1 यूहन्ना 4:8 - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
1 यूहन्ना 2:27
24 जून 2022
प्रकाशितवाक्य 3:20
30 जून 2022
1 यूहन्ना 2:27
24 जून 2022
प्रकाशितवाक्य 3:20
30 जून 2022

1 यूहन्ना 4:8

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का ग्यारहवां अध्याय है: उस पद का अर्थ वास्तव में क्या है?

प्रेरित यूहन्ना कभी भी मसीहियों को एक दूसरे से प्रेम करने के लिए प्रेरित करते हुए नहीं थके, और अभी हमारे सामने का खण्ड उनके द्वारा प्रदान किए गए सबसे सामर्थी उपदेशों में से एक है। वह इसे केवल यीशु ख्रीष्ट की आज्ञा (उदाहरण, यूहन्ना 13:34-35) पर आधारित नहीं करता है, परन्तु परमेश्वर की प्रकृति—“परमेश्वर प्रेम है,”  पर भी करता है। ऐसा कहते हुए, यूहन्ना हमें सिखा रहा है कि प्रेम परमेश्वर के सारतत्व (essence) से सम्बन्धित है। परमेश्वर किसी अनिश्चित रूप में प्रेम नहीं कर रहा है, जैसा कि अन्य प्रकार का हो सकता था। वह आवश्यक और अनिवार्य रूप से प्रेम करने वाला है। वास्तव में, हम कह सकते हैं कि वह स्वयं प्रेम है। वही वास्तविक सोता है जिससे सभी अन्य प्रकार के प्रेम बहते हैं।

परन्तु परमेश्वर के साथ, यह उसके सभी गुणों के लिए सत्य है। परमेश्वर जो है, और सब कुछ जो वह है, वह आवश्यक रूप से और अनिवार्य रूप से ऐसा ही है। वह अन्य प्रकार का हो ही नहीं सकता था। जैसा कि परमेश्वर प्रेमी है, वह न्यायी, भला, बुद्धिमान, दयालु, इत्यादि भी है। या, यदि हम उसके गुणों को संज्ञा के रूप में व्यक्त करना चाहते हैं, परमेश्वर न्याय, भलाई, बुद्धि, दया इत्यादि है, वैसे ही वह प्रेम है। मनुष्यों या स्वर्गदूतों के विपरीत जो कि प्रेमी या प्रेमरहित, भला या बुरा, बुद्धिमान या मूर्ख, दयालु या क्रूर हो सकते हैं, परमेश्वर अनिवार्य रूप से प्रेमी है, क्योंकि वह अनिवार्य रूप से “असीम, अनन्त, और अपरिवर्तनीय, अपने स्वभाव में, बुद्धि, सामर्थ, पवित्रता, न्याय, भलाई और सत्य में है“  (वेस्टमिन्सटर लघु प्रश्नोत्तरी 4)।

ईश्वरविज्ञानियों ने परमेश्वर के सभी गुणों की सारतात्विक एकता पर उसकी सहजता (simplicity) के अन्तर्गत विचार किया है, यद्यपि यहाँ विचार सरल नहीं प्रतीत हो रहा हो। बिन्दु यह नहीं है कि यह विचार संचारित या समझने में सरल है (अन्ततः, यह परमेश्वर है जिसके विषय में हम बात कर रहे हैं), परन्तु यह है कि परमेश्वर के गुण इस रीति से उसमें भागों में अन्तर्निवास नहीं करते हैं कि वे एक दूसरे या उससे भिन्न हैं। परमेश्वर अलग या भिन्न घटकों से बना एक मिश्रित प्राणी नहीं है। यहाँ तक कि त्रिएकता के विभिन्न व्यक्तियों को भी एक सच्चे परमेश्वर के भागों या घटकों के रूप में नहीं समझा जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रूप से परमेश्वर है, जिसमें वह सभी एक सारतत्व को साझा करते हैं—एक ऐसा सारतत्व जो कि सरल है, मिश्रित नहीं।

