7 सितम्बर 2021
प्रथम चार धन्य वाणी सब एक चेले की आवश्यकताओं का वर्णन करती हैं। “धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं” शृंखला में अन्तिम है (मत्ती 5:3-6)। यीशु ने सर्वप्रथम कहा, “धन्य हैं वे जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है”(पद 3)। मन का दीन होने का अर्थ है स्वयं की आत्मिक आवश्यकता और परमेश्वर पर निर्भरता को जानना (भजन 34:6; सपन्याह 3:12)।