडफ्रे लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और कैलिफ़ोर्निया के वेस्टमिन्सटर सेमिनरी में ससम्मान सेवामुक्त अध्यक्ष और प्रोफेसर हैं। वह कलीसिया के इतिहास के सर्वेक्षण के छह-भाग लिग्निएर शिक्षण श्रृंखला के लिए विशेष रूप से शिक्षक हैं और कई पुस्तकों के लेखक, जिसमें सेविंग रिफॉर्मेशन भी सम्मिलित है।