यदि हम इन सत्यों को थामें रखते हैं, तो हम उन शिक्षाओं से भटक नहीं जाते जो कि परमेश्वर के एक गुण को दूसरे के ऊपर रखती या एक को दूसरे से तनाव में रखती है। ऐसे विचार हमें पवित्रशास्त्र की शिक्षाओं को विकृत करने या सम्भवतः बाइबल के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के समर्थन में अस्वीकार करने की ओर ले जाती है। परमेश्वर का प्रेम कभी कभी इन प्रकारों से दर्शाया जाता है, जैसे कि प्रेम परमेश्वर का प्राथमिक गुण था और अन्य किसी प्रकार से द्वितीय, जैसे कि परमेश्वर के प्रेम की पूर्ण अभिव्यक्ति किसी प्रकार से उसके न्याय की पूर्ण अभिव्यक्ति को सीमित करती या रोकती है। चरम रूपों में, दुष्टों के अनन्त दण्ड में परमेश्वर का न्याय को इस आधार पर अस्वीकार किया जा सकता है कि यह उसके प्रेम के साथ उपयुक्त नहीं बैठता है। फिर भी दोनों को स्पष्ट रूप से पवित्रशास्त्र में सिखाया गया है।

बाइबल सुन्दरतापूर्वक परमेश्वर के विविध गुणों को एक साथ लाती है कि सभी उसकी महिमा से सम्बन्धित हैं। जब परमेश्वर ने मूसा पर अपनी महिमा को प्रकट किया ,उसने अपने नाम की यह कहते हुए घोषणा की,

यहोवा, यहोवा परमेश्वर, दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीमा, और करुणा तथा सत्य से भरपूर; हज़ारों पर करुणा करने वाला; अधर्म, अपराध और पाप क्षमा करनेवाला; फिर भी दोषी को वह किसी भी प्रकार दण्ड दिए बिना नहीं छोड़ेगा। वह तो पूर्वजों के अधर्म को दण्ड उनके बेटों और पोतों वरन् पर-पोतों को भी देने वाला है। (निर्गमन 34:6-7)

यहाँ परमेश्वर के कई गुणों का उल्लेख किया गया है, जिसमें से कोई भी दूसरे से अधिक आधारभूत या प्राथमिक नहीं है। किसी का दूसरे से तनाव नहीं है। करुणा का विश्वासयोग्यता का परमेश्वर न्याय का परमेश्वर भी है जो कि दोषियों पर क्रोध लाता है। परमेश्वर की महिमा में वह सब सम्मिलित हैं। इस सामन्जस्य को हम पवित्रशास्त्र में अन्य स्थानों में भी देख सकते हैं (उदाहरण, यशायाह 30:18; होशे 2:19)। 

क्रूस बड़े प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर के गुणों की सिद्ध एकता को प्रदर्शित करता है। यूहन्ना इसे परमेश्वर के प्रेम की सर्वोच्च अभिव्यक्ति के रूप में इन्गित करता है:  “परमेश्वर का प्रेम हम में इसी से प्रकट हुआ कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेज दिया कि हम उसकेद्वारा जीवन पाएँ” (1 यूहन्ना 4:9)। फिर भी यह परमेश्वर की धार्मिकता और न्याय की सर्वोच्च अभिव्यक्ति भी है, क्योंकि परमेश्वर ने अपने पुत्र को आगे रखा

उसी को परमेश्वर ने उसके लहू में विश्वास के द्वारा प्रायश्चित ठहराकर खुल्लमखुल्ला प्रदर्शित किया। यह उसकी धार्मिकता को प्रदर्शित करने के लिए हुआ, क्योंकि परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता में, पहिले किए गए पापों को भुला दिया; यह उसने इसलिए किया कि वर्तमान समय में उसकी धार्मिकता प्रदर्शित हो, कि वह स्वयं ही धर्मी ठहरे और उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो जो यीशु पर विश्वास करता है। (रोमियों 3:25-26)

यह बात कि परमेश्वर प्रेम है निश्चित रूप से एक सत्य है जिसकी उद्घोषणा छतों के ऊपर से का जानी चाहिए और साथ ही इसे हमारे हृदयों में संजोया जाना चाहिए। परन्तु ऐसा उसके सभी गुणों के साथ है। कोई भी गुण किसी दूसरे गुण से अधिक सुन्दर नहीं है, कोई भी गुण किसी दूसरे गुण से अधिक प्राथमिक नहीं है। कोई भी गुण अन्य गुणों से तनाव में नहीं है, और सभी सारतात्विक हैं। परमेश्वर के प्राणी के भीतर, उसके सभी गुणों के साथ सिद्ध सामनजस्य है जो कि सारतात्विक रीति से और अनिवार्य रूप से उसकी महिमा से सम्बन्धित है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
मार्क ई. रॉस
मार्क ई. रॉस
डॉ. मार्क ई. रॉस कोलम्बियो, साउथ कैरोलायना में एरस्काइन थियोलॉजिकल सेमिनेरी में विधिवत ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक हैं। वे लेट्स स्टडी मैथ्यू (Let’s Study Matthew, आइए हम मत्ती का अध्ययन करें) के लेखक हैं।