ख्रीष्ट कौन है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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ख्रीष्ट कौन है?

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौथा अध्याय है: सुसमाचार का मुख्य केन्द्र

16 दिसम्बर, 1739 को, जॉर्ज विटफील्ड ने मत्ती 22:42 पर विलियम्सबर्ग, वीए., वर्जीनिया में ब्रूटन पैरिश चर्च में एक संदेश प्रचार किया था, जिसमें उन्होंने अपने श्रोताओं से वही प्रश्न पूछा, जिसे यीशु ने 1700 वर्ष पूर्व अपने श्रोताओं से पूछा था: “ख्रीष्ट के बारे में तुम क्या सोचते हो?”

जो भाषा विटफील्ड बोलते थे वह भाषा उनके प्रभु की भाषा से भिन्न थी, परन्तु उत्तर के अनन्त परिणाम एक ही थे। यीशु के समयकाल के कुछ उत्तर—वह मृतकों में से जी उठा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला था, वह कई भविष्यद्वक्ता में से एक था, वह एलिय्याह था (मरकुस 8:27-28 को देखें)—विटफील्ड के समय में दिए गए उत्तरों के समान थे। बेंजामिन फ्रैंकलिन जैसे आस्तिकों, जो विटफील्ड के एक अच्छे मित्र थे, यीशु को एक अतुलनीय शिक्षक मानते थे, किन्तु वे लोग उसके परमेश्वरत्व का अंगीकार करने से बहित पीछे हटे। अन्य लोगों ने यीशु को ईश्वरीय माना, लेकिन उन्होंने कुछ इस प्रकार से कि उसका परमेश्वरत्व पिता से कम है। विटफील्ड, पवित्रशास्त्र की साक्षी के प्रति ईमानदार होते हुए, लोगों को बताने में लज्जित नहीं हुए कि यीशु ख्रीष्ट पूर्ण रीति से परमेश्वर हैं और कि “यदि यीशु ख्रीष्ट वास्तव में सच्चे परमेश्वर न होते, तो मैं ख्रीष्ट के सुसमाचार का प्रचार फिर कभी न करता। क्योंकि यह सुसमाचार न होता, यह तो केवल नैतिकता की एक तन्त्र-प्रणाली होती।”

सच्चे परमेश्वर का सच्चा परमेश्वर

सम्पूर्ण नये नियम में प्रभु यीशु के पूर्ण परमेश्वरत्व का प्रमाण पाया जाता है। यीशु को स्पष्ट रूप से कहा गया है–“हमारे महान परमेश्वर और उद्धारकर्ता” (तीतुस 2:13)। परमेश्वर की समस्त परिपूर्णता उसी में वास करती है (कुलुस्सियों 1:19, 2:9)। पुराने नियम में यहोवा को दिए गए शीर्षकों व नामों को वह धारण करता है, (उदाहरण के लिए, यशायाह 44:6 और प्रकाशितवाक्य 1:17 की तुलना कीजिए)। उसे आराधना के विषय-वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है (इब्रानियों 1:6) तथा प्रार्थनाओं में सम्बोधित किया जाता है (प्रेरितों के काम 7:59-60, 1 कुरिन्थियों 16:22, 2 कुरिन्थियों 12:8)। वह ऐसे कार्य करता है जो केवल परमेश्वर ही कर सकता है, जैसे कि ब्रह्माण्ड की सृष्टि करना (यूहन्ना 1:3, कुलुस्सियों 1:16), पापों को क्षमा करना (मरकुस 2:5-10, कुलुस्सियों 3:13), तथा अन्तिम दिन में हमारा न्याय करना (प्रेरितों के काम 10:42, 17:31, 2 कुरिन्थियों 5:10)। उसके पास ईश्वरीय गुण हैं, जैसे- सर्व-उपस्थित (इब्रानियों 1:3, इफिसियों 4:10), सर्वज्ञानी (प्रकाशितवाक्य 2:23), सर्व-सामर्थी (मत्ती 28:18), और कभी न बदलने वाला (इब्रानियों 13:8)। ख्रीष्ट का पूर्ण परमेश्वरत्व सुसमाचार के लिए  अनिवार्य है। कोई भी अन्य विचार नये नियम की शिक्षा को विकृत करता है।

