1 यूहन्ना 2:27 - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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1 यूहन्ना 2:27

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दसवा अध्याय है: उस पद का अर्थ वास्तव में क्या है?

जब फर्स्ट रिमॉर्मड कलीसिया के प्राचीनों ने सुना कि लम्बी अवधि से गृह बाइबल अध्ययन का एक शिक्षकों अपने अध्ययन प्रतिभागियों को यह बता रहा था कि यीशु एक परमेश्वरीय प्राणी तो था परन्तु सामर्थ्य, महिमा और अधिकार में पिता के समान नहीं था, तो उन्होंने उसे उसके विचारों पर बात करने के लिए सत्र बैठक के लिए बुलाया। कई घण्टों तक, प्राचीनों ने उस व्यक्ति की समझ के स्रोत के विषय में पूछ-ताछ की और धीरजपूर्वक उसे सुधारने का प्रयास किया। उन्होंने पवित्रशास्त्र का अर्थनिरूपण किया—उसके मूल सन्दर्भ में उसके अर्थ को प्रकट किया—और उसकी त्रुटियों को इन्गित करते हुए उन्होंने कलीसिया के महान अंगीकारों की ओर दृष्टि की। फिर भी, वह व्यक्ति अडिग बना रहा। यहाँ तक कि जब उन्होंने यह प्रदर्शित किया कि प्रत्येक मसीही ईश्वरविज्ञानी परम्परा के महान शिक्षक उसके विचारों का खण्डन करते थे, तथा वे यीशु के पूर्ण ईश्वरत्व की पुष्टि करते थे, वह व्यक्ति फिर भी नहीं डिगा। 1 यूहन्ना 2:27 की ओर संकेत करते हुए, उसका अन्तिम उत्तर था कि उस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता है कि कोई मानवीय शिक्षक क्या सोचता है । उस पर पवित्र आत्मा का अभिषेक था, और “किसी को [उसे] सिखाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।” आत्मा ने उसे दिखाया कि ऐतिहासिक मसीही कलीसिया ख्रीष्ट की पहचान के विषय में त्रुटि थी और जो मसीहियों ने सदैव विश्वास किया है उसे उसके विरुद्ध सिखाना था।

हम में सब लोगों ने ऐसे व्यक्तियों का सामना नहीं किया किया होगा जिन्होंने आत्मा के अभिषेक के आधार पर ऐसे स्पष्ट विधर्मता को सही ठहराया हो। परन्तु हम में से अधिकांशों ने ऐसे लोगों का सामना किया है जिन्होंने कम समस्यात्मक परन्तु फिर भी त्रुटिपूर्ण विश्वास को इस खण्ड के आधार पर सही ठहराया है, जिसका तात्पर्य यह प्रतीत होता है कि मानवीय शिक्षक व्यर्थ हैं। हो सकता है कि हमने अपनी सोच को सही ठहराने के लिए स्वयं भी इसका सहारा लिया हो। परन्तु क्या ऐसी बातें सही हैं?

हमारे व्यक्तिनिष्ठता के युग में, लोग यह दृढ़ कथन करने में तत्पर हैं कि बाइबलीय खण्ड या अन्य आत्मिक विषयों में उनकी अन्तर्दृष्टि सीधे पवित्र आत्मा से आई है और उन्हें किसी मानवीय शिक्षक के अधीन बैठने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे व्यक्ति विडम्बना को नहीं समझते हैं जब 1 यूहन्ना 2:27 के आधार पर यह सिद्ध करना चाहते हैं कि मानवीय शिक्षक पूर्णतः अनावश्यक हैं। अन्ततः, यूहन्ना, जिसने पद को लिखा, स्वयं एक मानवीय शिक्षक था। निश्चित रूप से, उसने परमेश्वर की प्रेरणा की अधीनता में लिखा, परन्तु फिर भी वह एक मनुष्य ही था, एक मानवीय शिक्षक। एक मानवीय शिक्षक के लिए, अन्य लोगों को शिक्षा देते समय यह दृढ़ खतन करना अत्यन्त ही विचित्र होगा कि मानवीय शिक्षक अनावश्यक हैं। यह उसके स्वयं के निर्देश को निरर्थक और निराधार बना देगा। वह किसी से क्यों अपेक्षा करेगा कि कोई उसे सुने यदि वह लोगों से कह रहा है उन्हें उसे,एक मानवीय शिक्षक को सुनने की आवश्यकता नहीं है? 

