प्रकाशितवाक्य 3:20 - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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प्रकाशितवाक्य 3:20

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का बारहवां अध्याय है: उस पद का अर्थ वास्तव में क्या है?

कुछ वर्षों पूर्व, मैं अपने घर के सामने के बरामदे में बैठ कर पढ़ रहा था जब एक ऊँची वाणी सुनाई दी, “महोदय, हम आपसे इस विषय में बात करना चाहेंगे कि क्या आपने यीशु को अपने हृदय में आमन्त्रित किया है।” वे मेरे द्वार पर विधर्मी पंथ के लोग (cultists) नहीं, परन्तु मेरे हृदय की अवस्था के प्रति चिन्तित सुसमाचारवादी (evangelical) मसीही थे, जो कि मुझसे यीशु को अन्दर आने देने के लिए याचना कर रहे थे। यद्यपि मैं उनकी मसीही साक्षी के उत्साह की सराहना कर रहा था, मैं उनके आग्रह करने की रीति से परेशान था। यदि यीशु मेरी प्रतीक्षा कर रहा था कि मैं उद्धार के लिए अपने हृदय में उसको अन्दर आने दूँ, तो मैं जानता था कि वह द्वार कभी नहीं खुलेगा।

इस मिथ्याबोध के कारण, जिस प्रकार से लोग यीशु की मन फिराने और विश्वास करने की वास्तविक बुलाहट को सुनते हैं,  भयानक परिणाम सामने आए हैं। यीशु को एक सिंहासन पर विराजमान राजा से कमतर करने के द्वारा अपने राजदूतों के द्वारा उसकी बुलाहट कि “पुत्र का सम्मान करो . . . .  [ऐसा न हो] कि तुम मार्ग में नष्ट हो जाओ (भजन 2:12), हमने उसे अपने घुटनों पर आए एक किसान के समान बना दिया है, जो कि इस आशा में है कि हम उसे ग्रहण करेंगे —जैसे कि उसको हमारी स्वीकृति की आवश्यकता हो। इस प्रकार से, हमने लोगों द्वारा उसे गम्भीरता से लेने की आवश्यकता को कम कर दिया है। यदि यीशु मुझसे प्रेम करता है और उसके पास मेरे जीवन के लिए अद्भुत योजना है, जैसा कि आज ख्रीष्ट को अपने हृदय में आमन्त्रित करने के अनुरोध के साथ अनुबद्ध करने पर बल दिया है, तो वास्तव में इसका कोई महत्व नहीं है कि मैं उसको अन्दर आने दूँ, है न?

यीशु का हमारे हृदयों के द्वार पर खटखटाने का विचार विशिष्ट रूप से प्रकाशितवाक्य 3:20 पर आधारित है: “देख मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ। यदि कोई आवाज़ सुन कर द्वार खोले तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ।“ यह पद एक व्यक्ति के हृदय की स्थिति को सम्बोधित नहीं करता परन्तु यह लौदीकिया की कलीसिया के लिए मन फिराने के लिए एक बुलाहट है उस राज्य के सुसमाचार से दूर होने के लिए जिसे ख्रीष्ट ने घोषित करने के लिए उसे दिया था।

कई विद्वान मानते हैं कि लौदीकिया के नगर में साफ पानी की कमी थी और स्थानीय गरम पानी के झरनों से नगर में पानी लाने की आवश्यकता थी। जब तक पानी नगर में पहुँचता, तब तक वह प्रायः दूषित, गुनगुना या बेकार हो चुका होता था। यीशु कलीसिया की आत्मिक स्थिति को गुनगुने पानी को प्राप्त करने के बुरे अनुभव के साथ जोड़ते हुए दिखाई पड़ता है। जिस प्रकार वे लोग कभी कभी अपने पीने के पानी को उल्टी कर देते थे, यीशु ने घोषणा की कि उसी प्रकार वह भी उन्हें उल्टी कर देगा क्योंकि उनके कार्य राज्य के लिए व्यर्थ थे। 

