फिलिप्पियों 4:13 - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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24 जून 2022
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फिलिप्पियों 4:13

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का नौववा अध्याय है: उस पद का अर्थ वास्तव में क्या है?

पिछली बार आपने किसी खिलाड़ी को एक हार के पश्चात् कब यह कहते सुना था, “जो मुझे सामर्थ प्रदान करता है उसके द्वारा मैं सब कुछ कर सकता हूँ?” अमरीकी खेल-कूद में, एक खेल के पश्चात् किसी विजेता का फिलिप्पियों 4:13 को उद्धृत करना असाधारण बात नहीं है, परन्तु हम दुर्लभ ही हारने वाले पक्ष की ओर से इसे सुनते हैं। यह दृश्य खेल-कूद में सम्भवतः अधिक स्पष्ट है, परन्तु इसे प्रतियोगिता के अन्य क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है। इस पद को हम केवल विजय होने के सन्दर्भ में ही क्यों सुनते है? क्या इसके लागूकरण की सीमा इतनी ही है?

हम समान्य रीति से इस पद को जीतने के साथ जोड़ते हैं क्योंकि “कर सकता हूँ” क्रिया उपलब्धि तथा सफलता के समान सुनाई देती है। दूसरी ओर, हारना कुछ न करने का या बाहर निकल जाने का परिणाम है। इसलिए, यह अर्थ समझ में आता है कि जब हम सुनते हैं “मैं सब कुछ कर सकता हूँ,” तो हम इसे विजय से जोड़ते हैं, क्योंकि विजेता ने कुछ किया है।              

यदि विजय के क्षण में एक विजेता सफल होने की सामर्थ्य के लिए ख्रीष्ट को श्रेय देता है, तो यह एक उचित और अच्छी बात है। परन्तु ऐसे क्षणों से यह निष्कर्ष निकालना भूल होगी कि यह पद केवल विजेताओं के लिए ही है। किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि जब कभी वह विजयी नहीं है तो ऐसा इसलिए है क्योंकि यीशु उसके साथ नहीं है या वह परमेश्वर के समर्थन से दूर है, क्योंकि स्पष्ट रूप से पौलुस का यह अर्थ नहीं था।

पौलुस ने रोम के बन्दीगृह से फिलिप्पियों को अपनी पत्री लिखा था। बन्दीगृह विजेताओं का स्थान नहीं है, कम से कम इस संसार की परिभाषित के अनुसार तो नहीं। निस्सन्देहः, पौलुस को अपनी परिभाषाएँ इस संसार से नहीं मिली थी। उसका “कर सकना” मात्र “विजयी होने” से कहीं अधिक है और उसके “सब कुछ” में उससे अधिक सम्मिलित है जो ट्रॉफी की अल्मारी या कार्यालय की दीवारों पर स्मरण करने के लिए रखे जाते हैं।

पौलुस के बन्दी बनाए जाने की परिस्थिति किसी भी मनुष्य को कुचल कर रख देगी, यदि वह अपनी सामर्थ्य पर भरोसा करे। जैसे कि उसे बन्दी बना कर रखना पर्याप्त नहीं था, कपट करने वाले प्रचारक उसे और अधिक कष्ट देने की खोज में थे (1:17), अल्प प्रावधानों के कारण वह “क्लेश” में था (4:14), और मृत्यु सम्भावित रूप से मुक्त होने के एक परिणाम के रूप में प्रतीत होती थी (1:20)। परन्तु परमेश्वर को त्यागने या फिर पीड़ा या भूख या भय में उसके विरुद्ध  कुड़कुड़ाने के स्थान पर, पौलुस अपनी परिस्थितियों में शान्ति से था। पौलुस ने सन्तोष “किया।” और इस अकथनीय उपलब्धि का रहस्य—आशाहीन स्थिति में उसकी धैर्यवान दृढ़ता का कारण—ख्रीष्ट में विश्वास था।

मैंने प्रत्येक परिस्थिति में सन्तुष्ट रहना सीख लिया है। मैं दीन-हीन दशा और सम्पन्नता में भी रहना जानता हूँ, हर बात और प्रत्येक परिस्थिति में मैंने तृप्त होना, भूखा रहना,और घटना बढ़ना सीख लिया है। जो मुझे सामर्थ प्रदान करता है उसके द्वारा मैं सब कुछ कर सकता हूँ। (4:11-13) 