इसका उत्तर निश्चित रूप से यह होना चाहिए कि यूहन्ना हमें सभी मानवीय शिक्षकों से मुक्ति पाने के लिए नहीं कह रहा है। अपने स्वयं के शिक्षण को समय का दुरोपयोग बताने के अतिरिक्त, ऐसा दृढ़ कथन उसे अन्य प्रेरितों के साथ असहमति में ला देगा, जिनका तर्क है कि हमें विश्वास में परिपक्व होने में सहायता के लिए परमेश्वर ने मानवीय शिक्षकों को अपनी कलीसिया को दिया (इफिसियों 4:11-16)। परन्तु यदि यूहन्ना मानवीय शिक्षकों की आवश्यकता से इन्कार नहीं कर रहा है, तो वह क्या कह रहा है?

यूहन्ना ने उन श्रोताओं को लिखा जो उन शिक्षकों से ग्रस्त थे जिन्होंने परमेश्वर की बातों के विषय में ऐसे विशेष अन्तदृष्टि का दृढ़ कथन करते थे जो कि अन्य विश्वासी साझा नहीं करते थे। वह इस पत्र के प्राप्तकर्ताओं को बता रहे थे कि प्रेरितों की मध्यस्थता के अतिरिक्त, परमेश्वर ने उनसे प्रत्यक्ष रूप से बात की है, उन्हें यह बताने के लिए कि ख्रीष्ट ने मानवीय देह नहीं लिया था, कि पापरहित सिद्धता और अन्य त्रुटियाँ इस जीवन में सम्भव हैं। (1 यूहन्ना 1 में ध्यान दें कि यूहन्ना कैसे इन त्रुटियों के विरुद्ध सिखाता है यह बल डालते हुए कि प्रेरितों ने देहधारी ख्रीष्ट को छुआ, देखा और सुना और यह पुष्टि करते हुए यदि हम कहते हैं हम में कोई पाप नहीं है तो हम स्वयं को धोखा देते हैं।) इन शिक्षकों ने मसीही समुदाय को दो समूहों में बाँट दिया था—आत्मिक “सम्पन्न” आत्मा द्वारा गुप्त ज्ञान और अन्तर्दृष्टि प्राप्त पुरुष और स्त्री, और आत्मिक “असम्पन्न,” विश्वासियों की एक बड़ी संख्या जिनमें ऐसी समझ की कमी थी।

तथाकथित आत्मिक सम्पन्न लोग कलीसिया को तोड़ रहे थे और यूहन्ना के श्रोताओं को धोखा देने का प्रयास कर रहे थे (2:26)। इसलिए, 1 यूहन्ना 2:27 में यूहन्ना पुष्टि करता है कि उसके श्रोताओं को इन झूठे शिक्षकों को सुनने की आवश्यकता नहीं है। उनका विशेष अभिषेक और मसीही सत्य की अन्तर्दृष्टि का दृढ़ कथन सच नहीं था, और किसी भी स्थिति में हर एक सच्चे मसीही के पास पवित्र आत्मा का अभिषेक होता है, इसलिए उन्हें ऐसे लोगों की सहायता की आवश्यकता नहीं है जो यह दृढ़ कथन करते हैं कि वे उनसे अधिक अभिषिक्त हैं।

यूहन्ना यह नहीं कह रहा, “सभी मानवीय शिक्षकों को भूल जाओ”। वह केवल यह चाहता है कि मसीही समझें कि उनमें पवित्र आत्मा है और यह कि आत्मा उन पर ख्रीष्ट के सत्य को प्रमाणित करेगा। परन्तु ख्रीष्ट का यह सत्य प्रेरिताई साक्षी से पृथक हमारे पास नहीं आता है, जो कि पवित्रशास्त्र से अधिक या कम नहीं है। परमेश्वर कुछ व्यक्तियों को विचार और अभिव्यक्ति की स्पष्टता का दान देता है ताकि वे परमेश्वर के वचन को इसके मूल सन्दर्भ में समझ सकें और अन्य लोगों को समझा सकें। परन्तु हम में से किसी को भी एक ऐसे मानवीय शिक्षक की आवश्यकता नहीं है जो कि ऐसे अभिषेक का दृढ़ कथन करे जो कि उससे भिन्न है जो आत्मा हमें देता है। वह अपने लोगों के हृदयों और मनों को प्रकाशित करता है जब वे उसके पवित्रशास्त्र में लिखे वचन पर ध्यान देते हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया
रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल टेबलटॉक पत्रिका के सहयोगी संपादक, लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के लिए वरिष्ठ लेखक और रिफॉर्मेशन बाइबल कॉलेज के निवासी सहायक प्राध्यापक हैं।