लौदीकिया की कलीसिया में क्या समस्या थी? यीशु कहता है कि कलीसिया स्वयं को धनी, समृद्ध, और किसी भी वस्तु की आवश्यकता में नही मानती थी। वहाँ के लोग अपनी आत्मिक निर्धनता के प्रति अनभिज्ञ थे और उन्होंने यह समझने से मना कर दिया था कि वे “अभागे, तुच्छ, दरिद्र, अन्धे और नंगे थे” (पद 17)। लौदीकिया की कलीसिया अपनी समृद्धि का आनन्द ले रही थी और सुसमाचार का परित्याग कर रही थी। इसकी सेवकाई घमण्ड और आत्म-विश्वास से भरी हुई थी, और आत्मिक जीवन और साक्षी के लिए यीशु पर निर्भरता की कमी थी। इसके सन्देश ने इस स्वशासन को प्रतिबिम्बित करना आरम्भ कर दिया था। मेलमिलाप की सेवकाई—यीशु के जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान को ज्ञात कराना—प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण नहीं रह गया था, परन्तु इसके स्थान पर ध्यान लोगों की स्वयं की योजनाओं, संसाधनों, और कलीसिया क्या होनी चाहिए इसके विचारों पर रह गया था। उनकी सेवकाई लोगों को यीशु के पास पाप के उद्धारकर्ता के रूप में नहीं ले जा रही थी, परन्तु वह स्व-धार्मिकता की सेवकाई बन गयी थी। वे भूल गए थे कि यीशु धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को मन फिराने के लिए बुलाने के लिए आया था (लूका 5:32)।

इस सन्दर्भ में, यीशु कलीसिया को एक कड़ी चेतावनी देता है: “देख मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ।“ यह खटखटाहट एक कलीसिया पर अनुशासन और न्याय की खटखटाहट है जो कि अपने मिशन को भूल गयी है। जब यीशु लौदीकिया की कलीसिया में आएगा, तो वह क्या पाएगा? यदि कलीसिया उसे सुनने से मना करती है, तो वह न्याय के लिए द्वार खोल देगा। परन्तु, यदि कलीसिया मन फिराने की बुलाहट के लिए द्वार को खोलेगी, वह अन्दर आएगा और उनके साथ भोजन करेगा, और वे उसकी उपस्थिति का आनन्द लेंगे।

प्रकाशितवाक्य 3:20 में यीशु हमारे हृदय के द्वार पर अन्दर आने की चाह में अपने घुटनों पर नहीं है। यदि इस पद को हम व्यक्तियों पर लागू कराना चाहते हैं, तो हमारे पास उन लोगों के लिए चेतावनी है जो ख्रीष्ट पर विश्वास रखते हैं कि उन्हें मन फिराना चाहिए ऐसा न हो कि कठोर अनुशासन उन पर आ पड़े। फिर भी, सन्दर्भ में यह पद, सामूहिक कलीसिया के लिए अपनी बाहरी समृद्धि में आश्वस्त होने के लिए मन फिराने की एक गम्भीर बुलाहट है जबकि उन्होंने उस सन्देश को त्याग दिया जो इस खोए हुए संसार में जीवन ला सकता है। मन न फिराना कलीसिया पर यीशु का अनुशासन ले कर आएगा।

जब यीशु के जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान का सन्देश अपने संसाधनों पर आत्म-विश्वास के लिए त्याग दिया जाता है, तब हम एक सच्ची कलीसिया के रूप में कार्य नहीं करते और निकाले जाने के खतरे में आ जाते हैं। यह चेतावनी उतनी ही आज की कलीसिया की है जितनी की प्रथम शताब्दी में लौदीकिया की कलीसिया के लिए थी। क्या भवन निर्माण की हमारी सभी परियोजनाएँ और कलीसिया के विकास में सहायता के प्रयास यह प्रदर्शित करते हैं कि हम यीशु के नाम के विश्वासयोग्य साक्षी होने के लिए अत्यन्त चिन्तित हैं, या वे केवल हमें अपने विषय में अच्छा आभास कराने का ढोंग है? यह वही चिन्ता है जो यीशु को प्रकाशितवाक्य 3:20 में द्वार पर खटखटाने के लिए प्रेरित करती है। कलीसिया को कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह क्यों अस्तित्व में है: एक खोए हुए संसार में मेलमिलाप की सेवकाई की घोषणा करने के लिए।      

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
क्रिस्टोफर जे. गॉर्डन
क्रिस्टोफर जे. गॉर्डन
रेव्ह. क्रिस्टोफर जे गॉर्डन एस्कॉन्डिडो, कैलिफ़ोर्निया में एस्कॉन्डिडो यूनाइटेड रिफॉर्मेड चर्च में प्रचार करने वाले पास्टर हैं, और एबाउंडिंग ग्रेस रेडियो कार्यक्रम के मुख्य शिक्षक हैं।