ध्यान दें कि पौलुस “सब कुछ” वाक्यांश में किन बातों को जोड़ता है जब वह पद 13 को निर्मित करता है: “भूखा रहना,” “घटना” और “दीन-हीन होना”। ख्रीष्ट के द्वारा वह जो कुछ करने के योग्य है उस सीमा में, पौलुस के मस्तिष्क में अभाव और अपमान के समय हैं। जब वह जीवन को “खो” रहा होता है, पौलुस तब भी सन्तुष्ट होता है क्योंकि वह जानता है कि उसका परमेश्वर अभी भी उसके साथ है।

इसीलिए हर परिस्थिति में पराजित खिलाड़ी और मसीहियों को भी किसी विजेता के समान पद 13 को अपनाना चाहिए: यीशु अपने लोगों के हानि और संघर्ष और मनोव्यथा के मध्य उतना ही साथ रहता और सामर्थ देता है जितना कि सफलता और समृद्धि के समयों में रहता है। इस प्रकार से, फिलिप्पियों 4:13 में पौलुस के शब्द सात सदी पहले के हबक्कूक के शब्दों की प्रतिध्वनि करते हैं: “चाहे अंजीर का वृक्ष का फूले, न दाखलताओं में फल लगे. . . . .फिर भी यहोवा के कारण मैं आनन्दित रहूँगा और अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर में मग्न रहूँगा। प्रभु यहोवा मेरा बल है (हबक्कूक 3:17-19)। हबक्कूक अपनी निराश्रित परिस्थिति के बाद भी परमेश्वर में मग्न “हुआ,” क्योंकि वह अपने उद्धारकर्ता की सामर्थ्य को जानता था। 

परन्तु हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि “सब कुछ” की श्रेणी में पौलुस ने तृप्त होने और बढ़ने के समयों का भी उल्लेख किया है। ख्रीष्ट को अपने लोगों को सरल समयों में भी बनाए रखना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर को भूलने का प्रलोभन केवल तब उत्पन्न नहीं होता जब उसकी आशीषें अनुपस्थित हों परन्तु तब भी जब वे भरपूरी में होती हैं।

यह सोचना हमारे विचारों के विरुद्ध है कि हमें बहुतायत का सामना करने के लिए सहायता की आवश्यकता होगी। परन्तु यदि हमें विश्वासयोग्य रहना है तो परमेश्वर की आशीषों को समझने, स्वयं से इसका श्रेय लेने, और देने वाले से अधिक उपहारों की आराधना करने जैसे समयों में प्रलोभन का इन्कार करने के लिए ईश्वरीय सामर्थ्य की आवाश्यकता होती है। इसलिए, यदि कोई अपनी सफलता के आरम्भ में ख्रीष्ट को श्रेय देता है तो उसे सारे समयों में उस पर भरोसा करना चाहिए, ऐसा न हो कि वह उसे भूल जाए जिसने उसे दिया है।

फिलिप्पियों 4:13 हमें सिखाता है कि उसमें विश्वास के द्वारा, हमारा प्रभु यीशु हमें निर्धनता के दबाव से ले कर समृद्धि की शोधन आग में, जिस भी परिस्थिति में वह हमें रखे वह हमें सन्तुष्टि के साथ सहने के योग्य बनाता है। “विजयी” मसीहियों के लिए एक शीर्ष-वाक्य, “जो मुझे सामर्थ प्रदान करता है उसके द्वारा मैं सब कुछ कर सकता हूँ” से अधिक यह प्रभु की सेना के प्रत्येक सैनिक का निरन्तर का दृढ़ कथन है। चाहे पर्वतों की चोटी को पार करना हो या घाटियों में चलना हो, हम प्रभु में सन्तुष्ट हो सकते हैं क्योंकि वह सदैव हमारे साथ है, हमारी हर एक आवश्यकता की पूर्ति करता है और प्रेम सहित हमारी अन्तिम विजय की ओर ले जाता 

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया