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मत्ती, मरकुस और लूका को पारम्परिक रूप से “समदर्शी सुसमाचार” (“Synoptic Gospels”) के रूप में वर्गीकरण किया जाता है। वे परमेश्वर का प्रतिज्ञात मसीहा के रूप में यीशु के जन्म, जीवन, सेवकाई, मृत्यु, पुनरुत्थान और महिमा की और उसके द्वारा प्राप्त एक-ही बार-सबके लिए उद्धार के अर्जित किए जाने की रूपरेखा प्रदान करते हैं। वे भिन्न सुसमाचार नहीं हैं, परन्तु यीशु का अद्वितीय जन और छुटकारे को सुनिश्चित करने वाली घटनाओं के सम्बन्ध में तीन प्रत्यक्षदर्शी प्रेरितों की साक्षियाँ हैं।
जब हम यूहन्ना के सुसमाचार पर आते हैं, तो यह शीघ्र ही स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि यह एक ही विषय-वस्तु से सम्बन्धित बात करता है, इसका एक विशिष्ट दृष्टिकोण है। ख्रीष्ट के जीवन और कार्य का सार प्रदान करने के स्थान पर, यह एक चुनिन्दा विवरण प्रदान करता है जो अति-महत्वपूर्ण तत्वों पर प्रकाश डालता है कि यीशु कौन है और कौन सी बात उसे एकमात्र ऐसे व्यक्ति के रूप में पृथक करती है जिसे सही से “ख्रीष्ट” के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
यूहन्ना इसे अपने सुसमाचार को अन्त तक समझने की कुँजी समझता है: “ये जो लिखे गए हैं इसलिए लिखे गए कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है, और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ” (यूहन्ना 20:31)। यह हमें यूहन्ना के सुसमाचार की तीन विशेषताओं की ओर ले जाता है जो इसके महत्व को स्पष्ट करती है।
1. यूहन्ना प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों को सम्मिलित करता है कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
यूहन्ना नासरत के यीशु को ख्रीष्ट होने की बात को प्रस्तुत करता है और और ऐसी साक्षी देता है जो न्यायालय में मान्य होगी। अपनी प्रस्तावना में, यूहन्ना ऐसे दावे करता है जो बड़ा ही विचित्र लगते हैं। उसके आरम्भिक शब्दों में उत्पत्ति के पहले शब्दों और सृष्टि के वर्णन की अचूक प्रतिध्वनियाँ हैं। वह सृष्टि के कारक “वचन” के विषय में कुछ रहस्यमय ढ़ंग से बात करता है, परन्तु फिर इस चित्रण को परमेश्वर के देहधारी पुत्र के साथ स्पष्ट रूप से जोड़ता है (यूहन्ना 1:14-18)। यद्यपि परिचय में जो बात सामने आती है, वह है यूहन्ना द्वारा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शब्दों को सम्मिलित करना, जिसकी बुलाहट इस सत्य का “गवाह” होना था (यूहन्ना 1:6-8)। यूहन्ना सुसमाचार-प्रचारक शीघ्र ही यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की साक्षी को बताता है (यूहन्ना 1:19-34), वह साहसपूर्वक घोषणा करता है कि यीशु “परमेश्वर का मेमना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना 1:29), और मानो वह किसी न्यायालय में साक्षी रहा हो, और कहता है, “मैंने देखा और साक्षी दी है कि यही परमेश्वर का पुत्र है” (यूहन्ना 1:34)।
यीशु परमेश्वर का पुत्र और संसार का उद्धारकर्ता है इस साक्षी के विषय-वस्तु की लड़ें सम्पूर्ण यूहन्ना के सुसमाचार में बुनी गईं हैं, जिसमें पिलातुस की साक्षी (यूहन्ना 18:38-39), यीशु की मृत्यु के विषय में यूहन्ना की अपने आँखों देखी साक्षी (यूहन्ना 19:35) भी सम्मिलित है, और यहाँ तक कि आश्चर्यजनक बात यह है कि मरियम मगदलिनी पुनरुत्थित ख्रीष्ट के प्रथम प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के रूप में वर्णित किया गया है (यूहन्ना 20:18)। यूहन्ना के सुसमाचार के असाधारण दृढ़-कथनों की पुष्टि विश्वसनीय साक्षियों की साक्षियों के द्वारा पुष्टि की गई है।