जो देहधारी हो गया

नया नियम यीशु ख्रीष्ट की पहचान के बारे में एक अन्य सत्य की साक्षी भी देता है–उसके पूर्ण मनुष्यत्व के बारे में। जैसे कि प्रेरित पौलुस इसे इस प्रकार रखता है, कि वह “यीशु ख्रीष्ट मनुष्य  है” (1 तीमुथियुस 2:5; इटैलिक जोड़ा गया है), सामान्य परिस्थितियों में उसका पालन-पोषण हुआ (मत्ती 13:55)। उसने तीव्र भूख का अनुभव किया (4:2)। वह थकान और प्यास को जानता था (यूहन्ना 4:6-7)। वह दुःख के सच्चे आँसू रोया (यूहन्ना 11:35)। यद्यपि  इन सभी पहलुओं में उसका मनुष्यत्व हमारी तरह है, एक पहलू है जिसमें वह हमसे पूर्णतः भिन्न है: वह पाप रहित है। जब हम यीशु के जीवन को देखते हैं, तो कोई भी ऐसी घटना नहीं है जिस पर हम उंगली उठाऐं और कह सकें कि “देखो, एक पाप”। यीशु ख्रीष्ट के मनुष्यत्व का इनकार करना सुसमाचार को दुर्बल करना है (देखें यूहन्ना 4:1-3, 2 यूहन्ना 7-9)। 

हमारे उद्धार के लिए… क्रूसित हुआ 

पूरे जीवन भर भलाई करने, बीमारों को चंगा करने, और सुसमाचार का प्रचार करने के पश्चात, यीशु यहूदियों और रोमी अधिकारियों के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। वह जो स्वयं सत्य है, और परमेश्वर से सिद्ध प्रेम करने वाला व्यक्ति है, उस पर ईशनिन्दा का दोष लगाया गया। उसने यहूदी अंगरक्षकों और रोमी सैनिकों के हाथों अपमानजनक दुख उठाया, उसको मारा गया और उसका ठट्ठा उड़ाया गया। उसके सारे वस्त्र फाड़ दिए गए और उसे नग्न अवस्था में मार दिया गया (यूहन्ना 19:23-24, मरकुस 15:24)। उसकी मृत्यु रोमियों द्वारा जानी जाने वाली सबसे शर्मनाक और दर्दनाक मृत्यु थी—क्रूसीकरण। (इब्रानियों 12:2, यूहन्ना 19:16-18)। जीवन का कर्ता, जिसने मृतकों को जीवित किया, वह क़ब्र में दफनाया गया। हालांकि मृत्यु का सामना करते समय यीशु के लिए सबसे भयानक बात थी परमेश्वर के द्वारा त्यागे जाने की वह भावना जो उसके प्राण पर हावी थी (मत्ती 27:46, मरकुस 15:34), क्योंकि उसने अपनी मृत्यु में पापियों के लिए नरकीय प्रकोप को सह लिया तथा अनुभव किया जिसके लायक वे लोग थे (1 कुरिन्थियों 15:3, 2 कुरिन्थियों 5:21, इब्रानियों 9:11-14,28)। उसकी मृत्यु एक प्रतिनिधित्व करने वाली तथा प्रायश्चित करने वाली मृत्यु से किसी भी प्रकार से कम नहीं थी। इस बात का इनकार करना, सुसमाचार का इनकार करना है।

किन्तु मृत्यु यीशु को क़ब्र में न रख सकी, क्योंकि न तो मृत्यु और न ही शैतान का उस पर किसी भी प्रकार का दावा था (भजन 16:10, प्रेरितों के काम 2:24-31)। इसलिए, परमेश्वर पिता ने, पवित्र आत्मा के द्वारा, यीशु ख्रीष्ट को तीसरे दिन मृतकों में से जिला उठाया (मत्ती 28:6-7, प्रेरितों के काम 2:32, रोमियों 8:11), और कई अवसरों पर वह अपने प्रेरितों और चुने हुए गवाहों को दिखाई दिया (प्रेरितों के काम 1:3-8, 1 कुरिन्थियों 15:4-8)। यीशु के दैहिक पुनरुत्थान के सत्य को तिरस्कारना, हमारे उद्धार की आशा को समाप्त करता है।

यही वह सुसमाचार है जिसको नया नियम सिखाता है, जिसका प्रचार विटफील्ड ने किया था, जिसे हम अभी भी थामे हुए हैं: ख्रीष्ट, जो पूर्ण परमेश्वर है, हमारे उद्धार के लिए मनुष्य बन गया, हमारे पापों के लिए मर गया, और मृतकों में जिलाया गया। इस पर विश्वास करो तो तुम भी बच जाओगे।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।

माइकल हेकिन
माइकल हेकिन
डॉ. माइकल हेकिन कलीसिया इतिहास और बाइबल आधारित आत्मिक विषयों के प्रोफेसर हैं और लुइविल केंटकी के सदन बैपटिस्ट थियोलॉजिकल सेमनरी में बैपटिस्ट स्टडीज़ के लिए ऐंड्रू फुलर सेंटर के निदेशक हैं। वह रिडिस्कवरिंग द् चर्च फॉदर्स सहित कई पुस्तकों के लेखक हैं।