2. यूहन्ना ऐसे आश्चर्यकर्मों को सम्मिलित करता है जो साक्षी देते हैं कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है।
यूहन्ना की दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि वह यीशु के केवल सात आश्चर्यकर्मों को ही अभिलिखित करता है और उन्हें “चिन्ह” के रूप में बतलाता है। ऐसा करते हुए वह इस बात के लिए मूर्त किन्तु अलौकिक संकेत प्रदान करता है कि यीशु देहधारी परमेश्वर के पुत्र है।
काना में एक विवाह में यीशु के प्रथम आश्चर्यकर्म को “उसके चिन्हों में से पहला” के रूप में वर्णित किया गया है जिसने “उसकी महिमा को प्रकट किया” और “उसके चेलों को उस पर विश्वास करने लिए प्रेरित किया” (यूहन्ना 2:11)। यह यशायाह के माध्यम से “उत्तम से उत्तम चिकना भोजन के भोज” और पुरानी मदिरा (यशायाह 25:6) के विषय में परमेश्वर की प्रतिज्ञा
को स्मरण दिलाता है जो मसीहा के आगमन का चिन्ह होगा।
यूहन्ना के अभिलेख में और छ: चिन्ह यीशु का देहधारी पुत्र होने के एक विशेष पहलू को उजागर करते हैं। उन में से तीन विशेष रूप से यीशु द्वारा दिए गए उपदेशों के लिए वास्तविक दृश्य सहायक के रूप में कार्य करते हैं जो या तो उनसे सीधे जुड़े हुए थे या यूहन्ना ने अपने सुसमाचार अभिलेख में विषयागत रूप से उपयोग किया था। पहला पाँच हज़ार लोगों को खिलाने और जीवन की रोटी के उपदेश (यूहन्ना 6:1-59) के मध्य सम्बन्ध है। और दूसरा यीशु के “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ” उपदेश और लाज़र को जिला उठाने के मध्य सम्बन्ध है (यूहन्ना 11:17-27, 38-44)।
3. यूहन्ना हमें यीशु के कार्य के उद्देश्य (मिशन) के विषय में अन्तर्दृष्टि प्रदान करने हेतु ऊपर कक्ष के उपदेश को सम्मिलित करता है।
यूहन्ना में अन्तिम विशेषता जो बड़ी दिखाई देती है और उसके सन्देश को एक विशिष्ट विशेषता प्रदान करती है वह है ऊपरी कक्ष का उपदेश (यूहन्ना 13:1-17:26)। यह ऐसा है मानों हमें यह सुनने की अनुमति दिया जाता है कि यीशु ने उस महत्वपूर्ण अवसर पर क्या कहा था।
इसका आरम्भ यीशु द्वारा वास्तव में स्वयं को यहोवा का प्रतिज्ञात सेवक के रूप में दिखाने से होता है जब वह अपने चेलों के पैर धोता है (यूहन्ना 13:1-20)। यह यीशु अपने ही किसी निकट व्यक्ति द्वारा विश्वासघात को प्रकट करने के साथ आगे बढ़ता है, परन्तु यह प्रदर्शित करते हुए कि यह परमेश्वर के उद्धार की योजना का एक अभिन्न भाग था।
वह अपने चेलों के लिए स्थान तैयार करने के विषय में बात करता है और सभी युगों से लोग वहाँ पर पहुँचने के लिए कैसे सुनिश्चित हो सकते हैं (यूहन्ना 14:1-7), फिर अपना पवित्र आत्मा, ख्रीष्ट का आत्मा भेजने के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा के विषय में बात करता हैं, जिसके माध्यम से यीशु युगानुयुग तक अपने लोगों के साथ उपस्थिति रहेगा। फिर वह इस पतित संसार में उसके पीछे चलने का क्या अर्थ है की वास्तविकता की जाँच को प्रदान करता है—जिसमें हमें “कष्ट होगा”—परन्तु यह जानने में शान्ति भी है कि ख्रीष्ट संसार को जीत लिया है और वह हमारा रक्षक होगा (यूहन्ना 16:33)।
ऊपरी कक्ष का दृष्य सम्भवतः अब तक की सबसे महत्वपूर्ण प्रार्थना को सुनने के साथ समाप्त होती है। प्रायः इसे यीशु की महायाजकीय प्रार्थना के रूप में उल्लिखित किया जाता है, यीशु अपने उद्धार के कार्य की सफलता और प्रभावकारिता के लिए प्रार्थना करते हैं। जैसे ही हम इसके महत्व को समझना आरम्भ करते हैं, यह पिलातुस के राजभवन से पहले ही, कलवरी के क्रूस पर और खाली कब्र के माध्यम से आने वाले अध्यायों में जो कुछ भी सामने आता है उसकी उपलब्धि को पहले से ही समझा देता है। यह वास्तव में शुभ सन्देश है जिस पर विश्वास किया जाना चाहिए।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।